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पद्य

हाँ मैं वही सिपाही हूँ
कविता, छंद

हाँ मैं वही सिपाही हूँ

नफे सिंह योगी मालड़ा सराय, महेंद्रगढ़ (हरि) ******************** मैं ध्रुव तारे सा अचल, अटल, सदियों से खड़ा स्थाई हूँ। निश्चिंत हिंद जिस दम सोता, जी हाँ मैं वही सिपाही हूँ।। घर,परिवार व प्यार त्याग मैं, सरहद पर तैनात खड़ा हूँ। करुँ मौत से मस्ती हरदम, खतरों से सौ बार लड़ा हूँ। हिंद नाम लिखा जिसने हिम पर, मैं उसी रक्त की स्याही हूँ। निश्चिंत हिंद जिस दम सोता, जी हाँ मैं वही सिपाही हूँ।। है धरती सा धीरज मुझमें, व आसमान सा ओहदा है। हिम्मत हिमालय सी रखता, सदा किया मौत से सौदा है। अपनों पर जान गँवाता हूँ, दुश्मन के लिए तबाही हूँ। निश्चिंत हिंद जिस दम सोता, जी हाँ मैं वही सिपाही हूँ।। बाहों में सिसके दर्द सदा, आँखों में निंदिया रोती है। सपनों में दिखता दुश्मन को, चिंता मुझको ना खोती है। मैं लक्ष्य हेतु जितना थकता, होता उतना उत्साही हूँ। निश्चिंत हिंद जिस दम सोता, जी हाँ मैं वही सिपाही हू...
शीत
कविता

शीत

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** शीत बड़ी.....!!!! क्यों चीख पड़ी ? क्या दुखद घड़ी..? ना, ...... मेघों की दड़ी। बारिश की झड़ी। बूंदों के संग-संग, हिम तुहिन लड़ी।। कैसा भय है...? कुछ नव क्षय है...? सदियों से ही, प्रकृति लय है।। इस बार सजन, घबराये मन । धक-धक धड़कन, अंग-अंग जकड़न।। पावक ना दहक, बर्फीली महक। नस-नस में चहक, बहे रक्त बहक।। . परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यकारिणी सदस्य हैं एवं पत्र-पत्रिकाओं के अलावा इंदौर आकाशवाणी केन्द्र से कई बार प्रसारण, कवि सम्मेलन में भी सहभागिता रही है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवान...
सभ्यता और संस्कृति का जन्मदाता
कविता

सभ्यता और संस्कृति का जन्मदाता

सलिल सरोज नई दिल्ली ******************** मैं पावापुरी का जैन मंदिर हूँ। मैं तुम्हारी सभ्यता और संस्कृति का जन्मदाता हूँ, मुझे पहचानो। अब मैं वृद्ध और रुग्ण हो चला हूँ, मुझे संभालो। मैं विलाप करता हूँ अपनी वर्तमान स्थिति पर, मुझे सँवारो। मैं रेत में पड़ा ठंडा हुआ राख हूँ, मुझे फिर जला लो। जिस तरह मिलते हो अपने बच्चे से, मुझे भी गले लगा लो। शरीर सारा जलता हैं ग्रीष्म में मेरा, मुझे आँचल में छुपा लो। मेरे हृदय के कमल कुम्भलाने लगे हैं, प्यास तुम बुझा दो। मैं ठूँठ सा मंज़िल हुआ पड़ा हूँ, राह तुम बना लो। मैंने सदियाँ दी हैं सौगात में तुम्हें, मेरा भी अस्तित्व जिला दो। महावीर ने निर्वाण लिया मेरे ही प्रांगण में, उसकी तो लाज बचा लो। मैं पावापुरी का जैन मंदिर हूँ, तुमसे गुहार लगाता हूँ- मेरा भी सिंचन करो, मेरी भी सम्मान करो। मैं तुमसे वादा करता हूँ, बिहार को मस्तक पर धरता हूँ, आलौकिक इतिह...
विरह का रोग
ग़ज़ल, दोहा

