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पद्य

हवाओं से बचाया जाएगा
ग़ज़ल

हवाओं से बचाया जाएगा

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** हवाओं से बचाया जाएगा। जहाँ दीपक जलाया जाएगा। न होगा चाँद जब आसमाँ पर, सितारों को जगाया जाएगा। कभी इस बाग की सूरत बदलने, बहारों को मनाया जाएगा। जिसे है बात पर अपनी भरोसा, उसे ही आज़माया जाएगा। जहाँ दिख जाएगी मंजिल हमारी, सफ़र उस हद बढ़ाया जाएगा। वहाँ इस गीत की तारीफ़ होगी, जहाँ ये गुनगुनाया जाएगा। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्ष...
सावन
कविता

सावन

आकाश सेमवाल ऋषिकेश (उत्तराखंड) ******************** रिमझिम-रिमझिम बरसे बादल। झिलमिल-झिलमिल दामिनी ये। सर-सर-सर-सर झोंका हवा का दर=दर नहा रही यामिनी ये। टपक=टपक कर टपका पानी। झन-झन झरनों की झनकार। टिटुर-टिटुर कर मेंढक बोले, आयी‌ सावन की बौछार।। गड-गड-गड-गड करता अम्बर, घिर-घिर-घिर-घिर जाते मेघ। दिखे दिशाऐ चांवर जैसी, मोर मगन है मोरनी देख। चहल-पहल कलियों मन में, छन-छन घुंघरू की छनकार। चूं-चूं-चूं-चूं बोली चिडिया, आयी सावन की बौछार।। परिचय :- आकाश सेमवाल पिता : नत्थीलाल सेमवाल माता : हर्षपति देवी निवास : ऋषिकेश (उत्तराखंड) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशि...
तुम्हारे दिये दर्द
कविता

तुम्हारे दिये दर्द

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** तुम्हारे दिये दर्द तुम्हारी याद दिलाते हैं मेरे दिल के घावों को और ताजा कर जाते हैं जब दर्द ही देना था तो तुमने प्यार क्यों किया अपने साथ ही मेरा जीवन भी बर्बाद क्यों किया सच्चे प्रेमी प्यार मैं दर्द नहीं देते हैं वो तो हर दर्द को अपना समझ कर सहते हैं उफ़ भी नहीं करते दर्द पाकर रोते रहते हैं चेहरा छुपाकर ऐसी क्या मजबूरी थी कि मुझे धोका दिया प्यार की जगह दर्द ही दर्द दिया अब तुम्हारे दर्द ही अमानत है मेरे पास जिंदगी भर रहेगें वो मेरे खास तुम्हें कोई दर्द न दे मेरी यही दुआ है मत करना किसी से छल‌ जो मेरे साथ हुआ है परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करता हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। ...
मां
कविता

मां

आस्था दीक्षित  कानपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** तुमसे अलग हो कर, ये मन न रह पाता है मां कामों में उलझा रहता, और याद करता मां आंखों में सपने भरे, पर सपने तुमसे है तुम मुझमें कुछ यूं बसीं, सब अपने तुमसे है सपना पूरा करने में, तुम साथ देना मां तुमसे अलग हो कर, ये मन न रह पाता है मां रात को सर पे तेरी थापे, याद आती है आंगन की वो किलकारी, भी याद आती है जब भी भूखा सोया हूं, तुम याद आती मां तुमसे अलग हो कर ये मन न रह पाता है मां अंधियारा होने पर मां, तुम लोरी गाती थी राजा बेटा कह के, मेरा सर सहलाती थी उन लम्हों मैं में फिर से जीना चाहता हूं मां तुमसे अलग हो कर, ये मन न रह पाता है मां शाम को घर वापस आता, बस ताला मिलता है पूरा दिन तुमने क्या किया, न कोई कहता है तेरा चेहरा सोच कर, सब सह लेता हूं मां तुमसे अलग हो कर ये मन न रह पाता है मां पर...
बिटियाएँ ओझल
कविता

