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कविता

ड्यूटी के चक्कर में
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ड्यूटी के चक्कर में

रोहित कुमार हाथरस (उत्तर प्रदेश) ******************** ड्यूटी के चक्कर में जिनके, अपने घर आजाद हैं। कुछ तो सम्मान करें उनका, जो हर पल तैनात हैं। लाठी और बंदूक लेकर सड़क पर जो २४ घण्टे रहते हैं। उ. प्र. पुलिस को नतमस्तक इनके जो यह बन्दे हैं। धूप न देखें छाँव न देखें , प्यार से सब आबाद है। कुछ तो सम्मान करें उनका, जो हर पल तैनात हैं जब हम सोते रहते हैं घरों में, वो रात-रात तक जगते हैं। सिर्फ हमारी ही सेवा में लगे बेचारे रहते हैं। खाकी वर्दी की इस सेवा भाव से, सबके दिल नौशाद हैं। कुछ तो सम्मान करें उनका, जो हर पल तैनात हैं। छोड़ पड़े घर बार है अपना, ड्यूटी पर मुस्तैद हैं। कभी - कभी लगता है उनको, हम भी यारो कैद हैं। दिल से नमन उन्हें है मेरा उनको फिर प्रणाम है। कुछ तो सम्मान करें उनका, जो हर पल तैनात हैं। छूटे घर - परिवार हैं उनके, सबसे तो वह दूर हैं। मां - बाप...
होली आई
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होली आई

परमानंद सिवना "परमा" बलौद (छत्तीसगढ) ******************** होली आई, रंगों कि बौछार है छाई, लइका-सियान, बुडवा-जवान, सब मिलकर होली खेले, चारो मुडा़ खुशियां है छाई.! दाई-बबा ला रंग लगावत हे, नोनी-बाबु पिचकारी चलावत हे, भइया-भाभी, दीदी-बहनी, होली गीत गावत हे.! ममा दाई सन मेछरावत हे, हरियर, पीवर, रंग लगावत हे, कृष्ण कन्हैया के जय बुलावत हे.! गांव-गली मा नागारा बजावत हे, बबा के नचई देख के दाई मुसुर-मुसुर मुसकावत हे, सब मग्न होगे भाईचारा, प्रेम, उत्साह से होली तिहार मनावत हे.!! परिचय :- परमानंद सिवना "परमा" निवासी - मडियाकट्टा डौन्डी लोहारा जिला- बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अप...
प्रतिबंध लगे कई युगों से नारी पर
कविता

प्रतिबंध लगे कई युगों से नारी पर

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** प्रतिबंध लगे कई युगों से नारी पर हक और खुशी की आजादी खोई। सिसक दुबककर ही किया गुजारा लालन पालन फर्जों में जीवन ढोई। आंसुओं के बहाव को यूं समझाया अपनत्व दुलार खुशी वजह से रोई। नारी सशक्तिकरण ने पाया विस्तार कर्म अधिकार रक्षण में भी न सोई। किसी से अब कमजोर नहीं महिला अब करतब से अचरज में हर कोई। हर जगह दखल नसल अकल बल अब अपनी आन बान शान में खोई। साहस समानता किस्से बढ़ चढ़कर यूक्रेन रूस युद्ध में क्या क्या ना होई। दमखम पूरा रखती नियंत्रण रक्षण में युद्धस्थल श्वेता चित्रा रोमाना हर कोई। खाकर शर्म अब आतंकी नर सुधरेंगे जिसने समझा नारी को बस एक लोई। प्रगतिशील नारी कृत्य सफलता से बेझिझक प्रेरणा पाओ सुंदर साफगोई। नारी शक्ति विजय कानून का डंडा टिक ना सकेगा कभी कहीं पर हरदोई। परिचय :- विजय कुमार गुप्ता जन्...
नेकी
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नेकी