विरह का रोग

रजनी गुप्ता "पूनम" लखनऊ ******************** मुझको देखो आज फिर, लगा विरह का रोग। पिय बिन सूना साज फिर, लगा विरह का रोग। जोगन बनकर फिर रही, गाऊँ विरहागीत, भूल गई सब काज फिर, लगा विरह का रोग। बिसरी जग की रीत सब, खुद से हूँ अनजान। छुपा रही सब राज फिर, लगा विरह का रोग। प्रियतम जब से दूर हैं, बिखरा सब शृंगार। हृदय पड़ी है गाज फिर, लगा विरह का रोग। 'रजनी' तेरी याद में, तड़प रही दिन-रात। भूल गई सब लाज फिर, लगा विरह का रोग।। . परिचय : नाम :- पूनम गुप्ता साहित्यिक नाम :- रजनी गुप्ता 'पूनम' पिता :- श्री रामचंद्र गुप्ता पति :- श्री संजय गुप्ता जन्मतिथि :- १६जुलाई १९६७ शिक्षा :- एम.ए. बीएड व्यवसाय :- गृहणी प्रकाशन :- हिंदी रक्षक मंच इंदौर म.प्र. के  hindirakshak.com पर रचना प्रकाशन के साथ ही कतिपय पत्रिकाओं में कुछ रचनाओं का प्रकाशन हुआ है सम्मान :- समूहों द्वारा विजेता घोषित किया जाता रहा है। ...
हंगामा है…
कविता

हंगामा है…

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** हंगामा मचाया है..... सियासत के झमेले में। ज़रा तुम पूँछ लो भाई, खुद से खुद अकेले में। बना कानून संसद में, तब मैदान छोड़ा क्यों? महज़ नाटक किया करते, काम अच्छे में रोड़ा क्यों? बिन पेंदी के लोटे हैं, उन्हें साथी बनाया क्यों? माया और शिवसेना? भरोसा यूँ जताया क्यों? लगाकर आग खुश हो तुम, संपत्ति बाप की है क्या? गंदी सोच और तिकड़म मंशा आपकी है क्या? सारे काम कर डाले (मोदी जी ने) जो जितने जरूरी थे। ठोकर ख़ाकर ना सुधरे (राहुल जी) गुरूरी हो गुरूरी थे। अमन और चैन की भाषा, तुम्हें शायद पता है क्या? सोचते क्यों नहीं प्यारे, जलाकर यूँ नफ़ा है क्या? बिजू बहुत अच्छे हैं..... वो सच्चे पथ के अनुगामी। (मोदी,शाह) सपा, बसपा और पंजे की, समझ न आती नादानी। गद्दारों से देश घिरा है, भृम जो भी थे टूट गये। है श्रंगार भाव ना दिल में, इक़ झटके में भूल गये। बिंद...
गुलाबी धूप
कविता

गुलाबी धूप

रंजना फतेपुरकर इंदौर (म.प्र.) ******************** गुलाबी सुबह की गुलाबी धूप में पलकें जब नींद से जाग जाती हैं तुम्हारे खयाल सिरहाने आकर सो जाते हैं और मैं तलाशती रहती हूं तुम्हारी यादों को सुबह के झीने कोहरे में डरता है मन कहीं तुम खो न जाओ रोशनी के धुंधले साए में लेकिन फिर चांदनी रात मेरे ख्वाबों की देहलीज़ पर हौले से दस्तक दे जाती है और तुम्हारे खयाल आकर फिरसे पलकों पर ठहर जाते हैं . परिचय :- नाम : रंजना फतेपुरकर शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य जन्म : २९ दिसंबर निवास : इंदौर (म.प्र.) प्रकाशित पुस्तकें ११ सम्मान ४५ पुरस्कार ३५ दूरदर्शन, आकाशवाणी इंदौर, चायना रेडियो, बीजिंग से रचनाएं प्रसारित देश की प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में निरंतर रचनाएं प्रकाशित रंजन कलश, इंदौर अध्यक्ष वामा साहित्य मंच, इंदौर उपाध्यक्ष निवास : इंदौर (म.प्र.) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी ...
रिश्ता बेच दिया
कविता

