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लघुकथा

आज एक लड़का भागा है
लघुकथा

आज एक लड़का भागा है

रजनी झा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आज शाम शुक्रवार सेसोमवार सुबह ६ बजे तक ६० घंटे का लॉकडाउन लगने वाला है इस लिए आज शाम होने से पहले अपने गांव के लिए रवाना होने वाली थी साक्षी अपने परिवार के साथ तभी उसकी सास का कॉल आया बातों-बातों में उन्होंने बताया की गांव की एक लड़की पड़ोस के लड़के के साथ भाग गई है उसके घर वाले उस लड़की को कोस रहे हैं ना जाने कीतनी मन्नतों से पैदा हुई थी, पैदा होते ही पुरे गांव में लड्डू बांटा था, पलकों पर बैठाकर रखा था, नन्हीं परी बुलाते थे उसे अब तक, अरे! किसने जाना था की इस परी के भी पर निकल आए हैं। इतना बड़ा कदम उठाने से पहले उसने अपने माँ-बाबा के बारे में तनिक भी ना सोचा, घर वालों की इज्जत मट्टी में मिला दी कल्मुही, रांड कहीं की। अगर पहले पता चल जाता की ऐसे गुल खिलाने वाली है तो अब तक शादी ही करा देते उसकी। मैं तो कहती हूँ गलती घर वालों की भी है ब...
यह भी देश भक्ति
लघुकथा

यह भी देश भक्ति

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** "मामीजी बुरा नहीं मानना, ये लीजिए।" "क्या है? इसमें मीना।" "मामीजी ! ये आप की लाई हुई पोलिथिन की थैलियाँ हैं। हमारे शिमला में पोलिथिन बैन है। आप शिमला के बाजारमें घूमने गये थे न ! कहीं भी आपको पोलिथिन की थैली में सामान नहीं मिला होगा। हँसकर- लीजिए "तेरा तुझको अर्पण "। वापिस अपने शहर भोपाल ले जाए।" "पर बाजार में कहीं-कहीं पोलिथिन उड़ती दिखी।" वे भी सैलनियों द्वारा लाई गई हैं। हम शिमला वासी अपने सुंदर शहर की सुंदरता और पर्यावरण रक्षा के लिये बड़े सजग हैं। बुरा नहीं मानना, पोलिथिन थैलियाँ वापस ले जाए।" शर्मिदगी से मेरा सिर झुक गया। भान्जी के यहाँ शादी में गये थे हम। सारे उपहार पोलिथिन थैलियों में ले गये थे, साज-सज्जा के साथ।भोपाल में तो, सब्जी तक अमानक पोलिथिन थैलियों में मिलती है। सुविधाभोगी मैं भी कब कपड़े का थैला ले...
अधूरा प्यार
लघुकथा

अधूरा प्यार

अतुल भगत्या तम्बोली सनावद (मध्य प्रदेश) ******************** रिमझिम बारिश में झूमती हुई सत्रह-अठारह की उम्र की एक बाला शायद उन्नीस बरस की उम्र में पहुँचे केशव के सपनों की रानी है। कभी अपने पैरों से पानी को उछालती तो कभी अपने दोनों हाथों को फैलाकर, बारिश की बूँदों का अपने चेहरे पर अहसास करते हुए मुस्कुराती हुई घूमती। दूर एक पेड़ के नीचे केशव खड़ा होकर उसे देख रहा है। उसका खुशी से झूमना, मुस्कुराना बच्चों की तरह कूदना उसे भा गया था। वो उस बाला को एक टक देख रहा है तभी अचानक बारिश तेज होने लगी बिजलियाँ कड़कने लगी। बिजली की चमक और बादलों की गड़गड़ाहट से वह भयभीत हो गई और उसी जगह पहुँच गई जहाँ केशव खड़ा था। थरथराते हुए होंठ व काँपती हुई लड़की को देख केशव उससे कुछ कहना चाहता था। कुछ मिनटों के बाद ही वह उससे बात करने लगा। वह जानता है कि बातों बातों में उसका ध्यान कपकपाहट से परिवर्तित ह...
पेड़ की पीड़ा
लघुकथा

पेड़ की पीड़ा

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हर आठ-दस दिन बाद शासकीय कार्य से जीप द्वारा उधर से निकलना होता था सड़क कच्ची व पथरिली थी, सड़क की दोनों और विराट विराना वन था मैं समीप से गुजरती अजीब सा सन्नाटा लगता एक दिन उसवनके समीप से गुजरते हुए मुझे कुछ ठोकने टकराने की आवाज सुनाई दी मैंने वहां चालक से पूछा तो मैं भी कुछ सुनाई दे रहा है वह बोला हां कुछ ठोकने की आवाज सुनाई दे रही है जैसी कोई पेड़ काट रहा हो मेरी धड़कन बढ़ गई थोड़ा अंदर जाकर देखा पेड़ को काटा जा रहा था पेड़ पर लगे आघात मुझे आहत कर रहे थे। आंखों से आंसू बहाता आकाश तपती धरती को ताकता मानो कह रहा है सुन रही हो रुदन कटते पेड़ का जो कभी मुझे छूने का यत्न कर रहा था, तुम्हारे द्वारा भेजा गया तुम्हारा सन्देश सुनाने के लिए मेरे पास आ रहा था किन्तु हाय रे मानव की लालसा स्वार्थी मानव ने उसे ऊपर चढ़ते ही नीचे गिरा दिया तुम्...
रक्षाबंधन
लघुकथा

रक्षाबंधन

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** मेघा बड़ी जतन से रेशम के धागे लिए ब्रश से झाड़ रही थी! उसके पास ही तरह-तरह के छोटे-छोटे रंगीन नग-स्टोन, गोंद-कैंची रखे हुए थे! लक्ष्य परेशान था कि मांँ क्या कर रही हैं? कहीं यह राखी तो नहीं बना रहीं... !?! पर उसने स्वयं ही मांँ के दोनों भाइयों को बाजार से राखी खरीदकर पोस्ट कर दिया था। तो अब भला मांँ राखी किसके लिए बना रही हैं!?! उसकी प्रश्न सूचक हैरान दृष्टि देख मेघा ने कहा... जितेंद्र के लिए राखी बना रही हूंँ। बिल्कुल विस्मित होकर लक्ष्य बोला अरे! वह तो मुझसे भी छोटा बच्चा है मांँ! फिर उसके लिए राखी आप क्यों बना रही हैं? मेघा ने कहा- हांँ, उम्र में वह मेरे बच्चों से भी छोटा है। पर जब मेरा पूरा परिवार कोरोना महामारी की चपेट में आया मौत से जूझ रहा था और बिस्तर से उठने की स्थिति में भी नहीं था तब इसी शहर में रहने के बावजूद कोई भी हमारा रिश्...
रिश्तों की डोर
लघुकथा

रिश्तों की डोर

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** सत्य घटना पर आधारित लघुकथा जीवन में कुछ रिश्ते अनायास ही जुड़ जाते हैं। ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ। समान कार्य क्षेत्र के अनेक आभासी दुनियां के लोगों से संपर्क होता रहता है। जिनमें कुछ ऐसे भी होते हैं जो वास्तविक रिश्तों के अहसास से कम नहीं है। मेरे वर्तमान जीवन में इनकी संख्या भी काफी है, जो देश के विभिन्न प्राँतों से हैं। एक दिन की बात है कि आभासी दुनिया की मेरी एक बहन का फोन आया, उसकी बातचीत में एक अजीब सी भावुकता और व्याकुलता थी। बहुत पूछने पर उसनें अपने मन की दुविधा बयान करते हुए कहा कि मैं समझती थी कि आप सिर्फ़ मेरे भैया है, मगर आप तो बहुत सारी बहनों/भाइयों के भी भैया हैं। तो मैंने कहा इसमें समस्या क्या है? उसने लगभग बीच में ही मेरी बात काटते हुए कुछ यूँ बोली, जैसे उसे डर सा महसूस हुआ कि कहीं मै न...
बुढ़ापे की लाठी
लघुकथा

