Thursday, May 15राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

कविता

पिताजी
कविता

पिताजी

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** सूरज की पहली किरण उगने के पहले, पूजा की घंटियों से जगाते वो "पिताजी थे" सम्पूर्ण वातावरण राम, कृष्ण मय करते, वो "पिताजी थे" जीवों को बचाने में खुद को आहत करते वो "पिताजी थे" ऊंची उड़ान भरते, आंखों मे भविष्य के सपने लिए हमे ना गिरने की चिंता, ना गिर के टूटने का डर, क्योंकि, "पिताजी थे" सपनों को सच करने का हौसला, आसमान की ऊंचाइयों को निर्द्वंद छूने की ललक जगाते, "वो पिताजी थे" जिंदगी की राहें कभी विकट बनी, कभी ठोकर खाई, पांवों को सहलाते "वो पिताजी थे" स्तब्ध हुए, जड़ बन गया शरीर, टूट के बिखरे एक दिन, "वो पिताजी" ही थे कहां से लाते हम, वो हिम्मत वो हौसला उनको समेटने की ताकत? हम दिशा विहीन, किंकर्तव्य विमूढ़ कैसे समेट पाते, "वो पिताजी" ही थे संतान का वियोग, अपनों के ...
बेटे की भावना
कविता

बेटे की भावना

संध्या नेमा बालाघाट (मध्य प्रदेश) ******************** बेटा भी कितना जहर पी लेते हैं, अपनों के लिए पहचान और सम्मान तो मिल जाता है प्यार के लिए तरस जाते हैं बेटे कहते हैं ना जो पास होता है उसकी कद्र नहीं होती है बेटी दूर रहती भी दिल के पास रहती है बेटा सामने होने के बाद भी दिल में नहीं उतरता है बेटा जीवन भर खिलाता है तो नाम नहीं होता बेटी ४ दिन क्या खिला देती है जीवन भर उसका गुणगान होता पराए घर चले जाती है ४ दिन फोन लगा कर पूछ लेती बस वही याद रहता बेटा रात-रात जग सेवा करता वह कुछ याद नहीं रहता माना शब्द कठोर होते हैं बेटा के बेटी की मीठी चार बातें से क्या जीवन चल जाता है धन मिलने की आस रहती है बेटी बेटा बिना आश के सेवा करता है ना मिले भी तो चुपचाप रहता है चार कठोर बात भी सुन लेता है बेटा चाहे बीवी बच्चे वाला भी होता बेटी नहीं सुन सकती मायके की द...
नेताजी सुभाषचंद्र बोस
कविता

नेताजी सुभाषचंद्र बोस

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** नेताजी को याद करके श्रध्दा सुमन अर्पित करता हूँ। उन की बोली बातों को जन-जन तक पहुंचना है। और देशप्रेम की ज्वाला को युवाओं में फिरसे जलाना है। और भारत को फिरसे आजाद कराना है।। नेता जी का वो कथन युवाओं को तब भाया था। जब उन्होंने आजाद हिंद फौज को बनाया था। और कहा था की तुमहमें खून दो मैं आजादी दूंगा। और अपने हिंदुस्तान को अंग्रेजो से मुक्त करा लेंगे।। नेताजी खुद से और अपने साथीयों से कहते थे कि। कमीयां तो मुझमें बहुत है पर मैं बेईमान नहीं हूँ। मैं सबको अपना मानता हूँ और फायदा या नुकसान नहीं सोचता। शौक है बलिदान देने का जिसका मुझे गुमान नहीं। छोड़ दूँ संकट में अपनो का साथ वैसा तो मैं इंसान नहीं। सबसे आगे मैं चलूँगा दोस्तों आप लोगों को पीछे चलना हैं।। मौका दीजिये अपने खून को औरो की रगों में बहने का। ये ल...
कृषि पुत्र
कविता

कृषि पुत्र

वाणी ताकवणे पुणे (महाराष्ट्र) ******************** ना है उनको वस्त्र का भान ना है कोई भी अभिमान लहू से अपने सिचतें खेती अनाज उगाने में लगा दी जान भारत माँ के है कृषि पुत्र अन्नदाता यह हमारे भगवान ना है लालसा कभी पैसों की खुशियाँ देना है इनका दान हर मौसम में कष्ट उठायें निस्वार्थ है हमारे ये किसान आशीर्वाद है अन्नपूर्णा का इनपर पालनहारे यह हमारी है शान परिचय :- वाणी ताकवणे निवासी : पुणे (महाराष्ट्र) वर्तमान में : शिक्षिका, कवि, गीतकार और लेखिका साहित्यिक योगदान : "बंधन", 'श 'से शायरी, "क्वीन ऑफ होम", "Treasure and Rainbow", "दिल ढुंढता है", "ऊन दिनों की बात" नामक किताबों में सह लेखिका घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित...
वह जो….
कविता

वह जो….