रिश्ता बेच दिया

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** देखो ना मुझे रिश्ता बेच गया, खुशी बताकर दर्द बेच गया, पराया था फिर भी अपना बना कर, मेरे जज्बात बेच गया, जर्रे जर्रे में तुझको सोचा, तूने हर बार नया रिश्ता बेच दिया, तकलीफों को जब भी भूला, तूने हर बार दर्द का नया रिश्ता बेच दिया, नमजों में सर झुका कर, दुआ हर बार नहीं मांगी, तूने रूह तक कपाकर, मेरा विश्वास हर बार बेच दिया, मिलता है मुझे वो अपनों की तरह, करता है वही कत्ल मेरे दिल का सरेआम, लाती हैं हवाएं भी मेरी जान, मेरी जान में, उसने बहारों से लाकर, मेरा चमन बेच दिया, आए वो मेरे घर पर, किस्मत तो मेरी देखो, ऐसे वक्त पर लाकर, मेरी मुरादों को बेच दिया, रखती हूं सलामत उसे, हर बला से आज भी, देखो तो जालिम ने हमें, दुआओं में बेच दिया, झुकते थे हम क्योंकि, हमें रिश्ता निभाना था, देखो ना... ज़ालिम ने हमें, गलत बताकर बेच दिया....!! . ...
सलाह
कविता

सलाह

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** बुजुर्ग से सलाह ले, तू निश्चय मंजिल पाएगा। अनुभव उनके पास बहु,तू सफल हो जाएगा।। छोटी सोच त्याग, निर्मल जीवन बन जाएगा। कल किसने देखा, तू आज को जी पाएगा ।। सुख घड़ी गुजर गई, दुख भी ठहर न पाएगा । सुख दुख तो आने जाने, पर तू निखर जाएगा।। नेक सलाह लें, काम जो नित करता जाएगा। कठिन परिश्रम कर, राह आसान बनाएगा ।। जैसी सोच रखेगा, फल उसी अनुरूप पाएगा। बोया पेड़ बबूल का, तोआम कहाँ से आएगा।। अहम दीवार बीच आई, तो रिश्ता टूट जाएगा। फासला इतना ना बढ़ा, फिर मिल ना पाएगा।। मन भेद जो रखा, तो देख मनमुटाव बढ़ जाएगा। समझौते का फिर कोई, द्वार नजर ना आएगा।। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रूचि है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी र...
एक विकृत सोच
कविता

एक विकृत सोच

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** अबॉर्शन....... एक विकृत सोच का....? समाज में, अपनी, विकृत मानसिकता को। छुपाने के लिए, अबॉर्शन करवाते हैं। कभी बेटों के लिए, कभी जायज- नाजायज, संबंधों के लिए, मानववादी सोच का, अपहरण तक कर आते हैं। वे लोग..........? अपनी ऐसी विकृत सोच का अबॉर्शन क्यों.....नहीं कराते हैं? देश की अर्थव्यवस्था की, जो धज्जियां उड़ाते हैं। अपने मतलब के लिए, षडयंत्र रचाते हैं। भ्रष्टाचार फैला कर, देश को ही खा जाते हैं। धर्मों के नाम पर, लड़ा जात- पात फैलाते हैं। मजबूर बेसहारों पे जुल्म ढाते हैं। झूठ -फरेब से बाज नहीं आते हैं। ऐसी सोच का, अबॉर्शन क्यों .......नहीं कराते हैं? समाज और देश के, वे लोग ....….......? जो सभ्यता को, लज्जित कर जाते हैं। ना समाज का, ना देश का भला कर पाते हैं। अपनी विकृत सोच से नकारात्मकता बढ़ाते हैं। सत्य को हराकर झ...
नैतिक बल
कविता, नैतिक शिक्षा, संस्कार

नैतिक बल

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** शारिरिक बल, बुद्धिबल, से बलशाली नीति, नैतिक बल के सामने, टिकती नहीं अनिती। व्यक्ति जाति या राष्ट्र हो, होता उसका नाश, जो अनिती पथ पकड़ता, है साक्षी इतिहास। नैतिक बल से आत्म बल है संवद्ध घनिष्ठ, टका एक दो पृष्ठ है, किसे कहें मुख पृष्ठ। है यदि सच्ची नीति तो, वहीं धर्म आधार, ठहर न सकता धर्म है, जहां न नीति विचार। सब धर्मों को देख कर, गोर करें यदि आप, तो पायेंगे नीति का, सब मे अधिक मिलाप। अचल नियम है नीति के, अचल न चक्र विचार, मत विचार है बदलते, नीति धर्म आधार। निर्भर करता नियत पर, नीति अनिती कलाप, शुद्ध हर्द्रय सदभावना, मूल्यांकन का माप। . परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्...
पतंग
कविता

