जंगल राज
अशोक कुमार यादव
मुंगेली (छत्तीसगढ़)
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(छत्तीसगढ़ी बोली)
शेर ह बनके महाराजा,
जनता मन ल डहे ल धरलिस।
तुमन ल जियन नइ देवंव,
उबक के कहे ल धरलिस।।
कोने भड़कावथे तोला,
काखर बात-बिगित ल माने हस।
जातरी आ गेहे तोर परबुधिया,
बर्बाद करे बर ठाने हस।।
बंद कर दिस स्कूल ल,
कहिथे पढ़-लिख के का करहू।
अदि शिक्षा पा जहु त,
अपन अधिकार बर तुम लड़हू।।
नौकरी नइ खोलत हे एकोकनिक,
बेरोजगार हें परेशान।
पढ़त-पढ़त कई साल बितगे,
बुढ़वा होगें हें नवजवान।।
जीवन भर सेवा देवइया मन ल,
नइ मिलय जुन्ना पेंशन।
सेवानिबृत्त होय म कुछु नइ मिलय,
फेर बुता के हे टेंशन।।
गरीब के घर बिजली नइ जलय,
जलही कंडिल, चिमनी।
छूट नइ मिलय बिजली बिल म,
नगतहा पईसा ह बढ़ही।।
खुलगे दारु भट्ठी संगवारी हो,
पियव मन भर के सब दारु।
समाज हो जय भले खोखला,
नाचव अउ गावव समारु।।
लुट मचे हे जंगल राज म,
जनत...






















