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पद्य

सातों जन्म मांगती तुझको हूं
कविता

सातों जन्म मांगती तुझको हूं

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** क्या हुआ मुझे दिया नहीं कभी लाखों का हार, पर जीवन के हर पल को माला में संजोया है। क्या हुआ मुझे कभी दिया नहीं कीमती उपहार पर अपने जीवन के कीमती पल मेरे नाम किए हैं। क्या हुआ कभी मुझे महंगी साड़ी गिफ्ट नहीं की पर हमारे रिश्तो को एक-एक धागे में पिरोए रखा है। क्या हुआ ऊंचे महलों में नहीं बिठाया कभी हमें पर छोटे से घर की एक-एक ईंट में प्यार भर दिया है। क्या हुआ कभी हम गए नहीं विदेश घूमने तो स्वदेश के हर सुनहरे संगीत से रूबरू करवाया है। कभी किया नहीं झूठा वादा कि ताज महल बनवा दूंगा पर घर के एक कोने में सुंदर सा कमरा हमारे नाम किया है। क्या हुआ कभी हम धन-दौलत से भरा नहीं हमारा घर प्यार भरपूर देकर हमें रहीस बना दिया है। दुनिया से अलग है मेरे हमसफर झूठे वादे करते नहीं मुझे हमेशा खुश रखते हैं हमारे लिए वही...
शिक्षा व्यवस्था
कविता

शिक्षा व्यवस्था

शशि चन्दन इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** शिक्षा जीवन का सार है, संस्कारों का मीठा संसार है, आत्मा का परमात्मा से मिलन का... एकमात्र यही सच्चा द्वार है।। दिनचर्या हो कैसी, व्यवहार हो कैसा, कोरे मन पे लिखो बस न ऐसा वैसा.. कलम ही सारथी बेड़ा लगाती पार, शिक्षा ना खरीदी जाती देकर पैसा।। भगवान राम कृष्ण भी पढ़े गुरुकुल में, सर्व शिरोमणी बने तब रघुकुल में..। जीवन ज्योति के आखर आखर जोड़, गीताधारी कहलाए जगतकुल में।। युग बीते परिवर्तन हुए बदली नियमावली, विद्या मंदिरों में लगने लगी हाट बाजारों की गली, विद्यार्थी जीवन सिमटने लगा किताबों में.. मां सरस्वती की वीणा रूदन कर विदा हो चली।। आधुनिक शिक्षा व्यवस्था चलती ठेकों पे, कलम से कलाम बनना हुआ दूर, परीक्षा उत्तीर्ण होती आज नेगों से....।। ज्ञान का प्रकाश नहीं.. लाचारी भरी शिक्षकों की जेबों में....।। देश के ...
ज़िन्दगी मुश्किल भरी बनाई हैं
कविता

ज़िन्दगी मुश्किल भरी बनाई हैं

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** बढ़ रही ब्याज दरें देश में अब हमारें हैं, महंगाई के रिकार्ड टूट रहे अब सारे हैं, दस लाख करोड़ से ज्यादा बट्टे खाते में डाले हैं, हजारों करोड़ों डकारने वालों के दिन खुशहाल कर डाले हैं, आम जनता को सिलेंडर,पेट्रोल खरीदने के पड़े हैं लाले हैं, महंगाई से जनता के निकले हैं पड़े दिवाले हैं, बरोजगारों की देश में फ़ौज बढ़ती है जा रही, धीरे धीरे बात अब जनता के समझ में है आ रही, मध्यम परिवार के लिए दिन आफ़त भरे आएं हैं, हर महीने बढ़ाकर ई एमआई जनता के दिल दुखाएं हैं, पढ़ाई हो रही दिनों-दिन महंगी अंकुश ना सरकार का, भुखमरी में करवा दिया विश्व पटल पर आंकड़ा सौ के पार का, पढ़ो-लिखों पकोड़े तलों की स्कीम सरकार ने चलाई है, अब तो पकोड़े तलनें वालों की बाढ़ देश में आई है, क्या टीवी की नफ़रत वाली डिबेटों से पेट भर जाए...
ऋण
कविता

