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कविता

प्रकृति की गोद
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प्रकृति की गोद

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** फिर से उठ कर धारा को हरियाली से सराबोर करते हैं, आओ चलो प्रकृति की गोद में लौट चलते हैं । इन्हीं से सीखा है जीवन का सार मानव ने पर्वत से ऊंचाई, सागर से गहराई, चांद से शीतलता, सूरज से चमक वायु है प्राण, अग्नि तपाकर सोना बनाती है अग्नि धारा, जल, वायु, जीवन का रहस्य समझते हैं पेड़ों पौधों में भरी हैं खुशगवार जिंदगी को हवा से मिलकर मधुर संगीत सुनाती हैं झरनों नदियों की कल-कल से सुहाने स्वर उभरते हैं, आओ फिर से समंदर की मस्ती भरी लहरों पर चलते हैं बारिश की बूंदों से भी, ऊंचे उठकर धारा पर वापस आना भी सीखते हैं। कैसे कैद कर सकता है कोई प्रकृति की इन मजबूत दीवारों को !! हे मनुष्य मत करो प्रकृति पर प्रहार, मत ध्वस्त करो, ये पर्वत, ये धारा, ये जीव, इनका जीवन मत क्रूर बनो इतना कि हर जीवन सम...
मेरी रामायण (भाग-१)
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मेरी रामायण (भाग-१)

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** प्रथम वंदन आपको हे मां शारदे उत्तम रामायण मैं वर्णन करूं अपनी कला को मुझपे वार दें फिर वंदन देव तेंतीस करोड़ करूं मेरी कलम आप भव से तार दे ब्रह्मा विष्णु महेश हृदय में आए मेरी रामायण में राम को उतार दे अब वंदन गुरु करू और मात पिता हे राम भक्त हनुमत आप स्वयं आओ दो मुझे रामायण रचने की विद्या हे गुरुदेव मन चिंतित और हिय व्यथित तन-मन-धन सब मेरा व्यर्थ रानियों सहित हे राजन ऐसे क्यों दुखी सुखे वृक्ष समान अयोध्या के राजा हों क्यों ना सुखी हो राज पाठ वैभव मेरा सब है बेकारी क्यों नहीं करता कोई नन्हा मम पीठ सवारी कब गुंजेगी गुमगाम महल में कोई किलकारी क्या मेरी चिता को अग्नि देने वाला नहीं आएगा रघुकुल का सूर्य मेरे साथ ही अस्त हो जाएगा व्यथा मेरी मुझे जर-जर कर रही गोद सुनी ना रह जाए रानियां भी डर रही क्या मुझे कोई पिता य...
चाहते हैं सब हल निकले
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चाहते हैं सब हल निकले

विष्णु दत्त भट्ट नई दिल्ली ******************** चाहते हैं सब हल निकले आज नहीं तो कल निकले। अहंकार की माया है, युद्ध भयंकर छाया है। स्वार्थ साधने की ख़ातिर, आतंकी अब दल निकले। हाहाकर है चारों ओर मारो -मारो का है शोर। इस खूनी मार-काट का ना जाने क्या फल निकले? बच्चे-बूढ़े नर और नारी संकट सब पर है ये भारी। जान निरीहों की बन्धु, ना जाने किस पल निकले? चारों तरफ़ बस डर ही डर जीवन काँपे थर, थर, थर। जान बचाने को अपनी भागे रक्षक दल निकले। युद्ध भला किसका करता, बस जीवन तिल-तिल मरता। अहंकार तुष्टि की खातिर, लाशें अब हर पल निकले। दुष्ट दुष्टता छोड़े ना मुँह हिंसा से मोड़े ना। लाशों के बाजार में चाहे हर हाल दुकां ये चल निकले। सुनो सत्य ओ तालिबानी! धरती किस के संग न जानी। सत्य छोड़ फिर खून बहाने, बेहूदों के दल निकले। वैमनस्य अब छोड़ो भी, स्नेह सूत्र को जोड़ो जी। ...
महावीर चन्द्रबरदाई
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महावीर चन्द्रबरदाई