बिटियाएँ ओझल

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** एक तारा टुटा आँसमा से धरती पर आते ही हो गया ओझल ये वैसा ही लगा जेसे गर्भ से संसार में आने के पहले हो जाती है बिटियाँ ओझल । तारा स्वत:टूटता इसमे किसी का दोष नहीं मगर गर्भ में ही कन्या भ्रूण तोड़ने पर इन्सान होता ही है दोषी । भ्रूण हत्या होगी जब बंद तो बिटियाएँ भी धरती पर से हमें निहार पायेगी चाँद -तारों सा नाम पाकर संग जग को भी रोशन कर पायेगी । ये बात बाद में समझ में आई टुटा तारा लाया था एक संदेशा - भ्रूण हत्या रोकने का उससे नहीं देखी गई ऊपर से ये क्रूरता । वो अपने साथी तारों को भी ये कह कर आया- तुम भी एक -एक करके मेरी तरह भ्रूण हत्या रोकने का संदेशा लेते आओ । कब तक नहीं रोकेगें क्रूर इन्सान भ्रूण हत्याए संदेशा पहुँचे या न पहुँचे पर रोकने हेतु ये हमारा आत्मदाह है हमारा बलिदान है देख...
अंतर्मन का रावण जलाओ
कविता

अंतर्मन का रावण जलाओ

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** घर-घर में रावण बन बैठा, तो राम कहाँ से आएगा, कुसंस्कारी दिशा गमन करें, तो राम कहाँ से पाएगा। मनुज चरित ही धर्म-कर्महीन है, तो राम कहाँ लाएगा... कामी, क्रोधी, लोभी, हिंसा, स्वार्थी असूरी गुणी समाया है, अहंकारी, चोरी, व्यभिचारी को दैत्य कारज बताया है। छोड़ो, त्यागो, दफन करो ये सब, तब तो राम मिल पाएगा.. सोकर सपना देखोगे तो सोना कहाँ से मिल पाता है, जाग कर अपने को देखो तो सोना हीरा बन जाता है। घट-घट में जो राम बसा है वहीं तो सबको जगाएगा... दशानन दसगुणी रहा इसलिए वेदों का ज्ञान पाया है, रावण ब्राह्मण कुल लंकेश अधिपति वह कहलाया है। विद्वान होकर भी पाखंडी बना तो राम कहाँ से आएगा .. ब्राह्मण रूप धर छल कपटकर परनारी सीता को लाये हैं, मंदोदरी सखी सहेली मिल, पति रावण को समझाये हैं। पर नारी हरण हिंसाकारी...
सबसे मुश्किल होता है
कविता

सबसे मुश्किल होता है

प्रीति धामा दिल्ली ******************** सबसे मुश्किल होता है, हाँ बहुत मुश्किल होता है, उस सफलता को बस छूते-छूते रह जाना, जिसके लिए आपने जी तोड़ मेहनत की हो, जिसके सपने देखने के लिए, नींदों से बगावत की हो। जिसको पाने के न जाने कितने ख़्वाब देखे हो, जिसकी उम्मीद आपने अपने से, आपके अपनो ने तुमसे बांधी हो, सच में बड़ा मुश्किल होता है, सफलता के आखिरी पायदान पर जाकर नीचे लुढ़कना फिर से नई शुरुआत जब मैंने जीरो से सीखा था, सच में बहुत मुश्किल है, फिर से हिम्मत को बांधे रखना, कि अब फिर से कमर कस कर उस सफलता को एक बार फिर हासिल करना। बस इसी ज़द्दोज़हद में अब कट रही ज़िन्दगी है, कि आखिर कहां रह गयी वो कमी है। परिचय :-  प्रीति धामा निवासी :  दिल्ली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
योग छंद “विजयादशमी”
छंद

योग छंद “विजयादशमी”

शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप' तिनसुकिया (असम) ******************** अच्छाई जब जीती, हरा बुराई। जग ने विजया दशमी, तभी मनाई।। जयकारा गूँजा था, राम लला का। हुआ अंत धरती से, दुष्ट बला का।। शक्ति उपासक रावण, महाबली था। ग्रसित दम्भ से लेकिन, बहुत छली था। कूटनीति अपनाकर, सिया चुराई। हर कृत्यों में उसके, छिपी बुराई।। नहीं धराशायी हो, कभी सुपंथी। सर्व नाश को पाये, सदा कुपंथी। चरम फूट पापों का, सदा रहेगा। कब तक जग रावण के, कलुष सहेगा।। मानवता की खातिर, शक्ति दिखाएँ। जग को सत्कर्मों की, भक्ति सिखाएँ।। राम चरित से जीवन, सफल बनाएँ। धूम धाम से हम सब, पर्व मनाएँ।। योग छंद विधान- योग छंद एक सम पद मात्रिक छंद है, जिसमें प्रति पद २० मात्रा रहती हैं। पद १२ और ८ मात्रा के दो यति खंडों में विभाजित रहता है। १२ मात्रिक प्रथम चरण में चौकल अठकल का कोई भी संभावित क्रम लिया जा सकता है। इसक...
विजय दशमी
कविता

