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पद्य

प्रकृति और हम।
कविता

प्रकृति और हम।

स्वरा त्रिपाठी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** आओ प्रकृति से प्रेम करे हम। आओ प्रकृति से प्रेम करे हम।। जिसको भूल गये हैं हम। आओ प्रकृति से...........।। वृक्ष लगायें बरगद, पीपल और नीम। ये हमको आक्सीजन देगें, इससे जीवन पाएँगे हम।। आओ प्रकृति से... पेड़ नहीं तो जीवन नहीं। पेड़ नहीं तो आक्सीजन नहीं। पेड़ों से मिलता आक्सीजन।। आओ प्रकृति से... ईश्वर हमसे लेते नहीं आक्सीजन की कीमत। इसके लिए कीमत क्यों चुकाएँ हम ? आओ पेड़ लगाएँ हम।। आओ प्रकृति से प्रेम करें हम। आओ प्रकृति से प्रेम करें हम।। परिचय :-स्वरा त्रिपाठी उम्र : ७वर्ष कक्षा : ३ निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्ष...
शर्त जीने की
ग़ज़ल

शर्त जीने की

सतपाल 'स्नेही' बहादुरगढ़ (हरियाणा) ******************** शर्त जीने की मुझे यूँ यार बतलाई गई ज़िंदगी की हर तमन्ना हो गई आई-गई वक़्त कम होना रहीं उसकी सदा मजबूरियाँ जब कभी मिलने मिरी लाचार तनहाई गई आजकल की ज़िंदगी से ख़ूब है बेहतर मियाँ ये बता कर मौत मेरे सामने लाई गई मैं नहीं समझा मगर वो भी कहाँ जाना मुझे कुछ न कुछ दोनों दिलों में ही कमी पाई गई दास्ताँ में जबकि दोनों का अहम किरदार था बारहा मेरी कहानी थी कि दुहराई गई आख़िरी वो ही हुआ जो इश्क़ में होता रहा बाद मरने के हमारी दास्ताँ गाई गई परिचय :- सतपाल 'स्नेही' पिताश्री : पंडित खजान सिंह माताश्री : श्रीमती परभी देवी जीवन साथी : श्रीमती सुनीता शर्मा जन्म तिथि : १५ अप्रेल,१९५४ जन्म स्थान : गाँव-ताजपुर,जिला-सोनीपत (हरियाणा) स्थाई निवास : बहादुरगढ़ (हरियाणा) शिक्षा : स्नातक + डी एम एल टी सम्प्रति : ...
मेरी प्यारी दीदी
कविता

मेरी प्यारी दीदी

निशा रायपुरिया अजमेर (राजस्थान) ******************** मेरी दीदी सबसे प्यारी माँ जैसा प्यार दिया भाई जैसा दुलार दिया राखी का त्योहार है भाई का भाई नही है तो रक्षा का वचन दिया कभी लगाई डाँट मेरी कभी प्यार से गले लगाया हरदम मेरा अच्छा चाहा हरदम मेरा भला किया तानो मे भी प्यार भरा था गुस्से में सम्मान भरा था सच में सबसे प्यारी दीदी परिचय :- निशा रायपुरिया निवासी : बरल २ जिला- अजमेर (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप क...
प्रेम सदा जिंदा रहता है
कविता

प्रेम सदा जिंदा रहता है

गरिमा खंडेलवाल उदयपुर (राजस्थान) ******************** दशक उम्र के बीत जाए जवानी पर चांदी चढ़ती जाए शहर बदल ले जीने के सलीखे मेरी यादो से दूर जाएगी कैसे प्रेम सदा जिंदा रहता है मिटाएगी कैसे जीवन की हजार समस्याएं दुनियादारी की समझाइशे मौसम पर चढ़ जाए धुंध की चादर जो लम्हा जी लिया उसे भूलाएगी कैसे प्रेम सदा जिंदा रहता है मिटाएगी कैसे हर ख्वाहिश पर भगवान बदलते हर मौके पर रिवाज बदलते दिल तो तेरे पास भी एक ही है सासो पर लिखा था नाम बदलेगी कैसे प्रेम सदा जिंदा रहता है मिटाएगी कैसे परिचय :- गरिमा खंडेलवाल निवासी : उदयपुर (राजस्थान) संप्रति : शिक्षक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र ...
कोरोना
कविता

