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पद्य

मैं बटर कहाँ से लाऊँ
कविता

मैं बटर कहाँ से लाऊँ

डॉ. अवधेश कुमार "अवध" भानगढ़, गुवाहाटी, (असम) ******************** भूखे आकर, गाली खाकर। खून जलाकर, स्वेद बहाकर।। रोटी-भात जुटाऊँ। मैं बटर कहाँ से लाऊँ! दिनभर खटकर, पल-पल मरकर। विपदा सहकर, रोकर-हँसकर।। रूखा-सूखा खाऊँ। मैं बटर कहाँ से लाऊँ! सर की चाहत, दारू की लत। गंदी आदत, मिले न राहत।। कैसे उन्हें मनाऊँ? मैं बटर कहाँ से लाऊँ! टूटी पायल, चिथड़ा आँचल। मन भी घायल, महँगा ऑयल।। खाऊँ या कि लगाऊँ? मैं बटर कहाँ से लाऊँ! दिन को रातें, उल्टी बातें। नकली खाते, चालें-घातें।। देखूँ, चुप रह जाऊँ? मैं बटर कहाँ से लाऊँ! जा रे जा जा, सबका खा जा। सच, झुठला जा, बन जा राजा।। अवध न शीश झुकाऊँ। मैं बटर कहाँ से लाऊँ! परिचय :- डॉ. अवधेश कुमार "अवध" सम्प्रति : अभियंता व साहित्यकार निवासी : भानगढ़, गुवाहाटी, (असम) शपथ : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह र...
चाँद-चकोर
कविता

चाँद-चकोर

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** आकाश की आँखों में रातों का सूरमा सितारों की गलियों में गुजरते रहे मेहमां मचलते हुए चाँद को कैसे दिखाए कोई शमा छुप छुपकर जब चाँद हो रहा हो जवां। चकोर को डर भोर न हो जाएँ चमकता मेरा चाँद कहीं खो न जाए मन बेचैन आँखे पथरा सी जाएगी विरह मन की राहें रातें निहारती जाएगी। चकोर का यूँ बुदबुदाना चाँद को यूँ सुनाना ईद और पूनम पे बादलो में मत छुप जाना याद रखना बस इतना न तरसाओ मेरे चाँद तुम खुद मेरे पास चले आओ। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्...
हम ही आज है, कल भी हम ही है…
कविता

हम ही आज है, कल भी हम ही है…

कु. आरती सिरसाट बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) ******************** हम ही आज है, कल भी हम ही है......! हम ही रीत है, रिवाज भी हम ही है......!! हम ही आजादी है, बेडियां भी हम ही है......! हम ही पंछी है, पिजरा भी हम ही है.....!! हम ही अभिमन्यु है, चक्रव्यूह भी हम ही है.....! हम ही मोहन है, बाँसुरी भी हम ही है.....!! हम ही पेड़ है, कुल्हाड़ी भी हम ही है......! हम ही नफ़रत है, प्रेम का प्रतीक भी हम ही है......!! हम ही तो आशा है, निराशा भी हम ही है......! हम ही तो पाप है, पून्य भी हम ही है......!! हम ही नदियों की कलकल है, अशुध्दियाँ भी हम ही है......! हम ही आस्तिक है, नास्तिक भी हम ही है......!! हम ही छल है, निच्छल भी हम ही है......! हम ही विध्या है, अनपढ़ भी हम ही है......!! हम ही धूप है, छाँव भी हम ही है......! हम ही शहर है, गाँव भी हम ही है......!! हम ही गीता है, कुरा...
दूध जलता क्यों है
कविता

दूध जलता क्यों है

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** कभी-कभी दूध जल जाता है दूध जलता क्यों है दूध तो अमृत समान है, सभी खाद्यों में प्रधान है दूध विश्व का पालनहार है, दूध पर संदेह निराधार है दूध गर्भ में भी सभी को पालता है दूध सभी रोगों का उपचार है, फिर भी दूध कभी-कभी जल जाता है क्योंकि उसे मनुष्य का संपर्क मिल जाता है परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी. भाषाविज्ञान सर्टिफिकेट कोर्स : फ़्रेंच व गुजराती। पुनः मैं अपने देश को बहुत प्यार करती हूं तथा प्रायः देश भक्ति की कविताएं लिखती हूं जो कि समय की‌ मांग भी‌ है। आजकल देशभक्ति लुप्तप्राय हो गई है। इसके पुनर्जागरण के लिए प्रयत्नशील हूं। घोषणा पत्र : ...
बगावत भी जरूरी
कविता