ऋण

महेश बड़सरे राजपूत इंद्र इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** खड़ा हूं इस मातृभूमि पर ऋण जाने कितनों का सर है। आज बड़ा मैं अभिभूत हूं आशीष बड़ों का भर-भर है। माता-पिता-भाई-बहनों का, ऋषियों और गुरुजनों का, शेष बचे कितने प्रखर है? ऋण जाने कितनों का सर है। जात-समाज और पित्रों का, सहपाठी, बंधु-मित्रों का, जिनके कारण 'इंद्र' निडर है, ऋण जाने कितनों का सर है। जल-अग्नि-वायु-आकाश और भूमी का मुझमें वास, इनसे ही तो हम नश्वर है, ऋण जाने कितनों का सर है। आज जन्मदिन पर याद करूं, मन-बुद्धि-कर्म अर्पित करूं, ऋण जितनों का भी सर है, इस जनम चुकाने का अवसर है। इस जनम चुकाने का अवसर है। परिचय :- महेश बड़सरे राजपूत इंद्र आयु : ४१ बसंत निवासी :  इन्दौर (मध्य प्रदेश) विधा : वीररस, देशप्रेम, आध्यात्म, प्रेरक, २५ वर्षों से लेखन घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित ...
श्रमिक देव
कविता

श्रमिक देव

दिनेश कुमार किनकर पांढुर्ना, छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) ******************** जिनके लघु स्वेद कणों से, मिट्टी भी सोना हो जाती है, जिनकी भुजाओं के बल से, नई ज्योत्सना खिल जाती है!... ऐसे श्रम वीरों ने सदा से, धरती का रूप सँवारा हैं, हल, हथौड़ा, हँसिया से, मोड़ी इतिहास की धारा हैं!... इन्होंने दुनिया को सदा दिया, वैभव ऐश्वर्य सुख सुविधाएं, और बदले में सदा पाया हैं, आंसू क्रंदन अभाव पीड़ाएँ!.... धनपतियो का सारा वैभव, इनके श्रम पर टिका हुआ है, धरा का सम्पूर्ण निर्माण भी, इनके ही हाथो तो हुआ है!... भौगोलिक सीमाओ से परे, ये अनवरत सृजन करते जाते हैं, परं देवतुल्य श्रमिक कहीं भी, इसका भोग नही कर पाते हैं!... परिचय -  दिनेश कुमार किनकर निवासी : पांढुर्ना, जिला-छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र :  मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौ...
मंजिल
कविता

मंजिल

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** रास्ता भूल गई या मंजिल ठहर गई मेरे लिए कोई आ गया सफर में या मैं ठहर गई मंजिल के लिए वाकया यार सच है कि सफर कटता नहीं बिना हमसफर के लगता है, कोई हमसफर मिल जाएगा अगले पड़ाव के लिए। सफर में गुफ्तगू का मजा कुछ और ही होता है पराया होते हुए भी हमसफर अपना सा लगता है जिन्हें हम अपना समझे हुए हैं वह दो कदम साथ चलते हैं। बदली जो राह उनकी तेवर भी बदले-बदले लगते हैं ए दिल संभल, गुमान न कर किसी अजनबी का ये वह राहगीर जो ठहरे पानी में चांद सितारे से लगते हैं। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासक...
शहरी/किसान
आंचलिक बोली

शहरी/किसान

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** (अवधि भाषा) भले तू बाट्या बड़ा महानु, बड़ा सा अहै तोहारु मकानु, अही हमु किञ्चौ ना हलकानु, हे बबुआ हमहूँ अही किसानु।। बड़ु सुंदरु रहनि-सहनि तुम्हरा हर मनईन ख़ातिर इकु कमरा बढ़िया तोहार है खानु-पानु मुला लागतु हौ जैसेन बिमरा नूनु-भातु चटनी-रोटी ई हमारु पूरिउ-पकवानु।। हे बबुआ ... तू ए सी मा बासि करौ ठंडाई पी-पी ऐश करौ हमतौ सेंवारी मा घूमी मुला ठंड़ी-ठंड़ी सांसु भरौं फ्रिज कै तू पानी पिअतु अहा हमरौ गगरी मा हउ भरानु।। हे बबुआ ... तू सूटेड-बूटेड बना रहा हरु चौराहे पै अड़ा रहा हमतौ बस खेती-बारी मा चंहटा-मांटी मा सना रहा रूपिया-पैइसा से लदा अहा हमतौ अही मटिया मा धसानु।। हे बबुआ ... तू कामु किहा रूपिया पाया मनमाना सबकछु भरि लाया हमतौ खेते म जरी-मरी तब्बौ हाथे न दिखी माया तू मालु-...
सदा विजय होती है उनकी
कविता