कोरोना

ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' तिलसहरी (कानपुर नगर) ******************** है यह कोरोना महामारी अति घातक बच के रहना। ये काल कोरोना धरा पर अपने पांव पसार रहा है। हो कोई समाज बचा नहीं महामारी से सावधान रहो। हे नर अब भी समय है संभल जाओ खिलवाड़ रोको। ये धरा सबकी मातृभूमि पालन हार सबका आश्रय। परिचय :- ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' जन्मतिथि : ०६/०२/१९८१ शिक्षा : परास्नातक पिता : श्री अश्वनी कुमार श्रीवास्तव माता : श्रीमती वेदवती श्रीवास्तव निवासी : तिलसहरी कानपुर नगर संप्रति : शिक्षक विशेष : अध्यक्ष राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय बदलाव मंच उत्तरीभारत इकाई, रा.उपाध्यक्ष, क्रांतिवीर मंच, रा. उपाध्यक्ष प्रभु पग धूल पटल, रा.मीडिया प्रभारी-शारदे काव्य संगम, प्रभारी हिंददेश उत्तरप्रदेश इकाई साहित्यिक गतिविधियां : विभिन्न विधाओं की रचनाएं कहानियां, लघुकथाएं, हा...
मिट्टी सी बेटी हूं मैं
कविता

मिट्टी सी बेटी हूं मैं

अंशिता दुबे लंदन ******************** कभी नम हो जाती हूं गम से, कभी सख्त हो जाती हूं श्रम से, कभी सौंधी खूशबू सी जाती हूं बिखर, कभी हौसले से चढ़ जाती हूं शिखर, कभी दरिया संग बह जाती हूं इक छोर, कभी तट पर रुक जाती हूं बन डोर, कभी उलफत की लहरों से जाती हूं मिलने, कभी शांत सरोवर में जाती हूं खिलने, कभी एहसासों की नदी में जाती हूं डुबने, कभी लगती तूफानी भंवर सी हूं ऊबने, कभी आसमां को मुटठी में बांधने हूं लगती, कभी जमीन को ही अपना आसमां मानने हूं लगती। परिचय :- अंशिता दुबे निवासी : लंदन घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं...
अमर स्वतंत्रता सेनानी रासबिहारी बोस
कविता

अमर स्वतंत्रता सेनानी रासबिहारी बोस

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** महान स्वतंत्रता सेनानी रासबिहारी बोस! कर देश सेवा माँ-कोख को दिया गरिमामय तोष!! बोस! जन्म तेरा वर्धमान जिला पश्चिम बंगाल! जापान के टोक्यो में हा! आंँखें मूंँद लीं लाल!! तुम देश की कई राष्ट्रीय भाषाओं के ज्ञाता! अमर क्रांतिकारी हो तुम मांँ भारती के त्राता!! सशस्त्र क्रांति से राष्ट्रभक्ति की जलाई जोत! प्रख्यात वकील महान शिक्षाविद पर गौरव होत!! गवर्नर जनरल की हत्या-योजना बनाए बोस! असफल हो पहुंँचे जापान ले पूर्ण क्रांति जोश!! अज्ञातवास में किया जापानी तोशिका से विवाह! ब्रेकरीसुता थी छिपे बोस को खिलाया कई माह!! आजाद हिंद फौज के तुम श्रेष्ठ संगठनकर्ता! इंडियन इंडिपेंडेंस लीग के स्थापनाकर्ता!! देश तज जर्मनी पहुंँचे नेताजी को योग्य जान! सौंपी लीग, इंडियन नेशनल आर्मी की कमान!! और स्वयं को सीमित किया सिर्फ सलाहकार त...
काढ़े की महिमा
कविता

काढ़े की महिमा

संजय डागा हातोद- इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जब से कोरोना ने आकर करी भारत मे घुसपैठ हमारी प्यारी हिन्दी भाषा मे भी अग्रेंजी शब्दों की होने लगी घुसपैठ, माॅस्क और सेनेटाइजर हिन्दी शब्दकोष मे पहले-पहल आ गऐ पिछे क्वारेन्टाइन, होम आइसोलेशन प्लाज्मा और एंटी-बाॅडी भी हिन्दी के जरूरी शब्द हो गऐ फिर आया रेमडेसिविर और आई वैक्सीन की बारी पर हमारा काढ़ा आज भी इन सब पर पड़ता है भारी, भले ही हम इसे पीने मे आज भी नाक-भौ सिकोड़ते है पर काढ़े को हम सब आज भी हिन्दी मे काढ़ा ही तो बोलते है।। परिचय :- संजय डागा निवासी : हातोद जिला इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकत...
तुम वादा करो
कविता