विजय दशमी

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** मेरे लंका रूपी मन के, विषय विकारी रावण को। आप जीतने आना प्रभु, आश्विन शुक्ल दशमी को। अंधकार में दीप जलाने,सत्य विजय भव कहने को। शुद्ध चरित्र करने मेरा, मैं आहूत कर दशहरे को। लंका विजय की भांति, हरलो काम क्रोध मद लोभ को। मन है पापी कपटी वंचक, हे प्रभु दूर करों इस रोग को। धर्म पथ पर गमन करूं, नमन सीता के सम्मान को। मैं कलयुग का केवट करता, नित वंदन श्रीराम को। असत्य पर सत्य की जीत, प्रभु दोहरा दो इतिहास को। कलयुग कर दो त्रेता, अवध बना दो मेरे हिंदुस्तान को। घर-घर दीप जला दो, रावण भूल गए भगवान को। भारत को बधाई, वंदन अभिनंदन पावन त्योहार को। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षि...
विजयदशमी और नीलकंठ
कविता

विजयदशमी और नीलकंठ

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** हमारे बाबा महाबीर प्रसाद हमें अपने साथ ले जाकर विजय दशमी पर हमें बताया करते थे नीलकंठ पक्षी के दर्शन भी कराते थे, समुद्र मंथन से निकले विष का पान भोले शंकर ने किया था इसीलिए कंठ उनका नीला पड़ गया था तब से वे नीलकंठ भी कहलाने लगे। शायद तभी से विजयदशमी पर नीलकंठ पक्षी के दर्शन की परंपरा बन गई, शुभता के विचार के साथ नीलकंठ में भोलेनाथ की मूर्ति लोगों में घर कर गई। इसीलिए विजयदशमी के दिन नीलकंठ पक्षी देखना शुभ माना जाता है, नीलकंठ तो बस एक बहाना है असल में भोलेनाथ के नीले कंठ का दर्शन पाना है अपना जीवन धन्य बनाना है। मगर अफसोस अब बाबा महाबीर भी नहीं रहे, हमारी कारस्तानियों से नीलकंठ भी जैसे रुठ गये हमारी आधुनिकता से जैसे वे भी खीझ से गये, या फिर तकनीक के बढ़ते दुष्प्रभाव की भेंट चढ़त...
माँ
कविता

माँ

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** एक अक्षर का शब्द है माँ, जिसमें समाया सारा जहाँ। जन्मदायनी बनके सबको, अस्तित्व में लाती वो। तभी तो वो माँ कहलाती, और वंश को आगे बढ़ाती। तभी वह अपने राजधर्म को, मां बनकर निभाती है।। माँ की लीला है न्यारी, जिसे न समझे दुनियाँ सारी। नौ माह तक कोख में रखती, हर पीड़ा को वो है सहती। सुनने को व्याकुल वो रहती, अपने बच्चे की किलकारी।। सर्दी गर्मी या हो बरसात, हर मौसम में लूटती प्यार। कभी न कम होने देती, अपनी ममता का एहसास। खुद भूखी रहती पर वो, आँचल से दूध पिलाती है। और अपने बच्चे का, पेट भर देती है।। बलिदानों की वो है जननी। जब भी आये कोई विपत्ति, बन जाती तब वो चण्डी। कभी नहीं वो पीछे हटती, चाहे घर हो या रण भूमि। पर बच्चों पर कभी भी, कोई आंच न आने देती।। माँ तेरे रूप अनेक, कभी सरस्वती कभी लक्ष्मी। माँ देती श...
मैं क्या हूँ …?
कविता

मैं क्या हूँ …?

