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पद्य

रिश्तों को लगी नजर
कविता

रिश्तों को लगी नजर

डॉ. तेजसिंह किराड़ 'तेज' नागपुर (महाराष्ट्र) ******************** बड़े आराम की थी रिश्तों भरी जिंदगी लग गयी हैं अब रिश्तों को भी नजर। किसने की ये हिमाकत दूर करने की अपनों से ही अपनों ने फेर ली नजर। हर कोई निश्चंत था संबंधों को लेकर आनाजाना भी सरल था बैखौफ होकर मस्ती में मस्त थे सब खुशियां थी भरपूर कोरोना ने लील लिया बनकर एक नासूर। हवा कुछ ऐसी चली दुनिया बदल गई मुंह तो ढक लिया पर नजरें बदल गई पास पास थे हम जितने अब दूर हो गये कुछ बोलने के लिए मुंह से मजबूर हो गये । हर कोई पूछ रहा हैं कब तक रहेगें ऐसे सरकारें भी मौन हैं जो जी रहा हैं जैसे बारबार के लाकडाउन ने कमर तोड़ दी उम्मीदों की महफिल ने आशाऐं छोड़ दी जब भी जरा सी उम्मीद नजर आती हैं दूर से फिर गम की यह खबर आती हैं। चला गया रिश्तों का एक रिश्ता भी हमसे अब कोरोना के डर में हर रात गुजर जाती हैं। सुबह कोई अखबार हमें फिर डरा देता हैं। चैन...
गाँव की होली
कविता

गाँव की होली

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** होली आते ही मुझे याद गाँव की आ गई। कैसे मस्ती से गाँव में होली खेला करते थे। और गाँव के चौपाल पर होली की रागे सुना थे। अब तो ये बस सिर्फ यादे बनकर रह गई।। क्योंकि मैं यहां से वहां वहां से जहां में। चार पैसे कमाने शहर जो आ गया।। छोड़कर मां बाप और भाई बहिन पत्नी को। चार पैसे कमाने शहर आ गया। छोड़कर गाँव की आधी रोटी को। पूरे के चक्कर में शहर आ गया। अब न यहाँ का रहा न वहाँ का रहा। सारे संस्कारो को अब भूल सा गया।। चार पैसे कमाने....। गाँव की आज़ादी को मैं समझ न सका। देखकर शहर की चका चौन्ध को। मैं बहक कर गाँव से शहर आ गया। और मुँह से आधी रोटी भी मानो छूट गई।। चार पैसे कमाने...। सुबह से शाम तक शाम से रात तक। रात से सुबह तक सुबह से शाम तक। मैं एक मानव से मानवमशीन बन गया। फिर भी गाँव जैसा मान शहर में न पा सका।। चार पैसे कमाने यहाँ वहाँ भटकता रहा...
होली का हुड़दंग
कविता

होली का हुड़दंग

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** फागुन का मास लाया गीतो और रंगों भरा उल्लास होलिका के संग दहन हो आलोचना, ईर्ष्या, अंतर्द्वंद आज न माने दिल कोई प्रतिबंध मन मे हिलोरे लेती तरंग पिया लगाये गौरी को प्रीत का पक्का रंग अनुबंध मे बहके, जैसे चढ़ी प्रेम की भांग परंपरागत व्यंजनों की सजी रंगोली फागुन के गीतों ने, कानों मे है मिश्री घोली जात्त-पात, ऊँच-नीच के भिन्न-भिन्न गुब्बारे एकता का रंग बरसाते हुए जैसे भाईचारे के चले फव्वारे बोल रहा हर एक इंसान, बस मस्ती की बोली हास्य रंग से भरी पिचकारी, छोड़े हँसी ठिठोली इन्द्रधनुष-सा मनमोहक समाँ, उड़ा जो महकता अबीर तन भीगा, अंग रंगीन, जो बरसा रंगोंं से सरोबार नीर गूँज रहे ढोल, मँजीरे और संग में बज रहा मृदंग हर दिल बचपने में रंगा, मचा रहा होली का हुडदंग परिचय :- प्रियंका पाराशर शिक्षा : एम.एस.सी (सूचना प्रौद्योगिकी) पिता : राजेन्...
नजर से नजर मिली तो
गीत