तुम वादा करो

रंजीत शर्मा "रंग" सिखरा, हाथरस (उत्तर प्रदेश) ******************** हम तुमको भुला देंगें गर तुम वादा करोगे बाद हमारे तुम किसी से दिल न लगाओगे में हूं पतझड़ वृक्ष तुम मुझको आवाज ना दो ना खिले कोई फूल ऐसी रस्मों रिवाज ना दो राजनीति के चक्रव्यूह में ना मुझको अब घेरो मैं दरवारों की शान बनूँ ऐसा समाज ना दो अब ये चांदनी रातें हम बिन कैसे बिताओगे बाद हमारे तुम किसी से दिल न लगाओगे जानता है ये फाग महीने का रंगीन मेला तुम्हारे बिन ये अबके निकला है अकेला कभी खाते थे जलेबी उस हलवाई की आज पूछता है गुड्डे गुड़ियों वाला ठेला बताओ अबके सावन कैसे तुम मनाओगे बाद हमारे तुम किसी से दिल न लगाओगे ये बैरी पवन क्यूँ मुझको तपन दे रही है ये चांदनी रात क्यूँ मुझको जतन दे रही है डूबती किरणें मेरे सूरज की देख ले "रंग" अब तारों की छांव सासों की घुटन दे रही है मेरी मईयत पर क्यूँ तुम आंसू ब...
दुनिया देखे नाही
कविता

दुनिया देखे नाही

जयप्रकाश शर्मा जोधपुर (राजस्थान) ******************** बुद्धि ये कहती है सयानों से मिलकर रहना हदय ये कहता है दीवानों से मिलकर रहना अपने टिकने नहीं देते हैं कभी चोटी पर जान-पहचान अनजानों से बनाए रखना अब आसान नहीं है उसे रोक के रखना वह मृत्यु है किसी की नहीं सुनती कस्तूरी कुंडल बसै, मृग ढूढै वन मांहि.. ऐसे घट घट राम हैं, दुनिया देखे नांहि..! परिचय :- जयप्रकाश शर्मा निवासी : जोधपुर (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak1...
“बाकी सब वैसा का वैसा ही तो रहेगा” (नारी व्यथा)
कविता

“बाकी सब वैसा का वैसा ही तो रहेगा” (नारी व्यथा)

कु. आरती सिरसाट बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) ******************** नाम बदलेगा, गाँव बदलेगा, शहर बदलेगा, यहां तक की प्रदेश भी बदल जाएगा.... ज्यादा कुछ नही बस पहचान और पता ही तो बदलेगा... बाकी सब वैसा का वैसा ही तो रहेगा... दर्द वहीं रहेगा... सहना भी रोज की तरह ही होगा... कुछ भी तो नही बदलेगा... सहनशीलता की सीमा को थोड़ा ओर बड़ाना होगा... ज्यादा कुछ नही बस खामोशी से ही हर आँसू भी पीना होगा... बाकी सब वैसा का वैसा ही तो रहेगा... ना तो कोई माँ की तरह बिस्तर पर खाना लाएगा... ना ही पापा की तरह कोई सुबह की सलाह देने वाला होगा... अंदर से रहकर अकेला ओरों के सामने हँसना होगा... ज्यादा कुछ नही बस अपना वजन खुद को ही उठाना होगा... बाकी सब वैसा का वैसा ही तो रहेगा... सारे अरमानों की करके हत्या इल्जाम खुद पर ही लगाना होगा... बेबस चीखती जुबान को मन ही मन में दफ़न करना हो...
मानव की मानवता
कविता