सरिता सिंह गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** नेकी कर दरिया में डाल, सदा नेकी है धर्मार्थ। मिले नेकी का बदला जग में नेकी है परमार्थ। नेकी करे जीवन सफल हो मिले सदा सम्मान गिरे वक्त फिर मिले मदद जो पूरा हो अरमान।। निजी स्वार्थ में जो-जो रहे खोते सदा विवेक प्रभु की भक्ति मिले नहीं, मिले ना कृपा एक। तज लोभ माया सदा जो नेकी करे इंसान । क्षोभ नहीं होता उसे, यश मिलता सदा जहान। परिचय : सरिता सिंह निवासी : गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कह...
होली
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होली

रेखा कापसे "होशंगाबादी" होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) ******************** कुंडलिया छंद होली शुभ त्यौहार की, प्रचलित कथा महान। नृप हिरण्यकश्यप रहे, हिय अति दुष्ट प्रधान।। हिय अति दुष्ट प्रधान, तनय जन्मा अति ज्ञानी। नाम दिया प्रहलाद, हृदय नारायण ध्यानी।। राजन् उर अति तंग, दिया सुत बहना झोली। भीषण अनल चपेट, बचा सुत जलती होली।। होली के त्यौहार में, मिटता अंतस बैर। खुशियाँ रंग गुलाल ले, करती नभ की सैर।। करती नभ की सैर, हृदय कटु भेद मिटाती। खूब बनें मिष्ठान, मित्र-रिपु गले लगाती।। पिचकारी भर रंग, निकलती जन की टोली। गली-मुहल्ला तंग, मनुज मिल खेले होली।। होली पावन पर्व में, हृदय भरें अनुराग। ढोल मँजीरे साथ ले, मनुज सुनाते फाग।। मनुज सुनाते फाग, नृत्य कर जगत लुभाते। नीला-पीला-लाल, गुलाबी रंग लगाते।। कुमुद हृदय उल्लास, ईश भर देते झोली। जग अनंत अनुराग, लिए आती ...
अनुभव
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अनुभव

प्रीति तिवारी "नमन" गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** किया जिन्दगी सुलूक तुमने, जिसके हम हकदार नहीं थे, मिले अश्रु मिले मुस्कान के बदले, यूँ तो हम उदार नहीं थे। सिखा गये कुछ अनुभव हमको, दिल को पत्थर बना लिया, जिसने जैसा समझा जाना, वैसा चेहरा दिखा दिया। राह चले फूलों की लेकिन, चुभे पांव में काँटे हैं, सीख मिली नित नूतन हमको, फिर भी फूल ही बांटे हैं। आदत से मजबूर "मलय" सम विष के सांझेदार नहीं थे, किया जिन्दगी सुलूक तुमने, जिसके हम हकदार नहीं थे। मिलन जुदाई मोह लोभ और द्वेष दंभ दानवता के, पाया प्रेम विराग भी है, और किस्से कुछ मानवता के। सब्र और साहस से तोड़े अहम भी, वो दमदार नहीं थे, किया जिन्दगी सुलूक तुमने, जिसके हम हकदार नहीं थे। हुये सफल भी और विफलता, यश अपयश सम्मान मिला, बिना बात रुसवाई पाई, रिश्तों में उन्मान मिला।। छी न रहे जो ह...
ईश्वर के रचना
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ईश्वर के रचना

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** हाँ मैं ईश्वर की रचना हूँ। सोकोमलांगी नारी हूँ। परंतु आज के युग की नारी हूं। मैं आज पुरूषों के सभी। कठोर, कठिन कार्य। करने में सक्षम हूं। हां मैं ईश्वर की रचना हूं। मैं कार,स्कूटर,मोटरसाइकिल। ऑटोरिक्शा, जहाज, हवाई जहाज, रेल, बस सब कुछ। चला सकती हूँ, चलाती भी हूं। हां मैं ईश्वर की रचना। सुकोमलांगी नारी हूं। मैं आज एक डॉक्टर,वकील। इंजीनियर, ज्योतिष सभी। कुछ हूँ, मुझमें ईश्वर ने सारी। शक्तियां समाहित की है। हां, मैं आज की नारी। ईश्वर की सुंदर अदभुत रचना हूँ। परिचय :- श्रीमती संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया निवासी : भोपाल (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय ...
पतझड़ के मौसम
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पतझड़ के मौसम

