जय-जय हे बजरंगबली
प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला, (मध्य प्रदेश)
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सदा सहायक देव प्रबलतम, परमवीर हनुमाना।
संकटमोचन, शत्रु विनाशक, जय-जय दयानिधाना।।
मातु अंजनालाल शौर्यमय, असुरों को संहारें।
रामकाज करने को आतुर, पाप जगत के मारें।।
सूर्य निगलकर बने अनूठे, वायुपुत्र देवंता।
महावीर सुग्रीव सहायक, करें दुःखों का अंता।।
भयसंहारक, मंगलकारी, पूजन बहुत सुहाना।
संकटमोचन, शत्रु विनाशक, जय-जय दयानिधाना।।
दहन करी लंका हे ! देवा, तुम हो प्रलयंकारी।
परम शक्तियाँ तुम में रहतीं, बनकर के साकारी।।
हे हनुमंता, हे भगवंता, तेरा रूप निराला।
हर दिन है उजला हो जाता, हो कितना भी काला।।
जीवन सुमन खिलाते हरदम, जग ने तुमको माना।
संकटमोचन, शत्रु विनाशक, जय-जय दयानिधाना।।
रामदूत, अतुलित बलधामा, जीवन देने वाले।
सब कुछ तुम गतिमय कर देते, काट व्यथा के जाले।।
सीता की कर खोज बन गए, तुम तो एक कहानी।
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