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पद्य

हरियाली
कविता

हरियाली

सुनील कुमार अवधिया डिण्डौरी (मध्य प्रदेश) ******************** चारों और घटा छाई, बरस रहा है पानी। अति सुंदर छटा वनों में छाई, दिख रही हरियाली।। कितनी सुंदर शोभा छाई, मधुर-मधुर निराली। चारों ओर घटा छाई, अति सुंदर हरियाली।। चहचहा रही मधुर गौरैया, हरियाली की रानी। सूखे पेड़ हरे हो गए, चारों ओर घनी छाई हरियाली।। नदी नालों में बह रहा है, देखो कितना पानी। वर्षा की बूंदों से धरा, हो गई खूबसुहानी।। खेतों में हलचल रहे, दिखे जहां हरियाली। रिमझिम-रिमझिम बरस रहा है पानी, सावन की रितु है आयी मस्तानी।। मनमोर नाच रहा है बारिश में मेरा, चुग रही चिड़िया आंगन में दानापानी।। घुमड़़-घुमड़़ के बादल छाये। दामनि दमक रही दमकाये।। मोर पपीहा नाघ रहे है। आनंदित हो सब हरषाये।। सावन की रितु है मस्तानी। सबको लगे बड़़ी सुहानी।। परिचय :  सुनील कुमार अवधिया 'मुक्तानिल' निवासी : गाड़ा...
संस्कृति
कविता

संस्कृति

आयुषी दाधीच भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** संस्कृति शब्द में ही, संस्कृति का अर्थ समाया है, भारत देश की है कुछ खास संस्कृति, मैं क्या बताऊ, इसकी तो अपनी ही पहचान है। खाने से लेकर पहनावे तक, सब में है विभिन्नता, त्योहारों की तो बात है निराली, भाषा की तो कहावत है जानी, 'कोस-कोस पर बदले पानी, चार कोस पर बानी।' भारत देश की है कुछ खास संस्कृति, मैं क्या बताऊ, इसकी तो अपनी ही पहचान है। जाति, धर्म का भेद न जाना, सबको अपना है माना, मान सम्मान में सबसे ऊपर, पधारो नी म्हारे "देस" कहकर सबको अपनी ओर बुलाएं, ऐसे भारत देश की है कुछ खास संस्कृति, मैं क्या बताऊ, इसकी तो अपनी ही पहचान है। परिचय :-  आयुषी दाधीच शिक्षा : बी.एड, एम.ए. हिन्दी निवास : भीलवाड़ा (राजस्थान) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलि...
समता की बातें
कविता

समता की बातें

विवेक नीमा देवास (मध्य प्रदेश) ******************** हर घर में नारी अपने ख्वाबों का आकाश चुने पाने को अपनी हर मंजिल अपना दृढ़ विश्वास बुने। जीवन की हर खुशियों पर उसको नित अधिकार मिले बाबुल हो या आंगन प्रिय का आदर और सम्मान मिले। सूनी राहों पर बैठे गीदड़ चरित्र हीन तिनका भर हैं जो दंभ भरे अपने पौरुष का क्या सच में भी वो नर हैं? कदम-कदम पर अबला को लूट रहे जो अभिमानी दुःशासन से दानव देखो राह सरे करते मनमानी। जन्मी बेटी है बोझ बढ़ेगा ये सोच नहीं बर्बादी है करते हैं जो गर्भ में हत्या परिजन वे भी अपराधी हैं। नारी से ही जन्मा नर है भूल रहा क्यों ये सच्चाई माँ, बहन, पत्नी और बेटी संग रही बनकर परछाई। उसे भी हक है पंख फैलाए आसमान में उड़ने का पाने को बेटों सा मान सदा अपनों से भी लड़ने का। दिल्ली हो या राहें मणिपुर की खौफ न हो नारी के मन में दहेज प्रताड़न...
सोशल मीडिया वाला प्यार
कविता

सोशल मीडिया वाला प्यार

शैलेष कुमार कुचया कटनी (मध्य प्रदेश) ******************** ऑनलाइन मुलाकात फिर नंबर मिला, बात हुई ढेरो फिर मिलने की जगी आस......! बारिस का दौर मिलने की चाह, तड़प थी इतनी नजरो को था उनका इंतजार......! चाय पकौड़े छोड़कर मोहब्बत की भूख, चढ़ा जो नशा हमे उतरता वो कहा जल्दी......! प्यार हो जाये तो बारिस और ठंड लगती अच्छी, वो दिन भी आया जब चलकर वो आयी......! काश बारिस भी आती तो मोहब्बत हमारी निखर जाती, खैर मिलकर कुछ उसने और सब कुछ हमने कहा......! नही थी आगे और बात की जरूरत, देखकर उसकी उम्र हमे निकलना ही सही लगा......! फिर पहुँचे दोस्तो की महफ़िल दर्द हमारा बाहर आया बिन देखे मोहब्बत न करना, जिसको कहाँ था बाबू-सोना वो निकली मोहल्ले की एक अम्मा......!! परिचय :-  शैलेष कुमार कुचया मूलनिवासी : कटनी (म,प्र) वर्तमान निवास : अम्बाह (मुरैना) प्रक...
खुद शर्म आज शर्मिंदा है
कविता

खुद शर्म आज शर्मिंदा है

डाॅ. रेश्मा पाटील निपाणी, बेलगम (कर्नाटक) ******************** विपक्ष का मुद्दा मणिपुर सरकार का राजस्थान सब राज नेताओं ने मील के कर दिया इस देश का बंटाधार।। जनता गयी तेल लगाने, जिसे जीना है जीए, जिसे मरना है मर जाए बस मेरी प्यारी कुर्सी कभी ना जाए बस यही हमारी तमन्ना और यही हमारा एजेंडा भाई जो कुछ हो रहा है उस पर तो जनता शर्मिंदा है हम नही हम ने तो कब की शर्म बेच खाई तभी तो हम राजनेता है भले ही खुद शर्म आज शर्मिंदा हो हम बेशर्मो की तरह ही बयान बाजी करेंगे दुनिया मे भला कोन दूध का धुला है, जो हम पे आरोप धरेंगें जनता के सेवक बस कहने की बात है साहब असलियत मे तो हम सम्राटों के भी सम्राट है भला हमे काहे का डर दुनिया में नही बची अक्ल दो हमारा क्या दोष? जनता को नही समझ आती बात तो हम क्या करे हम सब तो कब से चीख-चीख कहे रहे है की हम झूठे मक्कार है बस...
मैं मुर्दों के शहर में रहती हूँ
कविता

मैं मुर्दों के शहर में रहती हूँ

डॉ. अर्चना मिश्रा दिल्ली ******************** मैं मुर्दों के शहर में रहती हूँ जहाँ सिर्फ़ आरोप और आरोप सिर्फ़ और सिर्फ़ इल्ज़ाम स्त्री मन क्या चाहता है कोई परवाह नहीं कोई इतना भी बुरा कैसे हो सकता है कोई पास फटके ही ना सिर्फ़ और सिर्फ़ आरोप दिमाग़ जैसे फट के कई टुकड़ों में विभाजित हो गया क्या क्या उम्मीद उस से सब बेकार जैसे वो सिर्फ़ एक सड़ी हुई बीमार लाश सिर्फ़ बदबूदार इतनी सड़न की जहाँ जायें सब जगह बीमारी फैला आयें वो इतनी बेबस है आज सबके हाथ में ज़ुबान रूपी पत्थर कैसे-कैसे कहाँ-कहाँ फेकें सबने खून के रिश्तें भी बेकार किसी को नहीं वो स्वीकार ऐसे में कहाँ वो जाएँ कहाँ अपना सिर छुपाये सबके लिए अब वो बेकार नहीं किसी को वो स्वीकार कोई तो, कहीं नहीं किसी का नामोनिशान जिसे वो हो एक प्रतिशत भी स्वीकार मरी हुई लाश सी पड़ी है, बदबू ही बदबू, कटे फटे अंग जमा हुआ...
नंदी
कविता

नंदी

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** शिव है सत्य, नंदी हैं धर्म नंदी के बिन शिव अराधना है व्यर्थ नंदी को हमने छोड़ दिया, गौ वंशों का संहार किया भूख प्यास से तड़प तड़प, सड़कों पर दम तोड़ रहे ये कैसी पूजा है शिव की ये कैसे भक्त बने शिव के ??? बछड़ो को अधिकार है जीने का, नंदी बन पूजे जाने का कैसे कहलाएंगे सनातनी, अपनी ही संस्कृति भूल रहे !! नंदी की विह्वल पुकार सुन, दिल रोता पल प्रतिपल, इनके अश्रु विध्वंस बने, विकराल, प्रचंड, विनाश बने जो लील रहा है जन-जीवन ये आँसू वो सैलाब बने! हे मनुज उठो हे जन जागो, रोको ये ध्वंस, विनाश, प्रलय, मानव के भीतर दानव का अब उठ कर के संहार करो नव चेतना नव विज्ञान से संचित करो अनमोल है हैं ये नंदी ही नंदीश्वर हैं, यही साधना नील कंठ की, नंदी ही ना बच पाए जो कैसे होगा फिर शिव पूजन!! परि...
पर्यावरण के बनें हम पहरेदार
कविता