परमानंद सिवना "परमा" बलौद (छत्तीसगढ) ******************** पतझड़ के मौसम हे, वातावरण मे खुशीया छा हे, पेड-पौधा के परिवर्तन के बेरा हे नवा पत्ता के अगोरा हे.! सुख-शांति निर्मल हवा मिले जहां हरियर पेड-पौधा खिले, मनमोहन वातावरण दिखे, सुंदर दृश्य दिखे.! प्रकृति के सिंगार होये, ऋतु के राजा बसंत ऋतु के आगमन ले, आमा अमली मौउरावत हे, लइका मन चहरे मे मुस्कान आवत हे.! होली तिहार आवत हे, फागुन गीत गावत हे, प्रकृति के नवा रुप देख के सब खुशियां मानावत हे, पतझड़ के मौसम हे, वातावरण मे खुशीयां छा हे, पेड-पौधा के परिवर्तन के बेरा हे नवा पत्ता के अगोरा हे.!! परिचय :- परमानंद सिवना "परमा" निवासी - मडियाकट्टा डौन्डी लोहारा जिला- बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अ...
एक नारी
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एक नारी

अविनाश यादव महू (मध्य प्रदेश) ******************** हे एक नारी, एक-एक नारी। एक नारी, एक-एक नारी। भाग्य रचिता है, मेरी क्या तुम्हारी। उसका करो सब सम्मान, वो ही मां का रूप है हमारी। हे एक नारी, एक एक नारी। वो ही बनातीं है, घर को प्यार का दर। कुछ नहीं चाहतीं वो, निस्वार्थ होकर। बुरे से बुरे वक्त में, वो ही साथ निभाए। हर परेशानी से वो ही, वो डटकर लड़ जाएं। उसके पास है इतनी शक्ति, वो शक्ति का रूप अवतारी। हे एक नारी, एक एक नारी। बनाने वाले ने भी, उसको सबसे अलग बनाया। वो हर नामुमकिन को मुमकिन, कर दें ऐसी वो काया। खुशियां लुटाती है वह, हर दुःख भी उसके हिस्से में ही आया। हर दुखों से लड़कर भी, उसका मन नहीं घबराया। वो सबसे कर सकतीं हैं संघर्ष, घर वालोें पे लुटाती जिंदगी सारी। हे एक नारी, एक एक नारी। भाग्य रचिता है, मेरी क्या तुम्हारी। उसका करो सब सम्मान, व...
यादों की जंजीर
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यादों की जंजीर

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** फिर एक बार याद आ गया कोई यहां मैं हमसफर हजारों मिलते हैं बांटने दर्द ओ गम कोई नहीं होता गुल ही गुल चाहते हैं सब गुलिस्ता में खंजर से काटो को कोई नहीं छूता। कहें किसे हम अपना इस जमाने में हर कोई शख़्स अपना, अपना होता है फिजा में खुशबू का ही आलम हो ऐसा खुशनसीब हर कोई नहीं होता। पल में खड़े होते हैं यादों के महल पतझड़ के पत्तों से गिरते हैं पल में यादों की जंजीरों को तोड़ ना चाहा और ज़्यादा जकड़ने काशुबहा होता है। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से ...
आजादी की चाल
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आजादी की चाल

माधवी तारे लंदन ******************** जागो! री सखी! दिनकर भी नभ में उन्नत है छाया छाने दो प्रियकर आज उसको कितना भी ऊपर चलूँगी मैं आज आजादी की "सेवाभावी चाल ॥ १ ॥ आज सारे विश्व में महिला का दिन है छाया चौका चूल्हा धंधा घर का है तुम्ही को ही संभाल चलूँगी में आज आजादी की सेवाभावी चाल ।।२।। मानव जगत से पीड़ा का संसार मिटाने दानव-मन में करुणा सागर फिर सँजाने पीना पड़ेगा मुझे आज गर विष-हलाहल फिर भी चलूँगी मैं आज आजादी की सेवा भावी चाल ॥३।। स्वार्थ-तुहिन हल जीवन बगियाँ की कलियों को हँसाने प्रणय सिंदूर से जन-मन का सँजाने भाल प्रदेश विशाल चलूँगी मैं आजादी की आज सेवा भावी चाल ॥४।। दुखियारी माताओं के आँचल में उल्लास भर देने नवजात शिशुओं को जीवन - मधुहास पिलाने सुरक्षा की बन के ढाल चलूँगी मैं आजादी की आज सेवाभावी चाल ।।५।। भूखे कंकाल में भरने दो दाने खेतों पर अमृ...
नारी कुल की इज्जत है
कविता