डॉ. सुलोचना शर्मा बूंदी (राजस्थान) ******************** वह जो सिकुड़ कर पैरों में सिर दिए बैठा है .. लगता है किसी छोटे गांव के गरीब का बेटा है ! वह जो निपट अकेला चेहरे पर ताब लिए बैठा है बेशक खाली हाथ है पर सीने में ईमान समेटा है ! वह जो चेहरे पर नकाबों पर नकाब लिए बैठा है मक्कारी और धोखे को उजले लिबास से लपेटा है! वह जो अन्न और खुशहाली बो,खुद भूख से सोता है टूटी खाट और फूटे छप्पर तले किसान का बेटा है! वह जो अपने हक के लिए दफ्तर के फेरे लेता है उसका इकलौता बेटा सरहद पर तिरंगे में लेटा है!! परिचय :- डॉ. सुलोचना शर्मा निवासी : बूंदी (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र क...
वसीयत
कविता

वसीयत

उत्कर्ष सोनबोइर खुर्सीपार भिलाई ******************** मां मेरे पैदा होते ही तु मुझे क्यों नही मारी देती तू मुझे एक चुटकी भर नमक ही चटा देती, तूने मुझे क्यों पाला मां, मां मेरे पैदा होते ही तू आंगन पर कुआं खुदवा लेती और उसी में डकेल देती, तू क्यों उसी पानी से गंगा स्नान नही कर लेती, उस कुआं को पत्थर से ढंक कर क्यों नही बंद कर देती मां, तू मुझे जन्म देते ही मार देती! तू अण्डी और कपास के बीज फोड़ खा लेती बेटी पैदा करने के बाद तू बांझ क्यों नही हो जाती मां, मां घर के आंगन में चिकनी मिट्टी ला कर कपास का पेड़ लागा लेती, उससे जो फल आए उसे अपनी बहु को खिला देना मां, ताकि तुम्हारी बहु भी बेटी मुक्त हो जाए! मां बेटी तो पर गोत्र होती है, इसे भगवान ने ही बनाया है न... एक दिन मैं भी चली जाऊंगी मां तेरा बोझ भी हल्का हो जाएगा, बेटी तो उड़ती चिरैया है, ...
उत्तरायण
कविता

उत्तरायण

कीर्ति मेहता "कोमल" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** नवीन वर्ष प्रारम्भ हुआ है, खुशियों का आरम्भ हुआ है। रंगबिरंगी पतंगों से ये, आसमान रंगीन हुआ है। गुड़-तिल्ली की मिठास भर गई, हर मन से खटास कम हुई। क्लेश मिट गए अब सारे रिश्तों का तारतम्य हुआ है। संक्रांति का महापर्व ये सूर्य आज उत्तरायण हुआ है। परिचय :- कीर्ति मेहता "कोमल" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बीए संस्कृत, एम ए हिंदी साहित्य लेखन विधा : गद्य और पद्य की सभी विधाओं में समान रूप से लेखन रचना प्रकाशन : साहित्यिक पत्रिकाओं में, कविता, कहानी, लघुकथा, गीत, ग़ज़ल आदि का प्रकाशन, आकाशवाणी से प्रसारण। प्राप्त सम्मान : अभिव्यक्ति विचार मंच नागदा से अभियक्ति गौरव सम्मान तथा शब्दप्रवाह उज्जैन द्वारा प्राप्त लेखनी का उद्देश्य : जानकारी से ज्ञान प्राप्त करना। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ क...
मेरा प्यारा गांव
कविता

