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गद्य

क्या वाकई दूर बैठी हैं बहनें?
कहानी

क्या वाकई दूर बैठी हैं बहनें?

कार्तिक शर्मा मुरडावा, पाली (राजस्थान) ******************** आजकल आवागमन के इतने सुगम साधन होने के बावजूद भी बहने अपने मायके नहीं आ पाती वो इसलिए कि अब उनका खुद का घर परिवार बच्चे संभालने होते हैं आज के परिवेश में स्थितियां भी बदल गई प्यार और अपनत्व ने भी उस डोर से किनारा कर लिया ननद ने भाभी को फोन करके पूछा कि भाभी मैंने जो राखी भेजी थी मिल गई क्या आप लोगों को भाभी ने कहा नहीं दीदी अभी तक तो नहीं मिली ननद बोली ठीक है भाभी कल तक देख लो अगर नहीं मिली तो मैं खुद आ जाऊंगी राखी लेकर अगले दिन भाभी ने खुद फोन किया और कहा कि हां दीदी आपकी राखी मिल गई है बहुत अच्छी है धन्यवाद दीदी ... ननद ने फोन रखा और आंखों में आसूं लेकर सोचने लगी कि भाभी मैंने तो अभी राखी भेजी ही नहीं और आपको मिल भी गई रिश्तों को सिमटने और फिर टूटने से बचाएं क्योंकि यह रिश्ते हमारे जीवन के फूल हैं जिन्हे ईश्वर ने हमारे लिए ख...
ईश्वर के नाम पत्र
व्यंग्य

ईश्वर के नाम पत्र

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** मानवीय मूल्यों का पूर्णतया अनुसरण करते हुए यह पत्र लिखने बैठा तो सोचा कि सच्चाई भी लिखता चलूं। उससे भी पहले अपने स्वभाव की औपचारिक परंपरा का निर्वहन करते हुए पूरी तरह स्वार्थवश आपके चरणों में दिखावटी शीष भी झुका रहा हूँ, ताकि आप कुपित होकर भी मेरा अनिष्ट करने की सोचो भी मत। क्योंकि आप मानव तो हो नहीं, ये अलग बात है कि प्रभु जी आज भी पुरानी विचारधारा में मस्त हो।अरे अपने कथित महल/कुटिया/धाम से बाहर निकलिए, तब देखि कि दुनियां और हम मानव कहाँ तक पहुंच गये हैं, कितना विकास कर लिया है। मगर सबसे पहले एक मुफ्त की सलाह है कि बस अब लगे हाथ एक एंड्रॉयड मोबाइल ले ही लीजिए, बैठे सारी दुनियां का समाचार लीजिए, कुछ चैट शैट कीजिये, अपनी एक यूट्यब चैनल बनाइए, पलक क्षपकते ही किसी से बातें करिए। कारण कि अब पत्र लिखना भी छूट...
अपना ईमान कायम रखें
लघुकथा

अपना ईमान कायम रखें

अतुल भगत्या तम्बोली सनावद (मध्य प्रदेश) ******************** नैतिक शिक्षा हमें हर प्रकार के नैतिक ज्ञान से परिपूर्ण करती है। नैतिकता जीवन में जब मुसीबतें आती है तो अपना होंसला कायम रखने का जज्बा प्रदान करती है। बात उन दिनों की है जब हरि नाम का एक गरीब व्यक्ति अपनी गरीबी से परेशान था। उसने परिश्रम करने में कोई कमी नही रखी लेकिन उसकी मेहनत सामने ना आ सकी। लंबे समय के बाद वह और उसकी मेहनत एक धनी व्यक्ति की नज़रों में आ गयी। उसने हरि को अपने घर पर आने के लिए कहा। हरि दूसरे ही दिन उस व्यक्ति के घर पहुँच गया। उसने हरि को अपने खेत खलिहानों की निगरानी एवं मजदूरों से काम करवाने का उसे काम दे दिया। हरि बड़ा खुश था। उसने कभी ये उम्मीद ही नही की थी कि उसे इस प्रकार काम भी मिल पायेगा। बड़ी शिद्दत व ईमानदारी से वह अपना काम करता था। मालिक की नज़र में उसने अविश्वसनीय स्थान पा लिया था। अब वह...
आर्यावर्त के सूर्य
कविता, संस्मरण, स्मृति