नारी कुल की इज्जत है

सीताराम पवार धवली, बड़वानी (मध्य प्रदेश) ******************** "नारी मर्यादा छोड़े फिर भगवान की भी नहीं सुनती" मोहब्बत की शमा नफरत के तूफानों में नहीं जलती मदमस्त बहार कभी भी खिजा में नहीं खिलती। नारी को तू खेलने का खिलौना समझने वाले बेपनाह मोहब्बत मांगने से कभी भी नहीं मिलती। नारी कुल की इज्जत है इज्जत करना सीख ले नारी मर्यादा छोडे फिर भगवान की भी नहीं सुनती। नारी में नर होता है नर से ही तो नारायण बनता है नारी शक्ति बिना हमसे परछाई भी नही हिलती। गंगा की धारा है ये नारी सागर में इसको मिलने दो इसका साथ नहीं मिलता तो जिंदगी नहीं बनती। नारी गर नहीं होती तो धरती पर जीवन नहीं होता इसने हमको जन्म दिया नही तो दुनिया नहीं चलती। आधा नर आधा नारी से अर्धनारीश्वर बन जाता है अर्धनारीश्वर के सामने किस्मत भी जाल नहीं बुनती। परिचय :- सीताराम पवार निवासी : धवली जिला ...
दिखावा
कविता

दिखावा

साक्षी उपाध्याय इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** जीतते तो हौसलों से है, यह हथियार तो सिर्फ दिखावा है।। मगर यह मत समझ लेना कि सिर्फ हम गद्दार हैं, जानते हैं हम, कि तुम भी हमसे दुश्मनी निभाने आए हो, यह दोस्ती का इज़हार तो सिर्फ दिखावा है।। हम जानते हैं तुम्हारा असल चेहरा कुछ और है , यह श्रंगार तो सिर्फ दिखावा है।। जिंदगी गमों का दरिया है जो नहीं है कम, अंदर से टूटे से हैं अश्कों से आंखें हैं नम, फिर भी यह जो मुस्कुराहट है ना बरकरार यह तो सिर्फ दिखावा है।। परिचय :- साक्षी उपाध्याय आयु : १५ वर्ष निवास : इन्दौर (मध्य प्रदेश) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के स...
बदलते रंग
कविता

बदलते रंग

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** बदलते हुए रंगों के साथ बदलते हुए अपने लोग देखे हैं। चेहरे पर नकाब ओढ़े सीने पर वार करते अपने ही लोग देखे हैं। हरे रंगों जैसी अब लोगों के दिलों में हरियाली कहाँ ? अपने ही लोग खंजर फेर ह्रदय तल को बंजर करते देखे हैं। रंगों की बौछार फैली है हर जगह फिर भी गिरगिट की तरह रंग बदलते अपने रिश्तेदार देखे हैं। करते होंगे मोहब्बत वो शायद किसी और से, हमने अपने लिए तो उनके चेहरे पर नफ़रत के बदलते नए-नए रंग देखे हैं। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि रा...
लो आ गई होली
कविता

लो आ गई होली

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** लो आ गई होली मन में है उल्लास दिलों मे भरा उत्साह आओ हम सब खेलें होली। लो आ गई होली हर घर-आँगन गाँव-मढैया होली गावें हर गाँव गवैया वृंदावन की कुंज गलिन में प्रेम रंग में रंगकर होली खेलें रास रचैया भक्ति रस में डूब-डूबकर आओ हम सब खेलें होली। लो आ गई होली गाँव-नगर चौपाल-क्लब आ गए बालम और कुमार भांग खुमार, रंग, गुलाल बोला सबके सर चढ़कर होली के रंगों में रंग कर आओ हम सब खेलें होली। लो आ गई होली क्या हिन्दू क्या मुस्लिम क्या सिख-इसाई मनमुटाव द्वेष बुराई भुला कर दुनिया को भाईचारे की राह दिखा कर मानवता के रंग में रंगकर आओ हम सब खेलें होली। लो आ गई होली बच्चों की पिचकारी रंगों से भरे गुब्बारे जीवन में भर रहे रंग बारम्बार विविध रंगों से विद्यमान आओ हम सब खेलें होली। लो आ गई होली एक अनोखा...
तेरे लिए…
कविता