सदा विजय होती है उनकी

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** जिनमें भरा स्वाबलंबन है, वे मुहताज न होते। सदा राज करते दुनिया पर, कभी ताज ना खोते। जो सागर का ह्रदय चीरते, वे मोती पाते हैं। जो गहरे जाने से डरते, बैठे रह जाते हैं। जो फैलाते पंख हवा में, अंबर में उड़ जाते। जो संकल्प करें ध्रुव जैसा, ऊँचाई हैं पाते। कर प्रयास जो सागर को भी, गागर में भरते हैं। उनकी सदा विजय होती है, जो प्रयास करते हैं। रखें इरादे जो फौलादी, सदा सफलता पाते। तूफानों से जो डर जाते, वे पीछे रह जाते। परशुराम सा तेज धारकर, जो आगे बढ़ते हैं। प्रभु की कृपा प्राप्त कर पंगु, उच्च शिखर चढ़ते हैं। वादा करें स्वयं से पक्का, रक्खें अटल इरादा। सारे काम करें दृढ़ता से, मिले भाग्य से ज्यादा। जो अपना पुरुषार्थ जगाकर, पौरुष दिखलाते हैं। पथरीली राहों पर चलते, वही शिखर पाते हैं। ...
निजी बयान है
हास्य

निजी बयान है

किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया (महाराष्ट्र) ******************** पार्टी के पदाधिकारी को बयान देने बोलता हूं तीर निशाने पर लगे तो सही है बोलता हूं कोई विवाद हो जाए तो प्लान बदल देता हूं यह उसका निजी बयान है ऐसा बोल देता हूं शाब्दिक बाण हमेशा स्टॉक में रखता हूं नहले पर दहला मारने बोलता हूं बात बिगड़ गई तो यू-टर्न ले लेता हूं यह उसका निजी बयान है ऐसा बोल देता हूं अक्सर चुनाव के समय बयान तीर से छोड़ता हूं बयान देने वालों की चैनल बनाता हूं दांव उल्टा पड़ गया तो पलट जाता हूं यह उसका निजी बयान है ऐसा बोल देता हूं शाब्दिक दांव-पेचों का खेल खूब खेलता हूं मान-सम्मान गिराने के दांव-पेच खेलता हूं उल्टा चोर कोतवाल को डांटे टेढ़ा पड़ा तो यह उसका निजी बयान है ऐसा बोल देता हूं मेरे धुर विरोधी विचारधारा वाले भी खेलते हैं प्री प्लानिंग से उल्टा सीधा सब बोलते हैं फायदा हुआ त...
भ्रम टूट गया
कविता

भ्रम टूट गया

प्रतिभा दुबे ग्वालियर (मध्य प्रदेश) ******************** अच्छा हुआ दोस्त, जो भ्रम टूट गया साथ होने का तेरा वादा, जो अब छूट गया ।। तुझे बादशाही मुबारक तेरे शहर की, मुझे मेरे गांव का मुसाफिर ही रहने दे।। अच्छा हुआ चलन नहीं रहा अब किसी के विश्वास का खुद के खुदा को आखिर किसी की कोई तलाश कहा।। दोस्ती के लिए तेरा अक्सर, मेरे घर आना, जाना, हम प्याला वक्त के साथ-साथ अच्छा हुआ किताबी बातों की तरह छूट गया।। आज ठोकर खाई है तब जाकर कहीं आज मतलबी दुनिया की ये, दोस्ती समझ आई ।। हमने तो कोशिश की थी रंग जमाने की यारी में, तेरे विचारों की भी कहीं बहुत गहरी खाई थी शायद।। दोस्ती के लिए, कहां रहा गया वह दोस्ताना माहौल पहिले जैसा मैं तो मुसाफिर हूं मेरे गांव का ही, मैंने तेरे शहर आना अब छोड़ दिया।। परिचय :-  श्रीमती प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र ल...
कालांतर
कविता

