कान्हा तुमने बुलाया
प्रेम नारायण मेहरोत्रा
जानकीपुरम (लखनऊ)
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कान्हा तुमने बुलाया, तो हम आ गये।
दरस पाके तेरा, सब मगन हो गए।
कान्हा ...
तुम बुलाते जिन्हें वे ही आ पाते हैं,
शेष माया के दलदल में फंस जाते हैं।
तुमने सुमिरन के मित दिया मानव का तन,
लाभ उसका नहीं सब उठा पाते हैं
कुछ हैं आते स्वयं, बंध के आते हैं कुछ,
आये कैसे भी हों, भाग्य तो जग गए।
कान्हा तुमने ...
यों ही करके कृपा, तुम बुलाते रहो,
पूर्ण आस्था से हम, दर पे आते रहें।
तुम तो करुणा के मोती, लुटाते सदा,
हम भी दर आके झोली फैलाते रहें।
जिनने देखी तुम्हारी सलोनी छवि,
राह के थे जो कंकण, रतन हो गए।
कान्हा तुमने ...
तुम दयालु हो, सक्षम हो, दाता भी हो,
किसकी क्या चाह है, इसके ज्ञाता भी हो,
अपने भक्तों के हर, हित के रक्षक हो तुम,
उनके दोषों और पापों, के भक्षक हो तुम।
घोर पापी भी तेरी, शरण आ गए,
तेरी दृष्ट...