आर्यावर्त के सूर्य

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** हे आर्यावर्त के सूर्य! तुम्हें क्या दीया दिखाऊँ!! हे मानवता के दिव्य उज्ज्वल रूप! बलिहारी जाऊँ। दीन-हीन-पीड़ितों के हित लहराय तुझ हिय में प्रखर कैसी अप्रतिम उत्कट सहानुभूति का अगाध सागर! सादा जीवन जीया औ सदा ही रखे उच्च विचार! अपनी कथनी करनी से दिखाय सदा उच्च संस्कार!! साहस, संघर्ष, पौरुष के साकार रूप रहे सदा तुम! सदा ही किये चुनौतियों मुश्किलों का सामना तुम!! जीवन के पथ पर अनवरत चलते अनथक राही तुम! सतत् प्रेरणा के शुभ स्रोत बने परम उत्साही तुम!! बालकाल से ही जीया अभावों का दूभर जीवन! खेलने-खाने की उम्र से ही करन लगे चिंतन-मनन!! मांँ की ममता से भी वंचित, हा महज आठ की वय में! झेला विमाता का दुर्व्यवहार औ पिता का धिक्कार!! कैशोर वय में ही आ पड़ा तेरे कोमल कंधों पर : पूरे परिवार-पाल-पोस के दायित्व...
मेरा पहला सावन
कहानी

मेरा पहला सावन

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** उसका चेहरा मुरझाया हुआ था। वह पिछले दो दिनों से उदास थी। माँ भी बेटी के कारण परेशान थी। अभी शादी को कुछ ही महीने हुए थे। क्यों बेटी, क्या बात है? झुमरी की आंखों से आंसू झर-झर बहने लगे। यह आंसू खुशी के थे। वह शर्माते-शर्माते बोली, माँ उनकी बहुत याद आ रही हैं। माँ झुमरी की बात सुनकर हँसे बिना ना रह सकी। क्या सचमुच झुमरी? झुमरी आगे कुछ ना बोल सकी। वह चुपचाप दौड़तीं हुई अपने कमरे में चली गई। उसने कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया। माँ बहुत हैरान थी। वह मन ही मन सोच रही थी कि उसकी बेटी पागल हो गई हैं। इतने समय बाद अपने घर आई है। पर उसका मन कहीं----। फिर वह खुद के ही माथे पर हाथ मारकर हँस पड़ी। झुमरी शादी के बाद से बहुत खुश रहती थीं। यहाँ आने का तो नाम तक नहीं लेती थीं। ऐसा भी क्या, पति मोह! वह झुमरी के कमरे के पास जाकर खड़ी हो गई। वह उ...
मित्र एक हो पर नेक हो
लघुकथा

मित्र एक हो पर नेक हो

अतुल भगत्या तम्बोली सनावद (मध्य प्रदेश) ******************** किसी गाँव में दो घनिष्ठ मित्र रहते थे। एक का नाम जय दूसरे का धीरेन्द्र था । दोनों ही अपने काम को बखूबी करते थे। पूरे गाँव में दोनों के चर्चे थे। एक समय ऐसा आया जब दोनों अपनी शिक्षा के लिए साथ साथ शहर में रहने लगे। शहर में रहते हुए उन्हें मात्र कुछ महीने ही हुए थे कि धीरेन्द्र गलत संगत में पड़ गया। उसे कुछ गलत आदतों ने घेर लिया था। वह अपनी आदतों के कारण घर से पढ़ाई के नाम पर लाया हुआ पैसा अपनी गलत आदतों में खर्च कर देता था। जब इस बात की भनक जय को लगी तब उसने वीरेंद्र को समझाने की बहुत कोशिश की परन्तु जिन लतों ने धीरेन्द्र को घेर रखा था वो उसका पीछा छोड़ने का नाम नही ले रही थी। अब तो धीरेन्द्र जय के सामने कभी सिगरेट तो कभी शराब पीकर आने लगा, नौबत यहाँ तक आ पहुँची कि अब वह जय की जेब से पैसे भी चुराने लगा। जय ने लाख क...
बीस साल बाद
कहानी