कालांतर

माधवी तारे लंदन ******************** बड़ी हुई तब एक दिन पूछा अपनी माँ से मैंने, कितनी पीड़ा सह ली तूने देकर हमको छह बहनें? धीरे से तब बोली माता पुरुषों की तब चलती ज्यादा, थी औरत तो केवल अबला कौन सुनता उनकी भला? कालचक्र का घूमता पहिया बदलता गया सारी दुनिया, कुल दीपक की बढ़ती चाह ने नारी मन का छल किया। वंश की वृद्धि, मुक्ति की इच्छा सर पर चढ़ बलवान हुई , तब जबरन भ्रूण हत्या समाज मन पर छाती गई। बुझाकर ज्योति की पवित्र बाती दीपक की लौ जलने लगी, मातृत्व प्राप्ति की सारी खुशियाँ आंसुओं में बहने लगी। अमौलिक कन्या रत्न की कमी जन अनुपात बिगाड़ गई, मानवीयता पाशवी वृत्ति के आगे शर्मसार होती ही गई। नफरत भरी आँधी से सूज्ञ नरों की नींद खुली, भ्रूण हत्या को जाकर तब से अक्षम्य गुनाह श्रेणी मिली। परिचय :- माधवी तारे वर्तमान निवास : लंदन मूल निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश...
बाजारवाद के चंगुल में
कविता

बाजारवाद के चंगुल में

डॉ. अवधेश कुमार "अवध" भानगढ़, गुवाहाटी, (असम) ******************** ऑक्टोपस की कँटीली भुजाओं सरिस जकड़ रहा है सबको व्यापक बाजारवाद जन साधारण की औकात एक वस्तु जैसी है कुछ विशेष जन वस्तु समुच्चय ज्यों हैं हम स्वेच्छा से बिक भी नहीं सकते हम स्वेच्छा से खरीद भी नहीं सकते पूँजीपति रूपी नियंता चला रहा है पूरा बाजार जाने-अनजाने हम सौ-सौ बार बिक रहे हैं किसी और की मर्जी से हम हँसते या रोते दिख रहे हैं आँसू बेचकर भी कई मालामाल हैं हँसी बेचकर भी कई बेमिसाल हैं सब कुछ बिकाऊ है सबके खरीददार हैं इस अंतहीन भयानक पतन के दौर में किसी के भी शुद्ध या बुद्ध होने की आशा न करें सत्य यह है कि- हमारी इच्छाएँ भी नहीं हैं हमारी बल्कि, कठपुतली बनी हुई हैं बाजारवाद के नरभक्षी चंगुल में। परिचय :- डॉ. अवधेश कुमार "अवध" सम्प्रति : अभियंता व साहित्यकार निवासी : भानगढ़, गुवा...
मन खुशी से झूम उठा
छंद

मन खुशी से झूम उठा

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** लावड़ी छंद आज खुशी से झूम उठा मन, कुदरत की है देख छटा। शीत गुलाबी लगी कॅंपाने, अम्बर में है तेज घटा।। बिन बरसात बरसता बादल, चली हवा है पुरवाई। मौसम के इस परिवर्तन से, हुई सभी को कठिनाई।। चिंतित हैं हलधर बेचारे, अन्न अभी है पड़ा कटा आज खुशी से झूम उठा मन, कुदरत की है देख छटा द्वार खड़ा ऋतुराज अभी है, आने को दस्तक देता। पुष्प बांण से वेध हृदय का, सारे संकट हर लेता।। करें प्रतीक्षा गुलशन सारे, उसमें सब का ध्यान बॅंटा आज खुशी से झूम उठा मन, कुदरत की है देख छटा नाच रहा मन मोर हृदय में, कैसी यह शुभ बेला है। खेत और खलिहान भरे हैं, ज्यों खुशियों का मेला है।। लाभ किसी को हुआ अधिक है, और किसी का तनिक घटा आज खुशी से झूम उठा मन, कुदरत की है देख छटा अद्भुत है ईश्वर की लीला, देख चकित सब होते ...
प्रेम विवाह
कविता

प्रेम विवाह

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** आदर्श और संस्कारों की धज्जियां तुम नहीं उड़ाओ बेटी, नहीं तो अपने जिस्म के ३५ टुकड़े, शौक से तुम करवाओ बेटी। तुम क्यों भरोसा करती हो, इन छँलियों और मक्कारो पर, वेश बदलकर आता है रावण सीता को छलने को। मां-बाप की आत्मा को, जब भी तुम दुखाओगी। औलाद कभी सफल नहीं होगी जग में प्रेम विवाहो से। आधुनिकता की चमक में खो गया है इंसान, मर्यादा और आचरण खूंटी पर दीया टांग। फिल्मों की है बेशर्मी से बिगड़ा है इंसान, हीरो-हीरोइन अच्छे लगे क्या आचरण और व्यवहार। माना फैसला आपका, पर चूक न जाए सावधान? जीवन जब धिक्कारता यह गुंडे और बदमाश, नारी तू नारायणी तू है हीरे की खान, जौहरी ही पहचानता, हीरे का हे दाम संस्कार और संस्कृति नई पीढ़ी के लिए अनमोल, इसको तुम मिटाओगे तो आगे की पीढ़ी, क्या जानेगी मोल। परिचय ...
दुहाई
कविता