बगावत भी जरूरी

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** जो बैठा है खाली पेट, बगावत वहां से उठ सकता है, किसान, विद्वान, नादान, अंजान, बेजुबान, सताए स्त्री पुरूष इंसान, मदमस्त सत्ताईयों के सुख चैन लूट सकता है, हाँ मालूम है की सत्ता हमारी हलक से निवाला खींच सकता है, लम्पटों, महामूर्खों, अंधभक्तों की फसल को वाहियात बातों में उलझा सींच सकता है, मत भूलिए की जिसके सीने में वतन के लिए लगावट है, वहीं कर सकता बगावत है, बगावत का, विरोध का डर न हो तो सत्ताधारी बेलगाम, मदमस्त हो जाता है, उनके लिए हर गैरजरूरी काम जरूरी हो जाता है, पर ये नहीं सोचता कि अंदर ही अंदर बहती लावा ज्वालामुखी बन कभी भी फूट सकता है, आसमान की ओर निहारता, लिया बैठा सूखा खेत, बगावत वहां से उठ सकता है, इन नामुरादों की दुनिया लूट सकता है। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी...
आदत से मज़बूर हूं
कविता

आदत से मज़बूर हूं

किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया (महाराष्ट्र) ******************** प्रमोटेड हुआ हूं आदत से मज़बूर हूं बहुत छोटे पद से बड़े पद पर प्रमोटेड हुआ हूं भ्रष्टाचारी चाय पानी नहीं छोड़ा हूं कुर्सी पर बैठकर ग्राहक ढूंढता रहता हूं प्रमोटेड हुआ हूं आदत से मज़बूर हूं पूरा घरखर्चा इसी ऊपरी कमाई से निकालता हूं पगार को गुटका ठर्रा तंबाकू अय्याशी में उड़ाता हूं मिलीभगत तंत्र से काम चलाता हूं प्रमोटेड हुआ हूं आदत से मज़बूर हूं नए वर्ष में हितधारकों का काम किया हूं किसी को बताना मत घूसखोरी बहुत लिया हूं लगातार पंद्रह दिन न्यूईयर पार्टी ड्यू किया हूं प्रमोटेड हुआ हूं आदत से मज़बूर हूं अधीनस्थ कर्मचारियों पर रौब जमाता हूं धीरे से घूसखोरी की हिस्सेदारी मांगता हूं जो नहीं देता उसे ऑफिसबैठक ट्रांसफर करता हूं प्रमोटेड हुआ हूं आदत से मज़बूर हूं मैं जनता का नहीं जनता मेरी नौकर है सम...
अनुभव भरा खजाना
कविता

अनुभव भरा खजाना

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** हैं अनमोल धरोहर घर की, बूढ़ी दादी नानी। इनके पास छड़ी जादू की, दोनों बड़ी सयानी। नुस्खों का भंडार भरा है, अनुभव भरा खजाना। इनके पास दवा खाना है, नहीं वैद्य घर जाना। जीवन के अनुभव संग्रह कर, रखतीं दादी नानी। बतलातीं निरोग वो रहता, पियें गुनगुना पानी। सुबह शाम जो पैदल चलता, उसे रोग ना घेरे। वे धनवान सदा रहते हैं, जगते बड़े सवेरे। जिनको सूरज रोज जगाता, वे रोगी हो जाते। जो सूरज को स्वयं जगाते, रोग पास ना आते। जीवन जीना हमें सिखातीं, कौशल भी बतलातीं। कैसे रहे निरोगी काया, योगासन सिखलातीं। सारे घर को बाँध नेह से, हैं परिवार बनातीं। अगर रूठता कोई परिजन, जाकर उसे मनातीं। अनुशासन का पाठ पढ़ातीं, हैं सम्मान सिखातीं। कोई परिजन राह भटकता, उसको राह दिखातीं। सारे घर को एक बनाना, दादी ना...
नये….. साल में
कविता