बुढ़ापे की लाठी

अरविन्द सिंह गौर इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** आपके बच्चो ने क्या किया है अरे पता मेरे तो दोनों बेटों इंजिनियर बन गए हैं, सवाल मेरे दोस्त ने जब मुझसे कहा तो उसके चेहरे अजब सा घमंड और मुस्कान थी, और मुझे हीन भावना से देख रहा था‌। पर कल जब वो मुझे मिला तो वह कुछ परेशानियां था मेने पूछा क्यों दोस्त क्या बात है इस तरह उदास क्यों बैठे हो ? मेरी बात सुनकर वो बोला अरे दोस्त क्या बताऊं तुम्हे तो पता ही मैंने अपने दोनों बच्चों की उच्च शिक्षा के लिए बैंक से कर्जा लिया था अब मेरे दोनों बच्चे जब इंजीनियर बन गए तो वह कर्जा चुकाने को तैयार नहीं है मुझे कहते हैं कि कर्जा तो आप का कर्जा हमने नहीं दिया है। आज बैंक इस आए कि अगर आप कर्जा नहीं चुकाएंगे तो आपका घर नीलाम कर दिया जाएगा बस इसी चिंता में हूं मैं कर्जा कैसे चुकाऊं कर्जा नहीं चुकाऊंगा तो घर विराम हो जाएगा वह मेरे रहने की जगह भी नहीं...
अपना ईमान कायम रखें
लघुकथा

अपना ईमान कायम रखें

अतुल भगत्या तम्बोली सनावद (मध्य प्रदेश) ******************** नैतिक शिक्षा हमें हर प्रकार के नैतिक ज्ञान से परिपूर्ण करती है। नैतिकता जीवन में जब मुसीबतें आती है तो अपना होंसला कायम रखने का जज्बा प्रदान करती है। बात उन दिनों की है जब हरि नाम का एक गरीब व्यक्ति अपनी गरीबी से परेशान था। उसने परिश्रम करने में कोई कमी नही रखी लेकिन उसकी मेहनत सामने ना आ सकी। लंबे समय के बाद वह और उसकी मेहनत एक धनी व्यक्ति की नज़रों में आ गयी। उसने हरि को अपने घर पर आने के लिए कहा। हरि दूसरे ही दिन उस व्यक्ति के घर पहुँच गया। उसने हरि को अपने खेत खलिहानों की निगरानी एवं मजदूरों से काम करवाने का उसे काम दे दिया। हरि बड़ा खुश था। उसने कभी ये उम्मीद ही नही की थी कि उसे इस प्रकार काम भी मिल पायेगा। बड़ी शिद्दत व ईमानदारी से वह अपना काम करता था। मालिक की नज़र में उसने अविश्वसनीय स्थान पा लिया था। अब वह...
मित्र एक हो पर नेक हो
लघुकथा

मित्र एक हो पर नेक हो

अतुल भगत्या तम्बोली सनावद (मध्य प्रदेश) ******************** किसी गाँव में दो घनिष्ठ मित्र रहते थे। एक का नाम जय दूसरे का धीरेन्द्र था । दोनों ही अपने काम को बखूबी करते थे। पूरे गाँव में दोनों के चर्चे थे। एक समय ऐसा आया जब दोनों अपनी शिक्षा के लिए साथ साथ शहर में रहने लगे। शहर में रहते हुए उन्हें मात्र कुछ महीने ही हुए थे कि धीरेन्द्र गलत संगत में पड़ गया। उसे कुछ गलत आदतों ने घेर लिया था। वह अपनी आदतों के कारण घर से पढ़ाई के नाम पर लाया हुआ पैसा अपनी गलत आदतों में खर्च कर देता था। जब इस बात की भनक जय को लगी तब उसने वीरेंद्र को समझाने की बहुत कोशिश की परन्तु जिन लतों ने धीरेन्द्र को घेर रखा था वो उसका पीछा छोड़ने का नाम नही ले रही थी। अब तो धीरेन्द्र जय के सामने कभी सिगरेट तो कभी शराब पीकर आने लगा, नौबत यहाँ तक आ पहुँची कि अब वह जय की जेब से पैसे भी चुराने लगा। जय ने लाख क...
आईना
लघुकथा

आईना

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** बहुत दिनों से कमरे में पड़े आईने को देखा ही नहीं था। शायद वह बुला रहा है, मन विचलित हुआ। धीरे से उसे उठाया ऊपर धूल की परत जमी थी। साड़ी के पल्लू से ही धूल साफ की। "अचानक अतीत ने मुस्कराते हुए हाथ पकड़ लिया।" अरे! अभी कुछ जिन्दगी बाकी है। आईना तो देख लिया करो। "खुश हो ना ! "हां हां, सब चित्र सामने है, वो देखो कहते, मैंने कार स्टार्ट करती मधु की ओर संकेत किया।' आई ! 'मैं दोस्त के साथ घूमने जा रही हूं, दस बजे तक लौट आऊंगी।" कार से जाती हुई मधु को मैंने दरवाजे की आड़ से देख लिया था। बीए एल एल बी कर रही मधु राष्ट्रीय खिलाड़ी, स्व. निर्णय की धनी तथा बड़ी समझदार पोती का मुझे गर्व था। उसकी हर हरकतें मेरी जिन्दगी से मिली जुली थी। फर्क इतना ही था उसे उसकी प्रत्येक ख्वाइश पूरी करने के अवसर थे, आधुनिक साधन उपलब्ध थे समाज की हर गतिविधि से वह पर...
विकृति
लघुकथा

विकृति

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वह सड़क किनारे मंदिर के पास नदियों के घाटों पर कहीं भी दिखाई देते हैं। अवलंबन विहीन कहीं अंधेरे में कहीं कड़ी धूप में ना कहीं और ना कहीं ठौर ठिकाना शरीर पर टंगे चिथड़े कपड़ों को संभाल ते सिर खुजाते कहीं हाथ पकड़ कर क्षुधाा बुझाते केवल एक चिंता पेट भरने की कहीं गिद्ध दृष्टि से देखते कहीं दया भाव आंखों में लिए आने वाले पथिक से आशा लगाए देखते हैं। उनका ना कोई अपना होता है ना ही परिचित ना अपनों की पहचान, कहीं कोई ना जाने कौन छोड़ गया अपनों को कैसी दर्द भरी चुभन होगी मन में कैसे सड़क पर छोड़ते हुए नजरें फेरी होंगी भूखे प्यासे वृद्ध देह को अपने से दूर करते हुए उन्हें आत्मा ने धिक्कार नहीं यह कैसी कठोरता यह कैसी बर्बरता यह कैसी विडंबना अपनों के प्रति मील के पत्थर से दूर बहुत दूर होते हुए छटपटाहट तो हुई होगी दिल भी रोया होगा। फिर भी मानव ...
झुठी कसम
लघुकथा

झुठी कसम

डॉ. मोहन लाल अरोड़ा ऐलनाबाद सिरसा (हरियाणा) ******************** बात बहुत पुरानी है छोटी उम्र छोटी क्लास प्राईमरी स्कूल मे जाते ही सबसे पहले यही पढाया गया... झूठ बोलना पाप है चोरी करना पाप है। नन्हें दिमाग मे यही बात बैठ भी जाती है। जैसे-जैसे बड़े होते गए झूठ बोलना तो आम बात हो गई कुछ मजबूरी मे, कुछ आदत हो गई कभी डर कर तो कभी हंसी मजाक से झूठ बोलना और झूठी कसम खाना रोजमर्रा की जिंदगी मे आम सी बात हो गई। बड़े हो गए पढ लिख गए नौकरी भी लग गई परंतु झूठ बोलना और झूठी कसम खाना भी जिंदगी के साथ बढ़ा गया भगवान कसम मैं झूठ नहीं बोल रहा... और झूठ ही बोल रहा था क्योंकि सच बोलने के लिए कसम खाने की आवश्यकता ही नहीं है माँ कसम मैने ऐसा नहीं किया, तेरी कसम आगे से ऐसे नही करूंगा। ऐसी कसमे रोजाना खाना जिंदगी का एक फैशन सा हो गया है, चाहे कसम खाने की आवश्यकता ही ना हो फिर भी भगवान की झूठी कसम क्योंकि भगव...
जेठ मास
लघुकथा