दुहाई

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** यह रचना भारत-पाक युद्ध के समय सा ७ जुलाई १९६७ को रचनाकार द्वारा लिखी गई है। गीदड़ों की शामत आई जानबूझकर ज्वाला भड़काई पिघल चुका हिमालय अब तो बूंद-बूंद दे रही दुहाई। जागो हिंद के वासी जागो पाक की आई कुर्बानी गंगा-यमुना की धारा में युवान आज मचल उठा है सतलुज का सीना अंतरमन अब डोल उठा है। उसे लगा गंगा काजल आएगा बनकर मेरा सेवक गंगा-जमुना के वीरों ने किया खान को बेबस। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर ...
तेरे चरणों की धूल पाकर मां
कविता

तेरे चरणों की धूल पाकर मां

गगन खरे क्षितिज कोदरिया मंहू (मध्य प्रदेश) ******************** मां तूने मुझे जन्म नहीं दिया संसार में लाकर जो अमृतपान कराया में धन्य हो गया तेरे चरणों की धूल पाकर मां, इस खूबसूरत दुनिया में अमर हो गया। परिस्थितियां चाहे जैसी भी रही मां तूने मुझे जन्म दिया धूप छांव से बचाकर एक नैक इंसान बनाया, मर्यादा में जीना सिखलाया। संसारिक जीवनशैली में परिवर्तन लाकर ईश्वर में आस्था का पाठ पढ़ाकर जीवन दान मां दिया तेरे चरणों की धूल पाकर मैं अमर हो गया। परमसत्य है मां, ईश्वर का स्वरूप है मां, तेरी छवि सबसे है निराली मां, मां सरस्वती शारदा का रूप, अन्नपूर्णा का रूप, जगत जननी तू कहलाई मां, क्या नहीं कहलाई मां निस्वार्थ भाव सार्थक प्रयास, जिज्ञासाओं का गगन प्रतिक व सकारात्मक सोच प्रेरणा देती रही हैं मां तेरे तेरे चरणों की धूल पाकर मैं अमर हो गया। ...
टूटी सब आशाऐं अब तो
गीत

टूटी सब आशाऐं अब तो

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** टूटी सब आशाऐं अब तो, कुंठाएँ बलवान रही हैं मंजिल की क्या करें शिकायत, राहें भी अनजान रही हैं।। दुर्गम पथ हैं जीवन के सब, धूल-धूसरित भी राह़े हैं। ग्रहण लगा है सूरज को अब, छलती अपनो की बाहें हैं।। सासें नित्य हलाहल पीत़ी, घातें भी तूफान रही हैं। टूटी सब आशाऐं अब तो, कुंठाएँ बलवान रही हैं। आहत गीत छंद हैं आहत, हृदय-कुंज में पतझड़ छाया। संकट में माँ का आँचल है, कैसी कलियुग की है माया।। अमावस्य की कालरात्रि है, राहें भी सुनसान रही हैं। टूटी सब आशाऐं अब तो, कुंठाएँ बलवान रही हैं। पश्चिम की इस आंधी में तो नगर गाँव सारे खोये हैं। रक्षक खुद भक्षक बनते हैं, बीज बबूल नित्य बोये हैं।। मर्यादा को भूल गए सब, चालें ही संधान रही हैं। टूटी सब आशाऐं अब तो, कुंठाएँ बलवान रही हैं।। परिचय :-...
आई शिशिर ऋतु
कविता

आई शिशिर ऋतु

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जब शरद ने ली विदाई मस्त शिशिर ऋतु आई पर्णो ने भी ली अंगड़ाई शाखाएँ देखो हैं इतराई ठिठुरन अंग अंग कँपाएँ ऊनी मफ़लर, शाल भाए गुनगुनी धूप में हैं सुस्ताए या रजाई में दुबक जाएँ दिन छोटे, लंबी होती रात ठंडी से कटकटाते हैं दाँत आ जाती है मकरसंक्रांत तिल गुड़ खाने की सौगात गरम चाय व गाजर हलवा केसर दूध, कॉफी व कहवा गोभी, मटर, टमाटर जलवा गुड़ की राब, पीता कलवा दो मासों की होती बहार शिशिर है जाने को तैयार बुलाती रंग बिरंगी फ़ुहार बसंत बहना! खुले हैं द्वार परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्...
नव सृजन
भजन, स्तुति

नव सृजन

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** मानवता की सेवा में लग, तू भी अपना भाग्य जगा ले। ईश्वर है करुणा का सागर, तू भी उसकी करुणा पा ले। मानवता की सेवा... ईश्वर ने करुणा कर मानव तन, मुक्ति के हेतु दिया है। पर माया के दल-दल में, फंसकर हमने दुरपयोग किया है। जो जग माया में उलझे हैं, उनको तू प्रभु धाम दिखा दे मानवता की... जिनको प्रभुका धाम भा गया, प्रभु भक्ति में रम जाएंगे। सुमिरन होने लगा नाम का, तो माया से बच जाएंगे। तीर्थाटन का स्वाद चखाने, को जीवन उद्देश्य बना ले। मानवता की... जिसको प्रभु सम्पन्न बनाता, वो धन का उपयोग करेगा, नहीं बढ़े पग सन्मार्ग पर, तो धन का दुलयोग करेगा तू सन्मार्ग दिखाकर उसको, उसके धन को धन्य बना ले। मानवता की... परिचय :- प्रेम नारायण मेहरोत्रा निवास : जानकीपुरम (लखनऊ) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि म...
मैं स्त्री हूं
कविता

मैं स्त्री हूं

नंदिता माजी शर्मा (तितली) मुंबई, (महाराष्ट्र) ******************** मैं स्त्री हूं, प्रायः घर की देवी भी कहलाती हूं, कहीं प्रताड़ित, तो कहीं पूजी जाती हूं, कहीं मेरा मान सम्मान किया जाता है, कहीं मुझे कोख में ही मार दिया जाता है, कभी बड़े चाव से सोलह शृंगार करते है, कभी भरी सभा में वस्त्र भी हरते है, कभी वंश वृद्धि के लिए सर माथे बिठाते हैं, कभी रहन सहन पर बेबात ही उंगली उठाते है, देख चोंचले समाज के, आ जाता है रोष मुझे, पूछती हूं दर्पण से, क्यों लगा यह दोष मुझे, क्यों मर्यादा की बेड़ी ने, स्त्रियों को ही जकड़ा है, मान की जंजीरों ने पुरुषों को कब पकड़ा है, जिद्दी, अड़ियल, ढीठ, चाहे जो कह लो मुझे, देवी की संज्ञा न दो, बस स्त्री ही रहने दो मुझे। परिचय :- नंदिता माजी शर्मा (तितली) सम्प्रति : प्रोपराइटर- कर्मा लाजिस्टिक्स निवासी : मुंब...
मेला बचपन वाला
कविता

मेला बचपन वाला

शैलेष कुमार कुचया कटनी (मध्य प्रदेश) ******************** बचपन वाला मेला याद आता है पैदल चल कर जाना नदियों को देखना दिल को भाता था... झूला-झूलना तब खास था बचपन की यादो में मेला सबको याद है... गक्कड़ भरता का स्वाद माँ के हाथों का लाजवाब गुड़ की जलेबी... टिक्की, भल्ले का स्वाद गन्ना लाना छील-छील कर दिनभर खाना अब बस यादों में याद है... धूल का मेला में फवार था लेकिन मस्तियां का अंबार था माँ भी कपड़े, कॉकरी जनरल स्टोर्स में व्यस्त... हम भी दोस्तो के साथ मौत का कुआँ जादू में हाथी को गायब करना आर्केस्टा, कव्वाली, नोटंकी का शोर ऐसे ना जाने कितने प्रोग्राम थे... बचपन मे हमारे मेला ही त्यौहार था खिलौने की वैरायटी और नई-नई गाड़ी आंखों को सुकून देते थे... जहाँ लगता था मेला अब वहाँ बिल्डिंगे है तनी हर जगह के मेला की एक अपनी पहचान है... लेकिन बच्चे अ...
गुरु बाबा के गुण गाबो
आंचलिक बोली, कविता

गुरु बाबा के गुण गाबो

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** छत्तीसगढ़ी कविता चलना झंडा फहराबो... गुरुबाबा के गुण गाबो... मानवता संदेश खातिर धाम गिरौधपुरी जाबो... मनखे मनखे सब्बो ऐके समान हे ... सब्बो समान हे ...बाबा ... सब्बो समान हे ... मानुस काया के तो इही ह पहचान हे ... इही ह पहचान हे ...बाबा... इही ह पहचान हे ... ऐके ही खून अउ ऐके ही तो चाम हे.. एक ही चाम हे.. बाबा... एक ही चाम हे.. . चलना नवा बिहान लाबो... चलना तीरथ धाम जाबो.. मानवता संदेश खातिर धाम गिरौधपुरी जाबो... सच के रद्दा बतैइया गुरु घासीदास बाबा हे.. घासीदास संत हे...बाबा... घासीदास संत हे.. जीव हतिया रोकैइया बाबा मांहगू के लाला हे.. मांहगू के लाला हे... बाबा... घासीदास बाबा हे.. सतनाम के संदेश बगरैइया अमरौतिन के दुलरवा हे.. अमरौतिन के दुलरवा हे...बाबा... घासीदास बा...
नवा साल के अगोरा
आंचलिक बोली, कविता

नवा साल के अगोरा

परमानंद सिवना "परमा" बलौद (छत्तीसगढ) ******************** छत्तीसगढ़ी कविता सगा बरोबर सब रददा देखत हे, नवा जिनगी शुरु करें बर अगोरा करत हे, जम्मो जन नवा साल के आगोरा करत हे.! नोनी बाबु नवा साल बर पिकनिक मनाये के तैयारी करत हे, नवा जोड़ी शादी के बंधन में बंधे के अगोरा करत हे.! नवा साल सबके जीवन में मंगल हो, हर गांव में नचई-गुदई अउ सत्संग के तैयारी चलत हे.! नवा साल मा प्रेमी-प्रेमिका अपन प्रेम के इजहार करें बर अगोरा करत हे, नवा साल मा सब अपन जीवन मा परिवर्तन करें के अगोरा करत हे.! जम्मो जन नवा साल अगोरा करत हे.!! परिचय :- परमानंद सिवना "परमा" निवासी : मडियाकट्टा डौन्डी लोहारा जिला- बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कह...
अंतिम छोर
कविता

अंतिम छोर

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** बाबुल के नैनो की प्यारी आज चढ़ी है बलिवेदी पर लालची मानव तू धिक्कार मन में संजोकर पी का प्यार। मजबूरी है नाम जिसका वह बेटी कहलाती है। सह, शक्कर अनेक ताने सताई जाती है बार-बार। मन में संजोकर पी का प्यार।। बाबुल का घर आंगन छोड़। अंग अंग लाल चुनरिया ओढ़ मुड़ मुड़कर देखती घर आंगन का अंतिम छोर। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से जुड़ी हैं...
सोचो कितना अच्छा होता
कविता

सोचो कितना अच्छा होता

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** बादल ने बूंदें बरसाता हो धरती अँगड़ाई ले देखकर शरमाकर ओढ़ ले झट से हरी चुनरिया फूलों वाली चहुँ ओर लहराए चूनर ये हर खेत तरु डाली डाली सोचो कितना अच्छा होता उखड़े कभी न साँसें धरा की प्राणवायु वायु से पूरित हो रक्षाकवच हरियाली का हो दरकती दरारें दूर हो सभी पौधारोपण चहुँ ओर हो जगतजननी खुशियाँ पाती सोचो कितना अच्छा होता देख हरे भरे वन जंगल रिमझिम बरखा आती हो धन धान्य फल फूलों से आँचल भू का भर देती हो जुही चमेली चम्पा नाचे मोर पपीहा कोयल गए सोचो कितना अच्छा होता एक ही छत बिन दीवारों के मात पिता व भाई बहन हो पड़ोसियों से गुफ़्तगू हो सब अच्छे सब अच्छा हो बैर ईर्ष्या स्वार्थ नहीं हो व्यसन की बात नहीं हो सोचो कितना अच्छा होता विश्वबन्धुता व भाईचारा वसुधैव कुटुम्बकम हो यूक्रेन रूस से झगड़े न हो हिरोशिमा नागास...