मानव की मानवता

विरेन्द्र कुमार यादव गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) ******************** मानव की मानवता का हो गया पतन, इसलिए बीमार है विश्व व सारा वतन। खो रहे है सभी अपने चयन व अमन, मानव ही ने किये सारे दूषित ये पवन। जंगल काट बनाये कारखाने व भवन, कोरोना बीमारी के जिम्मेदार है कवन। मानव आंक्सीजन के स्रोत करे गमन, कैसे बचाये मानव स्वयं का ये जीवन। प्राकृति से बधि है हमारी जीवन डोर, कोरोना ही कोरोना फैला चारों ओर। हे!मानव तुम हैवानियत को दो छोर, निकाल दो मन से छिपा है जो चोर। चल नहीं रहा है मानव का कोई जोर, हे! मानव मानवता ही धर्म-कर्म मोर। सच्चाई से मानव आप मुख न मोड़, प्राकृति से सच्चा रिश्ता लो तुम जोड़। लौट आयेगा सबका चयन और अमन, खुशहाल हो उठेगा अपना सारा वतन। परिचय :- विरेन्द्र कुमार यादव निवासी : गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना...
बाबा केदारनाथ
भजन

बाबा केदारनाथ

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** कुछ न कुछ तो कमी है तड़प में, जिससे बाबा ने दर न बुलाया। आके बाबा ने कानों में बोला, तू तो दस रूप धरके है आया। कुछ न कुछ... रूप तेरे अनेकों हैं बाबा, जिनमे १२ हैं ज्योति से प्रकटे। ११ के हो चुके मुझको दर्शन, प्राण तेरे दरश को है अटके। कई वर्षों से पंक्ति में हूँ मैं, क्यों दयालु न मुझको बुलाया। कुछ न कुछ... हम हैं संसारी माया में उलझे, फिर भी तेरे दरस की है इक्षा। पास होकर दिखाएंगे बाबा, चाहें जितने कठिन लो परीक्षा। तेरे ही अंश से हैं जो प्रकटे, उनने सेवक है हमको बनाया। कुछ न कुछ... जिनके सुमिरन में प्रतिपल रमे तुम, उनकी थोड़ी कृपा मैंने पाई, मेरे आराध्य हनुमान जी ने, नाम महिमा है मुझसे लिखाई। गीत हनुमत ने ऐसे लिखाये, श्रेष्ट भक्तों ने है झूम गाया। कुछ न कुछ... परिचय :- प्रेम नारायण मेहरोत्रा ...
बाकी है
कविता

बाकी है

जयश्री सिंह बैसवारा सोनभद्र, (उत्तर प्रदेश) ******************** अभी तो कदमों को राहों पर लाया है उड़ान अभी बाकी है, इम्तिहान कहाँ खत्म हुआ है मेरा मंज़िल-ए-मुकाम अभी नहीं हासिल है, वक्त बेवक्त चल पड़ती हूँ उस ओर अभी तो सारा नजारा बाकी है, जिंदगी जो रूकी हुई थी मेरी कल तक उसे आगे बढ़ना बाकी है, पल भर की रौनक नहीं अब यहाँ माथे पर मेरे निशान बाकी है, रूकना अभी कहाँ मयस्सर है मेरे लिए अभी काफिलों का मेरे पिछे चलना बाकी है, रौनक तो है अभी भी महफ़िलो में मगर महफ़िल का मेरे नाम होना बाकी है, तुम्हारा इतराता भी ठीक है मगर मेरे गूरूर की आंधी का आना अभी बाकी है, शहर भले ही तुम्हारा क्यूँ न हो मगर भीड़ मेरे नाम की हो, ये नजारा भी बाकी है, चल देखते हैं कब तक खत्म नहीं होती ये जंग अभी वक्त का मेरी तरफ होना भी बाकी है। परिचय :- जयश्री सिंह बैसवारा निवासी : सोनभद्र, (उत्त...
खो देते है
कविता

खो देते है

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** मत पिलाओं अपने आँखों से इतना की हम उठा न सके। मत दिखाओ अपने हुस्न को कि हम नजर हटा न सके। जब भी होते है दीदार तुम्हारे खो देते है अपना सुध-बुध। और तुम्हें ही अपनी नजरो से देखते रहते है।। खोलकर उलझे हुए काले बालों को जब तुम सुलझती हो। ऐसा लगता है जैसे काली घटायें घिर आई हो आंगन में। अपने हाथो से जब तुम बालों को सहलती हो। तब कभी-कभी चाँद सा सुंदर चेहरा दिख जाता है।। भले क्यों न हो अमावस्या की रात पर उसमें भी पूनम का चाँद दिखते हो। जो देखने वालो की दिलकी धड़कनो को बड़ा देती है। और अंधेरी रात में भी तुम चाँद सी खिल जाती हो। और चाहने वालो के दिल में मोहब्बत के दीप जला देते हो।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कं...
कुंडल छंद “ताँडव नृत्य”
छंद