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** मैं क्या हूँ ? स्वयं का अहम हूँ, कौन हूँ? पानी का एक बुलबुला हूँ, फिर भी इठला रहा हूँ । क्योंकि मैं "मैं" हूँ।। अपने जीवन और अस्तित्व से भली भांति परिभाषित हूँ , किंतु अहम के आवरण से ढका हूँ। क्योंकि मैं "मैं" हूँ।। अस्तित्व में आने के लिए सदैव कसमसाता हूँ, किंतु काल के गाल में कब समा जाऊं ! यह जानने के लिए, नियति को प्रतिपल मनाता हूँ। क्योंकि मैं "मैं" हूँ।। सहसा क्या देखता हूं ! काल के सम्मुख स्वयं को पाता हूँ संभलना चाहता हूँ, नादानियों का प्रायश्चित करना चाहता हूँ, किंतु संभल ही नहीं पाता हूँ। क्योंकि मैं "मैं" हूँ।। फिर भी सौभाग्यशाली हूँ, अहम को छोड़कर पाप-पुण्य को त्याग कर, जीवन-चक्र को भूलकर, मुक्ति के आगोश में चला जाता हूँ। क्योंकि मैं अब "मैं" नहीं हूँ, पानी का बुलबुला हूँ। कर...
आवारा मन के..
गीतिका

आवारा मन के..

प्रमोद गुप्त जहांगीराबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** ढूँढे जिसको उधर गया होगा- वो तेरा गाँव, नगर गया होगा । झूँठ के आगे दुम हिलाता है- शायद अंदर से मर गया होगा । सफेद बादल यूँ नहीं बरसा इस मौसम से डर गया होगा । बेटी नदिया को विदा करके कोई पर्वत बिखर गया होगा । भूखे बच्चों के लिए तूफां में- वो समन्दर उतर गया होगा । भीड़ क्यों जुटी, वह बेचारा- नहीं समझा मगर गया होगा । मंजिल मिल जाएगी उसको- जो दिशा परखकर गया होगा । तड़पता, ये जो काँपता हृदय- आवारा मन के घर गया होगा । यूँ ही वह कत्ल नहीं कर देता भाई हद से गुजर गया होगा । बेटा पढ़ा लिया है एम ए तक- वह, अब तो संवर गया होगा । परिचय :- प्रमोद गुप्त निवासी : जहांगीराबाद, बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) प्रकाशन : नवम्बर १९८७ में प्रथम बार हिन्दी साहित्य की सर्वश्रेठ मासिक पत्रिका-"कादम्बिनी" म...
विजयदशमी
कविता

विजयदशमी

सुनील कुमार बहराइच (उत्तर-प्रदेश) ******************** हर साल की तरह इस साल भी रावण का पुतला जलाएंगे बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाएंगे। पर क्या इस तरह हम अपने भीतर के रावण को मार पाएंगे बुराइयों और समस्याओं को दफन कर पाएंगे। क्या मात्र रावण का पुतला जलाने से हमारी असुरी प्रवृत्तियां खत्म हो जाएंगी घटनाएं अपहरण हत्या बलात्कार की रुक जाएंगी? त्रेता युग के एक दशानन को तो मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने खत्म कर दिया था पर कलयुग में तो हमारे सामने समस्या रूपी दशाननों की फौज है क्या मात्र पुतला जलाकर हम इन दशाननों को खत्म कर पाएंगे या इनसे मुक्ति का कोई और रास्ता निकाल पाएंगे विजयदशमी पर्व की खुशियां मनाने से पहले हमें सोचना होगा रावण दहन का तरीका नया खोजना होगा। तभी देश की समृद्धि और विकास में बाधक समस्याओं और बुराइयों रूपी आधुनिक दशाननों को हम खत्म कर ...
दिल लुभाने के लिए
ग़ज़ल

दिल लुभाने के लिए

संगीता केसवानी **************** रंग कितने हैं जहाँ में दिल लुभाने के लिए। इश्क़ काफी है मगर किस्मत सजाने के लिए।। प्यार, उल्फ़त और चाहत ये ख़ुदा का नूर है। आसरा काफी है उसका प्यार पाने के लिए।। ज़िन्दगी बेबस खड़ी है उस हसीं दीदार को। मौत बैठी हँस रही है लौ बुझाने के लिए ।। ज़िन्दगी बेशक लकीरों का ही चाहे खेल हो। हौसला तनकर खड़ा मंज़िल को पाने के लिए।। ज़िन्दगी चाहे लकीरों का ही क्यों न खेल हो। हौसला तनकर खड़ा मंज़िल को पाने के लिए। झूठ के आगोश में है क़ैद अब तो हर बशर। सच तो छुपता फिर रहा अस्मत बचाने के लिए।। आज क्यों "अल्फ़ज़" मेरे स्याह होते जा रहे हैं। हर सफ़ा बेवस खड़ा मातम मनाने के लिए।। परिचय :- संगीता केसवानी घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ल...
माँ दुर्गा स्तुति
भजन, स्तुति