तेरे लिए…

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** राज! कैसे उन्हें बताएं कि हमें उनसे मोहब्बत है। हमारी खामोशियाँ सिर्फ उनका इंतजार करती हैं। कभी वो हमें मिलें तो उन्हें दिल के सारे राज बताएंगे। हमारी मोहब्बतें तो सिर्फ मोहब्बत नही इबादत है। डरते हैं उनके बेदाग दामन कही रुसवा न हो जाये। इस खातिर उन्हें मन मंदिर की देवी जैसे पूजते हैं। हमारी चाहत में गर पाकीजगी है वो आएंगी जरूर। ऐ सोनू ! राज को उन खुशनुमा लम्हों का इंतजार है। हमें भी मालूम वो भी हमें दिल ही दिल मे चाहते हैं। मगर मोहब्बत कहीं बदनाम न हो जाय चुप रहते हैं। आँखें उनकी हमारी मोहब्बतें नजाकत बयाँ करती है। लगता है अपने दिल में दर्द का सैलाब छुपाए बैठे हैं। कहते हैं सच्ची मोहब्बत हमेशा ही इम्तिहान लेती हैं। उनसे मिलने की उम्मीद से ही राज की साँसे टिकी हैं। परिच...
होली पर हुड़दंग
कविता, हास्य

होली पर हुड़दंग

अनुराधा प्रियदर्शिनी प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** मोदी चाचा आए हैं सतरंगी रंगों को लाए हैं योगी भैया देखो आए हैं केशरिया चटख रंग लाए हैं अखिलेश भैया ने बैंड बजाया मायावती जी चली हैं घर को सबने होली पर हुड़दंग मचाया एक दुजे को रंग लगाया मोदी चाचा आए हैं सतरंगी रंगों को लाए हैं होली के रंग बिरंगे रंग हैं भैया बुरा न मानो होली है आओ मिलकर हम सब होली खेलें जश्न मनाने का पल सुनहरा है स्नेह प्रेम का रंग लगाकर सबको गले लगाना है देखो होली की हुड़दंग मची है रंग बिरंगी होली है हंसी खुशी से होली मना लो एक दूजे को रंग लगा लो प्रेम से गले लगाकर भेदभाव को मिटा दो परिचय :- अनुराधा प्रियदर्शिनी निवासी : प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानिय...
धरती का श्रृंगार
कविता

धरती का श्रृंगार

शत्रुहन सिंह कंवर चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी ******************** पेड़ पौधा है जिन्दगी का आधार जल वायु से मानव जगत उजियार वनों में है अपना जहान जिसमे है लाख, तेंदू, महुआ, चार होता है इससे अपना गुजार हम भी करे इस धरती का श्रृंगार लगाके वृक्ष एक वरदान हो एक नए भारत का उत्थान जो हो जग में विस्तार वृक्ष लगाओ जिंदगी बचाओ। परिचय :-  शत्रुहन सिंह कंवर निवासी :  चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com...
महिला दिवस का पाखंड
कविता

