तुम्हारा अद्भुत है संसार … महाश्रृंगार छन्द में
गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण"
इन्दौर (मध्य प्रदेश)
********************
महाश्रृंगार छन्द
कहीं पर कितने पहरेदार, कहीं पर एक न चौकीदार।
कहीं पर वीरों की हुंकार, कहीं का कायर है सरदार।।
कहीं पर बूँद नहीं सरकार, कहीं जलधार मूसलाधार।
कहीं पर खुशियों की बौछार, कहीं पर दुख के जलद हजार।।
कहीं पर अँधियारे की मार, कहीं पर उजियारा आगार।
कहीं पर गरमी है गरियार, कहीं पर सर्दी का संहार।।
बदलते मौसम बारम्बार, देख कर लीला अपरम्पार।
कह उठा मन यह आखिरकार, तुम्हारा अद्भुत है संसार।।१।।
किसी का वेतन साठ हजार, किसी को मिलती नहीं पगार।
किसी के भरे हुए भण्डार, किसी का उदर बिना आहार।।
किसी को सौंपी शक्ति अपार, किसी का अंग-अंग बीमार।
किसी को मिले अकट अधिकार, किसी का जीवन ही धिक्कार
किसी की नाव बिना पतवार, किसी के हाथ बने हथियार।
किसी का सत्य बना आधार, किसी का झूठ पा रहा सार।।
...