बीस साल बाद

सुधा गोयल बुलंद शहर (उत्तर प्रदेश) ******************** "बीजी, देखो मेरा करनू घर लौट रहा है पूरे बीस साल बाद। मैंने एक ही नजर में पहचान लिया। जरा भी नहीं बदला है। सुलेखा-सुचित्रा, तुम भी देखो। "खुशी से उछलती कूदती अखबार हाथ में लिए सावित्री अंदर भागी। "सवि पुत्तर, कौन करनू? तू किसके लौटने की खुशी में पागल हो रही है। यहां तो कोई करनू नहीं है। "बीजी ने आश्चर्य से पूछा। "देखो, वहीं करनू जो बीस साल पहले गुम हो गया था। "कहते हुए सावित्री ने अखबार बीजी के सामने फैला दिया और अंगुली से इशारा कर करनू का चित्र दिखाने लगी। उसकी आंखों में उमड़ी खुशी छुपाए नहीं छुप रही थी या कि बाहर आने को मचल रही थी। उसने बीजी के सामने से अखबार उठाया और करनू के चित्र को पागलों की तरह चूमने लगी। ये सब देख कर बीजी के दिल में घंटियां सी बजने लगीं। वे फौरन समझ गई कि सावित्री क्या कहना चाह रही है। करनू के मिलने के का...
आईना
लघुकथा

आईना

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** बहुत दिनों से कमरे में पड़े आईने को देखा ही नहीं था। शायद वह बुला रहा है, मन विचलित हुआ। धीरे से उसे उठाया ऊपर धूल की परत जमी थी। साड़ी के पल्लू से ही धूल साफ की। "अचानक अतीत ने मुस्कराते हुए हाथ पकड़ लिया।" अरे! अभी कुछ जिन्दगी बाकी है। आईना तो देख लिया करो। "खुश हो ना ! "हां हां, सब चित्र सामने है, वो देखो कहते, मैंने कार स्टार्ट करती मधु की ओर संकेत किया।' आई ! 'मैं दोस्त के साथ घूमने जा रही हूं, दस बजे तक लौट आऊंगी।" कार से जाती हुई मधु को मैंने दरवाजे की आड़ से देख लिया था। बीए एल एल बी कर रही मधु राष्ट्रीय खिलाड़ी, स्व. निर्णय की धनी तथा बड़ी समझदार पोती का मुझे गर्व था। उसकी हर हरकतें मेरी जिन्दगी से मिली जुली थी। फर्क इतना ही था उसे उसकी प्रत्येक ख्वाइश पूरी करने के अवसर थे, आधुनिक साधन उपलब्ध थे समाज की हर गतिविधि से वह पर...
गुरु के महत्व को अवलोकित करता पर्व… गुरु पूर्णिमा
आलेख

गुरु के महत्व को अवलोकित करता पर्व… गुरु पूर्णिमा

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** मानव जीवन में "गुरु" का महत्व वो स्थान रखता है। जिसके बिना मानव के महत्व और असितत्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती। तभी "मां" को प्रथम गुरु कहा गया है। जीवन में हम जिस व्यक्तिव से कुछ सीखते हैं वो हमारे लिए गुरु तुल्य है। जीवन को, जो उत्कृष्ट बनाता है। मिट्टी को, जो छूकर मूर्तिमान कर जाता है । बाँध क्षितिज रेखाओं में, नये आयाम बनाता हैं। जीवन को, जो उत्कृष्ट बनाता हैं। ज्ञान को, जो विज्ञान तक ले जाता है। विद्या के दीप से , ज्ञान की जोत जलाता है। अंधविश्वास के, समंदर को चीर, नवीन तर्क के, साहिल तक ले जाता है। मानवता की पहचान से, जो परम ब्रह्म तक ले जाता है। सत्य -असत्य, साकार को आकार कर जाता है। जीवन-मरण, भेद-अभेद के भेद बताया हैं। वह प्रकाश-पुंज , ईश्वर के बाद गुरु कहलाता है। कल आषाढ...
अकाट्य कर्मफल
कहानी

अकाट्य कर्मफल

डॉ. भोला दत्त जोशी पुणे (महाराष्ट्र) ******************** प्राचीन समय में एक राजा उदार, न्यायप्रिय और भगवद्भक्त था। भगवद्भक्त होने के कारण उसने महल की पूर्व दिशा में भगवान विष्णु का मंदिर बनवाया था | राजा अपने व्यस्त कार्यों के बावजूद ईश्वरचिंतन के लिए समय निकालता था एवं मंदिर में बैठकर मनन करता व कुछ समय के लिए ध्यान में खोये रहता था | काफी महीनों तक ढूँढने के बाद उसे मंदिर के लिए एक धर्माचारी ब्राह्मण मिल गया जो मंदिर की जिम्मेदारी संभाल सकता था | वह ब्राह्मण भी बड़ा ही संतोषी और ईश्वर का परम भक्त था | वह स्वतंत्र रूप से पूजा का काम करता था | राजा उसके काम और स्वभाव दोनों से ही खुश थे | एक दिन राजमहल में काम करने वाली दासी के मन में लालच आ गया था क्योंकि उसने सफाई करते समय कमरे में रखे हीरों के भंडार को देख लिया था | चोरी के कठोर दंड के बारे में दासी को जानकारी थी फिर भी लालच के...
बेरोजगारी : एक आर्थिक समस्या
आलेख

बेरोजगारी : एक आर्थिक समस्या

नूपुर जैन शंकर नगर दिल्ली ******************** पैसा- हमेशा एक चिंता का विषय बना रहता है, परंतु यही वह आधार भी होता है, जो हमारे जीवन के बुनियाद को निर्धारित करता है। यह हमारे लिए केवल एक सपना ही नहीं, बल्कि भारत में हर नागरिक का अपना एक अधिकार भी होता है। बेरोजगार की कमी भारत के प्रमुख मुद्दों में से एक है और जब तक इस मुद्दे का कोई स्पष्ट उपाय नहीं मिल जाता, तब तक इस पर पूर्ण रूप से विचार करने की आवश्यकता बनी रहेगी । बेरोजगारी- भारत की एक बहुत बड़ी समस्या है, जिसे समझना बहुत जरूरी है। वैसे तो भारत, मानव संसाधन के मामले में बहुत समृद्ध है, परंतु फिर भी हम वर्षों से बेरोजगारी की स्थिति में जीते आ रहे हैं। जो लोग पूरी तरह से बेरोजगार हैं ; उनका जीवन बहुत दयनीय है। जब तक यह बेरोजगारी की समस्या समाप्त नहीं हो जाती, तब तक हम अपने देश को एक कल्याणकारी राज्य के रूप में स्वीकार नहीं कर सकते ।...
विकृति
लघुकथा

विकृति

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वह सड़क किनारे मंदिर के पास नदियों के घाटों पर कहीं भी दिखाई देते हैं। अवलंबन विहीन कहीं अंधेरे में कहीं कड़ी धूप में ना कहीं और ना कहीं ठौर ठिकाना शरीर पर टंगे चिथड़े कपड़ों को संभाल ते सिर खुजाते कहीं हाथ पकड़ कर क्षुधाा बुझाते केवल एक चिंता पेट भरने की कहीं गिद्ध दृष्टि से देखते कहीं दया भाव आंखों में लिए आने वाले पथिक से आशा लगाए देखते हैं। उनका ना कोई अपना होता है ना ही परिचित ना अपनों की पहचान, कहीं कोई ना जाने कौन छोड़ गया अपनों को कैसी दर्द भरी चुभन होगी मन में कैसे सड़क पर छोड़ते हुए नजरें फेरी होंगी भूखे प्यासे वृद्ध देह को अपने से दूर करते हुए उन्हें आत्मा ने धिक्कार नहीं यह कैसी कठोरता यह कैसी बर्बरता यह कैसी विडंबना अपनों के प्रति मील के पत्थर से दूर बहुत दूर होते हुए छटपटाहट तो हुई होगी दिल भी रोया होगा। फिर भी मानव ...
कांटो की चुभन
कहानी

कांटो की चुभन

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** कुसुम का रो-रो कर बुरा हाल था। सुबह से ही सारा परिवार गम में डूबा हुआ था। पतिदेव मुझें बार-बार समझा रहे थे। अब रोने से कुछ नहीं होगा। जल्दी चलने की तैयारी करो। लंबा सफर है बंटी की तबीयत बिगड़ गई हैं। जल्दी करो गाड़ी आ गई हैं। सफेद रंग की कार देखकर मेरा माथा ठनक रहा था। कहीं कोई अपशगुन तो नहीं हो गया। पता नहीं बंटी को क्या हो गया हैं? परसों ही तो मुझसे मिलकर गया था। उस समय वह बिल्कुल स्वस्थ लग रहा था। रुपयों के लेन-देन को लेकर कुछ कहा-सुनी हो थी इनसे। मुझें दोनों ने ही कुछ भी नहीं बताया था। बंटी से पूछने की हिम्मत नहीं थी। और ये तो कुछ भी बताने को तैयार नहीं थे। जब इनसे बातचीत करने की कोशिश की तो सिर्फ इतना ही बोले थे। धन-दौलत, पैसा,जमीन-जायदाद बड़ी खराब चीज होती है। किसी के पास ज्यादा हो तो परेशानी, ना हो तो भी परेशानी। आखिर एकाएक...
पुण्यतिथि पिता की
कविता, संस्मरण

पुण्यतिथि पिता की

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** अठतीसवीं पुण्यतिथि पिता की, गंगा तट पर याद की। आई थी इस जन्म जयंती वर्ष में, माताश्री भी शरण में आपकी।। संघर्ष किया जननी ने तो, तप- शक्ति थी आपकी। क्यों छोड़ गए थे उस देवी को, क्या इच्छा थी आपकी।। हम तो दण्डित होते रहे पर, सेवा न कर पाए आपकी। उनको दंडित कौन करेगा, जिसने सेवा करने दी आपकी।। मिटा न सका कोई सिद्धांत, सत्पथ पर चलने के आपकी। थी इच्छा प्रबल अति शिक्षा की, अवधारणा मन में आपकी।। सहन न कर पाया लंपट वह, संतति उन्नति को आपकी। किया प्रयोग तंत्र विद्या का, मनस्थिति कैसे बिगाड़ी आपकी।। किया कुछ भी हो धृष्ट ने फिर भी, वह बराबरी न कर पाया आपकी। थे परम शिव- शक्ति उपासक आप, वह छाया भी न था आपकी।। आई जुलाई की तीसरी तिथि, जो जीवन ले गई थी आपकी। करता सुरेश जगतारिणी बन्दन, संरक्षण हेतु माता और आपकी।। परिचय ...
प्रयास ही श्रेष्ठ पूजा है
आलेख

प्रयास ही श्रेष्ठ पूजा है

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ********************  हमारे देश का सुप्रसिद्ध शास्त्र "योगवाशिष्ठ रामायण" उद्यम के विषय में क्या कहता है तुमने सुना है? "यदि मनुष्य ने ठीक-ठीक तथा सच्चे ह्रदय से प्रयास किया हो, तो इस संसार में कुछ भी अलभ्य नहीं है। किसी वस्तु की प्राप्ति की इच्छा से प्रेरित होकर यदि कोई सच्चा प्रयास करें, तो उसे निश्चित रूप से सफलता मिलेगी। मनुष्य अपने जीवन में कुछ पाने की इच्छा करें, उसे प्राप्त करने के लिए निरंतर प्रयास करता रहे, तो देर-सबेर वह अवश्य सफल होगा। परंतु उसे अपने मार्ग पर अटल भाव के साथ आत्मसात करते हुए बेहिचक चलना होगा।" इस जगत में बहुत से लोग अभाव तथा निर्धनता की गहराई से निकलकर सौभाग्य के शिखर पर पहुंच गए। केवल अपने भाग्य पर ही निरर्थक विश्वास रखने वालों ने नहीं, अपितु अपने उद्यम पर निर्भर रहने वाले बुद्धिमान लोगों ने ही कठिन तथा संक...
स्वामी है चाकर नही
आलेख

