धागों का त्योहार
प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला, (मध्य प्रदेश)
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थिरक रहा है आज तो, नैतिकता का सार।
है अति पावन, निष्कलुष, धागों का त्योहार।।
बहना ने मंगल रचा, भाई के उर हर्ष।
कर सजता,टीका लगे, देखो तो हर वर्ष।।
उत्साहित अब तो हुआ, सारा ही संसार।
है अति पावन, निष्कलुष, धागों का त्योहार।।
आशीषों का पर्व है, चहक रहा उल्लास।
सावन के इस माह में, आया है विश्वास।।
गहन तिमिर हारा हुआ, बिखरा है उजियार।
है अति पावन, निष्कलुष, धागों का त्योहार।।
बचपन का जो साथ है, देता नित्य उमंग।
रहे नेह बन हर समय, वह दोनों के संग।।
राखी बनकर आ गई, एक नवल उपहार।
है अति पावन, निष्कलुष, धागों का त्योहार।।
इतिहासों में लेख है, महिमा सदा अनंत।
गाथा वेद-पुराण में, वंदन करते संत।।
नीति-प्रीति से रोशनी, गूँज रही जयकार।
है अति पावन, निष्कलुष, धागों का त्योहार।।
परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण ख...