मासूम कली
कीर्ति मेहता "कोमल"
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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एक कली मतवाली थी
सीधी भोली-भाली थी
हँसती खिलखिलाती
सूरज की वो लाली थी
देख रूपसी मुखड़ा उसका
भँवरा एक खींचा आया
भोली सी उस कली को उसने,
धीरे से फिर सहलाया
चिंहुक उठी मासूम कलिका
भँवरे ने फिर बहलाया
भँवरा मदमस्त हुआ,
फिर अपने पे इतराया
रस पीकर अधखिली कली का
भँवरा जैसे बौराया
कुचल उसने किसलय कुसुमित
उड़ा गगन में अलसाया
धरा पड़ी अर्दित बोंडी वो
बेसुध संज्ञाशून्य हुई
बागबान की दृष्टि में वो,
अनुपयोगी धूल हुई
जैसे निर्मोही माली की
बेगानी इक भूल हुई
आह!
मनुज बोलो ...
इसमें मेरा दोष है क्या
मैं तो स्वयम अशक्त रूप थी
अब कैसे मैं व्यर्थ हुई???
अब कैसे मैं व्यर्थ हुई???
परिचय :- कीर्ति मेहता "कोमल"
निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : बीए संस्कृत, एम ए हिंदी साहित्य
लेखन विधा : गद्य और पद्य की स...