Tuesday, December 16राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

पद्य

दर्दे-ऐ-दिल
ग़ज़ल

दर्दे-ऐ-दिल

लाल चन्द जैदिया "जैदि" बीकानेर (राजस्थान) ******************** दर्दे-ऐ-दिल, किस को सुनाऊँ मैं गुजर रहे है दिन, कैसे बताऊँ मैं, तन्हाइयों से तंग आ गया जनाब, हर बात, अब कैसे समझाऊँ मैं। मजे लोग लेगे ये सोच चुप रहता, खुद का दिल खुद से बहलाऊँ मैं। दुनिया मे मुझे गम, सभी ने दिऐ है इल्जाम अब ये किस पे लगाऊँ मैं। कुरेद रहे है जख़्म जो बारबार मेरे बेरहम जख्मो को कैसे दिखाऊँ मैं। खुश है देख मुसीबत मे रक़ीब मेरे उनसे बताऐं कैसे प्यार निभाऊँ मैं। शब्दार्थ :- रक़ीब :- प्रतिद्वंद्वी परिचय -  लाल चन्द जैदिया "जैदि" उपनाम : "जैदि" मूल निवासी : बीकानेर (राजस्थान) जन्म तिथि : २०-११-१९६९ जन्म स्थान : नागौर (राजस्थान) शिक्षा : एम.ए. (राजनीतिक विज्ञान) कार्य : राजकीय सेवा, पद : वरिष्ठ तकनीक सहायक, सरदार पटेल मेडिकल कोलेज, बीकानेर। रुचि : लेखन, आकाशवाणी वार्ताकार, सम्मान :...
वक्त का इम्तिहान
ग़ज़ल

वक्त का इम्तिहान

आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वक्त का इम्तिहान होता है कितना गहरा निशान होता है आंधियों में बचा कहां है कुछ वाकया ए बयान होता है मुद्दतों बाद इतनी शोहरत हो कोई इक खानदान होता है मुफलिसी में न छत न दरवाजा ना कोई आसमान होता है अपनें बच्चों की परवरिश खातिर बाप तो बागवान होता है परिचय :- आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एमए (हिंदी साहित्य) लेखन : गीत, गजल, मुक्तक, कहानी, तुम मेरे गीतों में आते प्रकाशन के अधीन, तीन साझा संग्रह में रचनाएं प्रकाशित, १० से ज्यादा कहानियां पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, ५० से ज्यादा गीत के चल पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, २०१६ से लेखन में अभिरुचि विशेष : आध्यात्मिक प्रवक्ता एस्ट्रोलॉजर। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्...
टेसू के फूल
कविता

टेसू के फूल

डॉ. जयलक्ष्मी विनायक भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** क्या तुम अश्रुसिक्त नयनों की लालिमा हो ? अस्त होते अलसायी सूर्य की गरिमा हो? क्या किसी प्रज्वलित ज्वाला की धधक हो? शूरवीर योद्धा की रक्तरंजित तलवार हो ? जो कुछ भी हो एक टीस सी उठती है तुम्हें देखकर ओ टेसू के फूल पर्णहीन हो, दिखते हो कितने गरिमाशील, होली के आगमन के प्रतीक, चंद दिनों के मेहमान, क्षणिक ख़ुशी के मीत कहाँ कमल का फूल कहाँ टेसू एक कीचड़ का मित्र दूसरा गगन का दीप एक लक्ष्मी का वास दूसरा दिलाता होलिका की याद पर है दोनो फूल लालिमायुक्त, क्षणिक, झणभंगुर। परिचय :-   भोपाल (मध्य प्रदेश) निवासी डॉ. जयलक्ष्मी विनायक एक कवयित्री, गायिका और लेखिका हैं। स्कूलों व कालेजों में प्राध्यापिका रह चुकी हैं। २००३ में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर संगीत और साहित्य में योगदान के लिए लोकमत द्वारा ...
क्या बना दिया ?
कविता

क्या बना दिया ?