महिला दिवस का पाखंड

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** आइए! एक बार फिर महिला दिवस का पाखंड करते हैं, महिला दिवस के नाम पर औपचारिकता का प्रपंच करते हैं। रोज रोज महिलाओं का अपमान करते हैं, नीचा दिखाने का एक भी मौका नहीं गँवाते हैं, उनकी हर राह में कांटे बिछाते हैं। महिलाओं को बराबरी का दर्जा देते हैं पर सच तो यह है कि हम सब अपनी माँ बहन बेटियों को भी ठेंगा दिखाते हैं। नारी तू नारायणी है का जितना गान करते हैं, उससे अधिक हम उनका अपमान करते हैं। नारी के प्रति श्रद्धा के दिखावे खूब करते हैं बड़े बड़े भाषण, गोष्ठियां, दिखावा करते हैं पत्र पत्रिकाओं में असंख्य लेख कविता, कहानियां भी लिखते हैं, परिचर्चा, वैचारिक चिंतन महिला हितों के नाम पर सिर्फ औपचारिकता निभाते हैं, महिलाओं को साल में इस एक दिन महिला दिवस के नाम पर सबसे ज्यादा बरगल...
खिलखिलाती धूप हूँ
कविता

खिलखिलाती धूप हूँ

प्रीति तिवारी "नमन" गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** खिलखिलाती धूप हूँ, सुबह की बयार हूँ, गुलशन सी महकती, नित नई बहार हूँ। मन्दिर का एक दीप भी हूँ, और एक धधकती आग भी हूँ।। साज और शृंगार भी हूँ, सुन्दर सा एक राग भी हूँ।। धैर्य हूँ धरा बन सब कुछ सह लेती हूँ। सब की खुशी में भी, मैं भी हँस लेती हूँ।। घर घर का मान हूँ, और अभिमान हूँ। जीवन में चेतना हूं और संचार हूँ।। व्यक्ति हूँ, अभिव्यक्ति हूँ, स्वरूपा हूँ शक्ति हूँ। पावन हूँ प्रीति हूँ, निश्छल हूँ, नूतन हूँ।। साथी हूँ, सन्गनी हूँ, माँ और बहन हूँ। हाँ मैं एक स्त्री हूँ ... नहीं चाहिये मुझे व्याख्या और बखान आंचल में समेटना चाहती बस, प्यार और सम्मान, प्यार और सम्मान ... परिचय :- प्रीति तिवारी "नमन" निवासी : गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती...
महिला प्रबंधक
कविता

महिला प्रबंधक

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** बिना वेतन जो काम करे न कोई छुट्टी न कोई गम। बस समय पर काम करे और लोगों को खुश रखे। बता सकते हो ये कौन है जो निस्वार्थ भाव से करती है। ये और कोई नहीं घर की एक महिला हो सकती है।। हर मौसम की ये आदि है सबसे बाद में सोती है। पर सबसे पहले उठती है और सबका ख्याल रखती है। नित्य क्रियाओं से निवृत होकर दिया भोग प्रभु को लगती है। जिसे घर में सुख शांति और बरकत बहुत होती है।। यह सब अकेली महिला हर दिन नियम से करती है। खुद की चिन्ता कम पर सब का ख्याल रखती है। घर की कारंदा होकर अपना फर्ज निभाती है। बिना प्रबंधन की शिक्षा के भी प्रबंध अच्छे से करती है।। ये सब एक महिला ही कर सकती है. . . ।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड ...
बंसत का अभिवादन
कविता

बंसत का अभिवादन

गगन खरे क्षितिज कोदरिया मंहू (मध्य प्रदेश) ******************** मन प्रभात करता प्रफुल्लित ह्रदयवाटिका में पुष्प सुमन की भांति जब बंसतरूपी आंगन में खिलकर आता है हर दुःख दर्द जमींदोज होकर खुशहाली चारों दिशाओं में विराजमान हो जाती हैं। खूबसूरत धरा पर ऋतु राज़ बंसत हो जाता हैं कुन्दन सा निखार हर जीवनशैली के मधुमास पर छाकर इन्द्रधनुष की तरह ऊंचाई पर विराजमान हो जाता हैं । हर सुबह महकती है गुलज़ार होता गुलशन, फूलों की खूबसूरती लिए बहारों का अभिनन्दन करते हुए गगन सृष्टि को मुस्कुराने का एक निश्चित मौसम परिवर्तन का सुन्दर सा बंसत करता अभिवादन हैं। परिचय :- गगन खरे क्षितिज निवासी : कोदरिया मंहू इन्दौर मध्य प्रदेश उम्र : ६६वर्ष शिक्षा : हायर सेकंडरी मध्य प्रदेश आर्ट से सम्प्रति : नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण भोपाल मध्यप्रदेश सेवानिवृत्त २०१४ साहित्य में कद...
मन की पीड़ा
कविता

