बचपन के वो दिन
संध्या नेमा
बालाघाट (मध्य प्रदेश)
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वो दिन भी बचपन के थे कब
चले गए पता ही नहीं चला
बचपन भी कैसा था
हर तरफ खुशी ही खुशी
घर में कितना भी गम हो
चेहरे पर मुस्कान ही होती थी
बचपन में किसी चीज के लिए
जिद्द करना और रोना।
उस पर मां का मारना
उसके बाद भी फिर
मां की गोद में चले जाना
दादा-दादी के पास जाना
और मां पापा की बात सुनाना
दादी को पूरी बात सुनाना
फिर मां के पास
आकर मार खाना
दोस्तों के साथ दिनभर
खेलना फिर घर आना
फिर मां से सुनना
जा घर क्यों आया
उन्हीं के साथ रहना
किसी दुकान में कपड़े
और खिलौने के लिए
मचलना और जिद करके
रोना फिर वही मां का डराना
घर चल फिर बताती हूं
तेरे पापा को तेरी यह हरकतें
वह दिन भी बचपन के थे
कहां चले गए पता ही नहीं चला
परिचय : संध्या नेमा
निवासी : बालाघाट (मध्य प्रदेश)
घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती ह...