विमल राव भोपाल मध्य प्रदेश ******************** महावीर बलिदानी था वो निडर गया था गज़नी में। पृथ्वीराज का मान बचाने शौर्य दिखाया गज़नी में॥ समकालीन बहुत थे शासक क्षत्रित्व नही था उनमे भी। पृथ्वीराज को बचा सके जो वह शौर्य नही था उनमे भी॥ बाल सखा सामंत चन्द्र नें तब अपना शौर्य जगाया था। जा गज़नी की धरती पर उस गौरी को मरवाया था॥ नैत्रहीन उस पृथ्वीराज को सखा चन्द्र नें समझाया। शब्द भेदी विधा से उसनें गौरी को था मरवाया॥ ऐसे वीर बलिदानी को देश भूल ना पायेगा। हैं कवि चन्द्रबरदाई तुमको जन मानस शीश नवायेगा॥ परिचय :- विमल राव "भोपाल" पिता - श्री प्रेमनारायण राव लेखक, एवं संगीतकार हैं इन्ही से प्रेरणा लेकर लिखना प्रारम्भ किया। निवास - भोजपाल की नगरी (भोपाल म.प्र) विशेष : कवि, लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता एवं प्रदेश सचिव - अ.भा.वंशावली संरक्षण एवं संवर्द्धन संस्थान म.प्र, रच...
घी त्यार-ओगली संक्रांति
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घी त्यार-ओगली संक्रांति

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** आई सिंह संक्रांति तो, घी त्यार ओल्गी मनाई | पकाकर बेडू रोटी तो, घी में भिगोकर खाई ||१|| नव पल्लवित हरित प्रकृति, खेतों में पत्तियां सुंदर बनाई | मिलाकर अरबी की बाबा को, सुंदर सब्जी क्या बनाई ||२|| त्याग कर खेती-बाड़ी को अब, तुमने धनिया जब नहीं जमाई | दैंअब कैसे तुम्हें परम स्नेहियो, घी संक्रांति की बधाई ||३|| बने सब गरीबी रेखा के लोग, बीपीएल बना सहाई है | निष्क्रिय बने बंधु बंधुओं को, घृत- संक्रांति की बधाई है ||४|| त्याग रहे संस्कृति और सभ्यता, पर्वोत्सवों में मतिहीनता दिखाई है | देवभूमि के सभी प्रिय बंधुओं को, घृत संक्रांति की बधाई है ||५|| शिक्षायुक्त लोगों ने रोजगार लेकर, समाज में अपनी जगह बनाई है | बाकी सदा बने निष्क्रियों को भी, घृत संक्रांति की बधाई है ||६|| घृत संक्रांति की बधाई है, घृतसंक्रांति क...
उठे जब भी कलम
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उठे जब भी कलम

सन्तोषी किमोठी वशिष्ठ रूद्रप्रयाग (उत्तराखंड) ******************** उठे जब भी कलम मेरी अधरों पर कुछ विचार लिए। चल पड़ती हूँ तब में कुछ नयें अंदाज लिए।। सोचती है इक नयीं पहेली अंगुलियों की पनाह में। लिखती है नयीं कहानी एकान्त में।। उठे जब भी कलम भावनाओं के सागर में। डूब जाती है ये मेरी कलम स्याही के समन्दर में।। कभी अश्कों की नमी रच लेती है। कभी हृदय की परख कर लेती है।। बैठे-बैठे इतिहास स्वर्ण, अक्षरों में अंकित कर लेती है। ये मेरी कलम सागर से मोती हिमालय से मुकुट, और चाँद से चाँदनी चुरा लेती है।। उठे जब भी कलम, इक नया सूरज उगा लेती है। कभी निशां की रोशनी में कभी भोर में चल लेती है।। परिचय :-  सन्तोषी किमोठी वशिष्ठ शिक्षा : स्नातकोत्तर- एच, एन, बी गढ़वाल यूनिवर्सिटी श्रीनगर निवासी : रूद्रप्रयाग (उत्तराखंड) सम्प्रति : शिक्षिका, लेखिका/कवय...
सोनू! जिंदगी एक परीक्षा है
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सोनू! जिंदगी एक परीक्षा है