कुंडल छंद “ताँडव नृत्य”

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' तिनसुकिया (असम) ******************** कुंडल छंद विधान यह २२ मात्रा का सम पद मात्रिक छंद है जिसमें १२,१० मात्रा पर यति है। अंत में दो गुरु आवश्यक; यति से पहले त्रिकल आवश्यक। मात्रा बाँट :- ६+३+३, ६+SS चार चरण का छंद। दो दो चरण समतुकांत या चारों चरण समतुकांत। नर्तत त्रिपुरारि नाथ, रौद्र रूप धारे। डगमग कैलाश आज, काँप रहे सारे।। बाघम्बर को लपेट, प्रलय-नेत्र खोले। डमरू का कर निनाद, शिव शंकर डोले।। लपटों सी लपक रहीं, ज्वाल सम जटाएँ। वक्र व्याल कंठ हार, जीभ लपलपाएँ।। ठाडे हैं हाथ जोड़, कार्तिकेय नंदी। काँपे गौरा गणेश, गण सब ज्यों बंदी।। दिग्गज चिंघाड़ रहें, सागर उफनाये। नदियाँ सब मंद पड़ीं, पर्वत थर्राये।। चंद्र भानु क्षीण हुये, प्रखर प्रभा छोड़े। उच्छृंखल प्रकृति हुई, मर्यादा तोड़े।। सुर मुनि सब हाथ जोड़, शीश को झुकाएँ। शिव-शिव वे बोल रहें,...
मोहब्बत
कविता

मोहब्बत

ममता रथ रायपुर (छत्तीसगढ़) ******************** श्रद्धा का दूसरा नाम है मोहब्बत दो दिलों का पावन एहसास है मोहब्बत किसी के दर्द से किसी का रोम-रोम कांपने लगे उसी चाहत का नाम है मोहब्बत जिसको हृदय दुआओं में मांगे रब से उसी इबादत का नाम है मोहब्बत जिसकों आँखों में छुपाकर रखा जाए उसी ख्वाब का नाम है मोहब्बत जो नफ़रत की गर्म धूप से बचाए उसी प्यार की छाँव का नाम है मोहब्बत परिचय :-  ममता रथ पिता : विद्या भूषण मिश्रा पति : प्रकाश रथ निवासी : रायपुर (छत्तीसगढ़) जन्म तिथि : १२-०६-१९७५ शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य सम्मान व पुरस्कार : लायंस क्लब बिलासपुर मे सम्मानित, श्री रामचन्द्र साहित्य समिति ककाली पारा रायपुर २००३ में सांत्वना पुरस्कार, लोक राग मे प्रकाशित, रचनाकार में प्रकाशित घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचि...
स्त्रियां
कविता

स्त्रियां

अर्चना लवानिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** स्त्रियां समाहित होती हैं घर के कोने कोने में अखबार की घड़ी से चाय की चुस्की में सलीके से बिली गोल रोटी और सोंधी-सोंधी खुशबू में आंगन में दाना चुगते चह-चहाते पंछियों के सुर में गमलो और बैलों में निकली नव कलियों में स्त्रियां समाहित है ... तुलसी चौबारे पर जलते दिए में सुघडता से चमकते घर और लीपे पुते आंगन में स्त्रियां समाहित होती है... अभावों को खूंटी टांग चेहरे की सहज मुस्कान में दुख दर्द की विभीषिका में सुख का आंचल बंन कर स्त्रियां समाहित होती हैं... पेपर की संभाली कतरन ओ पन्नों में पुरानी चीजों से फिर नई साज सवार का कौशल बनकर स्त्रियाँ समाहित है .... पेंसिल से लिखें नए नवेले कच्चे अक्षरों में जीवन सुख दुख का सहज गान और लोरी बनकर स्त्रियां समाहित है... संध्या दीपक आरती और घंटी के सुर में...
हुस्न देखा तेरा
ग़ज़ल