स्वामी है चाकर नही

धैर्यशील येवले इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** भारत की हजारो वर्षो से यह मान्यता रही है कि प्रकृति के संतुलन को कायम रखा जाय । यह मनुष्य व प्रकृति दोनों के लिए बहुत अच्छा है। परंतु वर्तमान में तरक्की के नाम पर जिस ढंग से प्रकृति का शोषण हो रहा है, इस सन्तुलन को अस्वाभाविक रूप से तोड़ा जा रहा है उससे ये लगता है कि लोभग्रस्त सभ्यता उसे रहने नही देगी। पूर्व में हम प्रकृति को माँ का दर्जा देते थे परंतु अब वैसा नही है अब प्रकृति केवल उपभोग का साधन बना दी गई है। ये भी सही है कि जब प्रकृति अपने पर आती है तो वो किसी का लिहाज नही करती। प्रकृति को मात्र विज्ञान के जरिये समझना मानव की भूल है उसे धर्म के साथ जोड़ कर भी समझना होगा और ये सनातन धर्म ने किया भी है। परंतु पश्चिम के दृष्टिकोण ने प्रकृति को केवल साधन समझने की भूल की है, प्रकृति को उन्होंने कभी माँ या मित्र नही माना। सनातन मत के ...
पद का मद
आलेख

पद का मद

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ********************  'मद' अर्थात 'घमंड' जी हाँ ! जिसका फलक विस्तृत भी है और विशाल भी।सामान्यतः देखने में आता है कि पदों पर पहुंचकर लोग खुद को शहंशाह समझने लगते हैं, पद के मद में इतना चूर हो जाते है कि अच्छे, बुरे, अपने, पराये का भी ध्यान नहीं रख पाते हैं।वे इतने गुरुर में जीते हैं कि वे ये भूल जाते हैं कि पदों पर रहकर पद की गरिमा बनाए रखने से व्यक्ति की गरिमा पद से हटने के बाद भी बनी रहती है। लेकिन पद का अहंकार कुछ ऐसा होता है कि लोग खुद का खुदा समझ बैठते हैं। ऐसे लोगों को सम्मान केवल पद पर रहते हुए ही मिलता है, लेकिन दिल से उन्हें सम्मान कोई नहीं देता। जो देते भी हैं, वे विवश होते हैं अपने स्वार्थ या भयवश और चाटुकारों की फौज उनका महिमामंडन और अपना हित साधती रहती है। ऐसे में पद के मद में चूर व्यक्ति इसी को अपनी छवि, अधिकार ,कर...
रंगमंच
कहानी

रंगमंच

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** नाटक और अभिनय के शौकिन रघुवीर जी आज शांत मुद्रा में लाॅन में बैठे थे। मौन चिंतन में मग्न थे। वे अपने अतीत की रमणीक स्मृतियों में विचरण करने लगे। रंगमंच से उपजा प्यार कब स्नेह पाश में बंध गया पता ही नहीं चला था। सीमा के साथ गृहस्थी की गाड़ी सुख से चलाते पचास साल गुजर गये थे। वाह ! 'सभी प्रकार के रोल अदा करने के बाद 'उम्र ने भी आराम करने का संकेत दे दिया था।' लेकिन रघुवीर का मन अभी भी अभिनय करना चाहता था। उन्हें याद आया, पत्नी सीमा भी बार बार कहती हैं, अब नाटक देखने नहीं जाना चाहिए और रंगमंच पर अभिनय भी नहीं करना चाहिए। उठने, बैठने, चलने में होने वाली तकलीफ कहती हैं रघुवीर जी अब घर में आराम करो। सीमा जानती है टीवी पर आने वाले नाटक, शहर के बड़े हाॅल में रंगमंचित नाटक देखना ही इनका जीवन था। अपने नाटक के हुनर को दिखाने के लिए जब-तक रंगम...
एक पल
आलेख

एक पल

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** समय का महत्व हर किसी के लिए अलग अलग हो सकता है। इसी समय का सबसे छोटा हिस्सा है "पल"। कहने सुनने और करने अथवा महत्व देने में अधिकांशतः हम लापरवाही में, भ्रमवश भले ही एक पल को अधिक भाव नहीं देते, परंतु हम सबको कभी न कभी इस एक पल के प्रति अगंभीरता, लापरवाही अथवा अनजानी भूल की भारी कीमत चुकानी पड़ जाती है। बहुत बिर मात्र एक पल के साथ कुछ ऐसा हो जाता है कि उसका विस्मरण असंभव सा होता है। वह अच्छा और खुशी देने वाला भी हो सकता है और टीस देता रहता ग़म भी। उदाहरण के लिए एक पल की देरी से ट्रेन छूट जाती है, एक पल की लापरवाही या मानवीय भूल बड़ी दुर्घटनाओं का कारण बन जाती है, धावक विजयी हो जाता है और नहीं भी होता। एक पल में लिए निर्णय से जीवन की दशा और दिशा बदल जाता। बहुत बार एक पल के आगे या पीछे के निर्णय अविस्मरणीय खुशी ...
असीम तुम्हारी कविता
संस्मरण

असीम तुम्हारी कविता

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** आज तुम्हारी फाइलों को तुम्हारे जाने के बाद लोगों को वापस देने के लिए कुछ किताबों के पन्नों में से एक डायरी का पन्ना निकला। मेरे छोटे भाई अनुज ने वह पेज उठाया और कहा दीदी आप की कविता। मेरी कविता मुझे हैरानी हुई कि असीम की फाइलों में मेरी कविता। लेकिन जब मैंने देखा तो मैंने उसे लिखावट देख कर बताया कि यह मेरी नहीं उनकी (असीम) कविता है। शीर्षक लिखा था....दर्द     दिल में ऐसा ...क्या होता है। खून के आंसू क्यों रोता है। निष्ठुरता की चादर ओढ़े, पैर पसारे जग सोता है। प्यार की भाषा कहां खो गई। भावनाएं लाचार हो गई। मतलब तक इंसान है सीमित। हमदर्दी भी कहां सो गई। नेक दिली थी ...सीखी हमने। सिर्फ आज तक "अपनों" से, चोट लगी तो संभलें ऐसे। जागे जैसे सपनों से। चोट पे चोट लगी दिल पे। पर रा...
बदलता वक्त… बदलते लोग…
कहानी

बदलता वक्त… बदलते लोग…

अरविन्द सिंह गौर इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** राकेश के पिता का देहांत १० वर्ष की उम्र में ही हो गया वह गांव में रहता था। उसकी मां ने उसे शहर लाकर पढ़ाने के लिए सब जमीन जायदाद छोड़कर वो शहर में आ गए और उसकी जमीन जायदाद पर उनके रिश्तेदारों ने कब्जा कर लिया। इस बीच जब थोड़ा बहुत समझदार हुआ तो उसने अपने गांव जाकर अपनी जमीन जाकर को देखनी चाही‌। राकेश की जमीन में अच्छी पैदावार नहीं होती थी पर वहां नहर निकलने के कारण वह जमीन पर अच्छी पैदावार होने लगी कीमत भी बढ़ गई। जब वह अपने गांव गया तो उनके रिश्तेदारों ने उसे जमीन कि कागजात भी दिए ना ही जमीन के पैसे भी दिए और उन्हें उल्टा मारने की धमकी दी इस कारण वह वापस शहर में आ गए। वक्त बदलता गया पढ़ाई करके राकेश सरकारी महकमे में बड़ा अधिकारी बन गया था उसकी शादी हो गई और शहर में उसने अपना स्वयं का बड़ा मकान बना लिया था। राकेश के एक लड़का एक...
कबाड़ी किंग
व्यंग्य

कबाड़ी किंग

रमेशचंद्र शर्मा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कबाड़ी वाला और व्यंग। सुनने में बड़ा अटपटा लगता है। कबाड़ में तो कचरे की भरमार रहती है। कचरे से व्यंग का उत्पादन सचमुच बड़ा ही विस्मयकारी है। इधर कबाड़ी वालों की देश में भरमार है। सोचता हूं यदि हिंदुस्तान में कबाड़ वाले नहीं होते तो अटालों का क्या होता है? पूरे देश का अटाला सड़कों पर जमा हो जाता। कुछ लोग जो अटाले को घरों में बड़े करीने से सजाकर रखते हैं। कबाड़ हमेशा कबाड़ नहीं रहता। यदि किस्मत बल्लियों मचले तो कबाड़ भी एंटीक की कैटेगरी में आ जाता है। कबाड़ने कितने ही कावड़ियों की लाइफ बना दी। मतलब जो सड़क छाप थे आज राजमार्ग पर फराटे दार अंग्रेजी में बतिया रहे हैं। हमारे शहर का एक कबाड़ी तो रातों रात लखपति की श्रेणी में आ गये। कावड़ची चाची बेगम के दिन इतनी जल्दी बदल गए। पूरे शहर के कबाड़ी उससे जलने लगे। शायद घूड़े के दिन भी इतनी ज...
बदलाव निश्चित है चाहे समय हो या भाग्य
कहानी

बदलाव निश्चित है चाहे समय हो या भाग्य

अतुल भगत्या तम्बोली सनावद (मध्य प्रदेश) ******************** रघु बड़ा उदास लग रहा था। उसके मन में न जाने कैसे कैसे विचार जन्म ले रहे थे जिसका कारण था उसके खेत की फसल। जी तोड़ मेहनत करने के बाद भी अब हर बार उसकी फसल बहुत कम आ रही थी। निराशा उसके मन मे घर बना रही थी। अखबारों में आए दिन किसानों के आत्महत्याओं की खबरें सुन-सुनकर उसका मन पसीजने लगा था, करे भी तो क्या? सामने बेटी ब्याह लायक हो चुकी और बेटा खेती करना नही चाहता उसका मन पढ़ लिखकर अफसर बनने के सपने देख रहा था। कर्जदारों का कर्ज चुकाना है, बेटे जो पढ़ाना है और बेटी ब्याहना है। कैसे होगा सब सोच सोचकर ही वह टूटता जा रहा है। अंततः उसने भी आत्महत्या का विचार बना ही लिया लेकिन वह एक दिन वह अपने परिवार के साथ सुकून से रहना चाह रहा था तभी उसकी पत्नी उसके पास आकर कहने लगी "आप व्यर्थ चिंता करते हो। इस पूरी दुनिया में सिर्फ हम ह...
कोरोना के चलते : किसानों की दयनीय दशा….
आलेख

कोरोना के चलते : किसानों की दयनीय दशा….

नूपुर जैन शंकर नगर दिल्ली ******************** आज पूरा विश्व कोरोना जैसी विशाल महामारी से लड़ रहा है। और यह बड़े दुख की बात है कि, इसके चलते भारत में सभी लोगों का जीवन बहुत बुरी तरह प्रभावित हुआ है। पिछले १ वर्ष से सभी लोगों में निराशा और चिंता का स्तर पहले से और अधिक बढ़ता हुआ ही पाया गया है। और इसी चिंता और निराशा के कारण, कई किसानों की दशा इतनी दयनीय हो गई है कि, उनमें "आत्म-हत्या" जैसे विचार भी पनपने लगे है। भारत में किसानों की दशा इतनी दयनीय हो गई है कि, वे सभी इस महामारी से अत्यंत दुखी एवं ग्रसित हो चुके है। उनके इस निराशा के पीछे कई कारण हो सकते हैं जैसे :- १. ऋण का भुगतान कर पाने में असमर्थ होना २. अनियमित मौसम की स्थिति के कारण फसलों को नुकसान पहुँचना ३. सिंचाई की पर्याप्त सुविधाओं का उपलब्ध न होना ४. सरकार के नीतियों में बढ़ती असमानता ५. स्वास्थ्य-संबंधी मुद्दे ६. व्य...
झुठी कसम
लघुकथा

झुठी कसम

डॉ. मोहन लाल अरोड़ा ऐलनाबाद सिरसा (हरियाणा) ******************** बात बहुत पुरानी है छोटी उम्र छोटी क्लास प्राईमरी स्कूल मे जाते ही सबसे पहले यही पढाया गया... झूठ बोलना पाप है चोरी करना पाप है। नन्हें दिमाग मे यही बात बैठ भी जाती है। जैसे-जैसे बड़े होते गए झूठ बोलना तो आम बात हो गई कुछ मजबूरी मे, कुछ आदत हो गई कभी डर कर तो कभी हंसी मजाक से झूठ बोलना और झूठी कसम खाना रोजमर्रा की जिंदगी मे आम सी बात हो गई। बड़े हो गए पढ लिख गए नौकरी भी लग गई परंतु झूठ बोलना और झूठी कसम खाना भी जिंदगी के साथ बढ़ा गया भगवान कसम मैं झूठ नहीं बोल रहा... और झूठ ही बोल रहा था क्योंकि सच बोलने के लिए कसम खाने की आवश्यकता ही नहीं है माँ कसम मैने ऐसा नहीं किया, तेरी कसम आगे से ऐसे नही करूंगा। ऐसी कसमे रोजाना खाना जिंदगी का एक फैशन सा हो गया है, चाहे कसम खाने की आवश्यकता ही ना हो फिर भी भगवान की झूठी कसम क्योंकि भगव...