नये….. साल में

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** नये साल में जिंदगी के नये तरीक़े इजाद कीजिए। दूसरों पर रखीं उम्मीदें समेट कर खुद पर उम्मीद कीजिए। नये साल में जिंदगी के नये तरीक़े इजाद कीजिए। एक-एक ग्यारह जरूर होते है। एक बनकर अपनी कीमत की पहचान कीजिए। गलत... गलत... गलत का। जब शोर मचा हो। मैं सही हूँ...... इस बात पर हमेशा गौर कीजिए। नये साल में जिंदगी के नये तरीक़े इजाद कीजिए। उम्मीदें जब टूटती हैं जिंदगी जब बिखरती हैं। उन सभी उम्मीदों को फिर से जोड़ने का काम कीजिए। नये साल में जिंदगी के नये तरीक़े इजाद कीजिए। आप...... जिंदा हो यह बात कबूल कीजिए। अपने टूटे हुए टुकड़ों से सपनों का नया ढांचा तैयार कीजिए। अकेले तुम ही लड़ोगे। राह में साथ कुछ पल ही मिलेंगे। जिंदगी की लड़ाई के लिए खुद को हिम्मत से तैयार कीजिए। हर साल नये साल आते रहेगें तुम...
नया साल नया दौर
कविता

नया साल नया दौर

रूपेश कुमार चैनपुर (बिहार) ******************** जीवन के रंग मे खुशियों के संग में, सुबह की लाली घटा शाम की तन्हाई में, हरे भरे पेड़ों पर चिड़िया चहकती रहे, खेत खलिहानों मे फसल लहलहाती रहे, नई रोशनी मे नये जीवन की शुरुआत हो, सबको जीने की नई दिशा, नया राह मिले, गाँव मे खुशियों की नयी सौगात हो, सबको अपनी अभिव्यक्तियों का नया संसार मिले, मन मस्तिष्क मे नये दुनिया की स्वागत की आशायें हो, जीवन मे नये उद्देश्यों का लौ जले, प्रेम की ज्योति जले खुश्बुओं की महक उठे, विज्ञान , तकनीकी , साहित्य की ज्वाला और जले, दुनिया मे लोक कलाओं का चहुंदिश विकास हो, सभ्यता और संस्कृति को नया आयाम मिले, दुनिया मे आपस मे भाईचारे का संबंध हो, ना झगड़ा ना झंझठ का वास हो, पग -पग में दिल और प्यार का मिलन हो, जाति धर्म को मिटाकर सबकी धड़कनो की आवाज़ बनो, ऐसा नया हो नये साल क...
नव वर्ष सदा मंगलकारी हो
कविता

नव वर्ष सदा मंगलकारी हो

सीमा तिवारी इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** नव वर्ष सदा ही मंगलकारी हो। प्रकृति में हरा भरा उल्लास रहे। फूलों में भीनी भीनी सुवास रहे। फसलों में सोने सी उजास रहे। मौसम की बयार हितकारी हो। नव वर्ष सदा ही मंगलकारी हो। हर एक शरीर रोगों से मुक्त रहे। मन अच्छी आदतों से युक्त रहे। जीवन स्नेह प्रेम से संयुक्त रहे। दूर हर आपदा हर बीमारी हो। नव वर्ष सदा ही मंगलकारी हो। सद् ज्ञान विज्ञान का प्रचार रहे। संस्कृति संस्कारों का प्रसार रहे। अज्ञानता-अमानुषता पर प्रहार रहे। जीवन हर प्राणी का सुखकारी हो। नव वर्ष सदा ही मंगलकारी हो। हर मन में अपनत्व के भाव रहे। दूर सदा अंहकार ईर्ष्या दुर्भाव रहे। यशता सुखता के लिए समभाव रहे। हर एक जीवन ही शुभकारी हो। नव वर्ष सदा ही मंगलकारी हो। परिचय :- सीमा तिवारी शिक्षा : एम एस सी (गणित) और बी एड निवास : इन्दौर (मध्यप्रद...
नया सवेरा आने को है…
कविता

