कायनात
मालती खलतकर
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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मन कमल के पराग,
आकाश कुसुम
क्या कहूं क्या कहूं,
इस निर्विकार
पृथ्वी को प्रकृति को
जीवन महक गया
जिंदगी संवर गई
शरीर को नहलाया
उसने आत्मा को अमृत ने।
तुम मेरी दिशा
दर्शक हो कैसे कहूं
होंठ खुल नहीं पाते
तुम से बतिया ने को
इच्छाएं जागृत होकर
पुनः सुप्त हो जाती हैं
इस ओस भरी
कायनात में
दिल डूब गया
जैसे चांद से मुखड़े को
अमृत ने नहलाया
मेरा रोम-रोम
शीतल हो गया
पवन के झोंकों से।
आत्मा अभिमानी हो गई
तुम्हारे दुलार से।
क्या हुआ,
कैसे हुआ
क्या कहें
जीवन आंगन सुना था
आकर किसी ने
फूल खिला दिए
देखो फूल खिल गए
प्रातः किरण से
अपना पराग लुटाने
अपना अमृत लुटाने।
परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती ह...