राजनीति की चिल्ल पों
विजय गुप्ता "मुन्ना"
दुर्ग (छत्तीसगढ़)
********************
राजनीति प्रवक्ता के बोल, रटे रटाए दिखते हैं।
आड़ा तिरछा पूछ लिया तो, प्रति प्रश्न ही करते हैं।
बोलने से कमाई होती, पर दिशाहीन चलते हैं।
संस्कारी भारत की गरिमा, मचा चिल्ल पों हरते हैं।
अच्छा बोलने वाले का तो, हुनर दिलाता है मौका।
गलत बात टकरा जाए, वक्ता जड़ते छक्का चौका।
बस तारीफों के पुल बांधों, भले नहीं सोना चोखा।
गुजरे समय में खूब जिनसे, पार्टी ने खाया धोखा।
उन चतुरों की खातिर देखो, बस अंगार चमकते हैं।
संस्कारी भारत की गरिमा, मचा चिल्ल पों हरते हैं।
वकील कानूनी भाषा से, रखें तर्क वितर्क कुतर्क।
अदालत फैसला रहे एक, पर वक्ता दलील में फर्क।
अपने मतलब का जोड़-तोड़, दिखाकर ही पाते हर्ष।
आरोप अपराध अंतर में, करते कई बार विमर्श।
कागज सबूत फोटो अनेक , पैरवी में दमकते हैं।
संस्कारी भारत की गरिमा, मचा चिल्ल पों हरते ह...