गिरने की तालियां
विजय गुप्ता
दुर्ग (छत्तीसगढ़)
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गिरती है वस्तु कोई, आकर्षण ही खींचता
न्यूटन नियम से ही, धरा पर जाती है।
नेता ठेकेदार देखो, ऊंचे बड़े बोल संग
गूंगा जैसा बनकर, गिरना सिखाती है।
रोक टोक मन भर, डॉन सुख भोग रहे
मुहर बड़े आदमी की, जलना दिखाती है
संग चलो की चाहतें, सहन करो आदतें
स्वार्थ रोग लग जाए, गिरना दिखाती है।
नियम बना स्वार्थ का, पूछ परख खूब हो
दबाव रहे गुट का, होहल्ला मचाती है।
मान ज्ञान परे रख, बदले के भाव जागे
दबाव की राजनीति, अति गरियाती है।।
राय बहादुर राय, उपयोगी माने कोई,
चलके ही खुद आए, ढंग बतलाती है।
मान न ही मेहमान, तेवर नजर तान,
गिरने की शान बान, तालियां बजाती है।
परिचय :- विजय कुमार गुप्ता
जन्म : १२ मई १९५६
निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़
उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग
साहित्य रुचि : १९९७ से काव्य लेखन, तत्कालीन प्रधान मंत्री अ...
























