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पद्य

कान्हा तुमने बुलाया
भजन

कान्हा तुमने बुलाया

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** कान्हा तुमने बुलाया, तो हम आ गये। दरस पाके तेरा, सब मगन हो गए। कान्हा ... तुम बुलाते जिन्हें वे ही आ पाते हैं, शेष माया के दलदल में फंस जाते हैं। तुमने सुमिरन के मित दिया मानव का तन, लाभ उसका नहीं सब उठा पाते हैं कुछ हैं आते स्वयं, बंध के आते हैं कुछ, आये कैसे भी हों, भाग्य तो जग गए। कान्हा तुमने ... यों ही करके कृपा, तुम बुलाते रहो, पूर्ण आस्था से हम, दर पे आते रहें। तुम तो करुणा के मोती, लुटाते सदा, हम भी दर आके झोली फैलाते रहें। जिनने देखी तुम्हारी सलोनी छवि, राह के थे जो कंकण, रतन हो गए। कान्हा तुमने ... तुम दयालु हो, सक्षम हो, दाता भी हो, किसकी क्या चाह है, इसके ज्ञाता भी हो, अपने भक्तों के हर, हित के रक्षक हो तुम, उनके दोषों और पापों, के भक्षक हो तुम। घोर पापी भी तेरी, शरण आ गए, तेरी दृष्ट...
कालो के काल महाकाल
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कालो के काल महाकाल

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** कालो के काल महाकाल शिव भोला महान महाकाल महिमा अपरंपार। आज महाशिवरात्रि आई। संग अपने अति उल्लास उमंग लाई। भारत-भू पर शिव भोले अवतरित हुए। हम सब भारतीयों के उर अपार हर्षाए। जन-जन के घट-घट में शिव समाए। हर भक्त शिव भोले। ओम नमः शिवाय की रट लगावे। सबही भक्त भोर से रात्रि तक। शिव भोले का जाप करें। शिव भोले भक्तों का कष्ट हरे। हर पल शिव भोले को सम्मुख पावे। सकल भारत वायुमंडल शिवमय बनावै। मंदिर-मंदिर, घर-घर घंटा-घंटी ध्वनि बाजे। शिव भजन-कीर्तन कर्णप्रिय मन भावे। भांग, धतूरा, आंकड़ा, बेलपत्र। दूध भक्त चढ़ावे। शिव भोले भक्तों के लिए संदेशा लाए। सभी भक्त अपने अंतस भरे। काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार। विकार तज विकारमुक्त पावन। जीवन बना, शिव भोले को पावे। परिचय :- श्रीमती संगीता सूर्यप्रकाश ...
देवों के देव
भजन

देवों के देव

डोमेन्द्र नेताम (डोमू) डौण्डीलोहारा बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** देवों के देव तुम कहलाए, हे शिव भोले भंडारी। फूल पत्ते में आप खुश हो जाते, पुजा करे नर-नारी।। आज आपकी पावन है त्यौहार, जाते हैं सभी शिव के द्वार। कष्ट निवारण दु:ख हर्ता वो, खुशियां मिले हजार।। ब्रम्हां विष्णु तेरी महिमा गाए, तन-मन में बसे रहो तुम हरदम। क्या कहे भोलेनाथ जी, आप हो सत्यम शिवम् सुन्दरम।। शिव की शक्ति शिव की भक्ती , शिव की महिमा अपार। शिव ही करेंगे हम सभी, का सुन्दर बेड़ा पार।। जय हो जय हो शिव शंकर, जय हो भोलेनाथ की। चल रें कांवरिया शिव के, नगरिया जय हो बाबा अमरनाथ की।। कहाॅ॑ मिलेगा मथुरा कांशी, कहॉ॑ वृंदावन तीरथ धाम। घट-घट में तो शंकर भोले जी विराजे, शीश झुकाकर डोमू कर लो सादर प्रणाम।। परिचय :-  डोमेन्द्र नेताम (डोमू) निवासी : मुण्डाटोला डौण्डीलोहारा जिला-बालोद (छत्त...
चल-चल
कविता

चल-चल

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** जब मैंने शुरू किया अपनी ओर से कुछ हलचल, तुरंत लोगों ने कहना शुरू किया यहां से चल चल, हां बिल्कुल चलना तो है, इस सड़ांध भरे माहौल से निकलना तो है, अभी तक हमें कोई और चलाता था, पल पल हमारे अहम को चोट पहुंचाता था, ले दे के चलके कुछ आगे आ पाये हैं, कुछ अपनों को सच्चा इतिहास बता पाये हैं, तुम्हारी अगुवाई में अब तक केवल लानत, मनालत, जहालत ही झेलते आये हैं, खुद से खुद को ढंग से नहीं मिला पाये हैं, अब खुद को जान रहे हैं तब भी तुम्हें परेशानी है, ये तुम्हारी सोची समझी साजिश है नहीं कोई अनायास वाली नादानी है, अब जब तक अपनों के अंदर न आ पाये आग, अपने जब तक न जाये जाग, तब तक आप बोलते रहो चल चल, हम अपने हक़ हुक़ूक़ के लिए चलते रहेंगे पल पल, तो जागृति पहल जारी है, ये हमारे भविष्य के लिए तैयारी है। ...
काश! मैं भी स्कूल जा पाती…
कविता

काश! मैं भी स्कूल जा पाती…

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** स्कूल जाते हम उम्र बच्चों को, अपलक निहारती बर्तन माँजती मुनिया, मन ही मन ये सोचे, काश! मैं भी स्कूल जा पाती ... होते जो मेरे अम्मा-बाबा, न होती आज ये लाचारी। मैं भी जा पाती स्कूल, लिए किताबें पहने ड्रेस प्यारी। रोज नया कुछ सीख जाती, सखियों से भी मिल पाती। मन लगाकर मैं पढ़ती, आगे-आगे मैं बढ़ती। पढ़-लिखकर कुछ बन जाती, जीवन बेहतर कर पाती। मिलता जो मुझको मौका, अंबर को भी छू जाती। काश! मैं भी स्कूल जा पाती... परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं,...
हे शिव परमेश्वर
भजन, स्तुति

हे शिव परमेश्वर

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मनहरण घनाक्षरी हे शिव परमेश्वर प्रभु अर्ध नारीश्वर अखिलेश्वर स्वयम्भू माँ काली समाई है धारे सर्प आभूषण अवतारे नीलकंठ विषपान करके ये संसार उद्धारे हैं भिक्षापात्र हाथ थामे अन्नपूर्णा माँ के द्वारे भक्तन कल्याण हेतु त्रयम्बक ठाड़े हैं त्रिलोकी त्रिनेत्री देवा स्वीकारते भोले सेवा हर हर महादेव रामजी पुकारे है परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी म...
हे! औघड़दानी
भजन, स्तुति

हे! औघड़दानी

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** औघड़दानी, हे त्रिपुरारी, तुम भगवन् स्वमेव। पशुपति हो तुम, करुणा मूरत, हे देवों के देव।। तुम फलदायी, सबके स्वामी, तुम हो दयानिधान। जीवन महके हर पल मेरा, दो ऐसा वरदान।। आदिपुरुष तुम, पूरणकर्ता, शिव, शंकर महादेव। नंदीश्वर तुम, एकलिंग तुम, हो देवों के देव।। तुम हो स्वामी,अंतर्यामी, केशों में है गंगा। ध्यान धरा जिसने भी स्वामी, उसका मन हो चंगा।। तुम अविनाशी, काम के हंता, हर संकट हर लेव। भोलेबाबा, करूं वंदना, हे देवों के देव।। उमासंग तुम हर पल शोभित, अर्ध्दनारीश कहाते। हो फक्खड़ तुम, भूत-प्रेत सँग, नित शुभकर्म रचाते।। परम संत तुम, ज्ञानी, तपसी, नाव पार कर देव। महाप्रलय ना लाना स्वामी, हे देवों के देव।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश) शिक्ष...
सरस्वती वंदना
भजन, स्तुति

सरस्वती वंदना

कुंदन पांडेय रीवा (मध्य प्रदेश) ******************** वंदन करूं..... मात सरास्वती तेरी महिमा का गुणगान करूं। वंदन करूं...... गुण पूरित वेद पुराण पति, तेरी महिमा का मैं बखान करूं। वंदन करूं..... हे बागेश्वरी माता कमलासिनी रज तेरी सर माथ धरूं। शोभा निज वृहद विसद हो माता, जब भी तेरा ध्यान करूं। करुणा की देवी ज्ञान मई, तेरा हरक्षण सम्मान करूं। वंदन करूं....... तेरी ही कृति हूं हे मां भारती तुझसे ही नित पूरित हूं। तेरी ही वाणी है ये माता, मैं बस तुझको ध्याती हूं। मन व्याकुल जब भी हो माता, ब्यूहल सी तेरी राह तकूं। वंदन करूं..... मात सरास्वती तेरी महिमा का गुणगान करूं। वंदन करूं..... परिचय :-  कुंदन पांडेय निवासी : रीवा (मध्य प्रदेश) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
हमारा भी जमाना था
कविता

हमारा भी जमाना था

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** पीढ़ी देखे चरम बदलाव, चिंता बिन अफसाना था। भला-बुरा का ज्ञान नहीं पर, हमारा भी जमाना था। बिन शर्म संकोच बचपन में, पैदल साइकल जो हुआ। दूर-पास विचार नहीं संग, मां पिता गुरु ईश दुआ। चला करते पीढ़ी के रिश्ते, चाचा मामा बहन बुआ। ढपोरशंख पदवी से दूर, प्रतिशत उच्च अंक छुआ। बिना शरम इगो पुस्तकों का, क्रय विक्रय ठिकाना था। परिवार सहयोग में कितनी, लाइन में लग जाना था। अपनी पीढ़ी चरम बदलाव, बिन चिंता अफसाना था। भला-बुरा का ज्ञान नहीं पर, हमारा भी जमाना था। प्रभु प्रलोभन मिठाई का, कम मेहनत विनय करते। पढ़ाई खर्च का बोझ वहन, कभी उजागर ना करते। सिलवटी ड्रेस सस्ते खेल से, जमकर खुशियां पा लेते। कंचा भौंरा पिट्टुल कौंडी, लूडो चेस चला करते। जरा सी पॉकेट मनी बचे, अन्य शौक भी पाना था। घर का मुरमुरा चूड़ा भेल, अपना शौक पुराना था। अपनी पी...
खुद को, खुद से ही समझाया जाए
कविता

खुद को, खुद से ही समझाया जाए

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** रख कर दिल में, जज़्बात अपने, ना किसी और को, बताया जाए, दर्द जो उसने दिया, दिल को मेरे, अब खुद ही इसे, तड़पाया जाए, वादे तो हमसे, हसीन किए थे उसने, मगर उन सबको, अब भुलाया जाए, दिया है ग़म उसने, तो ग़म ही सही, अपने दर्द को अब, दिल में समाया जाए, ज़माने से कह, हसीं उड़वानी है अपनी, ज़ख्म जो मिले, खुद ही मरहम लगाया जाए, उसने तो जो किया, समझ है उसकी, अब खुद को, खुद से ही समझाया जाए, बड़ा दर्द दिल में, दे जाता है प्यार करना, आंसुओं को अब, ज़माने से छिपाया जाए परिचय :-  रामेश्वर दास भांन निवासी : करनाल (हरियाणा) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अप...
हाँ ! मैं लड़की हूँ
कविता

हाँ ! मैं लड़की हूँ

शैलेश यादव "शैल" प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** हाँ! मैं लड़की हूँ। हमारे जन्म लेते ही, घरवाले हो जाते हैं मायूस, सोहर नहीं होता हमारे जन्म पर, नहीं बाँटी जाती मिठाइयाँ, कभी तो इस जहाँ में आने से पहले ही, भेज दी जाती हूँ दूसरे जहाँ में, हमें अपनो द्वारा ही बोझ समझा जाता है, अपनों के द्वारा ही सुनती बहुत घुड़की हूँ, छोटी हूँ, मझली हूँ या मैं बड़की हूँ, हाँ ! मैं लड़की हूँ, हाँ! मैं लड़की हूँ। संसार के श्वानों की आंखों में गड़ती हूँ, दिन-रात गिद्धों से लड़ती झगड़ती हूँ, सारा काम घर का मैं ही तो करती हूँ, फिर भी दुनिया से मैं ही डरती हूँ, जहाँ देखें वहीं, खाती मैं झिड़की हूँ हाँ ! मैं लड़की हूँ, हाँ ! मैं लड़की हूँ। मुझे पराया धन माना जाता है, मुझे दान किया जाता है, कभी सारी सभा के बीच में अपमान किया जाता है, कभी सौंदर्य का कभी पीड़ा का गुणगान किया जात...
शब्दांजलि
कविता

शब्दांजलि

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** मां तुम्हारा मुस्कुराता चेहरा तस्वीर में ही रहा। तस्वीर में छलकते चेहरे को निहारता।। अब अपने मन को समझाता। तस्वीर की झूलती माला को असहाय से देखता ।। भूली बिसरी यादों को अपनी यादों से जोड़ता। मां के आशीषों एवं आंचल को खोजता।। यादों में खोकर बीते कल को खोजता। अब तुम्हारी यादों में आंसुओं को बहाता।। अपनी नई-नई बातों को तुमसे जोड़ता। बीते कल को तुमसे जोड़ता।। अब तुम्हारे बिना अपनी ख्वाहिश किसको बताऊं। अपनी मुश्किलों और दुख किसको सुनवाऊं।। मां तुम्हारे बिना अपना वजूद बचा ना सका। अब अपनी जिद्द किसी से पूरी करवा न सका।। अपने नए नए सपने, खुशियां किसी को बतला ना सका।। अब मुझे घर में गले से लगाने वाला ना रहा। मेरी आवाज को सुनने वाला कोई ना रहा।। अपनी सफलता का जश्न मनाने वाला, कोई ना रहा। अब तुम्हारा मुस्क...
शहीदों की वीरगाथा
कविता

शहीदों की वीरगाथा

महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' सीकर, (राजस्थान) ******************** चौदह फरवरी दो हजार उन्नीस का दिन, कभी विस्मृति वश भी भूल ना पाएंगे। पुलवामा में हुए शहीदों की वीरगाथा, कर नमन हम आज फिर से दोहराएंगे।... जम्मू से अठत्तर वाहनों में हो सवार, निकला था सुरक्षाकर्मियों काफ़िला। बीच राह अवन्तिपोरा के निकट हुआ, लेथपोरा इलाके में आत्मघाती वाकया। अपराधी जैश-ए-मौहम्मद के कायराना, मनसूबों से चालीस जवानों का लहू बहा। कर्त्तव्य पथ पर मां भारती के वीरों की, शहादत का हम भारतीयों ने जो दर्द सहा। वीर योद्धाओं के शौर्य साहस पराक्रम को, कर सलाम आज अपना शीश झुकाएंगे।... है नाज़ सदा उन जांबाज वीरों पर जो वतन से मोहब्बत इस कदर निभा गए। इस जहान आज मोहब्बत के दिन जो, निज वतन पर जान अपनी लुटा गए। राष्ट्र रक्षा में प्राणोत्सर्ग करने वालों के लिए, भारतीय युवा मिलकर प्रण ले...
मधुमास
कविता

मधुमास

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** धरा मांग सिंदूर सजाकर, झिलमिल करती आई भोर। खग कलरव भ्रमर गुंजन, चहुं दिस नाच रहे वन मोर। सुगंध शीतल मन्द समीर, बहती मलयाचल की ओर। पहने प्रकृति पट पीत पराग, पुष्पित पल्लवित महि छौर। रवि आहट से छिपी यामिनी, चारूं चंचल चंद्रिका घोर। मुस्काती उषा गज गामिनी, कंचन किरण केसर कुसुम पोर। महकें मेघ मल्लिका रूपसी, मकरंद रवि रश्मियां चहुंओर। मदहोश मचलती मतवाली, किरणें नभ भाल पर करती शोर। सुरभित गुलशन बाग बगीचे, कोयल कूके कुसुमाकर का जोर। नवयौवना सरसों अलौकिक, गैंहू बाली खड़ी विवाह मंडप पोर। मनमोहक वासंतिक मधुमास, नीलाभ मनभावन प्रकृति में शोर। कृषक हिय प्रफुल्लित आनन्दित, अभिसारित तरु रसाल पर बौर। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घो...
प्रभु स्वरूप साजन पाना
कविता

प्रभु स्वरूप साजन पाना

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** स्वर्णिम स्वप्न सँजो कर बैठी, डोली में बिटिया रानी। होठों पर लालिमा मनोहर, नैनों में दुख का पानी। कभी सोचती अपने मन में, मुझे पिया के घर जाना, झाँक-झाँक पर्दे से कहती,j भैया मुझे लिवा जाना। नयन नीर हाथों से पौंछे, पिता सिसकियाँ भरता है। पहली बार पिता बेटी को, घर से बाहर करता है। प्यार सुरक्षा अपनापन दे, माता रखती थी घर में। कन्यादान पिता ने करके, सौंप दिया वर के कर में। आँखों से ओझल होते ही, व्याकुल होते थे पापा। मुझको आज बिठा डोली में, क्यों ओझल होते पापा। रुठा करती थी पल-पल में, आज क्यों नहीं मैं रूठी। कोई रोक नहीं पायेगा, सब उम्मीदें हैं झूठी। जाना होगा आज सजन घर, समझ गई बिटिया रानी। सजल नयन हैं आज खुशी से, उम्मीदों का है पानी। सोच रही थी मन ही मन में, इतने में भाई आया। नीर ...
बेड़ियाँ लाचारियों की
ग़ज़ल

बेड़ियाँ लाचारियों की

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** लगी है बेड़ियाँ लाचारियों की। कठिन है राह जिम्मेंदारियों की। करेंगे हम हमेशा बात उनकी, रिवायत सीख ली ख़ुद्दारियों की। अग़र हो वक़्त पर, वो काम पूरा, ज़रूरत है बड़ी तैयारियों की। जहाँ राजा दिखाये रोब अपना, वहाँ चलती नहीं दरबारियों की। रखेंगे किस तरह वो भाईचारा, रही आदत जिन्हें ग़द्दारीयों की। उन्हें वो देखता है, सीखता है, जिसे दरकार है फ़नकारियों की। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास : अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति : शिक्षक प्रकाशन : देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान : साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी...
क्या मैं इतना बुरा हूंँ
कविता

क्या मैं इतना बुरा हूंँ

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** क्या मैं आज इतना बुरा लगने लगा हूंँ, जो आज सत्ता मुझे कभी दीवार बनाकर तो कभी शामियानों के कपड़ों की दीवार बनाकर छिपाने का भरसक काम करती है, क्योंकि उन्हें मेरी मुफ़लिसी पसंद नहीं, मेरा चेहरा उन्हें भाता ना हो, उनकी चकाचौंध के लिए तो मेरा शरीर सदैव सेवा में तैयार रहता है, कभी मुझे सड़क किनारे अपनी फटी पुरानी चादर या मेरी टूटी-फूटी रेहड़ी पर कुछ रखकर बेचने से रोका जाता है तो लाठी-डंडों से और ना सुनने वाली गालियां देकर पिटवाया जाता है, कभी मेरी घास-फूंस की झोपड़ियों को तहस-नहस कर भगाया जाता है, आखिर क्यों ये राजसत्ता मुझे अपनाने को तैयार क्यों नहीं ? हाँ मुझे एक जगह बहुत खुश करने का बहुत काम होता है और वो है राजनेताओं का मेरी ग़रीबी और मुफ़लिसी को दूर करने का भाषण, चुनाव के समय सब मेरे इर्द-गिर्द गिद्धों...
बदलते रिश्ते
कविता

बदलते रिश्ते

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** रंग बदलते खून के रिश्ते देख अब तक की उम्र में रिश्तों को हमने खंगाला है। माना सबको अपने जैसा पर कोई सनकी, कोई लालची, कोई गुरूर वाला है। खंजर छुपा कर रखे हैं ताक में पसीना तो पसीना खून चूसकर मचलने वाला है। रूप रंग पर कभी मत जाना यारों जितना तन उजला उससे ज्यादा ही मन काला है। चीर कर दिखा चुका अपना हृदय पर पिशाचों का मन इतने में कहां भरने वाला है। उन्नति में भभक धधक उठेंगे शोले मशाल ले जलाएंगे अरमां उदर में जाता निवाला है। जब तक देख न लें नेस्तनाबूद होते तानों बानों से उलझा ये रिश्तों का श्याह जाला है। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कवित...
२१ लाख दीपो की श्रृंखला
कविता