नजर से नजर मिली तो

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** तू मिली तो जीने का बहाना मिल गया। नजर से नजर मिली तो खजाना मिल गया।। वो सुहाना वक्त था जब मिले नयन-नयन। जब मिले अधर अधर जब मिले बदन-बदन।। पंख लगे आरजूओं को हंसी गगन मिला। पंछियों को पर यूँ फड़फड़ाना मिल गया।। तू मिली तो जीने का बहाना मिल गया। नजर से नजर मिलीतो खजाना मिल गया।। हुस्न और इश्क का मिलन बड़ा अजीब है। मरना जिंदगी के लिए हो गया करीब है।। तीर तेज करके रखे थे वो अनायास ही। मुस्कुराए छूने को निशाना मिल गया।। तू मिली तो जीने का बहाना मिल गया। नजर से नजर मिलीतो खजाना मिल गया।। रूप का महल कहूँ या कहूँ कि ताज है। मरमरी बदन तेरा, जो हंसता आज है।। हट सकी नजर नहीं जम गई तो जम गई। लड़खड़ाते कदमों को ठिकाना मिल गया।। तू मिली तो जीने का बहाना मिल गया। नजर से नजर मिलीतो खजाना मिल गया।। ज...
हुए बाग के भ्रमर मवाली
गीतिका

हुए बाग के भ्रमर मवाली

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** आधार छंद- चौपाई (मापनी मुक्त मात्रिक) समांत- आली, अपदांत, कलियों से ले रहे दलाली। हुए बाग के भ्रमर मवाली।।१ आम्र बाग में छिप टहनी पर, सुना रही कोयल कव्वाली।।२ जब हिसाब माँगा बेटे ने, डूब गई माँ की हम्माली।।३ लाठी जब परदेश चली तो, टूट गई उम्मीदें पाली।।४ पके खेत तब बरसे ओले, उड़ी कृषक के मुख की लाली।।५ घिसी लकीरें श्रम के कर से, चमक न पाई किस्मत काली।।६ स्वप्न स्वार्थ के जागे जब भी, मुर्दों ने भी बदली पाली।।७ भाव प्रस्फुटित हुए न उर में, जब 'जीवन' ने कलम सँभाली।।८ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष...
होली आई रे
कविता

होली आई रे

रूपेश कुमार चैनपुर, सीवान (बिहार) ******************** होली आई रे आई रे होली आई रे, जीवन को रंगों से रंगायी रे, मन मे पुलकित पंख लगायी रे, लाल हरा रंग रंगाई रे ! होली आई रे आई रे होली आई रे, मन तन के दिल मे आग लगायी रे, जीवन को मदहोश करायी रे, मन में बसंत बहार लायी रे ! होली आई रे आई रे होली आई रे, जीवन को सातों रंगों से रंग मे मिलाई रे, प्यार और भाईचारे का नदियाँ बहाई रे, हिंदू-मुस्लिम का भेदभाव मिटायी रे ! होली आई रे आई रे होली आई रे, रिश्ते नाते को एक डोरे मे बाधि रे, मंदिर मस्जिद को अपनाई रे, दिल मे दुनिया-जहान को समाई रे ! होली आई रे आई रे होली आई रे ! परिचय :- रूपेश कुमार शिक्षा : स्नाकोतर भौतिकी, इसाई धर्म (डिप्लोमा), ए.डी.सी.ए (कम्युटर), बी.एड (महात्मा ज्योतिबा फुले रोहिलखंड यूनिवर्सिटी बरेली यूपी) वर्तमान-प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी ! निवास : चैनपुर, सीवान बि...
होली में
कविता

