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पद्य

वार
छंद

वार

अशोक शर्मा कुशीनगर, (उत्तर प्रदेश) ******************** धार छन्द (चार वर्ण-सात मात्रा-२२२१) सीमा पार। बैरी चार। अत्याचार। हाहाकार। चारो ओर। मानो खोर। नाता तोड़। माथा फोड़। भागे लोग। बिना जोग। ऐसी होड़। खाना छोड़। ना है आस। कोई पास। काया खास। सत्यानाश । छूटे कूछ। नाही पूछ। काटे पेट। देवी भेंट। पानी आज। खोयी लाज। धोती ढाल। खोती लाल। खोटे लोग। का है योग। ना है रोध। कोई बोध। नाही नेह। कोई गेह। तेरा क्षेम। कैसा प्रेम। मानो खार। सीमा पार। रोको यार। ऐसी धार। परिचय :- अशोक शर्मा निवासी : लक्ष्मीगंज, कुशीनगर, (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प...
कर्म में शर्म कैसी ?
कविता

कर्म में शर्म कैसी ?

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** एक छोटी सी चीटी भी, करती रहती कर्म यहाँ हाथी को भी मेहनत करने में, आती नहीं है शर्म यहाँ याचक भी जी लेता है, करते-करते कर्म यहाँ राजा को भी कभी न आई, राजपाट में शर्म यहाँ नन्ही चिडिया दानों के लिए, करती रहती कर्म यहाँ जंगल का राजा शिकार में, नहीं किया कभी शर्म यहाँ इस दुनिया मे भगवान ने, आकर किया कर्म यहाँ फिर इन्सान को आती है, क्यो करने में शर्म यहाँ सासें भी तब तक चलती है, हृदय करे जब कर्म यहां निर्जीव हो जायेगी काया, धडकनें करे जो शर्म यहाँ जीवन का है सार यही कि, करते रहो कर्म यहाँ मानवता से बढ़ कर दूजा, "सुकून" नहीं है कोई धर्म यहाँ स्वर्ग नरक का खेला कह कर, छलते रहते कर्म यहाँ यहीं किया है यहीं मिलेगा, जीवन का है यही मर्म यहाँ परिचय : रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” निवासी : मुक्तनगर, पद...
दुर्योधन नही सुयोधन
कविता

दुर्योधन नही सुयोधन

दशरथ रांकावत "शक्ति" पाली (राजस्थान) ******************** मैं समय ठहर सा गया युद्ध जब भीम सुयोधन बीच हुआ, उस रणभूमि का कण-कण साक्षी क्या उसका परिणाम हुआ। अंत समय तक वीर लडा़ सौ बार गिरा फिर खड़ा हुआ, हो धर्म विजेता या पाप पराजित पर वीर सुयोधन अमर हुआ। क्षण मृत्यु का निकट हुआ माधव को निकट बुलाकर बोला, संतप्त हृदय से पीड़ा निकली तत्काल संभलकर यु बोला। हे गिरिधर एक बात सुनो मैं नीच नराधम दुर्योधन हूं, मैं पाप मूर्ति में कली रूप मैं अधर्म का संचित धन हूं। मैं विषघट हूं कुलनाशक मैं अनीति का वृहद वृक्ष हूँ। भातृशत्रु मैं कुटिल कामी मैं क्रोध लोभ का प्रबल पक्ष हूं। है कितने ही अवगुण अपार मैं महाभारत का हूँ आधार, मेरे कारण गीता कही मैं पाप स्वयं सत का आधार। तुम धर्म स्वयं को कहते हो सत्य सनातन बनते हो, पापों का दमन ध्येय तेरा इस हेतु देह नर धरते हो। क्या पाप कहो ...
भौतिकतावादी संसार
कविता

भौतिकतावादी संसार

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** भौतिकता का प्रेमी यह जग रंग-रूप आकार सराहे करे सदा भौतिक सत्यापन दृश्य, गंध, स्पर्श, नाद से करता है पहचान सभी की चमक-दमक का सतत प्रशंसक कृत्रिम गंध से भ्रम का पोषक कोमल सतहों को शुभ माने स्वर की सरगम में डूबा है ठाट-बाट के पीछे पड़ता महलों के शिखरों को देखे कुटिया उसके लिए उपेक्षित धन से तोले मान-प्रतिष्ठा बाहर-बाहर परखे सबकुछ देख नहीं पाए अंतर्मन भौतिकतावादी संसार परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, एलएल•बी•, साहित्य रत्न, कोविद कार्यक्षेत्र ~ सेवानिवृत प्राचार्य सामाजिक गतिविधि ~ मार्गदर्शन और प्रेरणा लेखन विध...
मिलन यामिनी
कविता

मिलन यामिनी

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कहीं बादल गरज रहे कहीं दमक रही दामिनी तुम कहीं हम कहीं यह कैसी मिलन यामिनी तरु पल्लव भी मुखरिततो हो गए पागल लताओं का संबल दूर कहीं भाग रहे मेघों के संगम तुम तुम आए नहीं मैं बांट रही जोहती तुम कहीं हम कहीं यह कैसे मिलन यामिनी तराजू में पंकज भी सिर झुकाए बैठ गए खग वृंद भी अपने घरों को लौट गए मैं खड़ी द्वार पर प्रतीक्षा थी कर रही तुम कहीं हम कहीं यह कैसी मिलन यामिनी नीरज तरंगे भी टकरा रही कूल से अभी भी झूम रहे पाकर मधुपुष्प से कुमकुम रोली लिए मैं सजा रही आरती तुम कहीं हम कहीं यह कैसे मिलन यामिनी दामिनी की धमक से मेघ बोखला गए बरसा कर अमृत करण इंद्र छटा दिखा गए मैं भी गाती रही पुष्प लिए सारथी तुम कहीं हम कहीं यह कैसे मिलन यामिनी देखो अब मैंघो ने प्रृषठ् भाग दिखा दिया इंद्र धर्म के सप्तरंग लि...
षडयंत्र आतुर हैं
गीतिका

षडयंत्र आतुर हैं

प्रमोद गुप्त जहांगीराबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** जन संख्या की, जब यहाँ भरमार है ये महंगाई का मुद्दा तो सदाबहार है। जब चाहो विरोध कर सकते हो तुम कोई मौसम या फिर कोई सरकार है । दिखीं नहीं तुमको निन्यानवें अच्छाइयां मेरी ही एक गलती पर बस टकरार है। देश निगलना चाहते हैं, वह नास्ते में कहते हैं हमको भी तो इससे प्यार है । षडयंत्र आतुर हैं, आस्तित्व मिटाने को ये अपनी संस्कृति भी, बहुत लाचार है । अहिंसा के जाल की तासीर तो देखो इसे हम समझ बैठे कि शीतल बयार है । सबके सुख की, क्यों करें हम कामना जब दरिन्दों के, हर हाथ में तलवार है। तुम जो हमको, घाव देते जा रहे हो चुकायेंगे, ये तेरा हम पर जो उधार है । जब संघर्ष करना ही पड़ेगा, देर क्यों या फिर बता की मिटने को तैयार है । परिचय :- प्रमोद गुप्त निवासी : जहांगीराबाद, बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) प...
गुरु महिमा
कविता