हुस्न देखा तेरा

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ ******************** बहर - २१२ २१२ २१२ २१२ हुस्न देखा तेरा तो ठगा रह गया चाँद अपनी जगह पर खड़ा रह गया क़ह्र अँगड़ाइयाँ ख़ूब ढाती रहीं पास मेरे न कुछ भी बचा रह गया ज़ुल्फ़ तेरी घटा बन गई रात को दिल का आँगन यहाँ भीगता रह गया गिरह अनकही सी अधर ने कही बात जब आपको देखकर देखता रह गया कर रही आँख से जो इशारे सनम मैं तो तेरी अदा पर लुटा रह गया खिल रही है ये 'रजनी' सितारे लिए आसमां का भी दामन भरा रह गया परिचय : रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' उपनाम :- 'चंद्रिका' पिता :- श्री रामचंद्र गुप्ता माता - श्रीमती रामदुलारी गुप्ता पति :- श्री संजय गुप्ता जन्मतिथि व निवास स्थान :- १६ जुलाई १९६७, तहज़ीब व नवाबों का शहर लखनऊ की सरज़मीं शिक्षा :- एम.ए.- (राजनीति शास्त्र) बीएड व्यवसाय :- गृहणी प्रकाशन :- राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर म.प्र. के  hindi...
अटरिया
कविता

अटरिया

डॉ. गुलाबचंद पटेल अहमदाबाद (गुजरात) ******************** कारे-कारे बदरा रे, तुम मत आना मेरी अटरिया पर मे नीद मे सोया था सपना मे खोया था कारे कारे बदरा रे, हमे नीद से क्यू जगाया रे? हमने सुन्दर सपना देखा था तुमने सपना क्यू तोड़ दिया रे? आकर मेरी अटरिया पर तुमने हमे क्यू जगाया रे? सपने में वो आई थी, क्यू तुमने भगा दिया रे? बदरा तुम पापी हे आंखो से नीद भगा दी रे कभी तुम पवन संग आया रे प्रीत का संदेश तुम लाया रे पवन संग हमे भगा ले गया रे बारिश के संग प्रिया को पाया रे कारे कारे बदरा तुम मेरी अटरिया पर जरूर आना. प्रिया का संदेश तुम जरूर लाना परिचय :-  डॉ. गुलाबचंद पटेल निवासी : अहमदाबाद (गुजरात) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय...
माल पराया
ग़ज़ल

माल पराया

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** माल पराया खाने वाले, जो धन जोड़ रहे हत्यारे। कितने पागल हैं अपनी ही, किस्मत फोड़ रहे हत्यारे।। जैसे गीद्धों की बन आती, झपट रहे देखो ये हरसूं। अवसर खोज रहे अवसर में, कैसे दौड़ रहे हत्यारे।। कोरोना में जिंदा लाशों, के अंबार अस्पतालों में। मौका पाते ही ताकत से, खूब झंझोड़ रहे हत्यारे।। जिनका फर्ज रहा है आंसू, इस विपदा के वक्त में पोंछें। बेशर्मी से देखा वो ही, खून निचोड रहे हत्यारे।। हमदर्दी के पथ को थामे, लोग यहां कम ही दिखते हैं। दुनिया में जो डूब गए हैं, रिश्ते तोड़ रहे हत्यारे।। कैसे हैं नालायक वे जो, फूलों कांटो को ना जानें। कांटो पर ही चलने की जो, करते होड़ रहे हत्यारे।। सेवा का अवसर सम्मुख हैं, ऐसे जैसे घट पीयुष का। तज कर ऐसा अवसर लगता, घट वो फोड़ रहे हत्यारे।। पर...
पद्मावत छंद
छंद

पद्मावत छंद

बलबीर सिंह वर्मा "वागीश" सिरसा (हरियाणा) ******************** पद्मावती छ्न्द १०, ८, १४ की यति से ३२ मात्रा का सम मात्रिक छ्न्द, अंत में दो गुरु मात्रा अनिवार्य, जगण नहीं आना चाहिए। दो-दो चरण तुकान्त। (१) कंचन सी काया, मन भरमाया, बिखरी मुख पर ज्यों लाली। हैं अधर गुलाबी, बनी नवाबी, लगती कितनी मतवाली। ये नैन नशीले, लगें सजीले, सूरत नारी की प्यारी। ईश्वर की माया, पार न पाया, सम्मोहित दुनिया सारी। (२) नारी थी अबला, अब है सबला, जग पालक है यह नारी। आँगन की छाया, घर की माया, फिर भी रहती दुखियारी। नारी की पूजा, ईश्वर दूजा, सबने महिमा है गाई। दुर्गा ये काली, ममता वाली, है यही भवानी माई। (३) हे नंद दुलारे, यशुमति प्यारे, राधिका पुकारे आओ। करो नहीं देरी, सुन लो मेरी, मुरली की तान सुनाओ। दर्शन की प्यासी, कान्हा दासी, आकर अब गले लगाओ। छोड़ों मनमानी, शाम सुह...
एक बहु
कविता