२१ लाख दीपो की श्रृंखला

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** उज्जैन जगमगाया, देख नजारा रामघाट का, विश्व स्तब्थ खडा सा पाया विश्व रिकॉर्ड तोड़ा उज्जैन ने, विश्व मे नाम कमाया, क्यों ना चमके उज्जैन जगत मे, महाकाल जहां हे पाया, विक्रमादित्य कालिदास की नगरी नवरत्न जहां है पाये, राजा भर्तहरी, पीर मछंदर, शक्तिपीठ, दर्शन जहाँ हे पाये, पुरानी चमक फिर से यहाँ चमके, इसलिए दीपो से जगमगाया, अवंतिका तो अवंतिका हे, अवन्तिकानाथ जहाँ हे पाया, ३२ पुतलियाँ करे हे निर्णय सिंहासन धर्राया, नतमस्तक हो गई हे दुनिया, जहां महाकाल मै काल समाया, नित्य मुर्दे की भस्म चढे शीश पर, साधु संत मन भाया, देख नजारा रामघाट का जीवन धन्य धन्य हो पाया परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्ष...
कुछ भी स्थिर नहीं है जग में
कविता

कुछ भी स्थिर नहीं है जग में

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** कुछ भी स्थिर नहीं है जग में 'रूप-रंग' झुठलाना होगा! ठुकरा कर 'प्रणय-निवेदन' मेरा प्रिय, इक दिन पछताना होगा...!! ज्यों-तेरा बचपन है बीता त्यों-बीतेंगे दिन यौवन के साँझ घिरी आती है देखो, 'इन्द्रजाल-जीवन-अम्बर-के!' ये 'गगन-सिन्दुरी' भी जाएगी... 'सब-स्याह-में-खो-जाना होगा!' ठुकरा-कर प्रणय-निवेदन मेरा प्रिय, इक-दिन पछताना होगा।। मैं मन्दिर में देख रहा हूँ, 'प्रत्युष का इक दीप बुझ रहा, जहाँ अगुरु-धूम सुवासित था, वहाँ उमस औ घुटन उठ रहा', 'मन-सुकून' था जिस दर्शन में- अब-लगे न फिर पाना होगा... ठुकरा-कर 'प्रणय निवेदन' मेरा प्रिय, इक-दिन पछताना होगा।। 'नव-मूरत' का मोह है केवल 'न-विग्रह-प्राण-प्रतिष्ठित' है अन्तर्मन में झाँक के देखो! 'सत-सुन्दर-छवि' स्थापित है 'नयन-यवनिका' फिर से खोलो 'चिर-सत्य-प्रेम-द...
बसंती बयार
कविता

बसंती बयार

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** बसंती बयार बह रही घर आंगन चौखट द्वारे रवि किरण लजा रही छुप, चुप कर गगन में।। पेड़ों के झुरमुट से झांकती कलियां भौरो का गुंजन होता पुष्प पराग से पेड़ों के पत्ते हिल-हिल कर लेते बलैय्या मां सरस्वती को बसंत देता बधाइयां कहीं कोयल कुकती स्वागत में कहीं झरनों की फुहारें भरें स्फुरण। कहीं झरना नहलाता बसंत को तो पलाश टेसु टीका लगाता रक्तिम भरमाए भागते बादल बसंत से धूप-छांव का खेल खेलते। नदी, तडाग की लहरें देती बसंत को झूले मीन मिलकर नृत्य करती बसंत की अगवानी में। आओ देखे हम भी मिलकर नर्तन बसंत आगमन में। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं ...
शिव-गौरी विवाह
भजन, स्तुति

शिव-गौरी विवाह

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** बूढ़े बैल असवार, आये हिमगिरि के द्वार, ब्याहन गौरी सरकार, भोले भंडारी।। गल माहीं लिपटा है विषधर माथे बाल विधू है सुंदर डमरू संग हांथ तिरसूला नीलकंठ गंगाधर शंकर छाती नर मुंडन कै हार, बिछुआ कनवा झूलनदार है अद्भुत रूप सिंगार भोले भंडारी.... दीखैं रंग रंग बाराती कोऊ मोटा ताजा माती बिन मुख हांथ पाँउ बा केऊ केउतउ बहु अंगन जामाती कूकुर सुअर सियार, गदहा मुखन आकार, नाहीं इनकै है संभार भोले भंडारी.... नाचत भूतन सँगे परेता डाकिनी शाकिनी समेता जोगिनी संगती भिड़ावैं ढ़ोलक पिशाचिनी जमेता बैठी सकल जिंवार, रही बरातिन निहार, खोले सजरा हजार भोले भंडारी.... चहुँमुख बजे हैं नगाड़े ब्रह्मा विष्नु हैं पधारे सगरे देवा हैं पहुँचे राजा हिमाँचली द्वारे लखिके दमदा लीलार, मैंना पीटैं कापार, विधिन...
मैं विश्वनाथ का नंदी हूँ
भजन, स्तुति

मैं विश्वनाथ का नंदी हूँ

डॉ. अवधेश कुमार "अवध" भानगढ़, गुवाहाटी, (असम) ******************** मैं विश्वनाथ का नंदी हूँ, दे दो मेरा अधिकार मुझे। वापी में हैं मेरे बाबा, कर दो सम्मुख-साकार मुझे।। अब तो जागो हे सनातनी, डम-डमडम डमरू बोल रहा। न्यायालय आकर वापी में, इतिहास पुराने खोल रहा।। अब बहुत छुप चुके हे बाबा, करने दो जय-जयकार मुझे। एक विदेशी खानदान ने, मंदिर को नापाक किया था। मूल निवासी सनातनी के, काट कलेजा चाक किया था।। औरंगजेब नाम था उसका, वह धर्मांध विनाशक था। भारत माता के आँचल का, वह कपूत था, नाशक था।। आस्तीन में साँप पले थे, बहु बार मिली थी हार मुझे। ले रहा समय अब अँगड़ाई, खुल रहे नयन सुविचार करो। बहुत सो चुके हे मनु वंशज, उठ पुनः नया उपचार करो।। लख रहा दूर से बेसुध मैं, वर्षों से बाबा दिखे नहीं। मैं अपलक चक्षु निहार रहा, विधि भी आकर कुछ लिखे नहीं।। अवध अहिल्या...
रास्ते का अंधा बटोही …
कविता

रास्ते का अंधा बटोही …

मानाराम राठौड़ जालौर (राजस्थान) ******************** मंजिल कितनी दूर है! देख ले सपना कितना सच है! देख ले सपना है! मंजिल की पहुंच अपना है! सपने का मंजिल देख ले मंजिल की राह कांटो से भरी कंकड़ सड़क जाते मंजिल चटक-भटक मंजिल कितनी दूर है! सपना कितना सुदूर है! बटोही नहीं देखे राह अपनी कौन कहे यह कहानी अपनी घर आते आते ढल जाती है! संध्या सुबह होते-होते भूल जाते हैं! सपना परिचय :- मानाराम राठौड़ निवासी : आखराड रानीवाड़ा जालौर (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहान...
त्रिभंगी छंद आधारित शिव स्तुति
छंद

त्रिभंगी छंद आधारित शिव स्तुति

अर्चना तिवारी "अभिलाषा" रामबाग, (कानपुर) ******************** त्रिभंगी छंद आधारित शिव स्तुति १ जय -जय शिव शंकर, प्रभु अभ्यंकर, नाथ महेश्वर, भंडारी। हे जग अखिलेश्वर, प्रभु परमेश्वर, हे गिरिजेश्वर, त्रिपुरारी।। यह मन है चंचल, होता विह्वल, घुलता पल-पल, माया में। प्रभु पार लगाओ, दरश दिखाओ, मत भटकाओ, काया में।। २ मद लोभ फँसी मैं, क्रोध धँसी मैं, विरह हँंसी मैं, हे भगवन्। माया में अटकी, दर-दर भटकी, दुख में लटकी, हे त्रिभुवन।। उर पीर बड़ी है , विकट घड़ी है, नीर झड़ी है, गिरिजेश्वर। हे नाथ उबारो, संकट टारो, मुझे सम्हारो, अखिलेश्वर।। ३ रोते हैं नैना, उर बेचैना, पीड़ित बैना, प्रभु मेरे। हूँ लाज गड़ी मैं, द्वार खड़ी मैं, शरण पड़ी मैं ,प्रभु तेरे।। मम त्रास मिटाओ , हृदय लगाओ, अंक बिठाओ, हे दाता। प्रभु विनती करती , नाम सुमिरती , धीरज धरती, जग त्राता।। ४ हे नाथ महेश्वर, हे ...