माँ दुर्गा स्तुति

प्रमोद गुप्त जहांगीराबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** ॐ ह्रीं दुंदुर्गाये नमः, नमस्कार स्वीकार करो ! मुझे भँवर से पार करो माँ, तुम मेरा उद्धार करो । धूं धूं धूमावती ठ ठ, सारे सुख प्रदान करो, करो क्षमा माँ मेरी गलती, और मेरा कल्याण करो । सब की सब बाधाएँ हर लो, दूर क्लेश-विकार करो, रोग-मुक्त, सुख-शान्ति युक्त, माँ मेरा परिवार करो । मेरे अंधकार को हर लो, जय ज्योति माँ जय ज्वाला, मुझको इतनी श्रद्धा दे दो, हो जाऊं मैं मतवाला । मुझे गति दो श्रेष्ठ-मार्ग पर, आगे ही बढ़ता जाऊं, नहीं क्षति हो चाहे मैं, चट्टानों से टकरा जाऊं । लक्ष्मीवान, यशवान बनूँ मैं, ऐसे कर्म कराओ माँ, कोई न शत्रु रहे जगत में, ऐसा ज्ञान सिखाओ माँ । तुझमें और कर्म में मेरी, पूरी-पूरी निष्ठा हो माँ, कोई कटु शब्द ना बोले, हाँ ऐसी प्रतिष्ठा दो माँ । जय अम्बे, जगदम्बे माता, अच्छे मेरे विचार कर...
जय हो माता महागौरी
भजन, स्तुति

जय हो माता महागौरी

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** नवरात्रि मां दुर्गा आठवीं शक्ति, तू महागौरी। कहलाती, मां तेरा रूप। अवर्णनीय, अतुलनीय तेरा। पूर्ण गौर वर्ण। मां तू शंख चंद्र अरू कुंद। पुष्प सम शश्वेत गौरवर्ण कांतिमान शोभित। मां तेरे सकल वस्त्र, आभूषण। शश्वेत धवल, दिव्य जगमग करें। मां तू बैल पीठ सवार विराजित। मां तू चतुर्भुजाधारी। ऊपर दाँया कर अभय मुद्रा। नीचे दाँया कर अरू मुद्रा संग अति शांत मुद्रा सोहै। मां ऊपर बाँये कर डमरु अरु। नीचे बाँये कर वर मुद्रा सोहै। मां तेरी शक्ति अमोघ फलदाई। तेरी आराधना उपासना। हम सब को पाप मुक्त करें। तेरा भक्त पावन अक्षय पुण्य। अधिकारी बने। तू जगत माता हम सबकी। मां तू महाकाली दुर्गा रूप। शरण आने वाले का तू। संकट मिटावै। शनिवार तेरी पूजन जो करै। उसके बिगड़े कारज सुधारै। जय हो माता महागौरी तेरी। ...
नरहरि छंद  “जय माँ दुर्गा”
छंद

नरहरि छंद “जय माँ दुर्गा”

शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप' तिनसुकिया (असम) ******************** जय जग जननी जगदंबा, जय जया। नव दिन दरबार सजेगा, नित नया।। शुभ बेला नवरातों की, महकती। आ पहुँची मैया दर पर, चहकती।। झन-झन झालर झिलमिल झन, झनकती। चूड़ी माता की लगती, खनकती।। माँ सौलह श्रृंगारों से, सज गयी। घर-घर में शहनाई सी, बज गयी।। शुचि सकल सरस सुख सागर, सरसते। घृत, धूप, दीप, फल, मेवा, बरसते।। चहुँ ओर कृपा दुर्गा की, बढ़ रही। है शक्ति, भक्ति, श्रद्धा से, तर मही।। माता मन का तम सारा, तुम हरो। दुख से उबार जीवन में, सुख भरो।। मैं मूढ़ न समझी पूजा, विधि कभी। स्वीकार करो भावों को, तुम सभी।। नरहरि छंद विधान- नरहरि छंद एक सम पद मात्रिक छंद है, जिसमें प्रति पद १९ मात्रा रहती हैं। १४, ५ मात्रा पर यति का विधान है। दो-दो या चारों पद समतुकांत होते हैं। इसका मात्रा विन्यास निम्न है- १४ मात्रिक चरण की प्रथम दो मा...
स्वदेशी अपनाइए
कविता

स्वदेशी अपनाइए

निर्दोष लक्ष्य जैन धनबाद (झारखंड) ******************** स्वदेशी अपनाइए स्वदेशी अपनाइए देश की शान बढ़ाइए देश का मान बढ़ाइए राष्ट्र भक्ति जगाइए जन जन कॊ समझाइए स्वदेशी अपनाइए स्वदेशी अपनाइए ॥ स्वाभिमान दिखा इए स्वदेशी अपनाइए आत्म सम्मान बचाइए स्वदेशी अपनाइए देश का मान बढ़ाइए स्वदेशी अपनाइए आत्म निर्भर बनाइए स्वदेशी अपनाइए ॥ देश का विकाश होगा हर हाथ रोजगार होगा आर्थिक सुधार होगा देश खुशहाल होगा छोड़िए मेड इन फ्रांस इंग्लैड चाईना जापान मूँछें ऐंठीये और अपनाइये मेड इन हिंदुस्तान ॥ शान से तिरंगा फहराए दुनियाँ कॊ दिखलाइए जन जन कॊ समझाइए स्वदेशी अपनाइए शुद्ध स्वच्छ स्वस्थ रहिये स्वदेशी अपनाइए "लक्ष्य" यही बनाइए स्वदेशी अपनाइए ॥ परिचय :- राजीव निर्दोष लक्ष्य जैन निवासी - धनबाद (झारखंड) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचन...
मेरे प्रभु
कविता

मेरे प्रभु

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** मैं स्वर्ग में गमन करूं या फिर नर्क कुंड की अग्नि में भस्म होता रहू मगर फिर भी तुम मुझ में शेष रहना मेरे प्रभु। मैं सिंहासन पर बैठा हुआ राज्य करू या फिर रंक बन भिक्षा मांगू मगर फिर भी तुम मुझ में शेष रहना मेरे प्रभु। मैं जीवन के प्रारंभिक दौर में खड़ा हूं या फिर मृत्य के अंतिम छोर में खड़ा हूं मगर फिर भी तुम मुझ में शेष रहना मेरे प्रभु। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित...
इतनी शक्ति हमें देना
गीत, स्तुति

इतनी शक्ति हमें देना

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** इतनी शक्ति हमें देना माता। मनका विश्वास कमजोर हो न। हम चले मानवता के पथ पर, भूलकर भी कोई भूल हो न। इतनी शक्ति.......….।। दूर अज्ञान के हो अंधेरे। तुम सभी को ज्ञान की रोशनी दो। हर बुराई से बचे रहे हम सब। जितनी भी हो खुशी सभी को दो। भेद भाव करे न किसी से, मन सभी का पवित्र तुम कर दो। हम चले मानवता के पथ पर, भूलकर भी कोई भूल न हो। इतनी शक्ति....….।। हम सोचे हमें क्या मिला है। हम सोचे करे क्या हम अर्पण। मनमें श्रध्दा के भाव रखे हम। पूरी निष्ठा से कार्य करे हम । दीन दुखीयों की सेवा करे हम। ऐसी भावना सबकी बना दो। हम चले मानवता के पथ पर, भूलकर भी कोई भूल हो न। इतनी शक्ति हमें.......। ज्योत मन में धर्म की जगा दो। सेवा भाव दिलों में बढ़ा दो । हिल मिलकर रहे हम सभी जन। नफरत ईर्ष्या के भाव मिटा दो। एक नये राष्ट्र नि...
संघर्ष लिखूं
कविता