नया सवेरा आने को है…

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** जनम मरण के बीच जो लकीर है जीवन तो पूर्व जन्म की ताबीर है लो बीत गया एक वर्ष, खट्टी-मीठी यादो संग जीवन मे बिखरते कुछ यादो और वादों संग कुछ जीवन से जो रीता है कुछ ने सपनो को जीता है जीना है हमें अब उन सपनो के संग-संग लो बीत गया एक वर्ष, खट्टी मीठी यादो संग जो बिता उसे भुला भी दो गम को सारे भूला भी दो वर्तमान को बेहतर कर, भर दो जीवन मे रंग लो बीत गया एक वर्ष, खट्टी मीठी यादो संग आना जाना जग मे जैसे कोई पहेली हो जन्म-मरण जैसे एक दूजे की सहेली हो मिला है जीवन, भरेंगे उसमे नित नव-नव रंग लो बीत गया एक वर्ष, खट्टी मीठी यादो संग नया सवेरा, नया उम्मीद आने को है अपने अपनों के साथ निभाने को है समय की दरकार है रहना अब अपनों के संग लो बीत गया एक वर्ष, खट्टी मीठी यादो संग जीवन मे बिखरते कुछ या...
नायिका के मुख से… नये साल में
कविता

नायिका के मुख से… नये साल में

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** २१२ २१२ २१२ २१२ धुन... कर चले हम फ़िदा पान बीड़ा लगाया नये साल में होंठ पे भी रचाया नये साल में मतला चल दिए तुम कहाँ है मिलन की घड़ी लौट आना दुबारा नये साल में गिरह भूल शिकवे ज़लालत किया कुछ नया ज़िन्दगी को सँवारा नये साल में लाल चूड़ा सजे मेहँदी भी रची ब्याह में धूम बाजा नये साल में द्वार खोले सनम राह देखूँ तिरी फ़ोन भी है लगाया नये साल में चाँद को देख तू याद आया मुझे चाँदनी को बुलाया नये साल में देख तस्वीर तेरी हुई मैं फ़िदा मीत मुखड़ा दिखाना नये साल में थी घड़ी शायराना कि हम तुम मिले अब मुहब्बत जताना नये साल में चाहते हो अगर तो छुपाना नहीं हाथ हमसे मिलाना नये साल में परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित ...
साथ अपने जहाँ मिल गए
ग़ज़ल

साथ अपने जहाँ मिल गए

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** साथ अपने जहाँ मिल गए। हाथ उनसे वहाँ मिल गए। फ़ासलों का पता न चला, रास्ते कब कहाँ मिल गए। कट गया मुश्किलों का सफ़र, लोग सब मेहरबाँ मिल गए। जो तलाशे वहाँ दूर तक, वो सभी अब यहाँ मिल गए। था मिलेंगे किसी दौर में, वो इसी दरमियाँ मिल गए। ख़ुश-नसीबी रही वास्ते, फिर से हमकों जवाँ मिल गए। साथ रहकर गए जो निकल, फ़िर वही कारवाँ मिल गए। हाल ऐसा हमारा रहा, सख़्त कुछ इम्तिहाँ मिल गए। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर...
नया साल
कविता

नया साल

वीणा मुजुमदार इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मैं क्यूं अलविदा कहूं बीते साल को वही कल नया साल दिखलायेगा लम्हा-लम्हा करके वक्त गुजरता जायेगा इक वक्त बाद बीता साल कहलायेगा। जो मेरे संग संग हैं उन्हें मुबारक नया साल जिन्हें खो दिया गत में रहेगा उनका मलाल। कुछ मिश्रित यादों भरा याद रहेगा गुजरा साल कुछ ने खींची टांगे और निकाली बाल की खाल। कुछ अनुभव तीखे मीठे थे कुछ थे खट्टे कड़वे नये वर्ष के नये अनुभव हों सारे मीठे मीठे। कुछ प्यारे पल मिले औ कुछ ग़म भरी यादें कुछ पलों ने किये नये साल में मिलने के वादे। गलती हुई हमसे ग़र कान पकड़कर माफ़ी दे दो कान न पकड़ेंगे हम दोबारा हमसे तुम वादा ले लो। इस ठंडे मौसम में चलो कुछ गर्मी लायें रिश्तों की गर्माहट में नया साल मनायें। परिचय : वीणा मुजुमदार निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करत...
अलविदा
कविता

अलविदा

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** बीत गया जो, बीत गया वह, आगत का सत्कार करो। नूतन का करके अभिनंदन, जाते से भी प्यार करो।। कहीं तिमिर, तो कहीं उजाला, सूरज है तो रातें हैं। सुख,विलास है, तो बेहद ही, दुक्खों की बरसातें हैं जीवन फूलों का गुलदस्ता, हर पल को उपहार करो। नूतन का करके अभिनंदन, जाते से भी प्यार करो।। एक साल जो रहा साथ में, वह भी तो अपना ही था। हमने जो खुशहाली सोची, वह भी तो सपना ही था।। दुख, तकलीफें, व्यथा, वेदना, कांटों का संहार करो। नूतन का करके अभिनंदन, जाते से भी प्यार करो।। यही हक़ीक़त यही ज़िन्दगी, है बहार तो वीराना। कभी लगे मौसम अपना-सा, कभी यही है अंजाना।। आशाओं का दामन थामो, अवसादों पर वार करो। नूतन का करके अभिनंदन, जाते से भी प्यार करो।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी : मं...
स्वागत गान
गीत

स्वागत गान

डॉ. अर्चना मिश्रा दिल्ली ******************** ये साल, ये पल फिर बीतने वाला हैं नववर्ष नव आग़ाज़ करने वाला हैं क़ही मुक्कमल मुलाक़ातें होगी, तो कहीं ढेरों बातें होंगी, कहीं तन्हाई की बस्ती भी होगी, कहीं ग्रहों की चाल भी बदलेगी, देश दुनिया में अलग ही धूम होगी, नए रिश्तें भी बनेगे तो कई अपने भी छूटेंगे, इन सब से दूर कुछ विरक्त लोगों के लिए सिर्फ़ कैलेंडर ही बदलेगा, ये साल कुछ ख़ास होगा जिसका था इंतज़ार वही काम होगा कुछ रंग भरूँगी अपनी कल्पनाओं में ज़्यादा कुछ उड़ान लम्बी होगी, मानसिक शांति मनोकूल होंगी, हृदय की पीड़ा शायद लम्बी होंगी सोच को नया मुक़ाम मिलेगा अपनी भी बुलंदियों में एक नाम होगा नववर्ष सिर्फ़ मेरे लिए मात्र कैलेंडर बदलना नहीं अपने भीतर अनंत जिजीविषा भरकर एक हुंकार भरूँगी मरी हुई आत्मा को फिर से जीवित करूँगी, नूतन नववर्ष का अभिनंदन कर...
हर कण में मैं हूँ
भजन

हर कण में मैं हूँ

अनुराधा प्रियदर्शिनी प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** मुझको भला क्यों ढूंढ रहे हो कण-कण में मैं ही बसता हूँ साँझ-दिवस घनघोर दुपहरी जड़- चेतन में मैं ही रहता हूँ हर पल हर घड़ी में रहता हूँ समय का चक्र भी मैं ही तो हूँ घनघोर अंधेरा और प्रकाश में राह सभी को मैं दिखलाता हूँ अंतस में साथ तुम्हारे रहता हूँ सत्य का भान सदा करवाता हूँ मुझको सुन लो अपने भीतर बातें तुमसे हर पल मैं करता हूँ जंगल के वीराने में भी मैं हूँ हाट-बाजार के शोर में मैं हूँ तनहा कब छोड़ा है तुमको हर पल साथ तुम्हारे मैं हूँ परिचय :- अनुराधा प्रियदर्शिनी निवासी : प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छा...
महात्मा गांधी
कविता

महात्मा गांधी

गगन खरे क्षितिज कोदरिया मंहू (मध्य प्रदेश) ******************** हे राम जीने की जीवनशैली को परिपूर्ण कर समाज राष्ट्र को नई दिशा देकर, राम जो ईष्ट है हम सबके अन्तर आत्मा से उनकी अंतिम सांसों से निकला, बापू महात्मा गांधी से अमर वाणी बनकर हे राम, हे राम, हे राम भारत की अन्तरात्मा में बस गए है। एकता, अखंडता, धर्मनिरपेक्षता सनातनधर्म की पहचान बनें इंसानियत को सर्वोपरि रखा चल पड़े सबको जोड़ने, जुड़ने स्वतंत्र भारत के लिए जनहित में, देशहित में, हिंसा के खिलाफ थे अंहिसा से जीत लिया भारत को प्रगतिशील भारत की नींव रखी इसलिए आज भी भारत की अन्तरात्मा में बस गए। मां का स्वरूप लिए उनका पूरा साथ दिया पत्नी ने सारथी बन अग्रणीय रही मां कस्तूरबा गांधी उन्हें कभी अपने पथ से विचलित नहीं होने दिया गगन मातृभूमि के लिए, स्वतंत्र भारत के लिए अपनी जिम्मेदारियों कभी पिछे नहीं ...
हर्फ़-हर्फ़ जानने से
ग़ज़ल