भारमल गर्ग "विलक्षण" जालोर (राजस्थान) ******************** देख रहे हो ऐसे यह तुमको नहीं ख़बर यह आद'मी था कभी धुआं बन गया ।। जिस मांझी ने हमको बताया तू है कहां ? उस मांझी ने दिखाया मेरा हुनर बन गया ।। पल भर की खुशियां किसको नहीं पता उन रेशमी धागों ने जीवन बना दिया ।। मैं जा रहा था अकेला इक रस्ते से कहीं इक खिड़की ने देखा दिन बना दिया ।। सोच रहे हो जिसको वो नहीं आज कल मसअ'ला देखते ही वीराना बना दिया ।। नज़रों का तो हैं यह सारा खेल मेरे दोस्त मैं सोचने लगा कि तुझे क्या बना दिया ।। यह तुम्हारा सोचना हैं बड़ी सोचने की बात तू समझा नहीं तुझे आशिक़ बना दिया ।। उस साख से पत्ता टूटते ही लगी ख़बर इक घर के दीए को तारा बना दिया ।। आई हवाएं सुरीली जैसे कोई मीत संगीत विलक्षण तेरी यादों ने क्या-क्या बना दिया ।। परिचय :-  भारमल गर्ग "विलक्षण" निवासी...
बैठती है
ग़ज़ल

बैठती है

डॉ. जियाउर रहमान जाफरी गया, (बिहार) ******************** न यों फूलों पे सुर्खी बैठती है तुम्हारे लब पे तितली बैठती है फिराया था कभी जो उंगलियां मैं ना अब बालों में कंघी बैठती है जो तुम पैवस्त हमे में हो गए हो दिसंबर की भी सर्दी बैठती है मुझे बाहर से मुश्किल है समझना बहुत अंदर से हल्दी बैठती है ना उस कॉलेज में पढ़ना मुझे है जहां बाहर से लड़की बैठती है परिचय :-  डॉ. जियाउर रहमान जाफरी निवासी : गया, (बिहार) वर्तमान में : सहायक प्रोफेसर हिन्दी- स्नातकोत्तर हिंदी विभाग, मिर्जा गालिब कॉलेज गया, बिहार सम्प्रति : हिन्दी से पीएचडी, नेट और पत्रकारिता, आलोचना, बाल कविता और ग़ज़ल की कुल आठ किताबें प्रकाशित, हिन्दी ग़ज़ल के जाने माने आलोचक, देश भर से सम्मान। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कवित...
जीवन में रंग भर जाए
कविता

जीवन में रंग भर जाए

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** मैं तेरे प्यार में रंग जाऊं होली के रंगों की तरह मेरे जीवन में बहार आ जाए वसन्त के ऋतु की तरह। मैं तेरा हमसफर बन जाऊँ बागों के बागबान की तरह मेरा जीवन भी महक जाए फूलों के खुशबू की तरह। मैं तेरा सिंदूरी रंग बन जाऊँ पलास के फूलों की तरह मेरे जीवन मे रंग भर जाए रंगीले फागुन की तरह। मैं तेरा संगीत बन जाऊँ फागों के सरगम की तरह मेरा मन-मयूरा झूम जाए बांवरा भ्रमरों की तरह। मैं तेरा भ्रमर बन जाऊँ फूलों के दीवानों की तरह ये तनमन मदहोश हो जाए मधु के पीने वालों की तरह। मैं तेरा प्रेम दूत बन जाऊँ वसन्त के कोयल की तरह मेरे जीवन में मदहोशी आए अमराई के बौरों की तरह। परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुर...
सब कुछ बदला-बदला देखा
कविता

सब कुछ बदला-बदला देखा

डॉ. सुलोचना शर्मा बूंदी (राजस्थान) ******************** इक दिन... अपनों, सपनों और सफर से कुछ उकता कर कुछ घबराकर.. ‌ खुद ही खुद से मिलने पहुंची .. ‌ तो सब कुछ बदला-बदला देखा.. सोचा था सब सूना होगा, पर... ‌तनहाई को बातें करते ‌ खा़मोशी को गाते देखा! दम तोड़ते द्वेष देखा अवसादो को हंसते देखा! सब कुछ बदला-बदला देखा!! ‌ ‌लगा सिसकते होंगे घाव, ‌पर... ‌ज़ख्म तुरपते कांटे देखा, ‌ दुविधा को भरमाते देखा! व्यथा सुलाती नींदें देखी गम को लोरी गाते देखा सब कुछ बदला बदला देखा ‌ ‌लगी खोजने मैं क्या हूं? तो... बाधा की जड़ 'मैं'को देखा इस जीवन के मर्म को देखा परमेश्वर के रूप को देखा ‌परमशांति के चरम को देखा ! सब कुछ बदला-बदला देखा!! खुद ही से जब मिलकर आई.... ‌भ्रम नहीं सब यथार्थ देखा स्वार्थ नहीं परमार्थ देखा सब में मैं हूं सब मुझ में है ‌ सब जन में अपने को देखा!...
हौसला पंछी का पिंजरा
कविता, छंद

हौसला पंछी का पिंजरा

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** छंद काव्य उमर नही होती है जिनकी, फिर भी शैल उठाया है रखते पास हौसला पंछी, पिंजरा भी उड़ाया हैं। जब होनहार बिरवान सुना, हर पीढ़ी सुनते आए किसी का दायित्व भी बनता, खुद से वो कितना गाए तकदीर लिखाकर जो आता, खून पसीने की खाए बेगानों की बात नहीं थी, अपनों से धोखे पाए नौ मन तेल बिना ही कैसे, तिगनी नाच कराया है। दिल में नफरत दीवारें थीं, फिर भी साथ बिठाया है। उमर नहीं होती है जिनकी, फिर भी शैल उठाया है। रखते पास हौसला पंछी, पिंजरा भी उड़ाया है। धोखा विश्वास नदी पाट से, दोनों अलग किनारे हैं दोनों मिल जाए मनुष्य को, तकदीरों के मारे हैं बनती वजह लिहाज चाशनी, सदा समंदर खारे हैं स्थिर जीवन कबूल नहीं फिर, मानो बहते धारे है तिनका मोरपंख बन जाए, सिया कटार बनाया है। अग्रिम पंक्ति में खड़े दिखे, अल्प धन ही कमाया है। उमर नहीं होती ...
यादें मेरे गांव के
कविता

यादें मेरे गांव के

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** यादें मेरे गांव के आने लगे हैं, मिट्टी मेरे गांव के बुलाने लगे है बचपन की यादें, बसी हैं गांव में, खेले हैं खेल बरगद की छांव में यादें मेरे गांव के आने लगे है...! पहली बारिश में जमकर नहाना घर की छत से पतंग को उड़ाना नदि, नहर में डुबकियाँ लगाना कागज की नाव पानी में बहाना यादें मेरे गांव के आने लगे है...! रेत में अपना आशियाना बनाना किचड़ में मस्ती से खेल खेलना हाथो से मिट्टी के खिलौने बनाना बरगद के बरोह में झूला झुलना यादें मेरे गांव के आने लगे है...! पेड़ो, पौधों में पक्षी का चहकना घर आंगन में तुलसी का महकना गर्मी में घर के आँगन में सोना ठण्ड के दिनों में अलाव जलाना यादें मेरे गांव के आने लगे है...! परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीस...
रंग
कविता

रंग

प्रीति तिवारी "नमन" गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** लाल गुलाबी नीले पीले बहु रुप होते हैं रंग, सँवर है जाता जीवन इनसे, अपने जब होते हैं संग। धुलने ना पाएँ बारिश में, घनी धूप में उड़े नहीं, प्राण बिना जैसे हो जीवन, ये जब हो जाते बेरंग।। अलग-अलग रंगों का होता, जीवन में स्थान अलग, रंगों से यह प्रकृति है सुन्दर, अनुभूति ये हो न विलग। रंगों से खुशहाली आती, नयनों को भाते है रंग, दुख में फीके पड़ जाते हैं, सुख में गहराते हैं रंग। मुस्कानों में फूल से खिलते, आंसू संग बह जाते रंग, प्रेम दया भाईचारा भी, सिखलाते जीने के ढ़ंग। कुछ यादों, वादों भावों के, रंग मन को भीगा कर जाते, कुछ खट्टे कड़वे अनुभव, अवसाद के रंग सीना भर जाते। खाकी केसरिया है छाये, दुश्मन से होती जब जंग, स्वेत रंग शांति का होता, स्मृद्धि की हरी पतंग।। सिन्दूरी है प...
चुप-चुप सी शहनाई क्यों है?
ग़ज़ल

चुप-चुप सी शहनाई क्यों है?

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** चुप-चुप सी शहनाई क्यों है? महफ़िल में तन्हाई क्यों है? रात से पहले ही जिस्मों में, नींद चढ़ी अँगड़ाई क्यों है ? सोच हमारी एक सही पर, बात कहीं टकराई क्यों है? झूठों को आसानी सारी, मुश्किल में सच्चाई क्यों है? जो है अपने मन के मौजी, फ़िर उनकी रुसवाई क्यों है? अच्छे दिन वालों पर भारी, आख़िर ये महँगाई क्यों है? दावे दारी है असली की, नकली से भरपाई क्यों है? कुछ तो हो नम रहने वाली, सब आँखें पथराई क्यों है। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : ...
क्या है ये दुनिया
कविता

क्या है ये दुनिया

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** ये दुनिया बहुत सुंदर है मुझे रहना नहीं आया। ये जिंदगी बहुत खूबसूरत है मुझे इसे जीना नहीं आया। दिया क्या कुछ प्रकृति ने इसे भोगने के लिए। मगर मेरे मन में तो कुछ और चल रहा था। इसलिए छोड़कर राजपाठ निकल गया मैं वन को।। बड़े ही भाग्यशाली है जो इस दुनिया में रहते है। और खुशी से जीते है इस खूबसूरत दुनिया को। भले ही समझे न लोग मुझे इस दुनिया में। मगर मुझे तो ये दुनिया बहुत ही सुंदर लगती है। इसलिए तन्हा रह कर मैं जिंदगी को जीता हूँ।। मुझे तो बस चिंता बहुत है दुनिया को बनाने वाले की। जिसने कितनी श्रृध्दा और मेहनत से इसे बनाया था। और इसमें पशु-पक्षी के संग इंसानो को भी बसाया था। पशु-पक्षी तो स्नेह प्यार से इसमें रहने लगे। मगर इंसान ही इंसान को इसमें समझ न सका।। सच कहे तो ये दुनिया बहुत सुंदर है। इसमें जीना औ...
जीवन सुख-दुःख का मेला
कविता

जीवन सुख-दुःख का मेला

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** जीवन सुख-दुख का मेला मेरे भाई, निशा भी होगी दिवस भी होगा | मत घबराना गमन आगमन से, कुछ संजय सुरेश के बस में न होगा || विधि ने जीवन जिसका रचा होगा, किस तिथि उद्भव, मोक्ष किस तिथि होगा | निशा भी होगी दिवस भी होगा, विषय न संजय का न सुरेश का होगा || मिट्टी तेरी मेरी तो धरा से मिलेगी, संबंध मेरे भाई जब तक है जीवन | आत्मा एक दिन परमात्मा से मिलेगी, है मोहमाया ही गृहस्थ जीवन || शाश्वत है आत्मा शाश्वत ही रहेगी, रहता है दिवस तो निशा भी रहेगी | चली है मेरे भाई जीवन चर्या चलेगी, रहता दिवस तो निशा भी तो रहेगी || नहीं दु:ख करें कभी तन नाशवान, आत्मानुभूति तो सदा ही रहेगी | सत्कर्म सदैव करते रहें तो, सुखानुभूति तो सदा ही रहेगी || परिचय :- सुरेश चन्द्र जोशी शिक्षा : आचार्य, बीएड टीजीटी (संस्कृत) दिल्ली प्रशासन निवासी : विन...
हो युद्ध विराम! युद्ध विराम!
गीत

हो युद्ध विराम! युद्ध विराम!

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** मानवता को मिले शान्ति और हो आराम हो युद्ध विराम! युद्ध विराम! ना डर हो किसी का और ना हो अत्याचार धरा पर ना रहे दुख दर्द और लाशों का भार घर छोड़ ना पड़े किसी का शरणार्थी नाम हो युद्ध विराम! युद्ध विराम! ना रोए बहू और ना फटे मां का कलेजा हे प्रभु! तू ही आ अमन और चैन देता बने होली की भोर और दिवाली की शाम हो युद्ध विराम! युद्ध विराम! ना खून की नदी और ना हो आसूं की बाढ ना छिपे मानव मानव से बंकरों की आड़ नितिन का प्रभु के चरणों में बारम्बार प्रणाम हो युद्ध विराम! युद्ध विराम! परिचय :- नितिन राघव जन्म तिथि : ०१/०४/२००१ जन्म स्थान : गाँव-सलगवां, जिला- बुलन्दशहर पिता : श्री कैलाश राघव माता : श्रीमती मीना देवी शिक्षा : बी एस सी (बायो), आई०पी०पीजी० कॉलेज बुलन्दशहर, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ से, कम...
भक्त माता कर्मा की महिमा
भजन, स्तुति

भक्त माता कर्मा की महिमा

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** गाओ जी मां कर्मा की महिमा गाओ जी मां कर्मा की महिमा जीवन सुखमय आराम है... जय कर्मा बोलो, जय कर्मा बोलो जय कर्मा बोलो, जय कर्मा बोलो नारी शक्ति में कर्मा महान है... कहलाती है मेवाड़ की मीरा तेलीय वंश की है भक्त हीरा जगन्नाथ पुरी में उनकी धाम है... गाओ जी मां कर्मा की महिमा जीवन सुखमय आराम है... बचपन से ही भक्ति भाव में लगी है भक्त बनके भगवान की दृष्टि जगी है खिचड़ी खिलाना सदा काम है ... गाओ जी मां कर्मा की महिमा जीवन सुखमय आराम है... अपनी प्रतिभा से आभा बिखेरती जन मानस में कल्याण कारज करती कुल देवी को करते सलाम है... गाओ जी मां कर्मा की महिमा जीवन सुखमय आराम है... भावों की धनी और विचारों की मणि है सद्भाव सद्कर्म से ही संत शिरोमणि है नारी शक्ति व भक्ति में नाम है ... ...
बचपन
कविता

बचपन

मनीष कुमार सिहारे बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** ना कुछ पाने का शौक था ना कुछ खोने का गम था बिना कपड़ा के तन था मिट्टी से सना बदन था मां के हाथों में डंडा कंचा से जेबें तन (तन्यता) था घर में सबका लाडला मै फिर भी मैं अतलंग था बालपन में ऐसे जैसे उड़े गगन पतंग था ना चिंता, ना फिकर किसी का ना खोया किसी में मन था कुछ ऐसा मेरा बचपन था कुछ ऐसा मेरा बचपन था ना कोई छल कपट ना मित्रों में फरेब था मित्रता की एक डोरी बगावत टोली समेत था विद्यालय की वेश भूषा मां पहनाएं शर्ट सफेद था वापसी की संध्या बेला वही शर्ट बलेक (धूल धूल) था मित्रों के साथ में दूर घर से मन मलंग था फिर मां की पूजा-आरती से लाल लाल बदन था कुछ ऐसा मेरा बचपन था कुछ ऐसा मेरा बचपन था ना थिरकते पांव जमीं पर ना थिरकते आसमान था मैं मां का लाडला इस बात का अभिमान था दौड़ धूप ऐसे जैसे बिल्कुल न...
हे नववर्ष अभिनन्दन है…
कविता

हे नववर्ष अभिनन्दन है…

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** हिन्दू नववर्ष तुम्हारा अभिनन्दन है हर्षित है जग सारा करता तुम्हारा वन्दन है सूरज की नवल किरणें करती जग वन्दन है अभिनन्दन-अभिनन्दन नववर्ष तुम्हारा वन्दन है फूले किंशुक पलाश फूली सरसों पीली फूले फूल तीसी नीली-नीली हुलसित पक गई खेतों में गेहूँ की सुनहरी बालियाँ कमल खिली लगी मुस्कुराने ताल हुई हर्षित बागबां महक उठे जब खिले फूल-फूलन खेतों में मेड़ों में सुवासित कछारन कूलन अतृप्त मन प्यासी धड़कन मिटने लगी जलन आनन्दित होकर चुन-चुन गजरा बनाई मालिन धरा ने ओढ़ ली सुनहरी चादर की किरणें मोतियों ज्यों चमकने लगी पत्तों में ओस की बूंदें लहक-लहक लहकने लगी कानों के बूंदें स्मित रक्तिम अधरों पर मुस्कुराती जल बूंदें सतरंगी रंगों से रंगने लगी घर आंगन और बाग बहकने लगी आम अमरैया दहके मन की आग फूले फूल टेसू के ऐसे ...
जुड़े गाँठ पड़ जाती
कविता

जुड़े गाँठ पड़ जाती

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** दोनों तरफ खिचाव बहुत है, इसीलिए रस्सी टूटे। जीवन की आपाधापी में, खून मयी रिश्ते छूटे। है जीवन संग्राम जटिल अति, सब अपने में मगन हुए। धरती को धरती पर छोड़ा, समझ रहे वह गगन छुए। जड़ के बिना कोई भी पौधा, नहीं फूल फल सकता। रहे प्यार से जो अपनों सँग, कभी नहीं है थकता। खींचतान आपस में कर के, चले तोड़ने रिश्ते। जो अपनों को पीड़ा देते, खुद पीड़ा में पिसते। स्वार्थ हो गया सब पर भारी, टूटी सबसे यारी। कहीं खून के रिश्ते टूटे, टूटी रिश्तेदारी। रस्सा कस्सी की रज्जू ज्यों, अतिबल से टूटी है। उसको तोड़ रहे हैं वे, जिनकी किस्मत फूटी है। गर हिल मिल कर रहें साथ में, ताकत बढ़ जाती है। एक साथ जब चलती चींटी, पर्वत चढ़ जाती है। रिश्तों की रज्जू नाजुक है, बहुत अधिक ना खींचें। अपनेपन, स्नेह- प्यार से, ...
लहरें
कविता

लहरें

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** क्यों टकराती हो कूल से जानती नहीं तुम्हें लौट आना होगा पुनः पवन के थपेड़े सहने के लिए तुम लहर हो, नारी हो सहनशक्ति का पर्याय बनो। तलाक के स्थिर जल में तुम्हें बहना नहीं है केवल कूल से टकराकर लौटना होगा प्रत्यागमन के लिए पवन के साथ खेलते समय बीता है बीच तडाग के तड़क तुम्हें त्याग देगा कूल के लिए तुम जानती नहीं, ना समझ पाती हो पानी पवन का वार्तालाप जो स्वयं के सुख के लिए तडाग की सुंदरता के लिए तुम्हें संघर्ष करने के लिए कूल तक भेजते हैं दूर बहुत दूर से तुम्हारा छटपटाना देख उल्सीत हो फिर से पवन पानी मिल तुम्हें धकेलते है अपनी सुंदरता के लिए प्रकृति प्रेमी को निहारने के लिए उसे गुनगुनाने, कलम चलाने के लिए बाध्य करते हैं ताकि इतिहास रचा जा सके जनमानस में स्फुरण भर सके।। परिचय :- इंदौर निवास...
रघुवर कब तक आओगे
गीत

रघुवर कब तक आओगे

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** मात्रा भार--१६--१४ जग से अत्याचार मिटाने, रघुवर कब तक आओगे। कब से राह तकें हम तेरे, कब दर्शन दिखलाओगे।। क्रंदन करती धरती माता, कष्ट नहीं सह पाती है। अपने पुत्र जनो का दुखड़ा, इसको खूब रूलाती है।। कब इसके रूखे उपवन में, प्रेम सुधा बरसाओगे।। छिड़ी हुई है जंग जहाॅ में, निज प्रभुता दिखलाने को। साधन हीन लगे हैं जग में, निज अस्तित्व बचाने को।। साधन वानो को कब आकर, राह सही दिखलाओगे।। धरती से अम्बर तक खतरा, साफ दिखाई देता है। कुदरत रहकर मौन हमेशा, सारे गम सह लेता है।। धधक रही इस सृष्टि को कब, आकर तुम हर्षाओगे।। नहीं सुरक्षित जग में कोई, आज़ यहाॅ हैं नर नारी। मानवता पर भी छाई है, आज यहाॅ संकट भारी।। राम इन्हें मानवता का कब, आकर पाठ पढ़ाओगे।। परिचय :- रामसाय श्रीवास "राम" निवासी : किरार...
नारी सौंदर्य
कविता

नारी सौंदर्य

नीलू कानू प्रसाद उदलाबारी (पश्चिम बंगाल) ******************** नारी हूं मैं, अपने घर की खूबसूरत, किलकारी हूं मैं, आज बेटी हूं, तो कल किसी और, घर की लक्ष्मी, कभी दुर्गा तो कभी काली, नारी हूं मैं। पूरा संसार चलाने की, ताकत रखती हूं मैं, अपने पिता की शान हूं मैं, मेरी पहचान, मेरे घुंघराले बाल, मेरी एक मुस्कान, जो मेरे पूरे परिवार की, गमों को भुला देती है। नारी की कोमलता इतनी कि, हर कठोरता को पिला देती है। परिचय :- श्रीमती नीलू कानू प्रसाद निवासी : उदलाबारी (पश्चिम बंगाल) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अ...
नव बना रहे हिंदुस्तान
कविता

नव बना रहे हिंदुस्तान

डॉ. निरुपमा नागर इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** संवत् विक्रम, करते हैं तुमको नमन नव ऊष्मा बन लाए नव चितवन है तुमसे नवागत गुड़ी पड़वा चैत्र नवरात्र का है जलवा बैसाखी करती मन पुरवा राजीव लोचन आए पलना झूलेलाल की झांकी महान् नवरोज की भी रखते शान आम्रफल से सज गया उपवन देखो, नव पल्लव, नव धान वसुधैव कुटुंबकम् की तुम पहचान नव निधि साथ लिए नव बना रहे हिंदुस्तान। परिचय :- डॉ. निरुपमा नागर निवास : इंदौर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप...
ज्ञानी सन मिलो तो
आंचलिक बोली

ज्ञानी सन मिलो तो

परमानंद सिवना "परमा" बलौद (छत्तीसगढ) ******************** छत्तीसगढ़ी ज्ञानी सन मिलो तो ज्ञान मिलही सच्चाई के रास्ता मिलही, अज्ञान से मिलो तो गलत व्यवहार सिखे ला मिलही.! संसार मे दो तरह के इंसान अच्छा बुरा तोला इही मे चुने ला पढही, अच्छा बुरा के संगत ला परखे ला पढही.! अच्छाई के बात बताही जो जन्म दिये मां बाप और गुरु, ये दुनिया मे इज्ज़त बनाही तोर व्यवहार.! संगत ला जान ले सुख दुख के रददा ला पहिचान ले, सब के इज्ज़त करले दुनिया मे इज्ज़त सम्मान कमा ले..!! परिचय :- परमानंद सिवना "परमा" निवासी - मडियाकट्टा डौन्डी लोहारा जिला- बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छाया...
मन में उठे एक तरंग
कविता

मन में उठे एक तरंग

शत्रुहन सिंह कंवर चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी ******************** मन में उठे एक तरंग सोच-सोच के हुई मन में उलझन क्या चले मन में विचार कोई ना जाने मन का सवाल कभी इधर तो कभी उधर दौड़ता ही रहता हर पल ना थके कभी, कभी ना हारे होता है फिर भी मन में बात मन की बाते कोई ना जाने होता है मन में क्या क्या व्यथा मैं बताऊं मन की बात सृष्टि को छानकर बैठा है जहां जा ना सके हम वह गया है मन का विस्तार रुकता नहीं मैं कभी करता हूं निश्चर एक सवाल अच्छे बुरे का है समझ मुझे फिर भी है एक उलझन ख्याल मन में है कितना संसार ये बाते मन ही जाने क्या से क्या किया मन में लगे एक सच्चा यह संसार मन की व्यथा अब मैं क्या बताऊं मन में उठे हर बार एक सवाल। परिचय :-  शत्रुहन सिंह कंवर निवासी :  चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरच...
मां की अभिलाषा
कविता

मां की अभिलाषा

डॉ. कुसुम डोगरा पठानकोट (पंजाब) ******************** मां की हसरत सिर्फ इतनी सी रही होगी बेटे की गोद में सिर रख कर रोऊं लिपट जाऊं उसके कंधे से कुछ इस तरह कि जैसे बच्चा हो जाऊं उसकी देखरेख में दिन बिताऊं लोरी दे कर वो मुझ को सुलाए खाने का कोर अपने हाथ से खिलाए जब मैं वृद्ध हो जाऊं बचपन में मां बच्चे का जो संबंध है बनता बिना किसी अपेक्षा लिए है होता कुर्बान कर जाती मां अपनी हस्ती भूल कर अपने जीवन की हर मस्ती सुबह उसी से, रात्रि उसी के संग लाड-लड़ाती बदल-बदल कर रंग मां की ममता का ही मोल चुकाना चाहे अगर कोई किशोर तो मां से ना करे तकरार किसी भी रोज़ तो मां से ना करे तकरार किसी भी रोज़ परिचय :- डॉ. कुसुम डोगरा निवासी : पठानकोट (पंजाब) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी क...