मैं अक्सर भूल जाती हूँ
शशि चन्दन "निर्झर"
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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हां
मैं भूल जाती हूँ
सच कहा तुमने,
मैं अक्सर भूल जाती हूँ,
अपमान के घूंट
हर रोज़ पी जाती हूँ।
पर याद रखती हूँ
मिटाना सलवटें,
और उधड़ने लगे जो
कमीज़ …
चुपचाप सी जाती हूँ।।
हां मैं अक्सर भूल जाती हूँ
अपनी पसन्द न पसन्द,
उलझे से केश ....
साज शृंगार और मुस्कान,
पर याद रखती हूँ
कहीं बिगड़े न तुम्हारा
कोई भी जोड़ीदार जुराब ।
मैं अक्सर भूल जाती हूँ,
सरल सी ....
एक से दस तक की गिनती,
पर बखूबी याद रहता,
वो सत्रह का पहाड़ा ...
जो बचपन में कभी याद न था।
हां .... मैं .....
हां मैं अक्सर भूल जाती हूँ,
व्याकरण के नियम ...
मेरे लिए उपयोग हुए
पशुवत संबोधन।
पर याद रखती हूँ,
अपने से छोटों के लिए भी,
सम्मानजनक उद्वोधन।।
हां मैं अक्सर भूल जाती हूँ
इतिहास की बातें ....
भूगोल की बातें
पर याद रखती हूँ
...





