होली में

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ईर्ष्या द्वेष को मिटा दे होली में, नफरत की दीवार गिरा दें होली में, प्रेम सहिष्णुता को अंगीकार करें, जीवन को रंगीन बना दे होली में। जीवन के वृंदावन में, रंगों की बौछार, हवा के रथ पर रंग अबीर, उड़ते घर- घर द्वार, सत्यम शिवम -सुंदरम सा, सुंदर हो विचार, सुदृढ़ एकता के बंधन में, बंध जाए संसार, रंग-भंग और मस्ती के संग, फाग गाएं होली में, जीवन को रंगीन, बना दे होली में। सुख समृद्धि हो जीवन में, चारों ओर प्रकाश, ढोल नगाड़ों के संग नाचे, मन में हो उल्लास, तन-मन केशरिया हुआ, जीवन हुआ मधुमास, आसमान रंगीन हुआ, धरती हुई पलाश, अहं के पर्वत को पिघला दे होली में, जीवन को रंगीन बना दे होली में। परिचय :- श्रीमती शोभारानी तिवारी पति - श्री ओम प्रकाश तिवारी जन्मदिन - ३०/०६/१९५७ जन्मस्थान - बिलासपुर छत्तीसगढ़ शिक्षा - एम.ए समाजश शास्त्र, बी...
बसंत
कविता

बसंत

रेखा कापसे "होशंगाबादी" होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) ******************** सुमन सुवास सुरभित उपवन, मन को अतिशय भाया है। तन हर्षित है, मन हर्षित, मौसम बासंती आया है।। माँ भगवती को करूँ नमन, रोली कुमकुम और चंदन। धूप दीप अक्षत अर्पण, हाथ जोड़ करूँ मैं वंदन।। विद्या वाणी सुरों का दान, वरद मुझे दो बनूँ गुणवान। वास करो माँ कंठ मे मेरे, बनूँ मैं जग में सदा महान।। भक्तिमय सकल संसार, बुद्धि भंडार समाया है। तन हर्षित और मन हर्षित, मौसम बासंती आया है।। लहराती गेहूँ की बाली, फूली सरसो पीली वाली। बौर सजे है अमुआ डाली, कोयल कूके है मतवाली।। धरा कर रही है श्रृंगार, बहे बाग में शीत बयार। शीत ऋतु की करे विदाई, दिनकर ने थामी तलवार।। पीली धरणी पीला अंबर, पीत वर्ण ही भाया है। तन हर्षित और मन हर्षित, मौसम बासंती आया है।। रसमय फूलों के मकरंद, तितली भरती अपने रंग। प्रेम प्रीत बरसाती अपना, ले जाती हैं अपने सं...
जिंदगी के रंग
कविता

जिंदगी के रंग

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** कोई रंग भरने, जीवन में तेरे, बाहर से नहीं आएगा। तेरे जीवन में रंग, तो .........तेरे ही भरने से आएगा। कोई रंग भरने, जीवन में तेरे, बाहर से नहीं आएगा। किस सोच में .......हो। कोई बांध के, रंगों को सारे, इंद्रधनुष.....! तेरे हाथ में थमा जाएगा। जिंदगी को तेरी, रंगों से रंगीन, वह कर जाएगा। कोई रंग भरने, जीवन में तेरे, बाहर से नहीं आएगा। हकीकत के, उन बदरंग दागों से लड़। तू अपनी...... हिम्मत से, जिंदगी में रंग नये ... जब तक ना भर पाएगा। दुनिया के, रंगों के इंतजार में, बंदरंग तू हो जाएगा। कोई रंग भरने, जीवन में तेरे, बाहर से नहीं आएगा। तेरे जीवन में असल रंग तो, तेरे भरने से ही आएगा। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौल...
दयाभाव
कविता

