कहावतों की कविता – 2
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रचयिता : विनोद वर्मा "आज़ाद"
ऐसी करनी ना करे जो करके पछताय,
ओछों के ढिंग बैठकर अपनी भी पत जाय,
अंधा तब पतियाए जब दो आंखें पाए
अंधी पीसे ने कुत्ती खाय।
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उतावला सो बावला बनना,
उधार तापना बैर बिसाहना,
उंगली पकड़कर पौचा पकड़ना,
उधार का खाना फूस का तापना।
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अर्थ :-
*ऐसा कार्य न करो जिससे बाद में पश्चाताप करना पड़े।
*ओछे व्यक्तियों की संगत से भले व्यक्ति की लाज भी समाप्त हो जाती है - अर्थात संगत का असर आदमी पर अवश्य पड़ता है।
*अंधे को तबही विश्वास होगा जब उसे दिखाई देने लगे - अर्थात जांच - परख कर ही असलियत जानी जा सकती है।
*सोच-समझकर कार्य न करने वाले का सदैव नुकसान होता है।
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*जल्दबाजी में कार्य करने वाला मूर्ख बनता है।
*उधार लेने-देने में आपसी प्रेम समाप्त हो जाता है।
*धीरे-धीरे करीब जाने का प्रयास।
*जिस प्रक...