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** ये रब खुदा का बनाया हुआ एक सुलझा हुआ पाठ्यक्रम है जिंदगी एक परीक्षा है जरा भी हाल बेहाल हुआ सारा भूगोल हिल जाता है आंखों से अंतःप्रवाही नदियाँ समंदर बन बह निकलती हैं दिल की भूमि दुःखों के हल चल पड़ते हैं सारी खुशियाँ इतिहास बन जाती हैं दिल में सामाजिक अध्ययन होने लगता है समाज उथल पुथल होने लगता राजनीति का खेल आरम्भ हो जाता अल्फाजों की सरकार बनती है आंखों के आँसू और दिल के दर्द को आंखों की साजिश करार दी जाती है विपक्ष को अर्थशास्त्र का ज्ञान मिल जाता है जिंदगी की इन पहेलियों को गणित के माध्यम से सुलझाने का कार्य करते हैं फिर अर्थशास्त्र के द्वारा भौतिकशास्त्र के विकास के पुल बनाये जाते हैं मानवशास्त्र शून्य की ओर बढ़ता है मनोविज्ञान का खेल आरम्भ होता है समसामयिक समस्याएं सामने आने लगती हैं जीवशा...
उम्मीद अभी भी बाकी हैं
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उम्मीद अभी भी बाकी हैं

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** टूट गये सब ख्वाब तो, शेष अभी भी शाकी है, पलट गये हैं पासे सभी, उम्मीद अभी बाकी हैं। महामारी ने खूब सताया, अच्छा समय लौट आया, अभी भी ताका झांकी है, उम्मीद अभी भी बाकी है। मृत्यु शैया पर पड़ा हुआ, पास खड़े हैं चाहने वाले, उनकी हर बुराई माफी है, उम्मीद अभी भी बाकी है। जब तक इंसान धरती पर, होती रहेंगी ये भूल सुधार, उम्मीदों का सहारा पाकर, नहीं हो सकती कभी हार। हार गये राज पाट पांडव, मिल चुका था अज्ञातवास, श्रीकृष्ण आये बोले हँसते, उम्मीद अभी भी बाकी है। प्राण हर लिये सत्यवान, सावित्री संग में यमराज, प्राण वापस लाने की वो, उम्मीद अभी भी बाकी है। मार्कंडेय मृत्यु के निकट, बाल रूप अति सुहाना है, शिवभोले में अपार भक्ति, जीने की उम्मीद बाकी है। तूफान से अब घिर चुके, मृत्यु आती पल पल पास, जीन...
लेखक पाठक और श्रोता का रिश्ता
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लेखक पाठक और श्रोता का रिश्ता

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** सागर से भी गहरा है हमारा आपका रिश्ता। आसमान से भी ऊंचा है हमारा आपका का रिश्ता। मैं दुआ करता हूँ ईश्वर से, की ऐसा ही बना रहे ये रिश्ता।। समर्पण का दूसरा भाव हैं आपका हमारा रिश्ता। विश्वास की अनूठी गाथा हैं लेखक पाठक का रिश्ता। स्नेह प्यार की मिसाल हैं हम दोनों का रिश्ता। तभी तो माँ वीणा की कृपा बनी रहती है लेखक पर।। दिलकी गहराई से दुआ दी है आप लोगों ने मुझे। इसी तरह से आगे भी प्रतिक्रियां आप देते रहे। नज़र ना लगे कभी हम दोनों के इस रिश्ते को। चाँद-सितारों से भी लंबा साथ बना रहे लेखक पाठक का।। कभी ख़ुशी कभी गम ये स्नेह हो न कभी कम। हम लिखते रहे आप पड़ते रहो लेखक पाठक के रिश्तों को और मजबूत करो। तभी देश में गुलाब की तरह दोनों महकते रहोगें।। लेखक के भावों को समझकर शायद आपको सुकून मिलेगा। बुझते हुए दिलो...
इक माँ
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इक माँ

ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' तिलसहरी (कानपुर नगर) ******************** कितनी त्याग तपस्या देखो, जग में इक माँ करती है, पाने को मातृत्व लाभ वह, सदा मृत्यु से भी लड़ती है। छोटी सी इक कन्या देखो, यौवन नारी बन जाती है। फिर सृष्टि जगत नियमों से बँध, खुद माँ के ख्वाब सजाती है। सास ससुर पति सेवा में वह, निज जीवन अर्पित रहती है। कितनी त्याग तपस्या देखो, जग में इक माँ करती है। माँ बनने के प्रेम पाश में, कष्ट अनेकों वह पाती है, कभी कभी साक्षात मृत्यु से, माँ सीधे आँख लड़ाती है। देने को सारा सुख सुत को, रातों वह जगती रहती है। कितनी त्याग तपस्या देखो, जग में इक माँ करती है। माँ की ममता का पैमाना, जग में कौन बता पाएगा, यह सृष्टि रची जिस ब्रह्मा ने, क्या व्याख्या वह कर पायेगा। जग में माँ ही तो होती है, सह कष्टों को भी हँसती है। कितनी त्याग तपस्या देखो, जग में इक माँ करती ...
मेरी जगह कहाँ है…?
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मेरी जगह कहाँ है…?

दीप्ता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कौन हूँ मैं नादान समझ न पाऊं, कहाँ मेरी जगह है ढ़ूंढ़ न पाऊं, सदियों तलक चुपचाप रही, हर जुल्म को खामोश सहती रही, कलकल नदिया सी बहती रही, हर दर्द में भी मुस्कुराती रही।।१।। कोई दर्दे दिल की बात नहीं समझता, बिना कहे कोई जज़्बात नहीं समझता, हर ताने पर बीच में मायका आता है, मेरे मात-पिता को हर कोई सुनाता है और दिल मेरा जख्मी हो जाता है।।२।। क़ोई भी घर में कुछ गलत करने लगे, तो सब गलतियों पर नाम उसका लगे, कोई भी कभी किसी से पीछे न रहे, हर तरह के आरोप उसके ऊपर लगे, पति उनके साथ सोने पे सुहागा लगे।।३।। वो तो एक के पीछे घरबार छोड़ आती है, जन्म के नाते और पीहर छोड़ आती है, वो तो अपना सर्वस्व न्योछावर करती है, न जाने क्यों दुनिया उसे धिक्कारती है।।४।। हर बेटी के लिए मेरी यही है तमन्ना, अपने पैरों पर तुम खड़ी हो जाना, किसी के आ...
काबुल में कहर
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काबुल में कहर

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** राजनीति नहीं आती हमको एक बात कह देते हैं। ठीक नहीं है आरजकता क्यों कर वो सह लेते हैं। कदम डिगे सत्ता के कैसे, कुछ भी तो न कर पाये। साफ़-साफ़ ऐसा दिखता लौट के बुद्धू घर आये। डाल दिये हथियार आपने बिना लड़े ही हार गये। संकट में आवाम फंसी वो दुबिधा में क्यों डाल गये। पाक परस्ती, होकर जनता, पता नहीं क्या पायेगी। अफगानी है कौम निराली कैसे क्या कर पायेगी? याद आज इंदिरा की आई, नाकों चने चबा देती। गनी बेचारे नहीं भागते जनता संबल पा जाती। दोष क्या है मासूमों का, अस्मत क़िस्मत खो बैठे। बहुत बुरे हैं अमरीकन, जो विष बोकर हैं घर बैठे? तालिवान के दस्तों को, यदि दुनिया ने रोका होता। संयुक्त राष्ट्र हिम्मत करते कभी नहीं धोखा होता। भयभीत लगे सारी दुनिया, आतंकी हमले जारी हैं। बिजू का गुस्सा केवल ये, आतंकी सब पर भारी हैं। पर...
देश की माटी चंदन-सी
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देश की माटी चंदन-सी