पर्यावरण के बनें हम पहरेदार

महेन्द्र साहू "खलारीवाला" गुण्डरदेही बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** धरणी स्वच्छ हो, स्वच्छ हो अम्बर, हरियाली फैलाना है। पेड़-पौधों की करें सुरक्षा, हमें जागरूकता लाना है। पेड़-पौधों से हम सबकी, सांसें गतिमान है। आओ पेड़ लगाएं, इनसे ही हम सबका प्राण है। सांसों को सांसों से है जोड़ना, कुंठा की कड़ी को है तोड़ना। आओ मिलकर हम पेड़ लगाएं, धरा हरियाली कर जाएं। पड़ रही है सांसे कम, हो रहा है चहुंदिशी दंगल। हरा - भरा हो जंगल, तब हो पाएगा जीवन मंगल। यदि हर एक आदमी ख़ुद से एक-एक पेड़ लगा जाए। उनका जीवन हो सार्थक, जीवन सफल बना जावें। पर्यावरण के बनें हम पहरेदार, यही जीवन का आधार। इनसे मुंह ना मोड़े हम, नाता इनसे जोड़े हम। परिचय :-  महेन्द्र साहू "खलारीवाला" निवासी -  गुण्डरदेही बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ...
बढ़ती दुनिया
कविता

बढ़ती दुनिया

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** आज का आधुनिक युग डिजीटल युग में बेहिसाब सा बदल गया बेहिसाब लोगों का बेहिसाब दैनिक कामकाज डिजीटल युग की प्रक्रियाओं में सरल कर रहा डिजीटल का भरोसा बढ़कर सम्पर्क अब खूब बढ़ सा रहा कामकाज का रूप बेहिसाब सबका एक नया अध्याय खड़ा कर रहा डिजीटल की दुनिया में कामकाज का नमूना खूब बदल गया शिक्षित क्या अशिक्षित हाथ से लिखने की आदत से हट रहा कामकाजी रूप को डिजीटल खूब कर रहा हाथों के कामकाज को विराम करने में भलाई समझ रहा डिजीटल के भरोसे दैनिक काम मानव खूब लगन से कर रहा कलम पकड़ने का मन प्रायः लोगो का नहीं रहा कागज में लिखने का प्रायःमन हट सा गया डिजीटल में मानव कामकाज का रूप खूब सरल करता ख़ुद स्मार्ट और डिजीटल कर रहा समय की बचत करता डिजीटल में मानव का सबसे सम्पर्क चंद मिनट में हो रहा रोजगार पर्यटन व्या...
हम प्रभु जी की कठपुतली हैं
भजन

हम प्रभु जी की कठपुतली हैं

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** सबके जीवन के रक्षक हैं, कान्हा मुरली वाले। सदा बदलते धवल ज्योति में, जीवन के दिन काले। बीच भँवर में डोल रही है, हम भक्तों की नैया। तुम ही मेरे जीवन रक्षक, तुम ही नाव खिवैया। जीवन डोर हाथ है प्रभु के, प्रभु जी सदा बचाते। हम प्रभु जी की कठपुतली हैं, प्रभु जी हमें नचाते। भक्तों की जीवन नैया को, खेते स्वयं विधाता। भक्तों की रक्षा करने को, खुद रक्षक बन जाता। गज अरु ग्राह लड़े जल भीतर, अंत समय गज हारा। गज की रक्षा करने के हित, श्रीहरि बने सहारा। बन जाते हरि सबके रक्षक, करते सदा सुरक्षा। अपने भक्तों के जीवन की, हर पल करते रक्षा। रक्षक बनकर लखन लाल ने, चौदह बरस बिताए। मार दशानन, सिया सहित प्रभु, लौट अवधपुर आए। रक्षक बने, विभीषण के प्रभु, अपना दास बनाया। आया शरण विभीषण प्रभु की, लंकापति ...
राजनीति रोटी
कविता

राजनीति रोटी

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** राजनीति की रोटियां, जितनी चाहो सेंक। सत्य तथ्य रखते परे, निडर मानकर फेंक।। भ्रष्ट रोटी जो मिले, मानें खुद को शूर। पर होता इंसाफ है, होकर लज्जित दूर।। मुनि संतों के देश में, शैतानों का उत्पात। वनवास काल ’राम’ ने, दी चुन चुनकर मात।। काम किसी के आ सकें, खुल जाता था द्वार। अदभुत दधीचि दान था, केवल अब कुविचार।। चलता देश विवेक से, रखें सभी अभिमान। फिर मनचाहा तो नहीं, होता है गुणगान।। मुल्क नीति अवमानना, विचलित दिखे अनेक। सिर्फ भ्रम फैला रहे, रोटी लालच एक।। देश प्राण जब एक है, भारत माता आन। समान घटना नजर से, क्यों रहते अनजान।। बोली बहुत मुखर हुई, देते बात मरोड़। ’मुन्ना’ तर्क इस राह से, निकले कोई तोड़।। परिचय :- विजय कुमार गुप्ता जन्म : १२ मई १९५६ निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़ उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज द...
प्रीति गगरिया
गीत

प्रीति गगरिया

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** प्रीति गगरिया छलक रही है, भटक रहा हिय बंजारा। चातक मन निष्प्राण हुआ है, मरुथल है जीवन सारा।। प्रीत घरौंदा टूट गया है, करें चूड़ियाँ हैं क्रंदन। मौन पायलों की रुनझुन है, भूल गया है उर स्पंदन ।। कैद पड़ी पिंजरे में मैना, दूर करो अब अँधियारा। अवसादों में प्रीत घिरी अब, सहमी तो शहनाई है। कुंठित हुई रागिनी सरगम, प्रेम -वलय मुरझाई है।। अवगुंठन में छिपा चाँद है, पट खोलो हो उजियारा। जर्जर ये जीवन की नैया, हिचकोले पल -पल खाती। बहती हैं विपरीत हवाएं, भूले प्रिय लिखना पाती।। गूँगी बहरी दसों दिशाएँ, बहे आँसुओं की धारा। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीत...
औरत
कविता

औरत

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** जिसने जन्म दिया उसका मान नही है क्या? ममता की कंही सम्मान नही है जिस्म के लिए यह कैसे व्याभिचारी है औरत को औरत होने की लाचारी है खूब लगाते नारीवाद के नारे सभी क्या सम्मान दे पाये नर उन्हें अभी क्या? वो जीने के अधिकारी नही है औरत को औरत होने की लाचारी है समता का जब उनको अधिकार है क्यों रखते उनके प्रति दुर्व्यवहार है घात लगाकर बैठे क्यों शिकारी है औरत को औरत होने की लाचारी है क्यों उनको सब अधिकार देते नही बराबर का अधिकार क्यों देते नही क्यों कहलाई जा रही वह बेचारी है औरत को औरत होने की लाचारी है अब सम्मान और समता से जीये क्यो जीवन भर वह विष को पिये स्वाभिमान से जीने के अधिकारी है समता, स्वभिमान के वो अधिकारी है परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाच...
प्रकृति
कविता

प्रकृति

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** शब्दों को पूर्ण वीराम ना लगाओ शब्द, तार है मन सरगम का छंद अलंकारों से श्रृंगारित शब्द अवलंबन है जिव्हा का। कर, लेखनी, काली स्याही व्यंजन, परिमार्जन शब्दों का शब्द चमत्कृत, शब्द झंकृत शब्द-शब्द से कहानी है। स्वर व्यंजन से रचा गढ है परकोटा है अलंकारों का अंदर बाहर गिरि गव्हर है नव रसों की फुलवारी। व्यंग, राग का परी तोषण करते हास्य करें मनुहारी, क्रोध, शांत रस दर्शाते मानव मन के भाव को तू अकेला नहीं, कहता कोई अभिन्न मित्र बना लो शब्दों को। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से नि...
लहरें
कविता

लहरें

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** सदियों से चलती रहतीं, लगातार तुम धरती सी सूरज, चंदा, ग्रह और तारे, साथी, संगी हैं तुम्हारे पवन तुम्हारी रक्षा करती, धूप कलेवर चाँदी का देती वृक्ष तुम्हें पा हरिया जाते, और तीर गदगद हो जाते तुम धरती को जीवन देतीं, खेतों में धान उगातीं आत्मा में प्राण जगाकर, कृतज्ञता कर्ता को दर्शातीं अगाध नीर की नीली स्वामिनी तुम सा जीवन लासानी, तुम सा जीवन लासानी। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी. भाषाविज्ञान सर्टिफिकेट कोर्स : फ़्रेंच व गुजराती। पुनः मैं अपने देश को बहुत प्यार करती हूं तथा प्रायः देश भक्ति की कविताएं लिखती हूं जो कि समय की‌ मांग भी‌ है। आ...
सपनों का आसमान
कविता

सपनों का आसमान

संगीता दरक मनासा, नीमच (मध्यप्रदेश) ******************** ना बंदिशों की परवाह है ना बंदिशों की परवाह है, ना परंपराओं की जकड़न आत्मविश्वास का पहना, मैंने अचकन उम्मीद से भरे पंख मेरे, हौसलों से भरी उड़ान है , समेट लूँ आज,सारा जहां में कि साथ मेरे सपनों का आसमान है। ना मन को समझाऊं मैं, ना पग धरु पीछे में, ना ख्वाहिशों को अपनी छिपाऊँ में, काबिलियत अपनी सारे जहां को दिखाऊँ मैं। कि साथ मेरे सपनों का आसमान है। तारों के साथ आज, उजाले की बात करते हैं। काले अँधेरो पर आज रौशनी बिखेरते है। सपनों के आसमान में सूरज सा जगमगाते है, धरती के तिमिर को पल में हराते है। बस इतना सा अरमान है, साथ मेंरे आज सपनों का आसमान है। परिचय :- संगीता दरक निवास :  मनासा जिला नीमच (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानिया...
ख़्वाब जो नींद में देखा होगा
ग़ज़ल

ख़्वाब जो नींद में देखा होगा

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** ख़्वाब जो नींद में देखा होगा। जागकर सोचने से क्या होगा। आपके जो क़रीब आया है, जान पहचान का रहा होगा। जान पाया है हाल महफ़िल का, शख़्श वो रात भर जगा होगा। साथ चलकर कहीं बिछुड़ना फिर, इस ज़माने का सिलसिला होगा। जो निभाया गया है मुश्क़िल से, सख़्त वो दिल का क़ायदा होगा। पास आएगा छोड़कर सबको, साथ में जिसके वास्ता होगा। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास : अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति : शिक्षक प्रकाशन : देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान : साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्री...
माथे का सिंदूर
गीत

माथे का सिंदूर

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** रहे अमर श्रंगार नित्य ही, माथे का सिंदूर। जिसमें रौनक बसी हुई है, जीवन का है नूर।। जोड़ा लाल सुहाता कितना, बेंदी, टिकुली ख़ूब। शोभा बढ़ जाती नारी की, हर इक कहता ख़ूब।। गौरव-गरिमा है माथे की, आकर्षण भरपूर। नग़मे गाता है सुहाग के, माथे का सिंदूर।। अभिसारों का जो है सूचक, तन-मन का है अर्पण। लाल रंग माथे का लगता, अंतर्मन का दर्पण।। सात जन्म का बंधन जिसमें, लगे सुहागन हूर। नग़मे गाता है सुहाग के, माथे का सिंदूर।। दो देहें जब एक रंग हों, मुस्काता है संगम। मिलन आत्मा का होने से, बनती जीवन-सरगम।। जज़्बातों की बगिया महके, कर दे हर ग़म दूर। नग़मे गाता है सुहाग के, माथे का सिंदूर।। चुटकी भर वह मात्र नहीं है, प्रबल बंध का वाहक। अनुबंधों में दृढ़ता बसती, युग-युग को फलदायक।। निकट रहें हरदम ही ...
हां सब कुछ मेरा है पर
कविता

हां सब कुछ मेरा है पर

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** सूरज मेरा है, चांद मेरी है, हवा मेरा है, कुदरती दवा मेरा है, ये फूल, पवन पुरवाइयां मेरी है, मेहनत मेरे हैं, पर जमीन उनका है, हर नाजनीन उनका है, सर्वत्र घूम रहे हैं जहरीले सर्प और बीन उनका है, व्यवहार मेरा है, संस्कार मेरा है, सारे पाखंडों पर लूट जाने का अधिकार मेरा है, पर सारे नियम उनके हैं, जिनकी नजरों में हम तिनके हैं, भले बाजुओं में दम है, हमारे सीनों में गम है, उनके लिए लफंगे हम हैं, कीड़े मकोड़े, भिनभिनाती कीट पतंगे हम हैं, पर चिराग उनका है, झपट्टे मारता हर बाज उनका है, जंगल पहाड़ हमारे हैं, सद्व्यवहार हमारे हैं, नैतिक मूल्य, व्यवहार हमारे हैं, पर व्यवस्था में बड़ा आकार उनका है, तन हमारे हैं, मन हमारे हैं, जन हमारे हैं, खोट हमारा है, वोट हमारा है, पर सम्पूर्ण सत्ता उनका है...
सवेरा
गीत

सवेरा

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** जाग सखी री!उतर क्षितिज से आया सुखकर भोर। उदयाचल से झाँक रहा है, देखो शुभदे दिनकर। बादल अभिनंदन करते हैं, सूर्यदेव का हँसकर।। तुहिन कणों के अगणित मोती, बिखरे चारों ओर । जाग सखी री! उतर क्षितिज से, आया सुखकर भोर ।। देखो महकी सुभग वाटिका, लदी सुमन से डाली। पंचम स्वर में कूक रही है, कोयलिया मतवाली।। मन को आनंदित करता सखि! मधुप वृंद का शोर । जाग सखी री! उतर क्षितिज से, आया सुखकर भोर।। सरिता के तट चकवा चकवी, गीत प्रणय के गाते। बड़े सवेरे उठे बटोही, अपने पथ पर जाते।। नभ में ओझल हुआ सुधाकर, दिखता व्यथित चकोर। जाग सखी री! उतर क्षितिज से, आया सुखकर भोर।। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मो...
भक्त और भगवान
स्तुति

भक्त और भगवान

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** प्रभात वंदना में विनती, अरज सुन लो श्याम जी। भक्त और भगवान की लड़ाई है, अब तुझे सुनना ही पड़ेगा। भक्त की अरज सुन लो, श्याम जी यशोदा मैया के दरबार में, हाजिरी लगाउंगा। भक्त और भगवान की लड़ाई है श्याम जी, यशोदा के दरबार में हार जाओगे। भक्त और भगवान की लड़ाई है तुम्हें सुनना ही पड़ेगा। न सुनोगे तो श्याम जी जन्मो तक लड़ता जाऊंगा। भक्त की अपील सुन लो वरना राधा रानी से अर्जी लगाउंगा । जारी होगा तुम्हें सम्मन भक्त की विनती को सुनना पड़ेगा । भक्त की अरज सुन लो श्यामजी, यशोदा के दरबार में आना पड़ेगा। श्याम जी यशोदा के दरबार में ऐसी दलील दूंगा, भक्त की लड़ाई है, अब तो श्याम जी हार जाओगे। यशोदा के दरबार में रूक्मिणी जी से ऐसी अपील करवाउंगा, भक्त के पक्ष में होंगे सारे फैसले, मेरे श्यामजी। अब तो श...
शहीद बिरसा मुंडा जी
कविता

शहीद बिरसा मुंडा जी

देवप्रसाद पात्रे मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** वीर जन्मा जनजाति अभियान के लिए जल जंगल जमीन स्वाभिमान के लिए हमको देने जीवन दान, वीरसा हो गए कुर्बान। चले हथेली लेके जान। वीरसा हो गए कुर्बान।। अदम्य साहस निडर वीरता से भरपूर। आदिवासी क्रांतिकारी नाम से मशहूर। भुजा सजे तीर कमान। वीरसा चले सीना तान।। चले हथेली लेके जान। वीरसा हो गए कुर्बान।। स्वतंत्रता सेनानी आदिवासी लोक नायक थे। ब्रिटिश शासन हिलाने वाले प्रेरणादायक थे।। नीति नियम की मार, दर्द झेल आदिवासी। चरम पर नर-संहार, कितने झूल गए फांसी।। इतिहास के पन्ने बने शान वीरसा हो गए महान।। चले हथेली लेके जान। वीरसा हो गए कुर्बान।। जमी के ठेकेदार कैसे हक छीन जाते थे? उनके मुँह का निवाला कैसे लूट खाते थे? मालिकाना हक से अब बनने लगे मजदूर। कसूरवार ठहराए, जबकि वो थे बेकसूर।। आदिवासियों के शान ...
बेड़ियां
मुक्तक

बेड़ियां

जय चौहान देपालपुर, इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************   चित्र देखो कविता लिखो प्रतियोगिता हेतु प्राप्त रचना तय समय के बाद प्राप्त होने से प्रतियोगिता में सम्मिलित नहीं हो सकी ...अतः क्षमा ....🙏🏻 उत्कृष्ट रचना हेतु रचनाकार को शुभकामनाएं ...🙏🏻💐💐💐 परम्परा की बेड़ियों में जकड़ी हुई बेटियाँ सदियों से ज़ुल्म सहती रही है बेटियांँ यह कैसा कुकर्म फैला समाज में युगों युगों से अर्थी पर सजती रही बेटियांँ। बंधन बांधकर पहले अधिकार बनाया, जीवन भर फिर गुलाम बेटियों को बनाया परम्परा रिवाज के नाम पर चुप रखा घर को कोने में सिसकती रही बेटियांँ। ऐसे रिवाज परम्परा बनाई, आँखो में आँसू फिर भी मुस्कुराई मायके और ससुराल में अपना घर ढुंढती पर दो दो घर फिर भी बेटियांँ पराई। कभी दहेज के नाम पर जलाई बेटियांँ कभी इज्जत के नाम पर भेंट चढ़ी बेटियांँ तोड़ दो यह गुलामी की बेड़...
बेड़ियां
गीत

बेड़ियां

अंजली शर्मा दमोह, जबलपुर, (मध्य प्रदेश) ******************** चित्र देखो कविता लिखो प्रतियोगिता हेतु प्राप्त रचना तय समय के बाद प्राप्त होने से प्रतियोगिता में सम्मिलित नहीं हो सकी ...अतः क्षमा ....🙏🏻 उत्कृष्ट रचना हेतु रचनाकार को शुभकामनाएं ...🙏🏻💐💐💐 सच की राह चल सको तो अब मुकरना मत जो आए तुम्हे रोकने तुम रुकना मत कुछ कहेंगे अपशब्द, कुछ कहेंगे बुरा भी तुम्हे सादर शीष झुकाना, बाते उनकी सुनना मत जो आए तुम्हे रोकने तुम रुकना मत और पैरो में पड़ी बेड़ियां, जो तुमने अब तोड़ी है खुद को संवार कर झूठी राह छोड़ी है ना दबना गलत बात पर, गलत पैरो में गिरना मत जो आए तुम्हे रोकने तुम रुकना मत और जो आए तुम्हे खींचने, बांह तुम्हारी मरोड़ने हिंसा, जख्म और जख्मी दिल को कचोड़ने रोक देना हाथ वही, दिल अपना पसीजना मत जो आए तुम्हे रोकने तुम रुकना मत टूटी आशा आंखे सू...
बंधन जरूरी है
कविता

बंधन जरूरी है

महेश बड़सरे राजपूत इंद्र इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************   चित्र देखो कविता लिखो प्रतियोगिता हेतु प्राप्त रचना तय समय के बाद प्राप्त होने से प्रतियोगिता में सम्मिलित नहीं हो सकी ...अतः क्षमा ....🙏🏻 उत्कृष्ट रचना हेतु रचनाकार को शुभकामनाएं ...🙏🏻💐💐💐 प्यारी परी, नन्ही कली। तेरी डगर, आशा से भरी।। इक पैर तेरा, संकल्प का। दूजा चरण, संयम भरा।। ठान ले तू, ना बहकेगी कभी प्यारी परी, नन्ही कली। तेरी डगर, आशा से भरी।। सर पर पल्लू, भले कर ले। दुपट्टा तन पे, भले धर ले।। पढ़ ले, जीवन गढ़ ले पायल से बंधे रहना खड़ी।। प्यारी परी, नन्ही कली। तेरी डगर, आशा से भरी।। स्त्री आजादी के, घाव गहरे हैं। उजले दिखते, स्याह चेहरे हैं।। बंधन बांध कर भी तू बन सकती है रण चंडी।। प्यारी परी, नन्ही कली। तेरी डगर, आशा से भरी।। परिचय :- महेश बड़सरे राजपूत इंद्...