एक बहु

मुस्कान कुमारी गोपालगंज (बिहार) ******************** हर रोज सहती डाट सबकी बस इतना ही बोलती है गलती नही होगी अबकी रात को जब सोती है घर की याद उसे आती है बहु भी किसी की बेटी है लोगो को ये बात समझ क्यों नही आती है। रोज सुबह जल्दी उठती है सुबह से काम कर करके रात को थक कर सो जाती है काम कर के हो जाती उससे गलती है तुम्हारी मां ने यही सिखाया यही बात सबसे सुनती है बहु भी किसी की बेटी है ये बात समझ क्यों नही आती है। अपने सपने को छोड़ कर दूसरे के सपनो को पिरोती है किसी और के सपने को लेकर वो खुद परेशान रह जाती है कभी हिम्मत नही करती है अपने सपनो को कहने की कह देती तो, हमारे घर की बहुएं ये काम नही करती है यही उसे सुनने को मिलती है बहु भी किसी की बेटी है ये बात समझ क्यों नही आती है। सासु मां की ताने सुनती है वो भी कुछ नहीं बोलते जिनके लिए वो सब छोड़ आई है आखिरकार रोकर वो मां को याद करती है बहु भी ...
सब खत्म…?
कविता

सब खत्म…?

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ****************** कई बार दरवाजे पर ही अड़ जाता हैं मन मेरा मुझसे पूछता हैं सब कुछ खत्म ? अब कुछ नहीं बचा ? मै घबरा जाता हूँ हाथ पांव कंपकंपाने लगते है मेरा मन मेरा बदन सुन्न हो जाता है और सवाल अनाथ दरवाजे पर ही चस्पा हो जाता है !! घबरा कर मैं अपने गुरु के यहाँ दौड पड़ता हूँ सर्वनाश का भय दिखाकर पीठ पर गुरु दक्षिणा का बोझ लादकर गुरु मुझे उपदेश देता है इस जीवन में कुछ भी खत्म नहीं होता अंत से ही तो सब शुरु होता हैं !! यह समझना जरुरी है कि क्या तो अन्त हैं और क्या तो शुरुवात हैं ? बावरा मन अन्त को ही शुरुवात समझ लेता हैं पागल मन शुरुवात को ही अन्त समझ लेता हैं अस्थिर मन समाप्ति के बाद शुरुवात की कामना करता हैं शुरू में समझता नहीं मन कोई संकेत अंत दफ़ना जाते जाने कितने रहस्यों के संकेत फिर भटकन भरा जिंदगा...
किसान देश का है
कविता

किसान देश का है

श्‍वेता अरोड़ाशाहदरा दिल्ली****************** हमारी एक एक रोटी केनिवाले पर नाम उसका है,धधकती गरमी मे,ककडती सर्दी मे,करता है वोखून पसीना एक,ये अहसान उसका है,ना रह जाए भूखे हम,मेहनत दिनरात वो करता है,ये तो देश काकिसान है जनाब,अनाज के एक-एकदाने को सोने कीतरह संजोता है!गर्म लू के थपेडे खाकरयो भूख हमारी मिटाता है,करो कुछ कोशिशे ऐसी किना रह जाए बेटीउसकी बिन ब्याही,बेटा उसका पढ जाए,कर्ज के बोझ मेआकर ना वोमौत को गले लगाए,अगर हम कुछ कर पाएऐसा तो अहसान नही,बस ये तो हमारीतरफ से ब्याज उसका है,क्योकिहमारी एक एक रोटी केनिवाले पर नाम उसका है! परिचय : श्‍वेता अरोड़ानिवासी : शाहदरा दिल्लीघोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा ...