आक्रोश की भट्टी
भीमराव झरबड़े 'जीवन'
बैतूल (मध्य प्रदेश)
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चल रहा मंथन विचारों में,
जल उठी आक्रोश की भट्टी।।
सलवटों ने डाल कर डेरा।
मौन का ऊँचा किया घेरा।।
भृकुटियों ने तन कटारी-सा,
सुप्त हर दायित्व को टेरा।।
वादियों का देखकर तेवर,
शांति का संदेश है कट्टी।।
धमनियों में बह रहा लावा।
कर रहा विस्तार का दावा।।
छोड़ दो बारूद के गोले,
सूरमा करते न पछतावा।।
वंचना के वार क्या सहना,
खोल दो हर जख्म से पट्टी।।
नैन में है क्रोध की ज्वाला।
शत्रु लगता काल से काला।।
चीख कर सिंदूर कहता है,
ठोंक दो आतंक पर ताला।।
सिर उठाएगा नहीं आगे,
तोड़ दो दुर्दांत की नट्टी।।
परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन'
निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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