मेरा प्यारा गांव

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** मेरा सुंदर सबसे प्यारा गाँव है मेरा सुंदर सबसे न्यारा गाँव है। जहाँ बरगद का शीतल छाँव है जहाँ पीपल का शीतल छाँव है। जहाँ पंछी का चाँव-चाँव है जहाँ सुर-संगीत का भाव है। जहाँ रवि को पहले प्रणाम है जहाँ करते पहले ये काम है। जहाँ करते जलाभिषेक है जहाँ करते काम विशेष है। जहाँ ग्वाल-बाल गायें चराते हैं जहाँ बंशी की धुन मन भाते हैं। जहाँ गायें व बछड़े रम्भाते हैं जहां ग्वालों के टेर सुनाते हैं। जहाँ रहँट-घिरनी की धुन आती है जहाँ पनघट की आभाष कराती है। जहाँ खेतों में फसल लहलहाते हैं जहाँ खुशी के गीत गुनगुनाते हैं। जहाँ बगीचों में फूल मुस्काते हैं जहाँ रसीले फल मन लुभाते हैं। जहाँ तालों में कमल मुस्काते हैं जहाँ स्वच्छ जल लहरा लगाते हैं। जहाँ जंगल-पठार मन को भातें हैं जहाँ के हरियाली मन को सुहाते ...
विलोपित धर्म हमारे
कविता

विलोपित धर्म हमारे

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** मानवता के मूल मिटे जिम धूल शूल स्वारथ के गाड़े। स्वास करे निर्मूल धरावे फूल चिता जीवत महि बारे ।। लालच को संसार बढ़ो व्यापार विचार अपावन सारे। नाता ना मनुहार भयो अंधकार विलोपित धर्म हमारे।। बैरी भए मनमीत प्रीत की रीत हार संसार बिसारें। वृद्ध जनन की सीख दंत तल पीस खीज आपन पे झारें।। समुझावत बड़वार तबउ मय पीवत नाद पड़े भिन्सारे। वस्त्र लुप्त उन्मुक्त संतति घूमें हाय देह उघारे।। व्याख्या- मानवता के मूल्य सड़क पर पड़ी किसी धूल की भांति उड़ाती आज की पीढ़ी स्वार्थ के तीखे बाण हृदय में चुभोती सी, स्तर स्वार्थ का यूँ कि स्वास लेते शरीर को कौन पूँछे? उनका बस चले तो कपट कर अपना मतलब साधकर बुजुर्गों को जीवित स्वाहा कर दें कर भी रहे हैं। लालच व्यापि इस संसार में संबंधों का व्यापार अब आम हो चला है, अर्थात नवीन सम्बंध अब मात्र रुपयो...
बैरी मेरा मन
कविता

बैरी मेरा मन

डॉ. सुलोचना शर्मा बूंदी (राजस्थान) ******************** मेरा मन मेरा जन्म का बैरी.. क्यों मेरे बस में नहीं आए! गर ये मन घोड़ा होता तो.. ले चाबुक बस में कर लेती! गर ये मन हाथी होता तो.. ले अंकुश सवार हो जाती! गर ये मन सांप होता तो.. बजा बीन फण से धर लेती! गर ये मन बैल होता तो.. नथनी डाल नाक कस लेती! गर ये मन सुव्वा होता तो.. सोना गढ़ा चोंच मढ़ लेती! गर यह मन प्रेत होता तो झाड़-फूंक वश में कर लेती! गर ये मन बिच्छू होता तो बांध डंक जहर हर लेती! एक विधि है यही विधाता इस तन के अंदर जो सोए खोए अंतस को साधूं तो.. आकुल व्याकुल मन सध जाए!! परिचय :- डॉ. सुलोचना शर्मा निवासी : बूंदी (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, ...
ना जाने कब
कविता

ना जाने कब

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ना जाने कब मन समंदर की गहराई कम हो और हम खो ना जाए कहीं लहरों में सोचने से जुबान खोलने से होता नहीं शबनम का आभास शबनम तो पिघलती है लुटती है सिर्फ पत्तों के लिए क्या तुम पिघल कर फिर जब जाओगी हिम सी।। या शबनम से लूट कर अपनी सुंदरता बिखेरोगी। सिर्फ मेरे लिए क्योंकि मैं शाख से टूटे पत्ते के समान धरा पर गिरी सी निस्तेज कुम्लाई कली कहीं कोई मुझे रौंद न दे उससे पहले तुम मुझे अपनी थोड़ी चमक दे दो ताकि मैं रोंदी ना जाऊं। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों स...
जिंदगी का कडवा सच
कविता