संघर्ष लिखूं

आकाश सेमवाल ऋषिकेश (उत्तराखंड) ******************** मैं भाग्य नहीं संघर्ष लिखूं। जीवन का उत्कर्ष लिखूं। टप-टप बहता जिसमें श्रम है, जीवन का वो दर्श लिखूं। मैं भाग्य नहीं संघर्ष लिखूं। जहां पाऊं कांटों से छलनी। जहां बिखरी अमा की हो रजनी। जहां पग दो पग बढना दुष्कर, जहां दूर-दूर तक न हो पुष्कर।। जहां काल खड़ा हो अभिमुख प्रतिपल, उन पल पल का मैं वर्ष लिखूं। मैं भाग्य नहीं संघर्ष लिखूं। जहां पथिक एक हो, पथ अनेक। जहां पूंजी, उमंग,धीरज, विवेक। जहां हस के टाले मुश्किल को, जहां आंखें प्यासी मंजिल को। जहां भूख प्यास या थक नहीं, उस जीवन का निष्कर्ष लिखूं। मैं भाग्य नहीं संघर्ष लिखूं।। परिचय :- आकाश सेमवाल पिता : नत्थीलाल सेमवाल माता : हर्षपति देवी निवास : ऋषिकेश (उत्तराखंड) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित ए...
बेटी और पिता
कविता

बेटी और पिता

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** एक बेटी के लिए दुनिया उसका पिता होता है पिता के लिए बेटी उसकी पूरी कायनात होती है बेटी के लिए पिता हिम्मत और गर्व होता है पिता के लिए बेटी उसकी जिन्दगी की साँसे होती है बेटे से अधिक प्यार पिता अपने बेटी से करता है कोई गलती हो बेटी से झूठी डाँट दिखाते पिता बेटी जब कुछ मांगे तो पिता आसमां से तारे तोड़ लाये बेटी घर में जब होती है पिता को बड़ा गुरुर होता है लूट जाए धन दौलत चाहे सारा जहांन बिक जाए बेटी की आंखों में आंसू भी ना देख सके वो पिता है विदा होती है बेटी घर से पिता बड़ी पीड़ा होती पिता को आंख में आंसू छिपाकर बेटी को कमजोर नही होने देता पिता कहीं किसी कोने में फूट-फूट कर रोता है वो पिता है बेटी के विदा होने से टूट-टूटकर बिखरने लगता है पिता पिता का साया जब होता सिर पर बेटी नही घबराती कभी ...
अपनी बस्ती में…
कविता

अपनी बस्ती में…

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** रहते थे जब अपनी बस्ती में हर पल गुजरता था मस्ती में दिल खोल कर हँसने का शोर आत्मविश्वास की थी मजबूत ड़ोर रोके से भी न रूकना,थकना सबको खुश करने से न चूकना पहचान थी चमकता सितारा तारीफें लुटाता ज़माना सारा सबका भरोसा ही था सच्ची सुलझन तो रिश्तों में न थी कोई भी उलझन डाँट में भी होती थी एक प्यारी परवाह तो भटकने पर भी मिल जाती एक राह बेवजह खुशियाँ मिलती थी सस्ती में रहते थे जब अपनी बस्ती में....... परिचय :- प्रियंका पाराशर शिक्षा : एम.एस.सी (सूचना प्रौद्योगिकी) पिता : राजेन्द्र पाराशर पति : पंकज पाराशर निवासी : भीलवाडा (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्र...
गंगा माँ और इजा
कविता, स्मृति

गंगा माँ और इजा

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** अविरल प्रवाहित जगत जननी की, अद्भुत धारा और गति आज देखी। इंदिरा एकादशी के अवसर इजा , जनसमूह अद्भुत भीड़ आज देखी।। पितर मुक्ति प्रदायिनी एकादशी, श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बतलाई। पितर मुक्ति और आत्म शांति की, इंदिरा एकादशी परम बतलाई।। कर नमन जगज्जननी गंगा को माँ, जन्म दात्री इजा चरणों का ध्यान किया। तेरी कृपा से ही तेरे निरमित्त इजा, पाँचवां गंगा स्नान किया।। किया था प्रथम जब हे इजा, तेरी अस्थि विसर्जन करवाने आया। किया था द्वितीय इजा हे जब, त्रिमासी केस समर्पित करने आया।। छमासी तृतीय स्नान इजा, वासंतिक अवसर पर तूने करवाया। बाज्यू की पुण्यतिथि पर इजू तूने, वर्षा का स्नान चतुर्थ करवाया।। इजा तेरे पुण्य प्रताप-प्रसाद की, फलश्रुति जो तूने पंचम भी करवाया। शब्द नहीं इजा तेरी कृपा के लिए, स्नान जो तूने पंचम भी करवा...