मन की पीड़ा

आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जब मन की पीड़ा उभरी तो मैंने उसे लगाम दिया है कठिन पलों में मैंने खुद को एक नई पहचान दिया है पीकर के अपमान घूंट का मैंने संयम पाला है दूर दर्शिता के आंगन में स्वयं हृदय को ढाला है विचलित होकर जब दुनिया के लोग यहां घबराते हैं तब हम अपनी जीवन की गाथा लिखकर उन्हें सुनाते हैं जीवन मुल्यों की धूरी पर जब जब भी आघात हुआ है और निखरकर जीनें के साहस भी एहसास हुआ है रिश्तों के ब्वहारिकता में मौकों को सम्मान दिया है जब मन.... जब तुम मुझे समझ पाओगे और अधिक इतराओगे मेरे भावों की सरिता में तब तुम और नहाओगे प्रेम नहीं ये नैतिकता है इसका मूल्य समझना होगा उछली उछली भावुकता से तुमको आज उभरना होगा गहन विचारों में डूबी जब सोच निकलकर आयेगी तब इस प्रेम कहानी की सच्चाई तुमको भायेगी समझ सकोगे शायद मैंने तुमको क्या संधा...
ना अबला हूं ना मैं बेचारी हूं
कविता

ना अबला हूं ना मैं बेचारी हूं

विकास कुमार औरंगाबाद (बिहार) ******************** ना अबला हूं ना मैं बेचारी हूं, मै आज की युग की नारी हूं। कम मुझे आप मत आको, मै इस सारी दुनिया पर भारी हूं।। सदियों से जीती औरो के लिए, सदियों से यह अत्याचार सहे। हर बात पर एक सीमा होती है, ऐसे घुट–घुट कर कौन रहे।। ना अबला हूं ना मैं बेचारी हूं, मै आज की युग की नारी हूं। नही डरती हूं मैं इस दुनिया से, बस अपनो से सदा मैं हारी हूं। कम मुझे आप मत आको, मै आज की युग की नारी हूं।। मैं बाहर काम पड़ने पर जाती हूं, परिवार का अभिमान बढ़ाती हूं। गृहस्थी का गाड़ी स्वय चलाती हूं अपने परिवार खुश रख पाती हूं।। ना अबला हूं ना मैं बेचारी हूं, मै आज की युग की नारी हूं। फिर मैं लोगों का हवस का शिकार बन जाती हूं, जान बचाने के लिए जोर–जोर से चिलाती हूं। फिर भी मै अपने बातों को नही बता पाती हूं, फिर भी भारत में महिला दि...
दीप जलाएँ
कविता

दीप जलाएँ

रामकेश यादव काजूपाड़ा, मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** चहक उठा सबका दिल फिर से, आई देखो ! दिवाली। खेत - खेत में झूम रही है, देखो ! धानों की बाली। जीवन - बगिया महक उठी है, दीपों के फूल खिले हैं। बिहसि रही है अखिल धरा ये, तम के होंठ सिले हैं। झूम रही चहुँ ओर फ़िजाएँ, वो कुदरत के नजारे। सुख - दुःख तो आना- जाना है, सब ईश्वर के सहारे। परहित में कदम उठें सबके, अहं की दीवार गिराएँ। मोहब्बत की दरिया में हम, अब मिलकर नित्य नहाएँ। ज्ञान प्रकाश करें जग में, अंधेरा हम दूर भगाएँ। राम राज्य लाकर भू पर, खुशहाली का दीप जलाएँ। परिचय :- रामकेश यादव निवासी : काजूपाड़ा, कुर्ला पश्चिम, मुंबई (महाराष्ट्र) शिक्षा : (एम.ए., बी. एड) लेखन विधा : कविता सम्प्रति : पूर्व (रिटायर) मनपा शिक्षक बृहन्नमुम्बई महानगरपालिका, मुंबई, (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हू...