जिंदगी का कडवा सच

डॉ. तेजसिंह किराड़ 'तेज' नागपुर (महाराष्ट्र) ******************** एक ऐसा सत्य जो रोज घटित होता है जिंदगी में। समझकर भी अनदेखा कर देते है पूरी जिंदगी में। हर चीज पाने की चाह में गुजर रही है ये जिंदगी। मूल्यों को दरकिनार कर मस्ती में गुजर रही जिंदगी। आज सुबह दौड़ते हुए, कुछ लोगो को देखा मेनें। हर कोई तेज भाग रहा था आगे, अपने सत्य से मुंह छिपाते आगे निकलते देखा मेने। अंदाज़ा लगाया कि मुझसे थोड़ा धीरे ही भाग रहे थे। एकअजीब सी खुशी मिली। कि मैं पकड़ लूंगा उन्हें। मैं तेज़ और तेज़ दौड़ने लगा। आगे बढ़ते हर कदम के साथ मैं भी उनके करीब पहुंचनें लगा। कुछ ही पलों में, मैं उससे सौ क़दम पीछे था। निर्णय ले लिया था कि मुझे उसे पीछे छोड़ना है। तब थोड़ी गति और बढ़ाई। अंततः लक्ष्य पा लिया उनके पास पहुंच, अब मैं भी उनसे आगे निकल ही गया। आंतरिक हर्ष की अनुभूति, कि ...
चुनावी सियासत
कविता

चुनावी सियासत

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ****************** रे मूरख मतदाता, क्यों माणुस की तू बोली बोल ? रे, घोड़े की बात कर, तू गधे की बात कर !! चुनाव आवे तो एक अनार हजार बीमार होय, रे, नीबू की बात कर, तू नारियल की बात कर !! पोथी पढ़ सब पंडत भये, मूरख बचे न कोय , रे, सयाना तू, पत्थर उठा दंगल की बात कर !! जात न पूछो साधू की पूछ लीजिये ज्ञान, छोड़, रे, मजहब की बात कर तू जात की बात कर !! अँधेरे घर में बीमार लुगाई, भूखे बच्चें सोय, रे, खाट उठा काँधे पर, झंडे की बात कर !! परिचय : विश्वनाथ शिरढोणकर मध्य प्रदेश इंदौर निवासी साहित्यकार विश्वनाथ शिरढोणकर का जन्म सन १९४७ में हुआ आपने साहित्य सेवा सन १९६३ से हिंदी में शुरू की। उन दिनों इंदौर से प्रकाशित दैनिक, 'नई दुनिया' में आपके बहुत सारे लेख, कहानियाँ और कविताऍ प्रकाशित हुई। खुद के लेखन के अतिरिक्त उन दिनों मराठी के...
नेताजी
कविता

नेताजी

महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' सीकर, (राजस्थान) ******************** स्वाधीनता संग्राम के अग्रणी महानायक नेताजी। ब्रिटिशराज को दिखा औकात दिलायी राष्ट्र को आजादी। करोड़ों भारतीयों के दिलों पर करने वाले राज। अमर शहीद बलिदानी कृतज्ञ है सम्पूर्ण राष्ट्र आज। चितरंजन दास को माना गुरु थे विवेकानन्द के अनुनायक। राष्ट्रहितार्थ फौज आज़ाद हिंद का किया गठन, पराधीनता मुक्ति के लिए हर भारतीय है आपका कायल। परिचय :- महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' निवासी : सीकर, (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवान...
मेरा पावन गांव
कविता

मेरा पावन गांव

डोमेन्द्र नेताम (डोमू) मुण्डाटोला डौण्डीलोहारा बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** मेरा पावन सा गांव, बरगद पीपल की छांव। कोयल की कुहुक-कुहुक, कौवां की कांव-कांव।। गोरी की मधुर बोली, बच्चों की सुमधुर है टोली। नाना-नानी, दादा-दादी मां की हंसी और ठिटोली।। वो बचपने की यादें, गिल्ली, बिलस, भौवरां के साथ। कभी लड़ना, कभी मिल जाना, वो शरारत भरी बात।। मेरे गांव की चबुतरा, पुल, पाठशाला, और उपवन। सौर ऊर्जा नल-जल संकरी सी गली, लगे हमें वृदावन।। खरखरा बांध का निर्मल पानी, बहती नाला कल-कल। देख नजारा मन हमारा, बस गीत गाता रहे हर पल।। वो बांवली और कुंआ, वो सागर सा चंचल मेरा साजन। खेत-खलिहान सचमुच में, आज लगें हमें पावन।। परिचय :- डोमेन्द्र नेताम (डोमू) निवासी : मुण्डाटोला डौण्डीलोहारा जिला-बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौल...
आज की नारी
कविता