हर्फ़-हर्फ़ जानने से

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** हर्फ़-हर्फ़ जानने से ही कहाँ बना करती है ग़ज़ल । है इसके लिए तो पर्त-दर-पर्त रूह में उतरना होता ।। मिलतीं रहीं निग़ाहें सजती रही ग़ज़ल । रुख़सार झलक जाए बनती रही ग़ज़ल ।। साँसों में भरके निक़हत उतरे सुरूर दिल में । ज़ज़्बात मचल जाए उड़ती रही ग़ज़ल ।। बर्दाश्त करे कब तक कोई लू के थपेड़े । कुरब़त में उलझ जाए छलती रही ग़ज़ल ।। शिकवे-गिले वफ़ा के दोनों के दरमियाँ बस । अरमाँ बिखर जाए पिसती रही ग़ज़ल ।। नजरें बचा-बचा के अदा गुफ़्तगू करे है । महफ़िल में गज़ब ढ़ाये जमती रही ग़ज़ल ।। छोटी सी ज़िन्दगी के किस्से हैं अनगढ़े से । बिन बात बहक़ जाए चलती रही ग़ज़ल ।। बे-क़ैफ़ी कैसी भी हो हाँ तंज़ नहीं करना । अश्आर सँवर जाए कहती रही ग़ज़ल ।। मिलतीं रहीं निग़ाहें सजती रही ग़ज़ल । रुख़सार झलक ...
दर्प दलन
कविता

दर्प दलन

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** भारत भू पर खिली ज्योत्सना बन यामिनी की रानी मंद-मंद पवन इतराती भारत मां की बन दासी। पाकर वीर जवान निराले वसुंधरा है मदमाती मस्ताने वीरों से सजी है भारत भाल की थाली। निकली यहां से वीरांगनाएं लेकर ढाल कटार गद्दारों को मार मार कर हुईं स्वयं निढ़ाल झुका नहीं पर मस्तक इनका बैरियो के दर्प में दर्प दलन कर दम लिया भारत मां के वीरों ने। राणा झांसी के चेतक उछले उछाल दिए भीम बनकर बैरियों के शस्त्र खोटे चंद्र, दास, रवि की रचना वितरित हुईविश्व विस्तार में गांधी, बोस, भगत सिंह का बलिदान अपार था संसार में। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ ...
नववर्ष
धनाक्षरी

नववर्ष

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** मनहरण घनाक्षरी शुभ नववर्ष आया, संग में खुशी हैं लाया, सभी देशवासी मिल, इसको मनाइए। बीत गया है जो साल, कर गया वो कमाल, उससे लेकर सीख, जीवन सॅंवारिए।। तेज गति हो विकास, मन में है यही आस, सारे जग में भारत, को आगे बढ़ाइए। दुखियों के पीर हरें, काम सब शुभ करें, *राम*एक दूसरे को, गले से ‌ लगाइए।। परिचय :- रामसाय श्रीवास "राम" निवासी : किरारी बाराद्वार, त.- सक्ती, जिला- जांजगीर चाम्पा (छत्तीसगढ़) रूचि : गीत, कविता इत्यादि लेखन घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानिय...
आओ संकल्प करें
कविता