जेठ मास

मंजिरी "निधि" बडौदा (गुजरात) ******************** चलो एक काम तो हुआ l कहते उसने अपने पल्लू से पसीना पोंछते मटके का ढक्क्न खोला तो उसमें पानी तला छु रहा था। दूसरा तो पहले से ही खाली था। उसने मटके उठाते झुंझलाते हुए कहा कितनी बार मुन्ना के दद्दा से कहा कि सवेरे ही पानी भर लाने दिया करो पर कहाँ सुनते हैं अब कैसे समझाऊँ कि...... छोडो। दोनों पेड़ों के बीच टांगे झूले को धक्का दे, अड़ोस-पड़ोस के दरवाजे बंद देख खुद से बुद्बुदाई न मुनिया न चुनिया और ना ही बाईसा?? के होवे? जंगल से लकड़ी ले ना लौटे?? दिल पर पत्थर रख वह घर से वावड़ी की तरफ हो ली। चाह कर भी अपने पैर जल्दी ना चला पा रही थी। धरती मानों तवा हो रही थी। जेठ की चिलमिलाती धूप। लू की लपटें और मरुस्थल से उड़ती तपती रेत शरीर पर चटके लगा रही थी। पसीना थमने का नाम ही नहीं ले रहा था। रास्ते में एक पेड भी न था जिसके नीचे वह थोड़ा सुस्ता सके। पर उसे स...
सम्मान
लघुकथा

सम्मान

सीमा तिवारी इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** रामकिशन जी बहुत सीधे सरल और सज्जन व्यक्ति थे। वो कुछ ही समय पहले नौकरी से रिटायर हुए थे। दिनचर्या में परिवर्तन होने से उनको उतनी तकलीफ़ नहीं हो रही थी जितनी कि अपनों के परिवर्तित व्यवहारों से। प्रत्यक्ष रूप से तो सब ठीक ही दिखाई देता था परन्तु बातों में छुपे कटाक्ष उनके मन को भीतर तक आहत कर देते थे। इस कारण उनकी सेहत भी कमजोर हो रही थी। दोस्तों और परीचितों से सम्पर्क करके खुश रहने के प्रयासों में कोई विशेष सफलता नहीं मिल रही थी। वो मन ही मन सोचते रहते थे कि नौकरी अकेले नहीं जाती वरन् अपने साथ सुख शांति खुशी और सम्मान भी ले जाती है। ये कष्ट उन्हें तोड़ कर बिखेर दे इससे पहले उन्होंने स्वयं ही वृद्धाश्रम जाकर रहने और वहाँ से कुछ रचनात्मक करने का फैसला किया। इसी फैसले के अन्तर्गत उन्होंने अपनी जमीन जो कि गाँव में थी उसे बेचने का फैसल...
धनुआ क माई
लघुकथा

धनुआ क माई

ओंकार नाथ सिंह गोशंदेपुर (गाजीपुर) ******************** मेरे पड़ोस के ही गांव सोना का पूरा में कल्लू सेठ अपनी धर्मपत्नी के साथ रहा करते थे जिनको एक लड़का धनंजय नाम का था घर और गांव के लोग उसे धनुआ कह कर बुलाते। कुछ दिन के बाद कल्लू का एक्सीडेंट हो गया वो बचाया नहीं जा सका धनुआ और उसकी मां पर तो वज्रपात ही हो गया। स्थानीय लोगों द्वारा सरकार से पैरवी करा कर धनुआ की मां को ३००००० लाख रु. की सहायता मुख्यमंत्री राहत कोष से मिल गए। अनुदान पा कर मां बेटा बहुत खुश हुए अब जैसे तैसे गाड़ी चलने लगी इसके अतिरिक्त इनके पास आयका अन्य स्रोत नहीं था गरीब की औरत पूरे गांव की भौजाई भौजाई.... गांव के लोगों की राय से धनुआ का नाम एक अच्छे अंग्रेजी स्कूल में लिखवा दिया गया अब पैसों की आवश्यकता महसूस होने लगी गांव के कुछ लोग धनुआ की मां को भऊजी पांव लगी कहने लगे धनुआ की मां चीढ़ती थी धीरे-धीरे सब को आश...
सार्थक उपासना
लघुकथा

सार्थक उपासना

डॉ. भोला दत्त जोशी पुणे (महाराष्ट्र) ******************** सार्थक उपासना वही है जिसके साथ अच्छे कर्म भी जुड़े हों। पूजा-उपचार बाह्य क्रियाएँ हैं | श्रेष्ठ कर्म को उपासना मान लिया जाय तो वह उपासना सार्थक हो जाती है | एक समय की बात है जब दो लोग साथ-साथ रहते थे | एक दिन गाँव की पाठशाला में अध्यापन करने वाले शिक्षक ने उनके सामने दो समान पत्थर रखे गए | उनके द्वारा की जाने वाली प्रतिक्रिया का इंतजार था | पहले आदमी ने अपने सामने रखे पत्थर को देखा और हाथ जोड़कर खड़ा रहा | कुछ क्षण मन को रोककर आँखें बंद कीं और ध्यान करने लगा | पत्थर अपनी प्रकृति के अनुसार अचेत पड़ा रहा | दूसरे आदमी ने ध्यान से पत्थर को निहारा और चंद क्षण सोचकर फिर अपनी आँखें खोलीं, मन को उत्साहित किया और फिर छेनी, हथौड़ी लेकर पत्थर को तराशने लगा | वह अपने काम में मगन हो गया, उसे इतनी लगन लग गयी कि समय कैसे गुजर रहा था उसे कुछ पत...
युवा पीढ़ी
लघुकथा

युवा पीढ़ी

सीमा तिवारी इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** हर दिन की तरह आज भी बागीचा ठंडी मंद हवा, खिले फूलों की खुशबू, बच्चों की हँसी-ठिठौली और बड़ों की चर्चा-परिचर्चा से गुलज़ार था। इन सबके बीच दो युवाओं की टैक्नालॉजी और कैरियर की उर्जा से भरी बातें बरबस ही ध्यान आकर्षित करती थी। वो दोनों बागीचे के चक्कर लगाते हुए रोज ही किसी न किसी मुद्दे पर ज्ञानवर्धक बातचीत किया करते थे। आज एक बुजुर्ग व्यक्ति बागीचे में आए। उन्हें पहले इस बागीचे में कभी नहीं देखा था। उनके हाथ में कुछ समस्या थी जिसे वो एक बॉल को बार-बार फेंक कर व्यायाम के सहारे दूर करने का प्रयास कर रहे थे। परन्तु उनके साथ एक दिक्कत और थी। बॉल फेंकने के बाद धीरे-धीरे चलकर और झुक कर बॉल उठा पाने में बहुत समय लग रहा था। सब लोग रोज की तरह ही अपनी गतिविधियों में व्यस्त थे। पर अचानक एक सुखद परिवर्तन हो गया था। वो दोनों युवा एक निश्चित दू...
विरासत
लघुकथा

विरासत

मंजिरी "निधि" बडौदा (गुजरात) ******************** आज स्कूल में निबंध प्रतियोगिता रखी गईं थी। विषय था आप बड़े होकर क्या बनना चाहते हैं और क्यों? समाप्ति के पश्चात निर्णायक महोदया सभी निबंधों को पढ़ बहुत प्रसन्न हुईं। बच्चों ने क्या बनना हैं और क्यों बहोत ही अच्छे तरीके से उदाहरण के साथ लिखा था। ज्यादातर बच्चों ने विदेश जाकर डॉक्टर, वैज्ञानिक, इंजीनियर बनना ही लिखा था और कारण भी करीब करीब एक जैसे ही थे। परन्तु भैरवी और रेवा का निबंध पढ़ कर दिल खुश हो गया था। भैरवी को भरतनाट्यम कीे नृत्यॉगना बनने की चाह थी क्यूंकि उसे अपनी दादी की भारतीय नृत्य की विरासत को आगे बढ़ाने की इच्छा थी और रेवा को भारतीय योग गुरु बनने की चाह। उसे भारत की योग पद्धति की विरासत का विश्व भर में परचम लहराना था। दोनों की वजह पढ़कर निर्णयक महोदया ने उनको प्रथम पुरस्कार दिया और बच्चों को अपने देश की विरासत कोे सहेजने का संद...
मन की हरीतिमा
लघुकथा

मन की हरीतिमा

सीमा तिवारी इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** नीरू मेरे पास ये रिश्तेदारी निभाने का बिल्कुल वक्त नहीं है। तुम तुम्हारे हिसाब से देख लो। ये कहते हुए हेमंत कम्पनी जाने के लिए निकल गया। नीरू अपने घर के लॉन में आकर कुर्सी पर बैठ गई। उसकी स्मृति में अतीत की पुरानी यादें घूमने लगी। रीता दी कितने हँसमुख और अच्छे स्वभाव की हैं। मुझे तो कभी लगा ही नहीं कि वो मेरी ननद है। हमेशा बड़ी बहन की तरह ही स्नेह दिया। जीजाजी के बीमार होने पर आज रीता दीदी ने फोन पर थोड़े से पैसे और थोड़ी सी सहायता माँगी है। हेमंत ने काम की व्यस्तता के कारण जाने से मना कर दिया। नीरू की आँखें नम हो चली थी। उसने संयत होकर लॉन के दूसरी तरफ देखा तो माली दादा पौधों में पानी और खाद दे रहे थे। पौधों से बातें करना तो उनकी पुरानी आदत थी ही। लहलहाती हरियाली देखकर नीरू के होंठों पर एक स्निग्ध मुस्कान तैर गई। उसने शाम की ...
बेजुबान
लघुकथा

बेजुबान

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** बेटी, काजल तुम बहुत उदास रहने लगी हो। बेटी अब तुम इस घर में कुछ ही दिन की मेहमान हो, बस बीस दिन और। तुम हमेशा-हमेशा के लिए पराई हो जाओगी। माँ, बोले जा रही थी। पर काजल एकदम चुप्पी साधे बैठी थी। वह माँ की बातों से पूरी तरह अनजान थी। अच्छा बेटी, समझदार बनो। उदासी से काम नहीं चलेगा। वह काजल के सिर पर हाथ फेर कर कमरे से बाहर चली गई। जबसे काजल का रिश्ता हुआ है, उसे फुर्सत ही कहाँ थी? शादी से जुड़े कामों में वह बहुत बिजी रहती थी। वह अपनी बेटी की शादी में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती थी। एक-एक समान अपनी पसंद का खरीद रही थीं। चाहें कपड़े हो, आभूषण हो या जरूरत की वस्तुएं। सभी चीजों का चुनाव वह बड़ी तन्मयता से कर रही थीं। हर माँ को इसी तरह की चिंता होती है। तो वह इसमें नया क्या कर रही थी? वह खुद से कह रही थी। वह बीच-बीच में थोड़ा आराम भी कर लि...
नई नौकरी
लघुकथा

नई नौकरी

संजय डागा हातोद- इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सेठजी ! कुछ काम दे दो ना, जिस फेक्ट्री मे काम करने जाता था, लाॅकडाउन की वजह से बंद पड़ी है, हरिया ने बंद शटर के बाहर बैठे सेठ घनश्यामदास से विनती करते हुऐ कहा। अरे ! अभी काहे का काम अभी तो हमारी भी दुकानदारी बंद पड़ी है, देख रहा है, हमारी दुकान भी तो बंद पड़ी है, पर सेठ कुछ भी छोटा-मोटा काम दे दो ताकि पेट भरने लायक कुछ जुगाड़ हो जाऐ, हरिया ने कातर और निराश होकर कहा! मैने एक बार बोल दिया ना अभी कुछ काम नही है, चल जा यहाँ से....! हरिया जाने लगा की सेठ को कुछ याद आया, उसने हरिया को आवाज देकर बुलाया, सुन ! एक काम के लिऐ तुझे रख लेता हूँ, जैसे ही पुलिस की गाड़ी आऐ तु दुकान की शटर गिरा देना और पुलिस की गाड़ी नजर से दूर हो जाने पर वापस शटर उठा दिया करना, हरिया खुश हो गया, उसे आज एक नया जाॅब मिल गया था।। परिचय :- संजय डागा निवास...
स्वाभिमान
लघुकथा

स्वाभिमान

सीमा तिवारी इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** मीता भाभी ये क्या कर रही हो आप। ये खाने का पैकेट कार के पास मत रखो। जानवर सब फैलाकर गंदगी करेंगे। आजकल तो स्वच्छता का कितना प्रचार प्रसार हो रहा है। पड़ोस की सरला भाभी बालकनी में खड़ी होकर बोले जा रही थी। मीता पैकेट रखकर चुपचाप अंदर आ गई और कमरे के पर्दे की ओट में खड़ी होकर इंतज़ार करने लगी। अभी रात के नौ बजने में दस मिनट बाकी थे। कुछ ही देर में वो नवयुवती आई जिसके कपड़ों से माँगकर न खा पाने की और चेहरे से बेरोजगारी और भूख की मजबूरी साफ दिखाई दे रही थी। उसने इधर उधर देखा और जल्दी से खाने का पैकेट उठाकर अपने बैग में डालकर चली गयी। उसके जाने के बाद मीता बिखरे हुए अन्न कण उठाकर पानी डाल रही थी कि उसका ध्यान सरला भाभी की बालकनी पर चला गया। सरला भाभी की झुकी गर्दन और निगाह न मिला पाने पर ध्यान न देकर मीता ये सोच रही थी कि स्वाभिमा...
विश्वास
लघुकथा

विश्वास

विनय मोहन 'खारवन' जगाधरी (हरियाणा) ******************** सड़क पर भीड़ जमा थी। वो मदारी तमाशा दिखा कर मजमा लगाए हुए था। मैं भी टाइम पास के लिए वहाँ खड़ा होके तमाशे का व मदारी की मजाकिया लहजे में बात करने के अंदाज का आनंद लेने लगा। मदारी दो पोल के बीच रस्सी बांध कर उस पर बैलैंस बना कर चलने लगा। फिर अचानक रस्सी पर वो अपने छोटे से बच्चे को लेकर भी चलने लगा। सभी सांस रोके इस प्रदर्शन को देख रहे थे। वो जब ठीक ठाक नीचे उतर गया, तब सबकी जान में जान आई। नीचे उतर कर वो बोला की क्या ये सब वो दुबारा भी कर सकता है। सभी बोले बिलकुल कर सकते हो। हमें तुम पर पूरा विश्वास है। मदारी बोला ठीक है दोस्तों, अगर आपको मुझ पर इतना विश्वास है तो कोई भी भाई अपना छोटा बच्चा मुझे दे दे। मैं उसको लेकर रस्सी पर चलूंगा। सभी ने अपने छोटे बच्चों को अपने पीछे छुपाना शुरू कर दिया। कोई आवाज़ नही आई। मदारी बोला अरे दोस्तों आपको त...
निदान
लघुकथा

निदान

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** मम्मी, आप इतनी चिंता क्यों कर रही हो? बेटी चिंता क्यों ना करूँ? मम्मी क्या चिंता करने से मेरी शादी हो जाएगी? बेटी, कह तो तुम ठीक रही हो, पर क्या करूँ, माँ हूँ ना? माँ, हो तभी तो कह रही हूँ। तुम चिंता मत करो। जिया की माँ, कहाँ खोई हुई हो? आओ बहन, बैठो। बस बेटी की चिंता खाए जा रही हैं। क्या हुआ एकाएक जिया की चिंता? हाँ, बहन तुम्हारी बेटी नहीं है ना। तुम्हें क्या पता बेटी की चिंता क्या होती हैं? हाँ, बहन, तुम ठीक कह रही हो। बेटों की तो कोई चिंता ही नहीं होती। मैंने अपने बेटे को खूब पढ़ा-लिखा दिया हैं। पिछले दो साल से मेरा बेटा सरकारी नौकरी के लिए लगातार प्रयास कर रहा है। हमारे पास जमीन-जायजाद भी नहीं है। मैंने तो सारी जिंदगी इस कच्चे मकान में निकाल दी। आगे वह कुछ ना कह सकी। बहन, चिंता ना करो, तुम्हारा बेटा सुमित,बहुत मेहनती हैं। उसे...
एकांतवास
लघुकथा

एकांतवास

डॉ. पवन मकवाना (हिंदी रक्षक)  इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** वृद्धाश्रम में आज कोरोना की जांच करने के लिए सरकारी अस्पताल से डॉक्टर और नर्स आये हुए थे सभी वृद्धजन कतार में खड़े अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहे थे ... बाबा आपका नाम क्या है ... नर्स सभी के नाम पूछती जाती... व आधार कार्ड देखने के बाद उन्हें सुई (कोरोना का टीका) लगा देती... दिन भर यही क्रम चलता रहा शाम के ५ बज चुके थे डॉक्टर और नर्स जाने के लिए सामान समेटने लगे.... तभी कमर झुकाये लाठी के सहारे चलते हुए एक बूढी अम्मा आई और नर्स से पूछा- मैंने सूना है की एकांतवास (कोरेन्टाइन) में रहने से कोरोना पास नहीं आता है... ? नर्स बोली- जी सही कहा आपने ... बूढी अम्मा पलटकर जाने लगी तभी नर्स ने कहा अम्मा सुई (टीका) तो लगवाती जाओ ...!! अम्मा ने पलटकर देखा और धीरे से बुदबुदाई ... मुझे नहीं लगवाना टीका वीका २० बरस से मैं अपने परिवा...