आज की नारी

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* नारी शक्ति, नारी देवी, नारी पूजा है नारी कर्म की देवी, जिसका कर्म ही पूजा है नारी शक्ति, नारी भक्ति, नारी एक ज्वाला है, नारी गर है संग तो रब रखवाला है, नारी निर्मल इतनी जितना पावन नर्मदा का पानी है नारी सिर्फ दो शब्द नहीं खुद एक कहानी है . नारी जितनी सहनशील दुनिया में कोई नहीं सुन नारी की गाथा प्रकृति सदियों सोई नहीं कल्पना चावला, किरण बेदी, नहीं किसी से कम है इंदिरा का दम क्या किसी गौतम से कम है आज की नारी के कदमों में फौलाद सा दम है चाहे तो आजमा लो हौसला नहीं किसी से कम है हर परिवर्तन को नारी ने सबसे पहले स्वीकार किया अपने विवेक का परिचय दें हम सब को अंगीकार किया प्रगति पथ पर नारी गतिमान इस पर तुम विचार करो कमजोर आंकने वालों इस चुनौती को स्वीकार करो नारी का सम्मान करो नारी का सम्म...
रख हौसला वो मंजर भी आएगा
कविता

रख हौसला वो मंजर भी आएगा

ऐश्वर्या साहू महासमुंद (छत्तीसगढ़) ******************** रख हौसला वो मंजर भी आएगा अभी है दौर है कठिनाइयों का, कल खुशियों का समंदर भी आएगा। अभी शिकायते है जिन्हें आपसे, कल उन्हें ही आप पर फक्र होगा, देखना एक दिन वो पल भी आएगा।। सबको अकेले ही निभाना होता है, अपनी जिम्मेदारियों अपने फर्ज, कल होगा सबका साथ वो पल भी आएगा। अभी वक्त कुर्बानी का है अनगिनत सफलताये राहो में होंगे देखना एक दिन वो कल भी आएगा।। हिम्मत नही हारना टूटना नही कभी, यही तो पल संघर्ष का है। सब ठीक होगा सब साथ होंगे सब अपने पास होंगे और वो पल हर्ष का होगा। एक नई सुबह के उत्कर्ष का होगा।। परिचय :- ऐश्वर्या साहू निवासी : ग्राम पटेवा, महासमुंद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि ...
भयातुर शिक्षक
कविता

भयातुर शिक्षक

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** भयभीत शिक्षक समाज आज, भूल मकर संक्रांति कक्षा पढ़ा रहा। राजनीतिक दबाव में शिक्षक आज, भूल पर्वों को कक्षा पढ़ा रहा।। विद्यार्थी चाहे जुड़ना चाहे नहीं चाहे, शिक्षक उपकरण माध्यम से पढ़ा रहा। विद्यार्थी अप्रत्यक्ष कुछ भी शरारत करें, शिक्षक विवस मौन उपकरण से पढ़ा रहा।। कक्षा उपकरण माध्यम से लेने का, आदेश राजनैतिक मिलता रहा। भुलाकर मकर संक्रांति स्नान शिक्षक, उपकरण माध्यम से विषय पढ़ाता रहा।। हो चाहे लोहड़ी उत्तरायणी पर्व अब, शिक्षक पर्व कोई मना नहीं सकते। सेवा शिक्षण की चाहिए सुरक्षित तो, अब शिक्षक पर्व कोई मना नहीं सकते।। अति बिचित्र यह शिक्षा व्यवस्था, हो गई है राष्ट्रीय राजधानी की। कब लौटेगी वह शिक्षण व्यवस्था, जो लुप्त हो गई है राष्ट्रीय राजधानी की।। शिक्षक भयातुर करके कैसे तुम, शिक्षा प्रारूप का स्व...
नारी को जाने और समझे
कविता

नारी को जाने और समझे

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** दिखाये आँखें वो हमें जब मनका काम न हो उसका। तब बहाना ढूँढती रही हमें शर्मीदा करने का। यदि इस दौरान कुछ उससे पूछ लिया तुमने। तो समझ लो तुम्हारी अब खैर नहीं है।। अलग अलग तरह के रूप देखने को मिलेंगे। कभी राधा तो कभी दुर्गा और कभी-कभी शेरनी का। समझ नहीं पाता पुरुष नारी के इतने रूपों को। इसलिए शांति से वो सब कुछ सुनता रहता।। नारी की गुस्सा से पुरुष बहुत डरता है। घर की शांति के लिए वो खुद चुपचाप सा रहता। इसी बात का फायदा सदा वो उठती रहती है। और अपनी मन मानी वो घर में करती रहती है।। बहुत सहनशील धैर्यबान और कुशल प्रबंधक भी नारी होती। और अपने घर और बाहर का ख्याल भी बड़ी खूबी से रखती। तभी तो नारी को लक्ष्मी दुर्गा और अन्नपूर्णा माँ कहाँ जाता। तभी वो घर को स्वर्ग और नरक स्वयं बनाकर रखती है।। नारी के रूपों ...
मेरा हिन्दू नव वर्ष
कविता

मेरा हिन्दू नव वर्ष

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** मैं इस धन्य-धरा का हिन्दू हूँ मेरा घर-संसार हिंदुस्तान है। मैंने इस मिट्टी में जन्म लिया इसका बहुत मुझे अभिमान है। हम भारतवासी सच्चे हिन्दू हैं हम सब विक्रम संवत मनाएंगे। चैत्र प्रतिपदा तिथि को मिलके हिन्दू जनजन नव वर्ष मनाएंगे। आओ नमन करें हम जनजन विक्रमादित्य महान सम्राट को। आओ अभिनन्दन, स्वागत करें ऐसे प्रतापी महाराजा विराट को। आइए हम सब बहिष्कार करें विदेशी सभ्यता, संस्कृति को। आइए हम और अंगीकार करें सनातन भारतीय संस्कृति को। आइए भगवा झंडा फहराएंगे भारत की जयकारा लगाएंगे। अपने धर्म का सम्मान बढाएंगे भारत माँ का सर ऊंचा उठाएंगे। तुझसे ही हम सबकी पहचान है तुझसे ही हमारा स्वाभिमान है। तू ही सर्वस्व हमारा सब कुछ है तू ही हम सब का अभिमान है। हे माता तेरी मिट्टी की सौगंध है हम तेरी लाज सदैव बचाएंग...
गुदड़ी का लाल
कविता

गुदड़ी का लाल

डॉ. कुसुम डोगरा पठानकोट (पंजाब) ******************** तुम कह कर आना तुम कहीं ओर नहीं मेरे पास आ रहे हो सफर अपने का विराम पाने आ रहे हो कुछ पल दुनियादारी को भूल जाने मन की कैद से निकल तन्मयता से वात्सल्य का आनंद पाने आ रहे हो संवेदननाओ को महसूस करती शुन्य की अवस्था से दूर ममता की ओर एक कदम बढ़ाने आ रहे हो तुम कह कर आना तुम कहीं और नहीं मेरे पास आ रहे हो घर के झमेलों से निकल बही खातों के हिसाब से दूर अपनी गुदढी से रूबरू होने आ रहे हो खातिरदारी से दूर परिचित अंदाज में स्वयं को महसूस होने के लिए आ रहे हो तुम कह कर आना तुम कहीं ओर नहीं मेरे पास आ रहे हो...। परिचय :- डॉ. कुसुम डोगरा निवासी : पठानकोट (पंजाब) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्र...
बहुरंगी दुनिया
कविता

बहुरंगी दुनिया

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** दुरंगी मत कहो इसको, बहुत रंगीन दुनिया है। कहीं गमहीन दुनिया तो, कहीं गमगीन दुनिया है।। कहीं नमकीन है कुछ कुछ, कहीं शौकीन है दुनिया, कहीं शालीन भारी तो, कहीं संगीन दुनिया है।। कहीं बस बात चलती है, कहीं पर मन्त्र चलते हैं। कहीं पर हाथ चलते तो, कहीं पर यन्त्र चलते हैं।। कहीं पर सादगी अपनी, विरासत छोड़ जाती तो, कहीं पर सादगी से भी, विकट षडयन्त्र चलते हैं।। किसी का मन बतासा है, किसी का तन तमाशा है। किसी के पास धन ही धन, मगर सुख से निराशा है।। खुलासा हो चुका है यह, उदासी दास किसकी है, करीने से जिया है जो, जिसे सुख ने तराशा है।। किसी ने गाय पाली है, किसी ने भैंस पा ली है। किसी ने झोलियाँ भर लीं, किसी की जेब खाली है।। किसी की चाह ज्यादा है, किसी को आज भी आशा, किसी की दाल में काला, किसी की दाल काल...
सक्रांति का त्यौहार
कविता

सक्रांति का त्यौहार

डाॅ. कृष्णा जोशी इन्दौर (मध्यप्रदेश) ******************** संक्रांति का त्यौहार संक्रांति का त्यौहार आया, खुशियों की सौगात लाया। उत्तरायण में सूरज आया, तिल-तिल तपिश बढ़ाया। शीतलता हो जाती है कम, सूरज दिखाता अपना दम। गंगा नदी में करते‌ हैं स्नान, असहायों को करते हैं दान। गुण तिल का भोग लगाते, सूर्य देवता को अर्घ चढ़ाते। गुण सी मिठास घुल जाए, जीवन में बहार आ जाए। नभ में फर फर उड़े पतंग, जीवन में तेरे भरा रहे रंग। पतंग की न टूटे कभी डोर, उड़े गगन के अंतिम छोर। किसी की भी न कटे पतंग, कृष्णा रहे अपनों का संग। परिचय :- डाॅ. कृष्णा जोशी निवासी : इन्दौर (मध्यप्रदेश) रुचि : साहित्यिक, सामाजिक सांस्कृतिक, गतिविधियों में। हिन्द रक्षक एवं अन्य मंचों में सहभागिता। शिक्षा : एम एस सी, (वनस्पति शास्त्र), आई.आई.यू से मानद उपाधि प्राप्त। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती ह...
मकर संक्रति
कविता

मकर संक्रति

रीमा ठाकुर झाबुआ (मध्यप्रदेश) ******************** भोर सुहानी, नदियाँ निर्मल, फूलों को मकरंद छुऐ! ढूंढ रहे पराग फूलों में, कितने, सुन्दर रूप लिए!! उदय, आदित्य, नील गगन में, ललिमा नभ पर छायी! स्वर्णिम किरणें "मतवाली बन" धरा स्पर्श करने आयी !! सुन्दर पुष्प खिले बगिया मे, महकी यौवन तरुणायी! गूंजे शंख, मांदल ध्वनि, सब" ऐसी मधुरता है छायी!! पुष्प सजा चरणों में, प्रभु के, सुन्दर सा फिर रूप सजा! मानव मन, मुखरित "हो बोला" भक्ति का, संयोग जगा!! कांटे चुनकर, फूल बिछाओ, मंगल बेला फिर आयी!, मकर संक्रांति की बेला है, पिता पुत्र मिलन की तिथि आयी!! परिचय :- रीमा महेंद्र सिंह ठाकुर निवासी : झाबुआ (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख,...
पतंग प्रेम की
कविता

पतंग प्रेम की

रुचिता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** चलो स्वछंद आकाश में प्रेम के पेंच लड़ाते हैं, तुम उधर से पतंग उड़ाओ, हम इधर से उड़ाते हैं।। दुनिया की परवाह से बेखबर हम आसमान में ही मिल जाते हैं तुम उधर से उड़कर आओ, हम इधर से ढ़ील बढ़ाते हैं। चलो प्रेम के पेंच लड़ाते हैं। मधुर प्रेम की पतंगों से ही, अपनी दूरियाँ घटाते हैं, तुम मुझको छूकर निकल जाओ, हम इधर शरमाते हैं।। चलो प्रेम के पेंच लड़ाते हैं। लिख दो कुछ प्रेम के सन्देश भी, पढ़कर लिख दु जबाब सभी, तुम भी मुझे समझ सको, इस आस में तुम्हारे घर की तरफ बढ़ाते हैं, चलो प्रेम के पेंच लड़ाते हैं। काटकर तुम्हारी पतंग को, दिल में सहेज कर रख लेंगे, अगर तुम न भी मिले, तो इससे ही बातें कर लेंगे।। चलो प्रेम के पेंच लड़ाते हैं। रंग बिरंगी प्यारी पतंगों से ही सपनों का संसार बसाते हैं, इस बसन्त के मौसम में, प्रेम के फूल...