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कहानी

शिक्षा
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शिक्षा

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************  "वाह भगवान आपने मेरी अर्जी सुन ली। इसलिए शुक्रिया अदा करता हूं।" बहू, आज कुछ मीठा बना लेना भोजन में।' बाबूजी प्रार्थना तो भगवान ने मेरी सुनी है। रोज पीछे पड़ती थी। डिग्री बहुत सी हो या फिर अकल तेज तर्राट हो। "अरे बेटा जो हुआ अच्छा हुआ ना।" दर्शन भी नयी नौकरी पा कर बहुत खुश थे। आज कम्पनी जाॅईन कर घर लौटे थे। आते ही आदेश देते जा रहे थे...... हमने कम्पनी के पास ही, पाॅश काॅलोनी में फ्लेट ले लिया है‌। हां वहां आरज़ू नाम का लड़का है। उसे पेकिंग का काम सौंप दिया है। उससे काम करवा लेना, और जरा फ्लेट के नल पाइप बिजली तथा रसोई घर की व्यवस्था में सुधार चाहिए तो देखने चलना है, तैयार रहना। दर्शना देवी सी मूक हो दर्शन को देख रही थी। दो दिन में कितना बदल गया है। कितना आत्म विश्वास आ गया है सारे व्यक्तित्व में! चेहरा भी रौबदार हो गया है। हा...
तुम्हारे पत्र
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तुम्हारे पत्र

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** गगन का मन आज बहुत उदास था। वह कई साल बाद इस महानगर में लौट रहा था। इस नगर से उसके जीवन की बहुत सी यादें जुड़ी थी। वक्त कैसे गुजर जाता है, पता ही नहीं चलता? गाड़ी बहुत तेज गति से दौड़ रही थी। एक के बाद एक स्टेशन पीछे छूटता जा रहा था। गाड़ी को भी आज अपनी मंजिल पर पहुंचने की जल्दी थी। हर स्टेशन पर गाड़ी कुछ देर रुकती। वह मन ही मन सोच रहा था। इतना अधिक भीड़-भड़ाका, धक्का-मुक्की तो सिर्फ भारत जैसे घनी आबादी वाले देश में ही संभव है। ऐसा नजारा और कहीं देखने को नहीं मिल सकता। गाड़ी फिर अगले स्टेशन के लिए धीरे-धीरे चल पड़ी। पर जल्दी ही गाड़ी ने रफ्तार पकड़ ली। हर स्टेशन से कई अजनबी चेहरे गाड़ी में चढ़ते और उतरते। भारत ही संसार का सबसे अनोखा देश है। जहां पर इतनी विभिन्नता पाई जाती हैं। यहाँ पर हर तरह का मौसम पाया जाता हैं। प्राकृतिक सौ...
क्या वाकई दूर बैठी हैं बहनें?
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क्या वाकई दूर बैठी हैं बहनें?

कार्तिक शर्मा मुरडावा, पाली (राजस्थान) ******************** आजकल आवागमन के इतने सुगम साधन होने के बावजूद भी बहने अपने मायके नहीं आ पाती वो इसलिए कि अब उनका खुद का घर परिवार बच्चे संभालने होते हैं आज के परिवेश में स्थितियां भी बदल गई प्यार और अपनत्व ने भी उस डोर से किनारा कर लिया ननद ने भाभी को फोन करके पूछा कि भाभी मैंने जो राखी भेजी थी मिल गई क्या आप लोगों को भाभी ने कहा नहीं दीदी अभी तक तो नहीं मिली ननद बोली ठीक है भाभी कल तक देख लो अगर नहीं मिली तो मैं खुद आ जाऊंगी राखी लेकर अगले दिन भाभी ने खुद फोन किया और कहा कि हां दीदी आपकी राखी मिल गई है बहुत अच्छी है धन्यवाद दीदी ... ननद ने फोन रखा और आंखों में आसूं लेकर सोचने लगी कि भाभी मैंने तो अभी राखी भेजी ही नहीं और आपको मिल भी गई रिश्तों को सिमटने और फिर टूटने से बचाएं क्योंकि यह रिश्ते हमारे जीवन के फूल हैं जिन्हे ईश्वर ने ह...
मेरा पहला सावन
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मेरा पहला सावन