गुरु महिमा

सुनील कुमार बहराइच (उत्तर-प्रदेश) ******************** गुरुदेव के पावन चरणों में जो शीश झुकाते हैं ज्ञान का अनमोल खजाना वो ही तो पाते हैं। गुरुदेव की अमृतवाणी निज जीवन अपनाते हैं सारे जहां की खुशियां अपने कदमों में पाते हैं। दिव्यज्ञान की ज्योति जला उर का तम मिटाते हैं सही-गलत का भेद पूज्य गुरुदेव ही बताते हैं। मां-बाप तो देते जन्म गुरुदेव पहचान दिलाते हैं भवसागर से पार उतरना गुरुदेव ही सिखाते हैं। गुरुदेव के पावन चरणों में जो शीश झुकाते हैं जीवन की बाधाओं से सहज ही मुक्ति पाते हैं। परिचय :- सुनील कुमार निवासी : ग्राम फुटहा कुआं, बहराइच,उत्तर-प्रदेश घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के स...
गुरू
कविता

गुरू

मनीषा जोशी खोपोली (महाराष्ट्र) ******************** गुरु वही जो जीवन के अंधेरों में प्रकाश बन कर आते हैं। ईश्वर के बाद हमें ज्ञान की सीख सिखाते हैं। जीवन पथ पर जो राह दिखाते हैं। मन के भीतर वो विश्वास का दीपक जलाते हैं। हमें इंसानियत और धैर्यता का पाठ पढ़ाते हैं। गुरू वही जो संकट से लड़ना सिखाते हैं। गुरु वही जो हमें संपूर्ण मानव बनाते हैं। गुरु पुस्तक गुरु अरदास हुए। परिचय : मनीषा जोशी निवासी : खोपोली (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें ...
गुरुदेव की भक्ति
गीत, भजन

गुरुदेव की भक्ति

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** भक्ति मैं करता तेरे साझ और सबेरे। चरण पखारू तेरे साझ और सबरे। चरण पखारू तेरे साझा और सबरे। तेरे मंद-मंद दो नैन मेरे मनको दे रहे चैन। तेरे मंद-मंद दो नैन...। क्या ज्ञान क्या अज्ञानी जन, आते है निश दिन मंदिर में। एक समान दृष्टि तेरी पड़ती है उन सब जन पर। पड़ती है दृष्टि तेरे उन सब पर। तेरे कर्णना भर दो नैन मेरे मनको दे रहे चैन। तेरी कर्णना भरे दो नैन मेरे मनको दे रहे चैन।। त्याग तपस्या की ऐसे सूरत हो। चलते फिरते तुम भगवान हो। दर्शन जिसको मिल जाये बस। जीवन उनका धन्य होता। जीवन उनका धन्य होता। तेरा जिसको मिले आशीर्वाद। उसका जीवन हो जाये कामयाब। तेरा जिसको मिले आशीर्वाद। उसका जीवन हो जाये कामयाब।। ऐसे गुरुवर विद्यासागर के चरणों में संजय करता उन्हें वंदन, करता उन्हें शत शत वंदन।। परिचय :- बीना ...
गुरु जीवन है
कविता

गुरु जीवन है

रूपेश कुमार चैनपुर, सीवान (बिहार) ******************** विश्व मे सबसे पहले पूजें जाते है गुरु, विश्व मे सबसे महान होते है गुरु, गुरु बिन ज्ञान कि कल्पना नही कि जाती, गुरु बिन मानवता का कोई अस्तित्व नही होता, गुरु हमें ज्ञान कि शिक्षा, दीक्षा देते है, गुरु हमारे सपनों को हमेशा साकार करते है, जीवन के सबसे पहले गुरु माँ-बाप होते है, जीवन के सबसे पहली पाठशाला हमारी घर होती है, सबके लिए गुरुओं कि जरुरत होती है, भले शिक्षा हो या कला, खेल, अभिनय, गुरु बिन कुछ नही है सकारमय, गुरु बिन जीवन है अंधकारमय, गुरु बिन जीवन है अशिक्षित, गुरु बिन जीवन है पशुओं के समान, जहां गुरु नही होते वहाँ बुद्धि नही होती, जहां गुरु नही होते वह जगह जंगल के समान है, गुरु से ज्ञान कि उत्पति होती है, ज्ञान से विज्ञान, साहित्य, कला, अभिनय, समाजिक रहन सहन कि उत्पति हो...
हे गुरु!
कविता

हे गुरु!

डॉ. सरोज साहू भिलाई, (छत्तीसगढ़) ******************** मन के अंधेरे रौशन करते, अज्ञानता में प्रकाश भरते, शब्दों के सहारे चलना सीखाते हो..!! हे गुरु तुम ही तो मार्ग बताते हो..!! अटक गया जो कहीं, भटक गया जो कभी, मोह जाल से निकलना सीखाते हो..!! हे गुरु तुम ही तो मार्ग बताते हो..!! बैर भाव भूला कर, भेद भाव मिटाकर, प्रेम भाव भरना सीखाते हो जीवन सरल बनाते हो..!! हे गुरु तुम ही तो मार्ग बताते हो..!! कदम-कदम बढ़ाकर, सफलता की सीढ़ी चढ़ाकर, शिखर पर पहुंचाते हो..!! हे गुरु तुम ही तो मार्ग बताते हो..!! हो कर हमसे दूर, महान रत्नों के बीच, अपनी कमी का अहसास कराते हो, निराकार हो कर भी, ज्ञान को साकार बनाते हो..!! हे गुरु तुम ही तो मार्ग दिखाते हो..!! साथ नहीं फिर भी, सम्बल दे जाते हो, इन भयावह परिस्तिथियों से लड़ना सीखाते हो..!! हे ग...
गुरु महिमा
कविता

गुरु महिमा

नन्दलाल मणि त्रिपाठी गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** गुरु जीवन आधार गुरु आत्म बोध गुरु कर्म धर्म गुरु मर्यादा मर्म गुरु तमश का प्रकाश।। गुरु नीति नियत का आशीर्वाद गुरु ब्रह्म गुरु देव गुरु आदि अनंत जीवन सिद्धान्त।। गुरु ज्ञान गुरु जीवन मार्ग गुरु महिमा का मानव गुरु मानवता का मूल्य संस्कृति सांस्कार।। गुरु संकल्प है गुरु गुरु साध्य साधना आराधना ईश वंदना गुरु स्वर गुरु अन्तर्मन गुरु आस्था विश्वास।। गुरु ईश्वर मार्ग है गुरु ईश्वर साक्षात गुरु प्रत्यक्ष प्रमाण है प्रथम वंदन पूजा पात्र है।। गुरु काल प्रवाह है गुरु नैतिकता आचरण व्यवहार है।। गुरु अहं भाव गुरु शिष्य की पहचान है गुरु द्रोण है गुरु परशुराम है गुरु विशामित्र गुरु राम कृष्ण परमहंसः आदि अनादि है।। अर्जुन भीष्म राम विवेका का ईश्वर वरदान है।। गुरु ब्रह्म ब्रह्मा ब्रह्मांड ...
गुरू चरणों मे  समपिॅत
कविता

गुरू चरणों मे समपिॅत

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** गुरू चरणों मे बहती अमृत धार जन-जन का अज्ञान मिटाकर गुरू दिखाते सच्ची राह हैः बरसती है जिस पर गुरू कृपा उनको देते है गुरू ज्ञान अपार एक लश्य गुरू भेदन हैं सुखमय हो सारा संसार गुरू चरणो में बहती अमृतधार पा जाएं वो भव सागरपार ज्ञान ज्योति हम सब पाएं खूद जलकर करतै है सपने साकार गुरू चरणोकी अनूकंपा से सत्य पथ पर बढते जाए गुरू चरणो मे बहती अमृतधार कभी न थकै कभी न रूकै हो आभायमान सारा संसार तपती धूप ढ़लती ये छाया जब पाये आश्रय ये संसार झुके ये नतमस्तक "मोहन" गूरू चरणो मै हो भवसागर पार परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी जन्म : २७ मई १९६५ निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान सम्प्रति : प्राध्यापक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वर...
घौंसला
कविता

घौंसला

सन्तोषी किमोठी वशिष्ठ रूद्रप्रयाग (उत्तराखंड) ******************** इक चिड़िया घूमती बार-बार, घर आँगन अर द्वार। रोज पिताजी दाना डालते माँ पानी की धार।। चिड़िया रोज़ सबेरे आकर कहती है उठ जा गुड़िया रानी। में कहती रूक जा महारानी।। चिड़िया का घौंसला था दूर घौंसले आज पिताजी घर में ही ले आये। चिड़िया रानी को घौंसले बहुत सुहाये।। अपनी सखी सहेलियों को घर ले आई। आज खुशी से फूली न समाई।। सावन की घनघोर घटाएँ हैं छाई। मेरे घर आँगन चिड़िया चहचहाई, पिता जी की मेहनत रंग लाई।। मुझे इक नयी राह है दिखाई, इक चिड़िया घूमती बार-बार। मेरे घर आँगन अर द्वार।। खुशहाली से है चिड़िया का परिवार। प्रभात की बेला पर मुझे पुकारती बार-बार।। वो भी दाना चुगने जाती में भी, पापा मम्मी के आस पास मंडराती, उड़ान जब ये भरती है, इक नयी सीख मिलती है हर बार। कितना सुन्दर है चिड़िया का घर द्वार।। ...
हनुमत्कृपा
भजन

हनुमत्कृपा

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** भक्त है हनुमान जी हैं दयालु बहुत, अपने भक्तों की चिंता वे करते सदा, उनके भक्तों को जग में सताते हैं जो, ऐसे दुष्टों पे चलती है उनकी गदा। भक्त... उनकी महिमा उन्ही को सुनाने के मित, उनके भक्तों ने कुछ सिद्ध मंदिर चुने, पूर्ण निर्विघ्न उनका ये संकल्प हो, इसलिए भक्तों ने ताने बाने बुने। आस्था जिनकी हो हनु के चरणों मे दृढ़, उनके मारग की कांटे वे चुनते सदा। भक्त... भक्तों को तीव्र गर्मी सता थी रही, हनु ने मेघों को आदेश था दे दिया। उनके आदेश को शीश धर मेघों ने, पाठ के दिनों मौसम सुहाना किया। झांक अंतर में सब कष्ट हरते है वो, ये ही हनुमान जी की निराली अदा। भक्त... राम सुमिरन करो, नित चालीसा पढ़ो, मन मे हनुमत की भक्त्ति पनप जायेगी। भक्ति में डूब पाया अगर तेरा मन, जग की कोई भी सुविधा नहीं भायेगी। कूप से निकलकर ...
धरती का स्वर्ग
कविता

धरती का स्वर्ग

दीप्ता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मत काटो तुम ये पहाड़, मत बनाओ धरती को बीहाड़। मत करो प्रकृति से खिलवाड़, मत करो नियति से बिगाड़।।१।। जब अपने पर ये आएगी, त्राहि-त्राहि मच जाएगी। कुछ सूझ समझ न आएगी, ऐसी विपदाएं आएंगी ।।२।। भूस्खलन और बाढ़ का कहर, भटकोगे तुम शहर-शहर। उठे रोम-रोम भय से सिहर, तुम जागोगे दिन-रात पहर।।३।। प्रकृति में बांटो तुम प्यार, और लगाओ पेड़ हजार। समझो इनको एक परिवार, आगे आएं हर नर और नार।।४।। पर्यावरण असंतुलित न हो पाए, हर लब यही गीत गाए। धरती का स्वर्ग यही है, पर्यावरण संतुलित यदि है।।५।। निर्मल नदिया कलकल बहता पानी, कहता है यही मीठी जुबानी। धरती का स्वर्ग यही है, पर्यावरण संतुलित यदि है।।६।। परिचय :- दीप्ता नीमा निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरच...
तुम से नज़र मिली
कविता

तुम से नज़र मिली

कु. आरती सिरसाट बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) ******************** तुम से नज़र मिली बाग में कलियां खिलीं रंग बदलने लगा आकाश सुनहरा श्रंगार करने लगी वसुंधरा चमकने लगें पीपल के पत्ते सजे है मँजिल से खूबसूरत रस्ते तुम से नज़र मिली शब्दों ने अपनी जुबां सिली बोलने लगी खामोशी मौसम में भी छाने लगी मदहोशी होने लगी दिल की बातें करने लगी यादें मुलाकातें तुम से नज़र मिली बाग में कलियां खिलीं खिल उठा हो जैसे बचपन मेरा लगने लगा सारा जहान मेरा पलकों पर तुम्हें सजाना है काजल नही आँखों में तुम्हें बसाना है तुम से नज़र मिली आँखें ये हो गयी गीली जागने लगी रातें प्यारे वो पल सतातें अंनत प्रेम है तुम से, इसमें मेरी ख़ता नही किताबों में छूपाने लगी हूँ आँसू है या स्याही पता नही तुम से नज़र मिली खुद को भी मैं भुली बस गये ध्यान में तुम बन गये प्राण तुम आ गयीं हो जैसे पत्थरों ...
शिव पर्व हरेला
कविता

शिव पर्व हरेला

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** पर्व हरेला कुमाँऊ का, मनाते हैं उत्तराखंड में। निवास जिन श्री महादेव का, विराजते वह कैलाशखंड में।। घर ससुराल महादेव का, है जब पुण्य उत्तराखंड में। तभी हरेला पवित्र सावन का मनाते हैं हम उत्तराखंड में।। प्रतीक हरेला हरियाली का, सदा सुसमृद्धि सूचक है। ब्रत पूजन उमा-महेश्वर का, जीवन समृद्धि सूचक है।। स्वागत सावन हरेले का, आरंभ सप्तदिन पूर्व करते हैं। श्रद्धा से सप्तधान्य का, गृह में बपन सप्तदिन पूर्व ही करते हैं।। स्वरूप जिस तरह धरा का, हरा भरा सावन में होता है। उसी तरह आशीष महेश्वर का, फलीभूत जीवन में होता है।। पूजन विशेष श्री महादेव का, हरेले से लोग यहां पर करते हैं। जन-जीवन शिवार्चन का, जिया लोग यहाँ पर करते हैं।। महापर्व यह देवभूमि का, प्रतिवर्ष श्रद्धा से हम मनाते हैं। हो कल्याण समस्त भारतभूमि का, शिव ...
आस्था और विश्वास
कविता

आस्था और विश्वास

गीता देवी औरैया (उत्तर प्रदेश) ************* इस जगत की यह सच्चाई, मिथ्या ना हो कोई आस। हर रिश्ते की है मजबूती, दो शब्द आस्था और विश्वास।। सच्ची आस्था का यह सत्य, न मानो अगर तो है पत्थर। कर लिया दृढ़ विश्वास तो मानव, निर्मित हो उठता है ईश्वर ।। अटूट प्रेम की सुंदर आस्था, एक पत्नी की पति के लिए। जीवन भर बना रहता रिश्ता, सच्ची विश्वसनीयता के लिए।। गुणवान बिटिया करती आस्था, जन्म देने वाले अपने पिता पर भेज देते हैं लाडली को अपनी, हेतु शिक्षा सिर्फ विश्वास पर।। अबोध शिशु को भी है विश्वास, रहता उसको अपने तात पर। हवा में उछाले पुत्र को अपने, आस्था अटूट पुत्र की पिता पर। अभिभावक अपने बच्चों को, छोड़ देते हैं आस्था के सहारे। गुरु देंगे सुशिक्षित प्रगाढ़ ज्ञान, दृढ़ विश्वास कभी ना हारे ।। जीव के लिए ईश्वर ने , दो शब्द बनाए हैं अनमोल। जिए सरलता से पृथ्वी पर ...
बिटिया की बिदाई
कविता

बिटिया की बिदाई

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** नन्हें दोनों हाथों से कंकू के छापे अपने पिता को लगाती फिर लिपट के रोती विदा होते ही सबकी आँखों की कोर में आँसू आ ठहरते और आना सुखी रहना कह ढुलक जाते आँसू रिश्ता आँखों और आंसुओ के बीच मन का होता जो डबडबाए नैना अंदर से मन को रुलाता पिता से पूछ कर बिदा होती लगने लगता आसुंओं का बांध फूट गया हो सारी बातें बचपन से लेकर बड़े होने की घूमने लगती आँखों के सामने बिदा के बाद घर आने पर खाना बिना आसूं गिरे खाया हो ये कभी भी ना हुआ दर्द का सच पिता को कुछ ज्यादा ही महसूस करता रोता मन किसे कहे बिटियाँ की बिदाई का दर्द कंकू के छापे जिन्हें देखकर आँसुओं से डबडबाने लगते सूने नयन। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल स...
आईना
कविता

आईना

रामकेश यादव काजूपाड़ा, मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** आईना खुद देख,तब दिखा आईना, तरफदारी में उतरता नहीं आईना। मेरे चेहरे पे पड़ जो रही झुर्रियां, नहीं छुपा सकता उसे कोई आईना। टूटकर बिखर जाना, गवारा इसे, झूठ का पैर छूता नहीं आईना। क्या जाने भेद, गोरे -काले का ये, जैसा जो दिखता, दिखाता आईना। सोने- चांदी के फ्रेम में भले जड़ दो, किसी ऐब को छुपाता नहीं आईना। फितरत समझता है हर आदमी का, सच से बे-खबर नहीं रहता आईना। बे-आबरू होकर घूमते जो भी जहाँ, उन्हें नज़र नहीं आता वही आईना। गला कोई दबाता झूठ आज बोल, खुद सलीब पे है चढ़ जाता आईना। फायदे के लिए हम तोड़ रहे कायदा, पर अपना फर्ज़ नहीं भूलता आईना। वतन के लिए जिवो, वतन पर मिटो, यही मंत्र हमको सिखाता आईना। परिचय :- रामकेश यादव निवासी : काजूपाड़ा, कुर्ला पश्चिम, मुंबई (महाराष्ट्र) शिक्षा : (एम.ए., बी. एड) लेखन विधा :...
बूंद-बूंद जीवन बरसे
कविता

बूंद-बूंद जीवन बरसे

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** बूंद-बूंद जीवन बरसे, देख-देखके मन तरसे, जब जब बारिश होती, आसमान बादल गरजे। जल जीवन का आधार, कर ले जल से तू प्यार, अमृतमय होता है जल, महिमा होती है अपार। अद्भुत द्रव्य कहलाता, शीतलता तन दिलाता, क्रोध अगर जब आये, पल में ही शांति लाता। किसान रहता है निर्भर, बहता नदियों में झरझर, बच्चे नहाते खुशी-खुशी, पसीनों से हो तर बतर। नदी, नाले और हैं सागर, जल भरे देता बड़ा गागर, जल लाता खुशियां हजार, हर जन को जल से प्यार। बूंद-बूंद जीवन बरसता, लेकर चले हल किसान, जल होगा तो कल रहेगा, जल बचत को रहे तैयार। बूंद-बूंद जीवन बरसेगा, आयेगी बागों में बहार, पपीहा बोलेगा वन में, आएं अनेकों ही त्योहार। जल बरसेगा जब आंगन, मन में उठे प्यार की लहर, बादल फट जाते हैं कभी, टूट पड़ेगा तब एक कहर। बूंद-बूंद जीवन ब...
खत का क्या महत्व
कविता

खत का क्या महत्व

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** क्या होते थे उस समय के खत हमारे और तुम्हारे लिए। पर समय परिवर्तन ने किया कुछ इस तरह का खेल। बंद होने लगे पत्रों को लिखने का वो दौर। क्योंकि आ गये है अब संचार के नये उपकरण। जिसके कारण स्नेह प्रेमभाव और आत्मीयता मिट रही है।। क्या दौर हुआ करता था जब दिलकी बातें कहने। सुख दुख और बातें बताने के लिए हाथ से खत लिखते थे। और लिखने से पहले बहुत सोचा करते थे। फिर सब समाचारों को क्रमश: खत में लिख पाते थे। और खत लिखते हुए उन्हें अपने करीब पाते थे।। खास बात तो ये होती थी। कि लिखने और पाने वाले को। खत आने का इंतजार रहता था। इसलिए डांकिया की प्रतिक्षा करते थे। और घर के अंदर बहार बारबार आके देखते थे।। खत को पाकर और पढ़कर जो जो चैंन और सकून मिलता था। उसे हम व्यां नहीं कर सकते बस ख़तको दिलसे लगाते थे। और उसे बार बार पढ़...
है लालसा यही अब मेरी
कविता

है लालसा यही अब मेरी

आचार्य राहुल शर्मा फिरोजाबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** लावणी छंद में कविता है लालसा यही अब मेरी .. बादल बनकर बरसूँ मैं। सबके ताप हरण मुझसे हों .. सेवा करके हरसूँ मैं।। मेढक मोर पपीहा खुश हों .. देख मुझे ही झूम उठें। धरती की मैं प्यास बुझाऊँ.. माथा मेरा चूम उठें।। १ सावन का बादल बन जाऊँ.. रिमझिम-रिमझिम बरसूँ मैं। गीला कर दूँ सूखे को यूँ.. मौसम ठंडा करदूँ मैं।। मैं भी सागर से जल लेके.. आऊँ-जाऊँ सावन में। मेरा भी मन मीत खड़ा हो.. मुझको देखे आँगन में।। २ पानी के बिन सूना सूना.. जीवन मरता रहता है। मेढक अपनी बोली बोले.. मोर पपीहा कहता है।। पलता जीवन सब जीवों का.. बादल जल बरसाते हैं। आमों पर बैठे तोते भी ... मीठू मीठू गाते हैं।। ३ मैंने एक लालसा पाली .. बादल बनना मुझको है। नभमंड़ल में उड़ता जाऊँ.. दृश्य देखना मुझको है।। बादल भी सेवा करते हैं.. बारिश...
रूठी हुई महफ़िल
कविता

रूठी हुई महफ़िल

कीर्ति सिंह गौड़ इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** एक महफ़िल में तेरा इन्तज़ार करते-करते सुबह हो गई, जो नूर मेरे चेहरे पर था उस नूर से मेरे चेहरे की कलह हो गई। सितारों वाला दुपट्टा ओढ़ा था मैंने तुम्हारे लिए, वो दुपट्टा तुमसे रूठ गया और उसके सितारों की चमक भी बेज़ार हो गई। दिल में अरमान लिए तेरी ख़ातिर सज कर महफ़िल में आए थे हम, रूठ गईं मेरी चूड़ियाँ भी तुमसे और उनकी खनक कम हो गई। मैंने वही पायल पहनी थी जो तुमने मुझे तोहफ़े में दी थी, छम-छम करना भूल गईं वो भी और उदास हो गईं। आँखों में काजल डाल बिंदिया सजाई थी मैंने माथे पर, काजल मेरा आँसुओं में धुल गया और बिंदिया भी तुमसे नाराज़ हो गई। क्यूँ मेरी मोहब्बत को महफ़िल में रुसवा किया तुमने इस तरह, कि वो सजी हुई महफ़िल तेरे इंतज़ार में तबाह हो गई। उस महफ़िल में तेरा इंतज़ार करते-करते .....। परिचय :...