श्रीमती विभा पांडेय पुणे, (महाराष्ट्र) ******************** गर वतन की बात है तो हम सदा तैयार हैं । देश की माटी है चंदन, उससे हमको प्यार हैं। दिल की बातें हम कहें क्या, क्यों बताएँ, क्यों ये है? हमको अपनी इस धरा से प्यार बेशुमार है। चाहे जितना सोच लो, तुम तौल कर बातें करो, पर वतन की बात आए तो न पल जाया करो। है यही कर्तव्य कि अपने वतन को दुलार दें। कर्ज़ है मिट्टी का हमपर, उस पर ये जाँ निसार है। आज हम जो चैन से बैठे हैं, बातें कर रहे और दूजों पर बड़े चुन-चुन के तंज कस रहे। ये न भूलो कि कई दीपक बुझे हैं राह में अपनी आज़ादी उन्हीं कुर्बानियों का सार है। ये है वीरों की धरा, सौभाग्य इसपर जन्में हम। छोड़ेंगे ना इसको जब तक है हमारे दम में दम। देश अपना, भूमि अपनी, इसकी हम संतान हैं, इसकी रक्षा में निछावर तन, मन, धन और प्राण है। परिचय :- श्रीमती विभा पांडेय शिक्...
मेरे भारत का कमाल
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मेरे भारत का कमाल

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** मेरे भारत का कमाल बढ़ा दिया मान संख्या का कर के सिर्फ शून्य का इस्तेमाल बतलाया दशमलव का ज्ञान गणना सिखाकर पूरा किया विज्ञान जन्मी यहाँ विश्व की पहली सभ्यता वसुधैव कुटुंबकम की है यहाँ मान्यता दिया विश्व को प्रथम धार्मिक ग्रंथ, ऋग्वेद सर्वप्रथम लोकतंत्र की अवधारणा, है भारत की देन सहिष्णुता का है मजबूत आधार यहाँ के मानव में बसता है अद्भुत कलाकार कला और ज्ञान का दिया अपार भंडार विश्व गुरू मानकर पूजता है इसे संसार जन्में यहाँ वीर सपूत जो देश रक्षा मे त्याग दे प्राण शत्रु को परास्त कर दे चला के शब्दभेदी बाण विविधता मे एकता को लिए चले संभाल करता हमें गौरवान्वित मेरे भारत का कमाल परिचय :- प्रियंका पाराशर शिक्षा : एम.एस.सी (सूचना प्रौद्योगिकी) पिता : राजेन्द्र पाराशर पति : पंकज पाराशर निवासी : भीलवाडा (रा...
रंगत बरखा की
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रंगत बरखा की

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** बदले मौसम की रंगत से, बदल गया है सारा समा। सावन बरसे, झूम-झूम के, गगन-धरा को चूँम-चूँम के। देखो तो कितना मतवाला, हो गया है अब ये जहाँ। बदले मौसम की रंगत से, बदल गया है सारा समा। झरने छनक-छनक बहते, नदियाँ उफ़न-उफ़न कहती। सारा इतना स्नेह तुम्हारा, मुझमें समा गया है कहाँ। बदले मौसम की रंगत से, बदल गया है सारा समा। ठंडी-ठंडी हवा है चलती, रोम-रोम खुशी है भरती। सारा आलम है मस्ताना, पुलक उठा है रवा-रवा। बदले मौसम की रंगत से, बदल गया है सारा समा। उमड़-उमड़कर गरजे बदली, तड़प-तड़पकर चमके बिजली। देखो मौसम हुआ दीवाना, सूरज-चन्दा छुपे है कहाँ। बदले मौसम की रंगत से, बदल गया है सारा समा। चहक-चहक वर्षा की बदली, चुपके-चुपके सबसे कहती। अपना जीवन भले मिटाना, देना जग को दुआ सदा। बदले मौसम की रंगत से, बदल गया है...
नीचे धरती ऊपर आसमान
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नीचे धरती ऊपर आसमान

डॉ. कोशी सिन्हा अलीगंज (लखनऊ) ******************** नीचे धरती ऊपर आसमान है ठहरा वहाँ तक अपना यह तिरंगा है लहरा बलिदानों की गाथा है इसमें छुपी हुई प्रेरणा का असीम श्रोत है इसमें गहरा आज गायेगा हर भारत वासी स्वर से स्वाभिमान, आत्म निर्भरता को छहरा आपदाओं व विपदाओं को झेलकर अभी-अभी देश अपना, है यह उबरा अरूप अदृश्य, कुटिल कठोर कोविड वायरस का था आक्रामक सा चेहरा फिर भी, यातनाओं, प्रताडनाओं की कुटिल चालों से जरा भी नहीं सिहरा बढता रहे देश हमारा, नित सुमार्ग पर चरित्र व संयम का रहे, इस पर पहरा जय जय भारत ! जय हो प्यारा तिरंगा प्रति वर्ष क्षितिज पर यों ही जाये लहरा। परिचय :- डॉ. कोशी सिन्हा पूरा नाम : डॉ. कौशलेश कुमारी सिन्हा निवासी : अलीगंज लखनऊ शिक्षा : एम.ए.,पी एच डी, बी.एड., स्नातक कक्षा और उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं में अध्यापन साहित्य सेवा : दूरदर्शन ...
ऐ मेरी कलम
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ऐ मेरी कलम

शिव चौहान शिव रतलाम (मध्यप्रदेश) ******************** ऐ मेरी कलम, तू क्रांति लिख धरा की शोणित माटी लिख वीरों की आन-बान-शान लिख विप्लव गान लिख शौर्य का गुणगान लिख हिंद की शक्ति/पहचान लिख कुछ नहीं तू बस इतना लिख जो दे गए अपनी जाने-वतन उनकी कुर्बानी लिख जिंदगानी की अमर कहानी लिख बेवाओ के माथे का सिंदूर/अंगार लिख बहिनों की राखी का डोर लिख माँ के दूध का कर्ज़ लिख बाप के अरमां/फर्ज़ लिख बेटी का रूदन पुकार लिख बेटे के अश्रु की धार लिख भाई का मनोबल लिख परिवार का संबल लिख पुष्प की अभिलाषा लिख शहिदों की परिभाषा लिख ऐ मेरी कलम तू क्रांति लिख...... परिचय :-  शिव चौहान शिव निवासी : रतलाम (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आद...
आजाद की गोली से
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आजाद की गोली से

रमेश चौधरी पाली (राजस्थान) ******************** आजाद की गोली से, भगतसिंह की बोली से, भागे थे अंग्रेज... गांधी की राठी से। शत्रीय सीरवी के हल से, राणा की तलवार से, भागे थे अंग्रेज... जनता के अदम्मीय साहस से। रानी लक्ष्मी बाई की वीरता से, ठाकुर कुशाल सिंह की एकता से भागे थे अंग्रेज... बहादुर शाह ज़फ़र की अगवाई से। उधम सिंह के अदम्मिय साहस से, तात्या टोपे के बलिदान से, भागे थे अंग्रेज... मंगल पांडे के विद्रोह से। बिस्मिल और रोशनसिंह के नेतृत्व से, ब्रिटिश खजाना लूट से, भागे थे अंग्रेज... काकोरी काण्ड की बदौलत से। सुगाली माता के आर्शीवाद से, आई माता के परम धैर्य से, भागे थे अंग्रेज... मां भवानी की कृपा से। गर्व है हमे उन वीर माताओं पर, जिसने ऐसे शुरवीरो को जन्म देकर, सींचा है अपने रक्त के बलिदान से, मातृ भूमि की शहादत को। परिचय :- रमेश चौधरी नि...
आजादी
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आजादी

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** न हम हिन्दू न हम मुस्लिम और न सिख ईसाई हैं। हिंदुस्तान में जन्म लिया है तो पहले हम हिंदुस्तानी हैं। आजादी की जंग में इन सब ने जान गमाई थी। तब जाकर हमको ये आजादी मिल पाई थी। कैसे भूल उन सब को वो भी हमारे बेटे थे।। पर भारत माँ अब बेबस है और अंदर ही अंदर रोती है। अपने ही बेटों की करनी पर खून के आंसू पीती है। धर्म निरपेक्षय देश हम सबने मिलकर बनाया था। पुनः खण्ड खण्ड कर डाला अपने देश बेटों ने।। क्या हाल बना दिया अपनी भारत माँ का अब।। कितनी लज्जा कितनी शर्म आ रही है अपने बेटों पर। भारत माँ रोती रहती एक कोने में बैठकर। क्या ये सब करने के लिए ही हमने आजादी पाई है। और धूमिल कर डाले आजादी के उन सपनों को। और मजबूर कर दिया अपनो की लाशों पर रोने को।। चल कहाँ से थे हम कहाँ तक आ पहुंचे। और कहां तक गिरना है तुम बत...
७५ वां स्वतंत्रता दिवस
कविता

७५ वां स्वतंत्रता दिवस

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** देश ७५ वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। जनमानस खुद को, कोरोना का गुलाम पा रहा है। जिस समानता के अधिकार को पाया था। इतनी जद्दोजहद से, आज दो-गज की दूरी पर भी डरा जा रहा है। देश ७५ वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। धर्म की आड़ लेकर खेल-खेलती रही सियासतें। धर्म को इंसानियत से, अलग न कोई भी कर पा रहा है। वोट की राजनीति का हाल तो देखो। मुद्दा जाति गणना का अब उठाया जा रहा है। देश ७५ वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है । जनमानस खुद को कोरोना का गुलाम पा रहा है। मर रहा देश आज कोरोना से, भुखमरी, बेरोजगारी, डूबती अर्थव्यवस्था की परेशानी से, जिंदगी में जहर खाने को आज जहां पैसे नहीं है। देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। देश ७५ वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है । जनमानस खुद को सियासी कोरोना का गुलाम पा...
आज आया स्वतंत्रता दिवस
कविता

आज आया स्वतंत्रता दिवस

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** देखो-देखो आज आया कितना। पावन पर्व असंख्य माताओं के पुत्र। बलिदान पशचात गुलामी से। हम सब भारतवासी हुए आजाद। आज आया स्वतंत्रता दिवस। पावन पर्व आया संग अपने। अपार खुशियां लाया,स्वतंत्र। भारत देश की महिमा अपरंपार। आज आया स्वतंत्रता दिवस। भारत वासियों के उर छाया। हर्ष अपार स्वतंत्रता दिवस। गाथा बलिदानियों का भंडार। जिनमें अल्पायु में ही भारत। आजाद कराने प्रबल रक्त उबाल। आज आया स्वतंत्रता दिवस। सकल भारतवासी सादर नमन करें। उन सभी मातृभूमि भक्त। बलिदानियों को जिनकी। एकता ने भारत को। स्वतंत्र करा स्वतंत्रता दिवस पर्व। मनाने का अवसर दिलाया। परिचय :- श्रीमती संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया निवासी : भोपाल (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं ...
वो रात
कविता

वो रात

कीर्ति सिंह गौड़ इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वो रात न सोने वाली थी वो रात जागने वाली थी। ऊपर से बादल गरजे थे नीचे लोगों के सपने थे। चारों दिशायें गाती थी नया सवेरा लाती थीं। २०० वर्ष ग़ुलामी के कैसे हमने वो काटे थे। आख़िर वो दिन आ ही गया जब अपना भारत लगे नया। आओ इस आज़ादी को जी भर के फिर से जी लें हम। जो आज़ादी देकर चले गए उनके आँगन में खेलें हम। वीरों की इस आज़ादी पर अब पूर्ण अधिकार हमारा है। घर-घर में देखो आज सभी लहराया तिरंगा प्यारा है। परिचय :- कीर्ति सिंह गौड़ निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी र...
स्वतंत्रता का झंडा
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स्वतंत्रता का झंडा

रूपेश कुमार चैनपुर, सीवान (बिहार) ******************** भारत के आजादी पर्व को, मिल-जुलकर हम मनाएंगे, देश के अमर शहीदों के हम, जण गण मन दोहराएंगे, देश के खातिर हम सब अपना लहू दान कर जाएँगे, देश के वीर शहीदों पर हम, इतिहास नया बनवाएँगे आजादी के दीवाने हम हैं बस आजादी लाएंगे, माँ भारती के आँचल की हम लाज हमेशा बचायेंगे, केसरी माथे पर बांधा हरे से उपवन है साजा सफेदी दिल में बसा कर हम इस तिरंगे को आसमां तक पहुंचाएगे, तिरंगे के तीन रंगों का, अस्तित्व कभी न मिटने देंगे, बल, शांति और हरियाली, मतलब अब समझाएँगे, देश के गद्दारों को, मिट्टी मे हम मिला देंगे, जान जाए तो जाए पर, दुश्मन के आगे शीश नहीं झुकने देंगे, भगत, सुभाष, चन्द्रशेखर, महात्मा, गोखले, उधम, राजेन्द्र, मंगल, लक्ष्मीबाई, के सपनों को सच कर जाएँगे, स्वतंत्रता का झंडा हम, शान से युगों-...
मेरा वतन हिन्दुस्तान
कविता

मेरा वतन हिन्दुस्तान

मईनुदीन कोहरी बीकानेर (राजस्थान) ******************** मेरा वतन - मेरा वतन प्यारा है हिन्दुस्तान सबसे प्यारा मेरा प्यारा वतन है हिन्दुस्तान गगन को छूले ऊँचा शिखर जहाँ हिमालय जहाँ से निकले नदियाँ वो मेरा हिन्दुस्तान उतर का बड़ा मैदान नदियों से है खुशहाल खाद्यान जहाँ निपजे वो वतन है हिन्दुस्तान विभिन्नता में भी एकता जहाँ नजर आती हो विभिन्न जाति धर्मो का प्यारा है हिन्दुस्तान काशमीर से केरल तक एकता का संचार पूर्व से पश्चिम एक सूत्र में बंधा हिन्दुस्तान एक संविधान की छत्रछाया में सवा अरब एक भाषा से जुड़ा मेरा प्यारा हिन्दुस्तान हिन्दु मुस्लिम सिक्ख ईसाई वतन के लाल इनकी ताकत से फले-फूले मेरा हिन्दुस्तान मेरे वतन की महक से महके दुनियाँ सारी 'नाचीज' तकदीर से तू जन्मा वो हिन्दुस्तान परिचय :- मईनुदीन कोहरी उपनाम : नाचीज बीकानेरी निवासी - बीकानेर राजस्थान घोषणा पत्र : म...
लौट आना
कविता

लौट आना

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** वापिस लौट आना मेरे तरकश से ब्रह्मास्त्र छूटने से पहले, वापिस लौट आना मेरे द्वारा प्रकृति के नियम तोड़ने से पहले, वापिस लौट आना मेरा किसी और से दिल लगाने से पहले, वापिस लौट आना मेरी आंखों में अश्क सूखने से पहले, वापिस लौट आना मेरी रूह को जिस्म छोड़ने से पहले, वापिस लौट आना मेरे दिल और दिमाग में तूफान उठने से पहले। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्...