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** उसका चेहरा मुरझाया हुआ था। वह पिछले दो दिनों से उदास थी। माँ भी बेटी के कारण परेशान थी। अभी शादी को कुछ ही महीने हुए थे। क्यों बेटी, क्या बात है? झुमरी की आंखों से आंसू झर-झर बहने लगे। यह आंसू खुशी के थे। वह शर्माते-शर्माते बोली, माँ उनकी बहुत याद आ रही हैं। माँ झुमरी की बात सुनकर हँसे बिना ना रह सकी। क्या सचमुच झुमरी? झुमरी आगे कुछ ना बोल सकी। वह चुपचाप दौड़तीं हुई अपने कमरे में चली गई। उसने कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया। माँ बहुत हैरान थी। वह मन ही मन सोच रही थी कि उसकी बेटी पागल हो गई हैं। इतने समय बाद अपने घर आई है। पर उसका मन कहीं----। फिर वह खुद के ही माथे पर हाथ मारकर हँस पड़ी। झुमरी शादी के बाद से बहुत खुश रहती थीं। यहाँ आने का तो नाम तक नहीं लेती थीं। ऐसा भी क्या, पति मोह! वह झुमरी के कमरे के पास जाकर खड़ी ह...
बीस साल बाद
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बीस साल बाद

सुधा गोयल बुलंद शहर (उत्तर प्रदेश) ******************** "बीजी, देखो मेरा करनू घर लौट रहा है पूरे बीस साल बाद। मैंने एक ही नजर में पहचान लिया। जरा भी नहीं बदला है। सुलेखा-सुचित्रा, तुम भी देखो। "खुशी से उछलती कूदती अखबार हाथ में लिए सावित्री अंदर भागी। "सवि पुत्तर, कौन करनू? तू किसके लौटने की खुशी में पागल हो रही है। यहां तो कोई करनू नहीं है। "बीजी ने आश्चर्य से पूछा। "देखो, वहीं करनू जो बीस साल पहले गुम हो गया था। "कहते हुए सावित्री ने अखबार बीजी के सामने फैला दिया और अंगुली से इशारा कर करनू का चित्र दिखाने लगी। उसकी आंखों में उमड़ी खुशी छुपाए नहीं छुप रही थी या कि बाहर आने को मचल रही थी। उसने बीजी के सामने से अखबार उठाया और करनू के चित्र को पागलों की तरह चूमने लगी। ये सब देख कर बीजी के दिल में घंटियां सी बजने लगीं। वे फौरन समझ गई कि सावित्री क्या कहना चाह रही है। करनू के म...
अकाट्य कर्मफल
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अकाट्य कर्मफल

डॉ. भोला दत्त जोशी पुणे (महाराष्ट्र) ******************** प्राचीन समय में एक राजा उदार, न्यायप्रिय और भगवद्भक्त था। भगवद्भक्त होने के कारण उसने महल की पूर्व दिशा में भगवान विष्णु का मंदिर बनवाया था | राजा अपने व्यस्त कार्यों के बावजूद ईश्वरचिंतन के लिए समय निकालता था एवं मंदिर में बैठकर मनन करता व कुछ समय के लिए ध्यान में खोये रहता था | काफी महीनों तक ढूँढने के बाद उसे मंदिर के लिए एक धर्माचारी ब्राह्मण मिल गया जो मंदिर की जिम्मेदारी संभाल सकता था | वह ब्राह्मण भी बड़ा ही संतोषी और ईश्वर का परम भक्त था | वह स्वतंत्र रूप से पूजा का काम करता था | राजा उसके काम और स्वभाव दोनों से ही खुश थे | एक दिन राजमहल में काम करने वाली दासी के मन में लालच आ गया था क्योंकि उसने सफाई करते समय कमरे में रखे हीरों के भंडार को देख लिया था | चोरी के कठोर दंड के बारे में दासी को जानकारी थी फिर ...
कांटो की चुभन
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कांटो की चुभन

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** कुसुम का रो-रो कर बुरा हाल था। सुबह से ही सारा परिवार गम में डूबा हुआ था। पतिदेव मुझें बार-बार समझा रहे थे। अब रोने से कुछ नहीं होगा। जल्दी चलने की तैयारी करो। लंबा सफर है बंटी की तबीयत बिगड़ गई हैं। जल्दी करो गाड़ी आ गई हैं। सफेद रंग की कार देखकर मेरा माथा ठनक रहा था। कहीं कोई अपशगुन तो नहीं हो गया। पता नहीं बंटी को क्या हो गया हैं? परसों ही तो मुझसे मिलकर गया था। उस समय वह बिल्कुल स्वस्थ लग रहा था। रुपयों के लेन-देन को लेकर कुछ कहा-सुनी हो थी इनसे। मुझें दोनों ने ही कुछ भी नहीं बताया था। बंटी से पूछने की हिम्मत नहीं थी। और ये तो कुछ भी बताने को तैयार नहीं थे। जब इनसे बातचीत करने की कोशिश की तो सिर्फ इतना ही बोले थे। धन-दौलत, पैसा,जमीन-जायदाद बड़ी खराब चीज होती है। किसी के पास ज्यादा हो तो परेशानी, ना हो तो भी परेशानी। ...
रंगमंच
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रंगमंच

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** नाटक और अभिनय के शौकिन रघुवीर जी आज शांत मुद्रा में लाॅन में बैठे थे। मौन चिंतन में मग्न थे। वे अपने अतीत की रमणीक स्मृतियों में विचरण करने लगे। रंगमंच से उपजा प्यार कब स्नेह पाश में बंध गया पता ही नहीं चला था। सीमा के साथ गृहस्थी की गाड़ी सुख से चलाते पचास साल गुजर गये थे। वाह ! 'सभी प्रकार के रोल अदा करने के बाद 'उम्र ने भी आराम करने का संकेत दे दिया था।' लेकिन रघुवीर का मन अभी भी अभिनय करना चाहता था। उन्हें याद आया, पत्नी सीमा भी बार बार कहती हैं, अब नाटक देखने नहीं जाना चाहिए और रंगमंच पर अभिनय भी नहीं करना चाहिए। उठने, बैठने, चलने में होने वाली तकलीफ कहती हैं रघुवीर जी अब घर में आराम करो। सीमा जानती है टीवी पर आने वाले नाटक, शहर के बड़े हाॅल में रंगमंचित नाटक देखना ही इनका जीवन था। अपने नाटक के हुनर को दिखाने के लिए जब-तक रंगम...
बदलता वक्त… बदलते लोग…
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बदलता वक्त… बदलते लोग…

अरविन्द सिंह गौर इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** राकेश के पिता का देहांत १० वर्ष की उम्र में ही हो गया वह गांव में रहता था। उसकी मां ने उसे शहर लाकर पढ़ाने के लिए सब जमीन जायदाद छोड़कर वो शहर में आ गए और उसकी जमीन जायदाद पर उनके रिश्तेदारों ने कब्जा कर लिया। इस बीच जब थोड़ा बहुत समझदार हुआ तो उसने अपने गांव जाकर अपनी जमीन जाकर को देखनी चाही‌। राकेश की जमीन में अच्छी पैदावार नहीं होती थी पर वहां नहर निकलने के कारण वह जमीन पर अच्छी पैदावार होने लगी कीमत भी बढ़ गई। जब वह अपने गांव गया तो उनके रिश्तेदारों ने उसे जमीन कि कागजात भी दिए ना ही जमीन के पैसे भी दिए और उन्हें उल्टा मारने की धमकी दी इस कारण वह वापस शहर में आ गए। वक्त बदलता गया पढ़ाई करके राकेश सरकारी महकमे में बड़ा अधिकारी बन गया था उसकी शादी हो गई और शहर में उसने अपना स्वयं का बड़ा मकान बना लिया था। राकेश के ए...
बदलाव निश्चित है चाहे समय हो या भाग्य
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बदलाव निश्चित है चाहे समय हो या भाग्य

अतुल भगत्या तम्बोली सनावद (मध्य प्रदेश) ******************** रघु बड़ा उदास लग रहा था। उसके मन में न जाने कैसे कैसे विचार जन्म ले रहे थे जिसका कारण था उसके खेत की फसल। जी तोड़ मेहनत करने के बाद भी अब हर बार उसकी फसल बहुत कम आ रही थी। निराशा उसके मन मे घर बना रही थी। अखबारों में आए दिन किसानों के आत्महत्याओं की खबरें सुन-सुनकर उसका मन पसीजने लगा था, करे भी तो क्या? सामने बेटी ब्याह लायक हो चुकी और बेटा खेती करना नही चाहता उसका मन पढ़ लिखकर अफसर बनने के सपने देख रहा था। कर्जदारों का कर्ज चुकाना है, बेटे जो पढ़ाना है और बेटी ब्याहना है। कैसे होगा सब सोच सोचकर ही वह टूटता जा रहा है। अंततः उसने भी आत्महत्या का विचार बना ही लिया लेकिन वह एक दिन वह अपने परिवार के साथ सुकून से रहना चाह रहा था तभी उसकी पत्नी उसके पास आकर कहने लगी "आप व्यर्थ चिंता करते हो। इस पूरी दुनिया में ...
जीवन के रंग
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जीवन के रंग

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** नीरा का रो-रो कर बुरा हाल था। आज होली के दिन,उसके परिवार पर ये कैसी आफत टूट पड़ी थी? पूरे मोहल्ले में इसी परिवार की चर्चा हो रही थी। सभी नीरा को हौसला देने की जी-तोड़ कोशिश कर रहे थे। पर सब बेकार था। उसने अपना पति खो दिया था। वह उसे बार-बार होली खेलने से रोक रही थीं। पर गगन ने उसकी एक ना सुनी थी। उसे होली खेलने का बहुत शौक था। अब वह उसके सामने खून से लथपथ पड़ा था। उसे लाल गुलाल बहुत पसंद था। हाय! यह लाल रंग। यह गगन को बार-बार उठाने का प्रयास कर रही थी। सास ने उसे खींच कर सीने से लगा लिया। मेरी बेटी मत रो, यह भगवान की मर्जी है। भगवान को हम पर दया क्यों नहीं आई?नीरा रो-रोकर चिल्ला रहीं थीं। माँ का भी रो-रो कर बुरा हाल था। वह भी भगवान से पूछ रही थी? मेरा लाल, मुझसे क्यों छीन लिया? भगवान, मेरे लाल की जगह मुझें उठा लेता। तुझ...
दावत
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दावत

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** हमारे गाँव में एक बूढ़े बाबा थे जिनका नाम बनी सिंह था। जब मैंने उन्हें पहली बार देखा तब में सिर्फ दस साल का था। लोग उनकें बारे में बहुत भला बुरा कहते थे और वास्तव में वे थे भी बहुत बूरे। उनके बारे में एक बात तो प्रचलित थीं कि जब उनका परिवार साजे में रहता था तो वही अपने सभी भाईयों में मुखिया थे और उनके भाई उन पर आंख बंद कर के विश्वास करते थे। एक दिन सभी भाईयों ने मिलकर छ: बिघा जमीन खरीदी और बेनामा कराने सभी भाईयों ने बनीं सिंह जो मुखिया थे उन्हें तहसील भेज दिया और कोई भी भाई उनके साथ नहीं गया।बनी सिंह ने बिना किसी को बताए तीन बिघा जमीन अपने नाम करा ली और घर आकर कह दिया कि मैं पिता जी के नाम बेनामा करा आया। सभी ने कहा चलो अच्छा है, आखिर छ: बिघा जमीन खरीद ली चलो बच्चों के काम आएगी। दिन धीरे-धीरे बितते चले गए, ये तीन भाई थे, ...
सुंदर अहसास
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सुंदर अहसास

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** विनीता रिक्शा में नए घर की तरफ जा रही थी। उसे बार-बार ऐसा लग रहा था किसी की निगाहें उसका पीछा कर रही है। वह भी चाहती थी कि एक बार पलट कर देख लें। पर पता नहीं क्यों उसका मन नहीं मान रहा था? वह रिक्शा वाले से बोली, भैया थोड़ा जल्दी करो। मौसम खराब हो रहा है। ऐसा लग रहा है कोई तूफान आने वाला है। नहीं-नहीं, यह बस तेज हवाएं हैं। आप यहां पर नई है ना। इसलिए यहाँ के मौसम से अनजान हैं। यहाँ, मौसम पल-पल बदलता है। मेरा मतलब यह नहीं था। मैडम पहाडों में तो इस तरह की तेज हवाएं चलती रहती हैं। कभी-कभी तेज हवाओं के साथ तेज बौछारें भी हो जाती हैं। तभी तो यहाँ पर दूर-दूर से लोग घूमने आते हैं। इस शानदार मौसम का आनंद लेते हैं। विनीता, को वह रिक्शावाला कम, गाइड ज्यादा लग रहा था। वह पूरे रास्ते उसे पहाड़ियों के बारे में ही बताता रहा था। उसका सफ...
नीम की मौत
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नीम की मौत

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** आपने बहुत से पेड़ों को घरों में, मोहल्लों में और सड़कों के किनारे खड़े अवश्य देखा होगा। प्रत्येक पेड़ का अपना कुछ न कुछ महत्व होता है। इस कहानी में मैने एक मोहल्ले में खड़े नीम के पेड़ के माध्यम से पेड़ों के महत्व को बताने का प्रयास किया है। गांव सलगवां के राघव मोहल्ले में एक विशाल नीम का पेड़ था। इसके अलावा पूरे गांव में कोई पेड़ न था। उसकी बनावट एक छाते कि तरह थी। लोग गर्मियों में उसकी छाया का आनंद लेते थे। बरसात में भी लोग उसके नीचे खड़े हो जाते थे और वह लोगों को विशाल गोवर्धन पर्वत की तरह ही बरसात से बचाता। लोग उसके नीचे रोज पत्ते भी खेला करते थे। मोहल्ले के बच्चे भी अपने दैमिक खेल उसके नीचे खेलते थे। कुछ बुजुर्ग उसकी टहनियों से दातुन करते थे। इस प्रकार बच्चे, बड़े और बुजुर्ग लोगों को वह कुछ न कुछ देता था। ये लोग पेड...
उदास फूल
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उदास फूल

पारस परिहार मेडक कल्ला ******************** वह मुझे देख रहा था और मैं उसे... लेकिन... लेकिन... हम दोनों में से किसी ने भी कुछ भी पूछने की हिम्मत नहीं की। ये माजरा करीब आधे घंटे तक यू ही चलता रहा। आखिरकर...मैं समझ गया कि गलती मेरी ही थी क्योंकि उसको अपना जीवन समाप्त किए पूरे बारह महीने हो चुके थे, सो कैसे बोलता और मैं तो एक जिंदा इंसान था पूछना तो मुझे चाहिए था। फिर एकाएक स्मरण हो आया कि किससे पूछूं वह तो बोलता ही नहीं था। उसको एक दुकानदार नए वर्ष की नई तारीख को तोड़कर लाया था और नए वर्ष की नई तारीख को ही बाहर फेंका गया था। भाग्यवश...मै भी उसी दिन उस दुकान पर पहुंच गया। वह फूल मुझे उदास भाव से अपनी आंखों से देख रहा था। मानो कह रहा हो जब मैं डाली पर था तब सुंदर लग रहा था, वहां मेरी इज्जत थी, लोग मुझे बड़े आदर से देखते थे, हर रोज मुझे पानी दिया जाता था और वही लोग आज मुझे अपने पैरों क...
मासूम सपने
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मासूम सपने

कीर्ति मेहता "कोमल" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ये कहानी है सपनों की नगरी कहे जाने वाले, मुंबई जैसे महानगर की एक, नाले के पास बसी छोटी सी बस्ती में रहने वाले, १३ साल के लड़के साहेब की। जो कूड़े के ढेर से ओर गन्दे नालों से कूड़ा बीनने का काम करता है! इस उम्मीद में की इस कूड़े के ढेर में या नाले में कही कुछ सिक्के मिल जाये जो उसके खाली पेट को थोड़ा सा भर सके। "मैं हूँ उस बस्ती के पास ही बनी एक २५ मंजिला बिल्डिंग में रहने वाली एक वर्किंग वीमेन जो अपने ऑफिस आते-जाते समय अक्सर उस बच्चे को देखती हूँ!!!" उसको देख कर लगता ही नहीं की उसका वो गंदगी में कुछ ढूंढने का काम उस पर भारी है, अपने कंधे पर वो टाट की बोरी लेकर, बेफिक्र हो, इस अंदाज में घूमता है, मानो कहीं का बादशाह हो। छोटी छोटी मगर, एक अजीब सी चमक ओर गहराई लिए उसकी वो आँखें, ऐसी थी मानो दुनिया भर की समझदारी उनमें भरी ...
उसका नाम कला है
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उसका नाम कला है

मंजू लोढ़ा परेल मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** राजस्थान के एक छोटेसे गाव में उसका जन्म हुआ। पर उसके माता पिता ने निश्चय कर लिया कि, वह अपनी बेटी को कम से कम हाईस्कूल तक तो जरूर पढा़येंगे। बगल के गांव मे एक स्कूल था, माँ सुबह जल्दी उठकर, घर के सारे काम निपटाकर बच्ची को स्कूल लेकर जाने लगी। ज्यों-ज्यों कला बढी़ होती गई, नाम के अनुरूप, वह कई कार्यों मे दक्ष होती गयी। चित्रकारी, सिलाई, कशीदा, मेंहदी लगाना, रंगोली मांड़ना तथा साथ ही घर के कार्य में मां का हाथ बंटाने लगी। सुरत और सीरत दोनों ही सुंदर। और जब हाईस्कूल में दसवीं में वह पुरे स्कूल में अव्वल आयी तो अगल-बगल के गांवो तक उसकी चर्चा होने लगी। माँ-बाप को अब उसके विवाह की चिंता सताने लगी। कला आगे पढ़ना चाहती थी, पर गांव मे कॉलेज नहीं होने से उसे अपनी पढाई छोड़ देनी पडी़। पर उसे जहाँ से ज्ञान मिलता, वह उसे प्राप्त करती। ज...
अपना कर्म सुधारों भाई, जीवन की यही सच्ची भलाई
कहानी

अपना कर्म सुधारों भाई, जीवन की यही सच्ची भलाई

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** लोग कहते है कि सतनाम कहो पाप कट जायेगा, राम नाम कहो पाप कट जायेगा, गंगा में नहा लो पाप कट जायेगा। इसलिए मैं मानता हूँ कि पाप, तुम करो ही मत। कभी हो गया तो हो गया, आगे अब गलती न करो। गलती तो इंसान से ही होती है, दिवार से नहीं। अत: गलती से बचने के लिये गलती का रास्ता छोड़ना है, यह नहीं कि कोई मंत्र-वंत्र जपकर उसको काटने की बात करनी है। कोई मंत्र-वंत्र जपने की आवश्यकता नहीं है कि जिससे आपका पाप कट जाए। सब कुछ सामने आता है। समझ है अपने कर्म को सुधार करने की, इसी में ही मानव समाज की भला है। मानव को समाज में रहकर जीवन जीने की कला सीखना चाहिए। सदाचार व नैतिकता पर आधारित मार्मिक कहानी का अंश राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच के पावन पटल पर रखने का प्रयास है। इसी आशा और विश्वास के साथ पाठकगण सहर्ष अपनाएंगे और इसके अध्ययन...
अपना लक पहन कर चलों
कहानी

अपना लक पहन कर चलों

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ****************** मेरे बदन से मेरी कमीज किसी ने अलग कर ली। मेरी सीट के पीछे बैठे व्यक्ति ने यह कारनामा कैची से बड़ी खूबसूरती से किया। मै बस में झपकी ले रहा था। वह शरारती यही पर नहीं रुका, उसने उसी अंदाज में मेरी बनियान के भी टुकड़े करके उसे भी मेरे बदन से अलग कर दिया। न जाने कहाँ जा रहा था मैं। और क्यों जा रहा था? किसी मंजिल की तलाश थी या मंजिल मुझे अपनी ओर ले जा रही थी? शुक्र है कि वह मेरा पाजामा नहीं उतार पाया। मेरी गहरी नींद की मुझे गहरी कीमत चुकानी पड़ी। माँ हमेशा कहती थी, 'बेटा सफ़र में सावधान रहना चाहिए' पर सावधान रहने का यह मतलब तो नहीं कि सोया ही ना जाय? और फिर बदन से कोई कपडे उतार ले यह तो कल्पना से परे ही है। उसने चुराया कुछ नहीं पर उसकी शरारत मुझे महँगी ही पड़ने वाली थी। नीद में गाफिल लोग मालूम नहीं क्या क्या गवाते है? 'जो सोवत है सो खोवत ह...
आंखें … एक ऐतिहासिक कहानी
कहानी

आंखें … एक ऐतिहासिक कहानी

सुधा गोयल बुलंद शहर (उत्तर प्रदेश) ******************** शाम का धुंधलका फैलने में अभी देर थी। पवन में हलकी सी सरसराहट थी। पक्षी उद्यान में क्रीड़ारत थे। सरोवर के स्वच्छ जल में अस्ताचलगामी सूर्य का प्रतिबिंब किसी चपल बालक की तरह अठखेलियां कर रहा था। कमल हंस रहे थे। मोर नाच रहे थे। सुगंधित समीर उड़कर गवाक्ष में एकाकी, मौन, शून्य में निहारती महादेवी तिष्यरक्षिता की अलकों से अठखेलियां कर रहा था। परंतु वह इस समय इस सबसे बेखबर अपने ही विचारों में खोई थी। उनके रुप माधुर्य की आभा तिरोहित होते सूर्य की रश्मियों के साथ मिलकर दुगुनी हो गई थी। प्राकृतिक दृश्य पावक बनकर महादेवी के तन-मन को प्रज्वलित करने लगे थे। जब शाम अपने डैने फैलाए राजमहल की प्राचीरों पर उतरती तब महादेवी का मन उदास हो जाता। और सम्राट अशोक का इंतजार करते-करते वे कमलिनी सी मुरझा जाती। श्रृंगार ज्योति विहीन हो जाता। काम की...
परिवर्तन
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परिवर्तन

अनुराधा बक्शी "अनु" दुर्ग, (छत्तीसगढ़) ******************** "शरीर मिट्टी में शामिल हो मिट्टी का पुनर्निर्माण कर देता है, फिर क्या है जो मरता है? ये दिल इतना शोर क्यों करता है। किसी के जाने से असह्रा दर्द क्यों और कहां से आता है? खुद को समाप्त करते ही उनकी यादें भी खत्म हो जाएंगी और बेकाबू रुदन से जिंदा रहा नहीं जाता।" दर्द के अवसाद में सुबह-शाम डूबी अक्सर मैं अपनी दुनिया अपनी आंखों से निहारती। "इन दिनों प्रकृति जिस तरह अपने अदृश्य पन्नों पर अपने असहज घोटाले की कहानियां लिख रही थी और हम अपने हाथ हाथों में लिए दृष्टा की भांति उसे निहार रहे थे वो बहुत कुछ कह रही थी और बहुत कुछ सिखा भी रही थी।" कभी सोचा ना था दूध की चिंता बिस्तर छोड़ने पर और रोजमर्रा की जरूरतें है दरवाजे से बाहर निकलने पर मजबूर कर देंगी। स्कूल जाते वक्त वो मुझे बस स्टॉप पर छोड़ते और मेरे आने से पहले बस स्...
मेरा बाप–तेरा बाप
कहानी

मेरा बाप–तेरा बाप

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ****************** ‘मुझे घर जाना होगा I अम्मा कह रहीं थी कल मेरे बाप की तिथि हैं I श्राद्ध करना पड़ेगा I सारा सामान लाना हैं I पंडित को भी बुलाना पड़ेगा I ब्राह्मण भोज होगा I ग्यारह ब्राह्मण ढूंढने हैं I खाने की सारी व्यवस्था करनी हैं I किराना, सब्जी वगैरे, सभी सभी तो खरीदना पड़ेगा I पैसों का इंतजाम करना ही हैं I वह चिंता अलग खाएं जा रही हैं I ‘धनाजी बोला I ‘क्या रे तू .....? अभी तो आया हैं .... एक घूंट भी नहीं गया अंदर अभी .... और अभी से जाने की रट लगा रहा हैं ?’ भिकाजी बोला I ‘कल बाप का श्राद्ध करना हैं I जाना ही पड़ेगा I क्यों रे भीकू तेरे बाप का श्राद्ध कब आता हैं ? ‘धनाजी जाने के लिए खड़ा हो गया I भिकाजी रुआंसा हो गया I उसकी आँखें नम हो गई I धनाजी को दारु का ज्यादा असर नहीं हुआ था I उसे लगा भिकाजी को दारु चढ़ गई हैं , और वह किसी भी क्षण जोर जोर से ...
परिचित-अपरिचित
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परिचित-अपरिचित

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ****************** सुबह के नौ बजे थे I गुरु परिचित अपने नित्यकर्म निपट कर चिंतन की मुद्रा में अपने एसी कक्ष में बैठे थे I पर आज उनका मन चिंतन में नहीं लग रहा था I वह सुबह से ही अशांत था और सूर्योदय से अभी तक गुरु परिचित को स्वस्थ चिंतन नहीं करने दे रहा था I गुरु परिचित का मन अस्वस्थ होने का भी एक कारण था I कल देर रात को उनके ख़ास और परमप्रिय लाडले शिष्य कुमार अपरिचित को एक फार्महाउस में देर रात चलने वाली रेव्ह पार्टी में नशे में धुत , एक लड़की के साथ आपत्तिजनक अवस्था में पुलिस ने गिरफ्तार किया था I गुरु परिचित को यह बात रात में ही सेवक ने जगा कर बताई थी I गुरु परिचित तुरंत पुलिस थाने में जाकर उनके लाडले शिष्य कुमार अपरिचित को अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर छुड़ाकर लाए थे I इस बात की उन्होंने किसी को भी कानोकान हवा तक नहीं लगने दी और मिडिया से बचाते हुए न...
वह गाड़ी वाली लड़की
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वह गाड़ी वाली लड़की

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** नीना जी, आज आप बहुत उदास लग रही है। क्या कोई खास कारण है? आपका हँसता हुआ चेहरा, आज मुरझाया हुआ क्यों लग रहा है? मैंने आपको इससे पहले कभी इतना उदास नहीं देखा। क्या आप मुझें अपनी परेशानी बता सकती हैं? अरे, सुरेश जी आप तो यूँ ही इतने परेशान हो रहे हैं। मेरे चेहरे पर लंबे सफर की थकान है। इससे ज्यादा कुछ भी नहीं है। थोड़ा आराम कर लूँगी। फिर सब ठीक हो जाएगा। क्या हम शाम को मिल सकते हैं, सुरेश जी? जी जरूर, आपकी हर फरमाइश सिर-आंखों पर। अच्छा मैं चलता हूँ, फिर मिलेंगे। वह सुरेश को जाते हुए देखती रही, जब तक वह आंखों से ओझल नहीं हो गया। सुरेश वर्षों से मेरे साथ हैं। यह साथ करीब-करीब बीस साल पुराना है। जब हम कॉलेज में पढ़ते थे। सुरेश हमेशा से ही मस्ती में रहता हैं। उसे तो सिर्फ मजाक करने का बहाना चाहिए। मुझें नहीं लगता वह कभी गंभीर भी होता ह...
आदमी से गधा बेहतर
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आदमी से गधा बेहतर

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ****************** ‘गाढवे, तुम वास्तव में गधे ही हो।' साहब ने भले ही क्रोध में यह कहाँ पर राजाभाऊ गाढवे बिलकुल शांत ही थे। साहब पर उनकों कतई गुस्सा नहीं आया, बल्कि उन्होंने विनम्रता से कहा, ‘धन्यवाद सर !‘ अब साहब ज्यादा ही नाराज हो गए। उन्हें लगा गाढवे उनका मजाक उड़ा रहें हैं। ‘गाढवे .....गाढवे, अरे मैं तुम्हें साफ़ साफ़ गधा कह रहा हूँ। धन्यवाद क्या दे रहे हो मुझे ?‘ ‘फिर क्या देना चाहिए सर आपको ? ‘ राजाभाऊ ने फिर विनम्रता से कहाँ। वह बिलकुल शांत थे। ‘कुछ भी नहीं।‘ साहब का पारा कुछ ज्यादा ही चढ़ गया था ।‘ मुझे कुछ देने की जरूरत नहीं है । तुम अपना काम ठीक से किया करो ।इतनी मेहरबानी तो कर सकते हो मेरे ऊपर ? ‘ ‘यस सर ।‘ राजाभाऊ गाढवे को यह समझ में ही नहीं आ रहा था कि उनकी गलती कहाँ हुई ? और साहब के इतना नाराज होने की वजह क्या हैं ? उन्होंने चुपचाप साहब क...