दीपावली की रंगोली
अंजनी कुमार चतुर्वेदी
निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
********************
मन के भाव कला बनकर जब,
रंगोली बन जाते।
रंगोली के विविध रंग तब,
सबके मन को भाते।
रंगोली की कला निखरती,
कलाकार के कर से।
रंगोली की छटा देख कर,
जन-जन का मन हरसे।
कई रंग से मिलकर बनता,
इसका रूप निराला।
सारे कौशल दिखलाता है,
इसे बनाने वाला।
अलग-अलग हैं भाव सभी के,
अलग-अलग है बोली।
अपने भावों को रँग देकर,
बनती है रंगोली।
कइ प्रकार बनती रंगोली,
अलग अलग दिखती है,
कोमलांगी अपने कर से,
मनोभाव लिखती है।
दीपोत्सव है पर्व अनोखा,
मिलकर सभी मनाते।
रंग बिरंगे दीप सजाकर,
मोहक कला बनाते।
सधे हुए हाथों से जब भी,
रंगोली बनती है।
हर कोने पर दिया सजाकर,
दीवाली मनती है।
दीप मालिका सजा, सजा कर,
रोशन करते घर को।
शांति संदेशा रंगोली का,
गाँवों और शहर को।
कइ वृक्षों के फूल बिखर कर,
रंगोली बन जाती।
...