आओ संकल्प करें

निरूपमा त्रिवेदी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** अद्वितीय संस्कृति अनुपम नववर्ष वंदन अभिनंदन करें हम अतिहर्ष सहज प्रेम मानवता का हो उत्कर्ष घृणा-द्वेष दानवता का हो अपकर्ष मानव मानव का बने सच्चा मित्र नैतिक मूल्यों से महके सबका चरित्र खुशियों के घर-घर गूंजे मंगल गीत अपनों के अपनेपन भरी हो रिश्तो में प्रीत सेवा- सत्कार करें हम पूर्ण मनोयोग एक-दूजे संग हो सामंजस्य - सहयोग शुभ मंगल से हो नित- नित संयोग कर्मशील श्रमसाधक बन करें कर्मयोग दिनचर्या में सम्मिलित हो प्राणायाम योग स्वस्थ निरोगी काया हो सताए न कोई रोग परिष्कृत विचारों से भरा हो मन व्योम शुद्ध सात्विक आहार का हो उपयोग परिचय :- निरूपमा त्रिवेदी निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप ...
मना लेते है…
कविता

मना लेते है…

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** नजारा देखकर यहाँ का दिल रुकने को कहता है। फूलो के बाग में देखो भंवरा कुछ कहता है। तभी तो झूलते फूलों से महक बहुत आती है। जो मोहब्बत करने वालों को बहुत ही लूभाती है।। फूलों की किस्मत को देखो मोहब्बत हम करते है। पर देखो होठों का स्पर्श मिलता है इन फूलों को। तभी तो दिल में हमारे एक हलचल सी होती है। जो मोहब्बत का प्रतीक इन फूलों में दिखता है।। खिलते फूल डोलते भंवरे मोहब्बत को खोजते है। और मोहब्बत करने को फूलों के बाग चुनते है। बड़े ही किस्मत वाले है ये बगीचे के फूल देखो। मोहब्बत हम करते है पर श्रेय फूल ले जाते है।। फूलों की किस्मत का हम अंदाज लगा नहीं सकते। बहुत कोमल होकर भी कभी ये खिलने से नहीं रोकते। और अपना फर्ज निभाने से कभी भी पीछे नहीं हटते। इसलिए देकर फूलों को मना लेते है रूठों को।। ...
नूतन वर्ष मंगलमय हो
कविता

नूतन वर्ष मंगलमय हो

हरिदास बड़ोदे "हरिप्रेम" गंजबासौदा, विदिशा (मध्य प्रदेश) ******************** नूतन वर्ष मंगलमय हो, सारा जहां रोशन रहे। दिन दुनी रात चौगुनी हो, खुशियों की सौगात रहे। पुलकित मन सबका हो, ऐसा मन में विश्वास रहे। खुशियों भरा जीवन हो, भाईचारे का विस्तार रहे। इच्छाओं की पूर्ति हो, शतबुद्धि हमारे पास रहे। धन संपदा घर में हो, सुख समृद्धि का वास रहे। फूलों की तरह महक हो, गुलिस्तां का बागवान रहे। प्रेमभाव और समागम हो, सदा ईश्वर का वरदान रहे। मूलमंत्र है सहज जीवन हो, सद्द्विचारों का सम्मान रहे। नववर्ष की पावन बेला हो, अनुपम रिश्तों में सुधार रहे। परिचय :-  हरिदास बड़ोदे "हरिप्रेम" निवासी : गंजबासौदा, जिला- विदिशा (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविता...
नववर्ष का उपहार
कविता

नववर्ष का उपहार

अनुराधा प्रियदर्शिनी प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** कोहरे की चादर फैली थी जीवन में हो गया विहान सूरज आया चौबारे में आनन विहँसा कमल समान। हौले-हौले किरणें बिखरीं छँटी धुंध था स्वर्णिम काल उजला-उजला लगा दीखने रक्तिम पुष्प खिला ज्यों ताल। मादक सुगंध के प्रसरण से महक उठे गृह के कोने गौरीसुत ने आशीष दिया तन-मन के कष्ट लगे खोने। पुष्पमाल गज कण्ठ विलग ज्यों गिरे धरा पर अभयदान ऐसे ही तन-मन शून्य हुआ मिल गया तोष जीवन समान। अरुण अरुणिमा तन पर धारे गोदी में था अति प्रिय लाल मैं नेत्रांभूषित वात्सल्य भरे निरख रही ज्यों विजय माल। उपहार भरा मेरा जीवन तू वत्स! प्रफुल्लित पुष्पित हो आशीष मातृ का तुझको है सूरज-सा हर पल गौरव हो। परिचय :- अनुराधा प्रियदर्शिनी निवासी : प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुर...