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पद्य

प्रकृति संरक्षण
कविता

प्रकृति संरक्षण

ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' तिलसहरी (कानपुर नगर) ******************** देखो आज कितना बुरा समय है आया चारों ओर दिख रही है मृत्यु की छाया। आदमी हर पल हर तरह से मजबूर है, ऑक्सीजन बनी जैसे छाया खजूर है। हर तरफ ऑक्सीजन की मांग हो रही, अस्पतालों में जिंदगी मौत में खो रही। मानव अब भी समझ जा अपनी गलती, झूठे विकास से ही बंजर हुई यह धरती। साफ कर जंगलों को तूने महल हैं बनाए, स्वकृत्य से धरा को खून के आंसू रुलाए। धन की वासना में मानवता की बलि चढ़ाई, माया के लिए तूने संस्कारों की होली जलाई। तुच्छ जीव ने विकास का दर्पण दिखा दिया, बड़े-बड़े देशों को मृत्यु के आगे झुका दिया। अब प्रकृति के संरक्षण का बीणा उठाओ, भविष्य की आपदाओं से जग को बचाओ।। परिचय :- ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' जन्मतिथि : ०६/०२/१९८१ शिक्षा : परास्नातक पिता : श्री अश्वनी कुमार श्रीवास्तव माता : श्रीमती वेदवती श्रीवास्तव निवासी : ...
शब्दों की गरिमा
कविता

शब्दों की गरिमा

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** शब्दों के हाहाकार ने कहीं किया सत्कार तो कहीं तिरस्कार पर इन सब के बीच है दरकार कि शब्दों की गरिमा को बरकरार रखना भी है एक करिश्मा बस वाणी सँभाल ले यह अनिवार्य जिम्मा परिचय :- प्रियंका पाराशर शिक्षा : एम.एस.सी (सूचना प्रौद्योगिकी) पिता : राजेन्द्र पाराशर पति : पंकज पाराशर निवासी : भीलवाडा (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद ह...
पीत पल्लव को बदल…
गीत

पीत पल्लव को बदल…

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** पीत पल्लव को बदल मधुमास लायेंगे। भूलकर हम आज को, कल मुस्कुरायेंगे।। भर गयी है टीस उर में रात ये काली। उड़ गये पंछी घरों को छोड़कर खाली। मर्ज के सैलाब ने विश्वास तोड़ा पर, नवसृजन करने खड़ा है आज भी माली।। आँसुओं को पोंछ कर उल्लास लायेंगे। भूलकर हम आज को कल मुस्कुरायेंगे।।१ मानते हम भूल अपनों की हुई सारी। जिस वजह से आज ये इंसानियत हारी। सीख लेंगे अब सबक जो कल हँसायेगा, फिर सुनेंगे कान मीठी बाल किलकारी।। रंग के उत्सव खुशी से जगमगायेंगे। भूलकर हम आज को कल मुस्कुरायेंगे।।२ जख्म इस इतिहास का जब कल पढ़ायेंगे। नीड़ सूना कर गये सब याद आयेंगे।। गीत मंगल कामना के शेष है 'जीवन', जीत के हम फिर नये स्वर गुनगुनायेंगे।। जोड़ अंतस को नये पुल हम बनायेंगे। भूलकर हम आज को कल मुस्कुरायेंगे।।३ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प...
‘है’ और ‘था’ में अंतर
कविता

‘है’ और ‘था’ में अंतर

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** देश कभी सोनचिरैया था, अब दुष्कर हाल हुआ है कल था साथ सभी के, आज नज़रों से दूर हुआ है रूह कांपती है देखदेख, कैसा बना है शेष सफर अकाल खोते देख स्वजन, जज़्बे बन गए सिफर कसूर नहीं लेशमात्र भी, कोरोना कातिल हुआ है कल था साथ सभी के, आज नज़रों से दूर हुआ है देश कभी सोनचिरैया था, अब दुष्कर हाल हुआ है बेढब चाल लापरवाही हद, खून में रचा बसा था लाख समझाइश पर भी, भूलों का नशा चढ़ा था कालाबाज़ारी चोरी भी, नकली दवा चलन हुआ है कल था साथ सभी के, आज नज़रों से दूर हुआ है देश कभी सोनचिरैया था, अब दुष्कर हाल हुआ है कवि 'प्रदीप' भजन दर्द, मुसीबतों से देश लड़ा था बात घात से देखा पतन, पर नमन वतन को था वतन सौदागरों से भारत, संकटों से घिरा हुआ है कल था साथ सभी के, आज नज़रों से दूर हुआ है देश कभी सोनचिरैया था, अब दुष्कर हाल हुआ है खैरियत हैसियत बीच, नज़रियों का कटु ...
ह्दय वेदना
कविता

ह्दय वेदना

सपना आनंद शर्मा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** यह कैसा सन्नाटा है, चारों और बस एक आस लिए खड़ा हर कोई है, अपनों को पाने की चाह तो कहीं अपनों से बिछड़ने का रंजो गम पसरा है, यह कैसा सन्नाटा है,... यह कैसा सन्नाटा है... देख व्यथा हर किसी की हृदय कॉप सा जाता है, मर्मस्पर्श ता झंझोर रख देती है, आज इंसानियत इंसानों पर भारी है, सबको पास रखने के लिए सबसे बस दूरिया ही जरूरी है, यह कैसा सन्नाटा है ... यह कैसा सन्नाटा है ...? परिचय :- सपना आनंद शर्मा निवासी - इंदौर मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी क...
ये जिंदगी
कविता

ये जिंदगी

धैर्यशील येवले इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ये जिंदगी थोड़ा तो मुस्कुराने दे अभी कल ही तो माँ गांव से आई है कुछ मीठी गुजिया लाई है कुछ तो मजे कर लेने दे ये जिंदगी थोड़ा तो मुस्कुराने दे।। तिनका तिनका जोड़ा कोई सपना तोड़ा कोई सपना जोड़ा आँसू भरी आँख से मुस्कुराया थोड़ा थोड़ा आ तू भी हो जा मेरी खुशियों में शामिल तू भी मुस्करा थोड़ा थोड़ा कुछ तो तुझे समझ पाने दे ये जिंदगी थोड़ा तो मुस्कुराने दे।। माना कि मुझसे गलतियां हुई है हजार तूने समझने की कोशिश भी की बार बार बस अब और नही माफ कर दे एक बार अपनो को दिल खोल के गले से लगाने दे ये जिंदगी थोड़ा तो मुस्कुराने दे।। बिटिया की आंखों में है ढेरो सपने बेटा भी गुनगुना रहा ख्वाब अपने बीवी जोड़ रही आड़े वक़्त के लिए पैसा पैसा मैं भी काम किये जा रहा हूँ कैसा कैसा दिप आशाओं के जल जाने दे ये जिंदगी थोड़ा तो मुस्कुराने दे।। दोस्तो की संगत में निवाले खुशी ...
जबान
कविता

जबान

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** https://www.youtube.com/watch?v=m1FM9mfW0UY परिचय :- माधुरी व्यास "नवपमा" निवासी - इंदौर मध्य प्रदेश सम्प्रति - शिक्षिका (हा.से. स्कूल में कार्यरत) शैक्षणिक योग्यता - डी.एड, बी.एड, एम.फील (इतिहास), एम.ए. (हिंदी साहित्य) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻 आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा अ...
घर में बैठी ईद
दोहा

घर में बैठी ईद

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** तालाबन्दी हो गई, घर में बैठी ईद। कोरोना ने कर दिए, लाखों लोग शहीद। कोरोनावश हो गया , मेले पर प्रतिबंध। चिमटे का कैसे करे, बालक महा प्रबंध। मुनिया रोती ही रही, सिले नहीं परिधान। कोरोना से ईद पर, लुप्त हुई मुस्कान। सन्नाटा पसरा रहा, घर-आँगन के पास। आया कोई भी नहीं, परिजन रहे उदास। एक अकेली ईद क्या, मौन सभी त्योहार। कोरोना के वार से, पीड़ित है संसार। कोरोना में ईद है, बंदिश है हर देश। मोबाइल द्वारा सभी, भेज रहे संदेश। घर सूना-सूना लगे, बिटिया बिना 'रशीद'। बिटिया है तो पर्व है, बिटिया है तो ईद। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, एलएल•बी...
संघर्ष
कविता

संघर्ष

मधु अरोड़ा शाहदरा (दिल्ली) ******************** संघर्षों की अथक कहानी, बिन संघर्ष अधूरी है जिंदगानी जिंदगी कदम-कदम पर कुछ सिखाती परेशानी ही आदमी के जीने के नए आयाम बनाती संघर्ष करते, हौसला बढ़ता जाता। वही मानव जीवन में सफल होता जाता। ऐसा कोई जीवन नहीं जिसमें ना हो संघर्ष जिंदगी फूलों की सेज नहीं, कदम-कदम पर कांटों का हे मेल , सबकी जिंदगी में संघर्षों का खेल। यह भी गुजर जाएगा। हौसला रख हिम्मत ना हार, वक्त गुजर जाएगा। गर्भ में आने से मरने तक, जीवन संघर्षों की कहानी। जीवन धूप छांव जैसा, सुख-दुख की बदली ने घेरा। मानव हिम्मत ना हार, यह भी गुजर जाएगा। यह भी गुजर जाएगा।। परिचय :- मधु अरोड़ा पति : स्वर्गीय पंकज अरोड़ा निवासी : शाहदरा (दिल्ली) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय ...
कातिल कोरोना
कविता

कातिल कोरोना

डॉ. गुलाबचंद पटेल अहमदाबाद (गुज.) ******************** एक बार न्यूमोनिया कोरोना बनकर हमसे जा टकराया डटकर किया मुकाबला हमने उल्टे सिर लटकाया वो इतना कातिल था, गले में जा अटका कफ सिरप ने दांतों से खूब चबाया डॉ. दीपेन ने रेमडीसीवर दिया उसने खूब आराम से वो पिया औषध का नदी बहाया कोरो ना कहे मे कहा से आया डॉ. ने गोलियों से बूंद डाला सिर उसका काट डाला हमने कहा, अब तुम वापस मत आना सीधे अपने घर पहुँच जाना तुम करोना हो या फिर कोई भी हमरी ताकत तूने नहीं देखी कवि गुलाब कहे, कोरों ना से मत डरना डटकर मुकाबला करना मास्क मुह पर जरूर लगाना औरों को तुम जगाना दो गज की दूरी तुम रखना सेनेटराइज़ पास रखना टीका जरूर तुम लगवाना बिना काम घर से बाहर न निकलना परिचय :-  डॉ. गुलाबचंद पटेल अहमदाबाद (गुज.) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप...
कलम की आत्मकथा
कविता

कलम की आत्मकथा

संजू "गौरीश" पाठक इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हां, मैं कलम हूं ! अनगिनत रूप हैं मेरे। ज़रा सदियों पीछे जाइयेगा। मुझे एक अलग ही रूप में पाइएगा।। बड़ा गहरा नाता रहा है मेरा, भारत की पावन भूमि से।। ऋषियों मुनियों के सानिध्य में, ना जाने कितने पवित्र ग्रंथों के सृजन में काम आई हूं मैं।। महापुरुषों के जीवनी को बड़ी शिद्दत से उकेरा है मैने। राजाओं, महाराजाओं को भी बखाना है मैने।। नेताओं, राजनेताओं के तो कहने ही क्या ! इनके बड़े बड़े वादे लिख लिख कर, थक सी गई हूं मैं।। नमन है उन शूर वीरों को चिकित्सकों, शिक्षकों सिपाहियों और मेरे ही बहादुर सिपह सालारों को जिन्होंने अनवरत प्रदान की अपनी सेवाएं।। मेरी है यही फितरत कि कभी हंसाती, कभी गुदगुदाती हूं। और कभी दिल का दर्द खींचकर बाहर लाती हूं।। बोलने को है मेरे पास, अकथनीय अवर्णनीय भी। आज के बस ...
माँ क्या होती है
कविता

माँ क्या होती है

गायत्री ठाकुर "सक्षम" नरसिंहपुर, (मध्य प्रदेश) ******************** कोख में रखकर नौ महीने, सौ सौ तखलीफें सह सह कर। रात रात भर, जाग-जाग कर, खुद गीले में रह-ह कर। बच्चे को सुलाती सूखे में, प्यार भरी थपकी देकर। बड़े चाव से सेवा करती, कभी न उसमें नागा करती। हो जाए बड़ा, कितना ही बालक, हर विपदा से उसे बचाती, बन करके, उसका रक्षक। नहीं है कोई दुनिया में, उसके जैसा, त्याग, तपस्या और प्रेम की मूरत जैसा। माथे पर उसके, देख शिकन, हो जाती व्याकुलता से बेचैन। बालक के सुख से होती सुखी, बालक के दुख से होती दुखी। माँ की कीमत वो ही जाने, मिली न "सक्षम" जिन्हें देखने। परिचय :- गायत्री ठाकुर "सक्षम" निवासी : नरसिंहपुर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी ...
मां
कविता

मां

हरप्रीत कौर शाहदरा (दिल्ली) ******************** मां ममता, प्यार, त्याग और पवित्रता की मूर्त है। जिसका कर्ज हम कभी नही उतार सकते हैं। मां जो सबका ख्याल रखती है, हमारी खामोशी को भी आसानी से समझ लेती है, हमे कुछ हो जाए परेशान हो जाती है, मां हमें प्यार करती दुलार करती है, भूख न लगने पर भी हमें जबरदस्ती खाना खिलाती है। सबके दिल की धड़कन होती है मां। हमनें कभी भगवान को तो नही देखा पर मां ही हमारे लिए भगवान का रूप होती है। मां के लिए कोई शब्द ही नहीं है जो मेरी कलम लिख पाए। मेरी कलम में इतनी ताकत नहीं जो मां के चरित्र को बयां कर पाए। मां तो अनमोल है। जो मां अपनी औलाद के लिए कर सकती है, वो औलाद भी अपनी मां के लिए नही कर सकती। क्योंकि मां तो मां है। अगर संसार में कुछ सच्चा है, तो वो सिर्फ मां का प्यार है। परिचय :- हरप्रीत कौर निवासी : शाहदरा (दिल्ली) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वा...
पलाश और अमलतास
कविता

पलाश और अमलतास

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** प्रकृति का लिए श्रृंगार दोनों आते साथ-साथ। एक मित्र है पलाश और दूसरा है अमलतास। जब सुन्दर रक्तिम आभा से झिलमिलाता पलाश। स्वर्ण कली से पुष्पित होकर इठलाता अमलतास। जो प्रेम से मदमस्त होकर, नाच उठता है पलाश। होले-होले लहराता फिर, झूम उठता अमलतास। तपती दोपहरी में लगे युद्धभूमि-सा क्रुद्ध पलाश। शीतलता को सरसाता, शान्त पवन-सा अमलतास। सुर्ख लाल-लाल प्यार का रंग, दे जाता जब पलाश। पीत पावड़े होने तक संग, दोस्ती निभाता अमलतास। सूद-बुद खोकर जब अपना सर्वस्व लुटाता पलाश। नित न्यौछावर हो, कोमल पुष्प बरसाता अमलतास। प्रेम में लूट जाने की अनोखी रीत निभाता पलाश। मित्रता की जग में अद्भुत मिसाल बनाता अमलतास। विपत्ति में भी जीने की राह दिखलाता है पलाश। हो विषमपथ धीरज धरना, सिखलाता अमलतास। परिचय :- माधुरी व्यास "नवपमा" निवासी - इंदौर मध्य प्रद...
सुख का सागर
कविता

सुख का सागर

गगन खरे क्षितिज कोदरिया मंहू (मध्य प्रदेश) ******************** बचपन में मेंने कितनी शरारत की मां कभी तूने मुझे कुछ न कहकर अनदेखा कर बस थोड़ा सा मुस्कराई मां बड़ा होकर सब भूल जायेंगे जब जिम्मेदारी आयेगी, समझ जायेगा प्रेरणा बनी रही सागर की तरह मां। धैर्य, धीरज की अनमौल मुरत थी मां, स्वर्ण कमल की आभा लिए हर परिस्थितियों से निपटना वह जानती थी, दुःख सुख से कभी न घबराती, मौसम बदलते ही चन्द्रकला सा निखार आ जाता था मां हमेशा तेरे प्यार दुलार में कोई कमी नही आई तेरे चरणों में देखा सुख का सागर मां। कभी भेद नहीं किया अपने व परायों में तूने मां, अपने हाथों से तुमने भरपूर ममता लुटाई मां, बीती बातें जानकर गगन मां को कभी भूला नहीं पाया मां सदा देखा तेरे चरणों में स्वर्ग सा सागर मां। परिचय :- गगन खरे क्षितिज निवासी : कोदरिया मंहू इन्दौर मध्य प्रदेश उम्र : ६६वर्ष शिक्षा : हायर सेकंडरी मध्य प्रद...
माँ
कविता

माँ

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** विधाता तुमने छोड़ दिया है धरा पर जन्म देकर! माँ ही है जो जन्म देती है पालन भी करती है!! तुमसे बढ़कर प्रभु! नवजीवन की रचना करती है!! बन प्रथम शिक्षिका सुत को सतत् संस्कारित करती है!! रह-रह बलिहारी हो मुख-गात चुंबन से भरती है! बच्चों के हित में निज सुख मांँ न्योछावर करती है!! कर कोटि जतन माँ जीवन उपवन को सुरभित करती है! दुख की गागर करके रीती सुखों से भर देती है!! भवन को अपनी ममता से घर अलंकरण देती है! अपनी ममता की छांँव में स्वर्ग सुख भर देती है!! निज आँचल से निस्सीम नभ को छोटा कर देती है! रख दे जहांँ निज चरण! माँ तीर्थ का सृजन करती है!! माँ की छत्रछाया दिव्य कल्प वृक्ष का सृजन करती है! माँ नित नित कर कल्याण भू पर प्रभु मूरत गढ़ती है!! परिचय : डॉ. पंकजवासिनी सम्प्रति : असिस्टेंट प्रोफेसर भीमराव अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय निवासी : पटना...
एक स्पर्श
कविता

एक स्पर्श

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** "मेरे गालों पर जब हुआ एक स्पर्श, जान गया, किसने किया, ये स्पर्श, मां की यादे, हृदय में सन्जोये, बैठे, मन में, होता है, मुझे फिर अपार, हर्ष, आशीश उनका, शीश पर सदा बना रहे, जीवन में, तभी, होता रहेगा, उत्कर्ष, ज़ब किसी परेशानी से, मैं, त्रस्त रहता, मां, देती रहती, अपना अमूल्य परामर्श, हिम्मत हार के, न कर पाता, कोई काम, मां की हौसला अफजाही से, पाता उत्कर्ष" परिचय :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत॰ मुक्तक लोक व्दारा, प्रकाशित पुस्तक गीत सिंदुरी हुये (गी...
अनदेखी
कविता

अनदेखी

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** तरसती आँखें और आस रिश्तों को पाने के लिए तलाशता मन। बिखर गए मोतियों से रिश्ते को फिर से पिरोने की चाह कापते हाथ उठ नहीं पाते देने आशीर्वाद कमजोर देह। किस्से ताजे बुजुर्गी तिरस्कार के पिंजरे में दुबकी उम्र खाना पिंजरे में पक्षी का दाना देते जैसे। कैद पक्षी से भला कौन ज्यादा बातें करता अकेलापन बहुत बुरा होता कलयुग में श्रवणकुमार भला कहा मिलेंगे। भौतिकता की चकाचौंध रिश्तों को निगलती सोच अपने अपने भाग्य की बूढ़े रिश्तों का भाग्य से क्या काम। दकियानूसी सोच मस्तिष्क -दिल को कर देती छोटा रिश्ते की राहें हो चली गुमराह। किंतु बुजुर्गी दरवाजे पर दस्तक को आज भी पहचानती बुजुर्गो की अनदेखी बहुत दूर बसे रिश्ते बरसों बाद दरवाजा थपथपा कर अपनों से दूर रह रहे दूर बसे दुबके रिश्तों को याद आने पर अब देने लगे दस्तक। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पि...
आज छत पर
कविता

आज छत पर

मंजू लोढ़ा परेल मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** आज छत पर खडी़ थी आसमान की ओर छोर की तरफ देख रही थी, चारो तरफ रंग-बिरंगी पतंगे, हवा में उड़ रही थी, दूर-दूर तक आसमान की ओर पेंगे बढा़ रही थी, अडो़स-पडो़स की छतों पर लोग हर्षोल्लास से पतंगें उडा़ रहे थे, एक अद्भूत खुशी से उनके चेहरे चमक रहें थे, जो किसी और की पतंग को काट गिराता, उसका तो आनंद ही निराला था, पर कुछ पलों में उसकी स्वयं की पतंग कट जाती तो वह खिन्न-मायुस हो जाता, याने कुछ पल की खुशी, कुछ पल का दुःख, मैं सोच रही थी कितना बडा़ है आसमान, हर एक की अपनी पतंग, अपनी डोर, क्यों न सभी पतंगे अपनी डोर के सहारे आसमान में उड़ती जाये? क्यों काटे हम किसी ओर की पतंग? क्यों उसका उल्लास मनाये? हम काटेंगे फिर वह हमारी पतंग काटेगा, इससे क्या होगा लाभ कितना अच्छा हो सबकी पतंगे आसमान में ऊँची और ऊँची उड़ती जाये, सब शिखर पर पहुँचे, सबके मन में एक द...
हाथ में हाथ
ग़ज़ल

हाथ में हाथ

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ ******************** हाथ में हाथ का है सहारा मिला प्यार तेरा मुझे ख़ूब सारा मिला दर्द मेरे ज़ुदा हो गए हैं सभी जैसे डूबे को पल में किनारा मिला तू करे बेवफ़ाई या कोई सितम क्या कभी तुझको मैं ग़म से हारा मिला जो दग़ा तू करे ये भी अहसान है मान लो मैं मुक़द्दर का मारा मिला राज़ दिल में छुपाए ये पूनम खड़ी रात उसको भी जलता शरारा मिला परिचय : रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' उपनाम :- 'चंद्रिका' पिता :- श्री रामचंद्र गुप्ता माता - श्रीमती रामदुलारी गुप्ता पति :- श्री संजय गुप्ता जन्मतिथि व निवास स्थान :- १६ जुलाई १९६७, तहज़ीब व नवाबों का शहर लखनऊ की सरज़मीं शिक्षा :- एम.ए.- (राजनीति शास्त्र) बीएड व्यवसाय :- गृहणी प्रकाशन :- राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर म.प्र. के  hindirakshak.com पर रचना प्रकाशन के साथ ही कतिपय पत्रिकाओं में कुछ रचनाओं का प्रकाशन हुआ है सम्मान :- समूहों ...
सन्नाटा फैला है
कविता

सन्नाटा फैला है

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** महामारी खा गई साहित्य योद्धा, नजर आता यह कैसा झमेला है, अश्रु बहा रहा हैं आज जग सारा, साहित्य जगत में सन्नाटा फैला है। गीतों के राजा गये छोड़कर जग, कुंवर बेचैन नाम वो कहलाते थे, पढ़ते जिनका गम भरा काव्य तो, बस आंखों में आंसू आ जाते थे। गंगा प्रसाद विमल छोड़ गये जग, हादसे ने ले ली उनकी भी जान, रोहित सरदाना पत्रकार चल बसे, जिनकी विश्वभर में होती पहचान। नरेंद्र कोहली का निधन हो चुका, और गये जग से ही कलीम उर्फी, कुलवंत भी गये जगत को छोड़कर, कुमार विमल गये जो बने हैं सुर्खी। भगवती प्रसाद देवपुर चले गये हैं, राहत इंदौरी यूं चले गये मुख मोड़, कितने कवि लेखक चले गये अब, साहित्य जगत में अकेला ही छोड़। देते आज श्रद्धांजलि साहित्य को, या महामारी को देते हम ये दोष, कितने आंसू बह निकलते मन से , चले गये उनका हमको अफसोस। कहीं नजर उठाकर जब...
माँ
कविता

माँ

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** विश्वास नहीं होता है, चली गई यूं छोड़ हमें, सारी दुनियाँ दिखती है, पर तू दिखती नहीं हमें। अंर्तमन से चित्र एक पल, धुंधला कभी नहीं होता, एक बार आकर तू क्यों, गले लगाती नहीं हमें। अपने अंर्तमन की पीड़ा का, भंडार छिपाये रखा था, आकर क्यों पीड़ा की गठरी, खोल दिखाती नहीं हमें। नादान तेरे हैं ये बच्चे, तनिक तरस न आता क्या? सपने में ही आकर बस, ममता अपनी दिखला दे हमें। भूल तो बच्चे करते रहते, तू ये बात समझती है, ऐसी गुस्ताखी क्या कर दी, जो सजा असहय दे रही हमें। माफ करो हे माँ हमको, हम सब हँसना भूल गये, गुस्सा छोड़ अब आ जाओ, गले लगाओ जल्द हमें। या फिर ऐसा कर माते, हमें बुला ले वहीं हमें, ऐसी मजबूरी थी क्या, क्यों इतनी कठिन सजा दी हमें। परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव जन्मतिथि : ०१/०७/१९६९ शिक्षा : स्नातक, आई.टी.आई., पत्रकारिता प्रशिक...
हे मां
कविता

हे मां

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** हे मां हे मां तुझे ढुढु कहां तु थी तो था संसार मेरा हे मां हे मां गोद तेरी लगती प्यारी थक हार सो जाता गोद तेरी थकान सब दूर हो जाती हे मां हे मां इश्वर से भी कद ऊंचा तेरा वजूद मेरा नही है हे वजूद तुझसे मेरा पकड़ उॅगली चलना सीखाया पहला निवाला तुझसे पाया गीरता रहता जब भी मै उंगली पकड़ कर चलना सीखाया हे मां हे मां इतना आसां नही हे कर्ज तेरा जग मे चुकाना हूंआज जो भी मै प्यार हे ये तेरा पाया हर दम जाना मेरी चाहते तूने पर मेने नही पूछा चाहत तेरी क्या हे हे माॅ हे मां सत्य पथ तूने बताया भूखे रह कर सपने साकार कराया हूट अभागा बैठा तेरा वक्त जब मेरा आया तीन बेटो की कहानी व्रधाश्रम तुझको बताया हे माॅ हे मां जब थी तू चुभती थी बेटो को ऑखों मे आज ऑखे नम हो रही हे हे माॅ हे माॅ सो जन्म लेलूं माॅ मै न पा सकूंगा तूझको मै माॅ हे माॅ हे माॅ मैने त...
माँ
कविता

माँ

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** एक अक्षर का शब्द है माँ, जिसमें समाया सारा जहाँ। जन्मदायनी बनके सबको, अस्तित्व में लाती वो। तभी तो वो माँ कहलाती, और वंश को आगे बढ़ाती। तभी वह अपने राजधर्म को, मां बनकर निभाती है।। माँ की लीला है न्यारी, जिसे न समझे दुनियाँ सारी। ९ माह तक कोख में रखती, हर पीड़ा को वो है सहती। सुनने को व्याकुल वो रहती, अपने बच्चे की किलकारी।। सर्दी गर्मी या हो बरसात, हर मौसम में लूटती प्यार। कभी न कम होने देती, अपनी ममता का एहसास। खुद भूखी रहती पर वो, आँचल से दूध पिलाती है। और अपने बच्चे का, पेट भर देती है।। बलिदानों की वो है जननी। जब भी आये कोई विपत्ति, बन जाती तब वो चण्डी। कभी नहीं वो पीछे हटती, चाहे घर हो या रण भूमि। पर बच्चों पर कभी भी, कोई आंच न आने देती।। माँ तेरे रूप अनेक, कभी सरस्वती कभी लक्ष्मी। माँ देती शिक्षा और संस्कार, तभी बच्चों का होता बेड़ाप...
आज तुम याद आयी बहुत
कविता

आज तुम याद आयी बहुत

रीमा ठाकुर झाबुआ (मध्यप्रदेश) ******************** माँ आज तुम याद आयी बहुत बताती नही मै जताती नही मै कई साल पहले जो बोला था हँसके पराया मै धन हूँ सभी बोलते है अभी भी है, मन मे वही  गाँठ भारी यही बात अभी तक भूलाई नही है हूँ प्रतिबिम्ब तेरी, मै हूँ तेरे जैसी सभी बोलते है हमशक्ल तेरी जैसी मगर मौन तू है "मै हूँ वाचल" तटस्था, जीवन मे लायी नही मै सभी माँ को कहते है, कमजोर हूँ मै मगर मै कभी जताती नही हूँ कभी मन होता तेरे पास आऊँ छोटी से तेरी माँ गुडिया बन जाऊँ छिपा ले मुझे, फिर से गोदी मे अपने व्यथित है ह्रदय माँ, बताती नही  मै परिचय :- रीमा महेंद्र सिंह ठाकुर निवासी : झाबुआ (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो क...