दयाभाव

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** चिलचिलाती धूप में राष्ट्रीय राजमार्ग पर दुर्घटना ग्रस्त बाइक सवार को देख पहले तो मैं घबड़ाया, फिर हिम्मत करके अपनी बाइक को किनारे लगाया। घायल युवक के पास गया, उसकी हालत देख मैं काँप गया, फिर वहाँ से भाग निकलने का विचार किया। परंतु दया भाव से मजबूर हो गया। अब आते-जाते लोगों से मदद की उम्मीद में सड़क पर आते-जाते लोगों से दया की भीख माँगने लगा। बमुश्किल एक अधेड़ सा व्यक्ति आखिर रुक ही गया, मेरी उम्मीदों को जैसे पंख लग गया। मैंने हाथ जोड़ मदद की गुहार की, मेरी बात उसे बड़ी नागवार लगी। उसने समझाया लफड़े में न पड़ भाया, तू बड़ा भोला दिखता है फिर लफड़े में क्यों पड़ता है? ऐसा कर तू भी जल्दी से निकल ले पुलिस के लफड़े से बच ले। ये तेरा सगेवाला नहीं है मरता है तो मरने दो दया धर्म का ठेकेदार न बन, तुम्हारे दया धर्म के चक्कर में वो मर गया...
प्रीति चित्रण
कविता, डायरी

प्रीति चित्रण

भारमल गर्ग "विलक्षण" जालोर (राजस्थान) ******************** मौन धारण कर वचन मेरे, लज्जा आए प्रीत मेरे। मगन प्रेम सांसे सत्य ही है, शब्द अनुराग है मेरे।। दुखद: प्रेम सदियों से चला आया। माया, लोभ ने विवश बनाया।। कामुक कल्पनाएं प्रेम सजाए, विनम्र प्रेम जगत सौंदर्य दिखाएं। प्रीति, प्यार अनोखा चित्रण मन को भाता यह बोध विधान।। बजता प्रेम का है यह अलौकिक संदर्भ जगत में। देखो सजना सजे हैं हम प्रेम इन जीवन अब हाट पे।। स्वर का विश्वास नहीं, देखो माया संसार में। वाणी के बाजे भी अब तो, टूट गए हैं आस में।। प्याला मदिरा का मनमोहक दृश्य लगे जीवन आधार में। बिखरे हैं यह सज्जन देखो, टुकड़े-टुकड़े कांच जैसे कांच के।। कलयुग में सजती है स्वर्ण कि यह लंका। ताम्र भाती प्रेम बना है, प्रेम यह संसार में।। मैं चला हूं उस पथ पर अग्रसर कटु सत्य वचन से। मिथ्य वाणी ना बो...
होली का रंग
कविता

होली का रंग

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** तुम्हें कैसे रंग लगाएं, और कैसे होली मनाएं? दिल कहता है होली, एक-दूजे के दिलों में खेलो क्योंकि बहार का रंग तो, पानी से धुल जाता है पर दिल का रंग दिल पर, सदा के लिए चढ़ा जाता है॥ प्रेम-मोहब्बत से भरा, ये रंगों का त्यौहार है। जिसमें राधा कृष्ण का, स्नेह प्यार बेशुमार है। जिन्होंने स्नेह प्यार की, अनोखी मिसाल दी है। और रंग लगा कर, दिलों की कड़वाहट मिटाते हैं॥ होली आपसी भाईचारे, और प्रेमभाव को दर्शाती है। और सात रंगों की फुहार से, सात फेरों का रिश्ता निभाती है। साथ ही ऊँच-नीच का, भेदभाव मिटाती है। और लोगों के हृदय में, भाईचारे का रंग चढ़ाती है॥ परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इ...
फागुन आया
गीत

फागुन आया

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** फागुन आया होली आई ढोल बजाओ मांडल रे आंगन-आंगन बजी बधाई देहरी पहने पायल रे, पायल रे फागुन आया होली आई ढोल बजाओ मांदल रे यौवन सजे सजे हर द्वारें पायल नूपुर बाजे रे गेहू वाली लेकर आती खनखन करती करती चूड़ियां रे फागुन आया होली आई ढोल बजाओ मांदल रे रंगा गुलाल संघ मचल रही है हरि पीली आंचल चांदनी ताल-ताल पर नाच रही है मेरे मन की रागिनी रवि किरणे भी घोल रही है सतरंगी केसरिया रंग रे फागुन आया होली आई ढोल बजाओ मांडल रे टेसु-टेसु रंग केसरिया पाखी-पाखी झूम मेरे घर आंगन में सजी सावरी ढाणी चुनरिया ओढेरे पीली-पीली सरसों पर मान मतवाला डोले रे फागुन आया होली आई बोल बजाओ मांडल रे प्रातः संध्या अवनी अंबर अभी राकेश एरिया खेले रे आज नहीं है देव्श कहीं भी अनुराग मानव भरे रे फागुन फाग सजे मतवाले मत वालों की टोली रे फागुन आया होली आई ढोल बजाओ मादल रे ...
रंग-रंग के रंग
कविता

रंग-रंग के रंग

धैर्यशील येवले इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** रंग-रंग के रंग खिले लाल हरे नीले पीले जीवन उल्लास रे आनंद घट पीले आनंद घट पीले झूम रहा टेसू है झूम रहा अमलतास है गुलमोहर की छांव में बीत रहा मधुमास है क्षण क्षण भंगुर यहाँ क्षण क्षण को जीले आनंद घट पीले आनंद घट पीले। रंग आकाश का रंग प्रकाश का रंग माटी का पवन के रंग में घुला रंग सलिल का जीवन का हर तल छूले आनंद घट पीले आंनद घट पीले आमोद है प्रमोद है रसरंग से भरी भरी प्रकृति की गोद है ऋतुएँ सीखा रही सप्तसुरो के भेद है गा गीत प्रेम के लगा सभी को गले आनंद घट पीले आनंद घट पीले ह्रदय के आलोक में बरसा प्रेम त्रिलोक में जन्म हो सार्थक तेरा जन हो समर्थक तेरा जीवन ऐसा जीले आनंद घट पीले आनंद घट पीले रंग रंग के रंग खिले लाल हरे नीले पीले। परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्...
होली गीत
गीत

होली गीत

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** नित नूतन परिधान पहनकर, सृजित करे रंगोली है। प्रकृति सतत अनुपम विधियों से, खेल रही शुभ होली है। सूरज की सोने-सी किरणें, चारु चाँदनी रजत लगे। विस्मित विस्फारित नयनों को, नैसर्गिक सौंदर्य ठगे। कभी तिमिर तो कभी उजाला, अद्भुत आँख मिचोली है। प्रकृति सतत अनुपम विधियों से, खेल रही शुभ होली है। इन्द्रधनुष सातों रंगों से, अपनी शोभा बिखराए। रंग नहीं कम अंबर में भी, धरती को यह दिखलाए। बादल गरजें, बिजली चमकें, वर्षा करे ठिठोली है। प्रकृति सतत अनुपम विधियों से, खेल रही नित होली है। कानन में फूले पलाश हैं, उपवन-उपवन सुमन खिले। खेतों में सरसों है पीली, नए-नए पत्ते निकले। मनमोही व्यापक होली से, सबकी काया डोली है। प्रकृति सतत अनुपम विधियों से, खेल रही शुभ होली है। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्...
गुलाबी गुलाल
कविता

गुलाबी गुलाल

विकाश बैनीवाल मुन्सरी, हनुमानगढ़ (राजस्थान) ******************** गुलाबी गुलाल लगाए, हाथ जो भी लग जाए। गुड़िया के लगा रंग, देखो मुन्ना खूब हर्षाए। प्रफुल्लीत हुए तन-मन, आज दिल बड़ा प्रसन्न। झाँझर चमके गोरी के, बंगड़ी बजे खन्न-खन्न। ओ यारों की टोली सजी, लगी महफिल की अर्जी। भांग पीकर मस्ती हुए है, चलाते सब अपनी मर्जी। पिचकारी फव्वार चली, रंगो-रंग हुई गली-गली। घर लौट आए अब सब, जब दोपहर-शाम ढली। दरवाज़े की कुंडी खोली है, जो दिखी सूरत भोली है। अरे लगा ग़ुलाल भागकर, यार बुरा न मान होली है। परिचय :- विकाश बैनीवाल पिता : श्री मांगेराम बैनीवाल निवासी : गांव-मुन्सरी, तहसील-भादरा जिला हनुमानगढ़ (राजस्थान) शिक्षा : स्नातक पास, बी.एड जारी है घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मं...
तुम मेरी ज़द से
ग़ज़ल

तुम मेरी ज़द से

विवेक सावरीकर मृदुल (कानपुर) ****************** तुम मेरी ज़द से अक्सर जरा-सी कम रही कोशिशें पर मैंने की ये खुशी भी कम नहीं औरों की बेबसी पर आती है उनको हँसी झेल सकें हालात दो पल को भी दम नहीं उनपे हौसला न था, हम किस्मत के मारे थे वगरना हमने पेशनगोई, की कोई कम नहीं कब तलक रोते रहोगे, जख्म़ सहलाते हुए मुस्कुराओ इससे, बढ़कर कोई मरहम नहीं नेकियों का साथ मिल रहा है मुसलसल बदी करने वालों तुम इतने भी तुर्रम नहीं . परिचय :-  विवेक सावरीकर मृदुल जन्म : १९६५ (कानपुर) शिक्षा : एम.कॉम, एम.सी.जे.रूसी भाषा में एडवांस डिप्लोमा हिंदी काव्यसंग्रह : सृजनपथ २०१४ में प्रकाशित, मराठी काव्य संग्रह लयवलये, उपलब्धियां : वरिष्ठ मराठी कवि के रूप में दुबई में आयोजित मराठी साहित्य सम्मेलन में मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व, वरिष्ठ कला समीक्षक, रंगकर्मी, टीवी प्रस्तोता, अभिनेता के रूप में सतत कार्य, हिंदी और मराठी दो...
आओ मिलकर रंग सजाएँ
कविता

आओ मिलकर रंग सजाएँ

श्रीमती विभा पांडेय पुणे, (महाराष्ट्र) ******************** तुमसे, मुझसे,उससे, इससे माँग कर थोड़ा साथ तो लाएँ। आओ मिलकर रंग सजाएँ। लाल, गुलाबी, चटक रंग को हर सूने मन पर बरसाएँ। आओ मिलकर रंग सजाएँ। बीमारी ने पकड़ रखा है, पंजों में अपने जकड़ रखा है। दूर हुए जो घर आँगन से फिर से सबको साथ में लाएँ। आओ मिलकर रंग सजाएँ। दूर हुए बस तन ही तन से जुड़े हैं तार तो मन के मन से। क्या होता जो दो सालों से होली गुलाल की खेल न पाए। आओ मिलकर रंग सजाएँ। गीतों से कुछ रंग चुराकर होली के दिन मेल मिला कर आभासी माध्यम को अपनाकर क्यों न पुराना फगुआ गाएँ। आओ मिलकर रंग सजाएँ। जो न मिला फिर याद करें क्यों, बस सबसे फरियाद करें क्यों? सूने पड़ते चौबारों में फिर से रंगों को बिखराकर आस का क्यों ना दीप जलाएँ। आओ मिलकर रंग सजाएँ। परिचय :- श्रीमती विभा पांडेय शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी एवं अंग्रेजी), एम.एड. जन्म : २३ सितम...
पनघट
छंद

पनघट

डॉ. भावना सावलिया हरमडिया (गुजरात) ******************** विष्णुपद छंद दृश्य सुहाना पनघट पर का, चहल-पहल सारी, चली नीर भरने पनिहारी, ले गगरी न्यारी, पायल को छनकाती चलती, कटि को लचकाती, तिरछी नैनों से दिख के वो, हिय में शरमाती । पायल की झनकार जगाती, प्रीत युवा दिल में, मधुकर मँडराते हैं मानो, पुष्पों के दल में , बीच घोर घन कुंतल दिखती, चंद्र-मुखी प्यारी, घायल सबको करती चलती, मधु मुस्का न्यारी। छोटी-सी ठोकर से छलके, निर्मल जल घट का, मानो नीलांबर है बरसे, खोल स्नेह पट का , बूँद मोतियों-सी सिर पर से, अधरों पर ठहरी, ओस पंखुडी पर  मोती-सी, शोभित है गहरी। परिचय :- डॉ. भावना नानजीभाई सावलिया माता : वनिता बहन नानजीभाई सावलिया पिता : नानजीभाई टपुभाई सावलिया जन्म तिथि : ३ अप्रैल १९७३ निवास : हरमडिया, राजकोट सौराष्ट्र (गुजरात) शिक्षा : एम्.ए, एम्.फील, पीएच. डी, जीएसईटी स...
सार्व भौम चेतना
कविता

सार्व भौम चेतना

ममता श्रवण अग्रवाल (अपराजिता) धवारी सतना (मध्य प्रदेश) ******************** निराकार परमात्म प्रभु का, होता नही है कोई आकार। भक्त के मन के भाव सदा, दे, देते हैं प्रभु को आकार।। मन में प्रतिक्षण चिंतन आता, इस सृष्टि का कौन नियामक। कौन बिगाड़े, कौन बनाये, कौन बना है इसका नायक।। क्या नायक हैं ब्रह्मा, विष्णु, या हैं नानक, ईशा, राम आओ तनिक विचारें हम, खोज उन्हें, हम करें प्रणाम।। खोजे किसी सहृदय के मन में, हमें मिलेगा प्रभु का वास। ईश रूप का तत्व समेंटे, ये जन होते आस ही पास।। कभी कला के रूप में आकर, बन जाते हैं, वे कलाकर। फिर कला निखरती कलाकार की, कला में दिखता प्रभु का आकार।। कभी लेखनी में बस कर ईश्वर, करते शब्दों का निर्माण। कवि की निर्जीव इस लेखनी में ईश तत्व से ही बसते प्राण।। अतः किसी को करें न आहत, सबमें पायें प्रभु का दर्शन। अब न भटकें हम आकारों में, निराकार का यही है चिंतन।। ...
रामायण चालीसा
दोहा

रामायण चालीसा

डाॅ. दशरथ मसानिया आगर  मालवा म.प्र. ******************* राम नाम उच्चारिये,छूटे भव संसार। जीवन परहित कीजिये,कहत है कवि विचार।। राम नाम जग महिमा छाई। राम कथा शिव उमा सुनाई।।१ काकभुसुंड गरुड़ समझाई। याज्ञवल्क भरद्वाज बताई।।२ रामायण के भेद अनेका। बहुभाषा में कवियन लेखा।।३ कृती वास बंग्ला में गाया। रंगनाथ को तेलगु भाया।।४ भाष तमिल में कंबन भाई। दिवाकरा कश्मीरी गाई।।५ सरलदास की उड़िया भाषा। देश विदेशा जन विश्वाशा।।६ वाल्मीकि संस्कृत में गाई। तुलसी ने फिर अवधि रचाई।।७ संवत् सोलह तैंतिस आया। रामचरित मानस जग छाया।८ सात महीना अरु दो साला। छब्बिस दिन में ग्रंथ विशाला।।९ दोहा चौपइ छंद अनेका। सात कांड में रचना लेखा।।१० बाल कांड जन्मे रघुराई । भरत शत्रुघन लछमन भाई।।११ कौशल दशरथ नंदन प्यारे। खेलें आंगन आंखन तारे।१२ विश्वामित्र गुरू रघुराई। बाल पने में शिक्षा पाई।।१३ मार ताड़का सुबाहु दानव। ...
हो बंद शहादत सीमा की
गीत

हो बंद शहादत सीमा की

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** सीमाएं आग उगलती जब, सैनिक जब मारे जाते हैं। व्यवहार बिगडते मुल्कों के, आंसू जनता के आते हैं।। भूमि के टुकड़ों के खातिर, क्या लड़ना बुद्धिमानी है। सरकारों का यूँ बैर भाव, रखना लोगों नादानी है।। सीमाएं जब तय हो जाती, क्या रोज बदलती रहती हैं। दीवारें क्या मानव हैं जो, उठ-उठकर चलती रहती हैं।। फिर क्या होता है सीमा पर, क्यों शांत पड़ोसी लड़ते हैं। हथियारों को हाथों में ले, इक दूजे पे क्यों चढ़ते हैं।। हो राजाओं का राज अगर, सीमाओं का विस्तार करें। निर्दोष जहां कुचले जाएं, बेरहम सिपाही वार करें।। अब राजाओं का राज नहीं, सब की ही इज्जत होती है। हो छोटा बड़ा भले कोई, वोटर है ताकत होती है।। जब बने पड़ोसी दुःख क्यों दें, मानवता का विस्तार करें। सुख-दुख बांटें मिल बैठ सभी, मिल-जुल के सब त्योहार करें।। इन्सानी गरिमा को समझें , ह...
मां
कविता

मां

रश्मि नेगी पौड़ी (उत्तराखंड) ******************** मेरा संसार ही तू मां मेरी ईश्वर ही तू मां है सब कुछ तू ही मेरी मेरा प्राण ही तू माँ तुझमें बसती मेरी जान है… तू ही मेरी शान है तू ही मेरी मित्र मां तू ही मेरे जीवन का सार मां तू सबसे मीठा बोल है मां संसार में सबसे अनमोल है मां मेरे हर मर्ज की दवा है तू मां तेरे जैसा इस संसार में कोई नहीं है मां तुलना तेरी किसी से कर नहीं सकती क्योंकि तू स्वयं में सर्वश्रेष्ठ है मां परिचय : रश्मि नेगी निवासी : पौड़ी उत्तराखंड शिक्षा : एम.ए. प्रथम वर्ष राजनीति विज्ञान सम्प्रति : अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद पौड़ी जिले की जिला सह संयोजिका। घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक ...
मौत
कविता

मौत

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** बैठे है कब से मेरे सिरहाने आस-पास वे भी, जिन्हें फुर्सत ना थी कभी मुझसे मुलाकात की। जिन्हें पसंद ना थी मेरी शक्ल फूटी आंख भी, अब दर्शन को भीड़ लगी है सारी कायनात की। जिनसे तोहफे में नसीब ना हुआ इक बोल भी, आज वे भी मुझ पर बरसा रहे फूल कचनार की। तरसे- रोये है मुश्किलों में हम एक कन्धे को, और अब बानगी देखिए जरा हजारों कन्धों की। कल दो कदम साथ चलने वाला ना था कोई, अब गणना असंभव है साथ चल रहे कारवां की। कमबख्त जिंदगी मौत से बदत्तर लगी आज, कितने रो रहे यहां कमी नहीं चाहने वालों की। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप ...
बस हैं भटकन
कविता

बस हैं भटकन

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आ खड़ा हूँ, आज फिर मैं, ज़िंदगी तेरे, तंग गलियारे में, ताक रहा हूं, तन्हा अम्बर, उलझा जलते बुझते तारों में... भटक रहे हैं,वलय में अपने, दिखते हैं, यो तो पास-पास, चाहें भी तो, मिल नही पाते, कोई गुरुत्व नही,आस-पास... नही कोई, संभावना उनमें, स्याह, प्रहर बस,ख़ालीपन, निर्वात में नही जीवन ऊर्जा, पर हैं कितना चमकीलापन... छूपा हुआ हैं स्रोत कही दूर, तू सोख रहा ,रोशनाई को, चमक भर तुझमें, हैं उसकी, बस वक्ती फ़लक सजाने को... बंद होते पल्लों के ही फिर, अंनत जहां यो रोशन होगा, विलीन हो जायेगे तारे भी, गलियारे में, तन्हा मन होगा. परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ...