छत्तीसगढ़ी दोहे
रामकुमार पटेल 'सोनादुला'
जाँजगीर चांपा (छत्तीसगढ़)
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(छत्तीसगढ़ी दोहे)
होरी हे के कहत मा, मन म गुदगुदी छाय।
गोरी गुलाल गाल के, सुरता कर मुसकाय।।
एक हाँथ गुलाल धरे, दुसर हाँथ पिचकारि।
बने रंग गुलाल लगा, गोरी ला पुचकारि।।
रंग रसायन जब लगे, होही खजरी रोग।
परत रंग तन मन जरय, नहीं प्रेम के जोग।।
चिखला गोबर केंरवँछ, जबरन के चुपराय।
खेलत होरी मन फटे, तन मईल भर जाय।।
परकिरती के रंग ले, रंग बड़े नहि कोय।
डारत मन पिरीत बढ़े, खरचा नइ तो होय।।
परसा लाली फूल ला, पानी मा डबकाय।
डारव कतको अंग मा, कभु न जरय खजवाय।।
परसा फूले लाल रे, पिंवँरा सरसों फूल।
गोरी होरी याद रख, कभु झन जाबे भूल।।
होरी अइसन खेल तैं, सब दिन सुरता आय।
अवगुन के होरी जरे, कभु गुन जरे न पाय।।
तन के भुइयाँ अगुन के, लकरी लाय कुढ़ोय।
अगिन लगा ले ग्यान के, हिरदे उज्जर होय।।
लाल ...




