पीडाएँ
मीना भट्ट "सिद्धार्थ"
जबलपुर (मध्य प्रदेश)
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अंधकार छाया है जग में,
संत्रासित हैं दसों दिशाएँ।
घर-घर में दुर्योधन जन्मे,
रोती रहती हैं माताएँ।।
पीडाएँ ही पीडाएँ हैं,
रक्षक ही अब भक्षक बनते।
दीप वर्तिका काँपे थर-थर,
वाणी से विष नित्य उगलते।।
छाए बादल जात-पाँत के,
लाल रक्त ही हैं बरसाएँ।
चिंताओं में जकड़ा मानव,
बढ़ती जाती है मृगतृष्णा।
गठबंधन है सरकारों का,
चीर-हरण से व्याकुल कृष्णा।।
आतंकी रावण ने घेरा,
मूर्छित लक्ष्मण हैं घबराएँ।
विपदाएँ ही विपदाएँ हैं,
झंझावातों ने भटकाया।
दुष्ट सुनामी की लहरों से,
तांडव जीवन में है आया।
साहस संयम सब खो बैठे
सपनों की अब लाश सजाएँ।
धर्म सनातन ध्वस्त हुआ है,
वेद -पुराणों को भूले हैं।
टूटे घर के साँझे चूल्हे,
संस्कार लँगड़े लूले हैं।।
नए अग्निबाणों से बादल,
महायुद्ध के हैं अब छाएँ।
परिच...