पतंग

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** आकाश में उड़ती रंगबिरंगी पतंगे करती न कभी किसी से भेद भाव जब उड़ नहीं पाती किसी की पतंगे देते मौन हवाओं को अकारण भरा दोष मायूस होकर बदल देते दूसरी पतंग भरोसा कहा रह गया पतंग क्या चीज बस हवा के भरोसे जिंदगी हो इंसान की आकाश और जमींन के अंतराल को पतंग से अभिमान भरी निगाहों से नापता इंसान और खेलता होड़ के दाव पेज धागों से कटती डोर दुखता मन पतंग किससे कहे उलझे हुए जिंदगी के धागे सुलझने में उम्र बीत जाती निगाहे कमजोर हो जाती कटी पतंग लेती फिर से इम्तहान जो कट के आ जाती पास होंसला देने हवा और तुम से ही मै रहती जीवित उडाओं मुझे ? मै पतंग हूँ उड़ना जानती तुम्हारे कापते हाथों से नई उमंग के साथ तुमने मुझे आशाओं की डोर से बाँध रखा दुनिया को उचाईयों का अंतर बताने उड़ रही हूँ खुले आकाश में क्योकि एक पतंग जो हूँ जो कभी भी कट सकती तुम्हारे हौसला ...
हमनें तेरे लिए
गीत

हमनें तेरे लिए

ओम प्रकाश त्रिपाठी गोरखपुर ********************** हमनें तेरे लिए हर कसम तोड़ दी दुनिया तेरे लिए हमनें यू छोड़ दी बस तमन्ना यही दिल मे है बस मेरे आप भी अब इन्हें छोड़ दें आओ संग कहीं मिलकर चलें।। हाथ मे हाथ बस यूं तुम्हारा रहे एक दूजे का हम यूं सहारा रहें गिर पड़े हम अगर यूं कहीं राह मे एक दूजे को बढ थाम लें आओ संग कहीं मिल कर चलें।। चलें ऐसी जगह ढूंढ कर हम कहीं चिडियाँ चहके जहाँ फूले कलियाँ कहीं प्यार ही प्यार हो जिस चमन मे सनम उस चमन की तरफ हम चलें आओ संग कहीं मिलकर चलें।। . परिचय :-  ओम प्रकाश त्रिपाठी आल इंडिया रेडियो गोरखपुर आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com...
मरने के बाद
कविता

मरने के बाद

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** लोग कहते हैं मरने के बाद, मुक्ति मिल जाती है, अपनों का एहसास नहीं होता, अपनों की याद नहीं आती, कोई हमसे तो पूछें, मुक्ति के बाद एक-एक पल हमने कैसे गुजारा, हमें जलने से डर लगा, पर चले हम, हमें दूर होने से डर लगा, पर दूर हुए हम, मरने के बाद क्यों रहते हैं हम, अपनों के आसपास ही, अपनों ने ही जलाया हमें, अपनों ने ही भुलाया हमें, हमें भी दर्द हुआ था जलने में, खाक ऐ सुपुर्द होने में, हम सब को देखते हैं, हमें कोई नहीं देखता, हम सबको याद करते हैं पर, हमें कोई याद नहीं करता, क्यों मर कर भी, तिल तिल मरते हैं हम, अपनों के लिए..... . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं...
तुम्हारी याद जब आती
गीत

तुम्हारी याद जब आती

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** तुम्हारी याद जब आती तड़प आंसू बहाता हूँ। जुगनू पूछते हमसे कोहरे का पकड़ दामन पुष्पों के नाज पर भवरे बने घूमते हैं यू उन्मन जख्मी ही समझ सकते हैं। कसक जो गीत गाता है। तुम्हारी याद जब आती तड़प आंसू बहता हूँ। धरा पर अंधियारी छाती लुटाती स्वप्न की दुनिया तभी तुम पास आ जाते हैं अचानक जब नींद खुलती एकांकी हाथ पाता हूँ। तुम्हारी याद जब आती तड़प अश्रु बहाता हूँ। अलग टूटे हुए दिलों में लहर उच्छवास की आती तुम ही पर यह लगी नयने सदा बरसात कर जगाती तड़पकर आह भरकर मै सदा रजनी गँवाता हूँ। तुम्हारी याद जब आती........ . परिचय :-  ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक ...
जमाना जालिम है
कविता

जमाना जालिम है

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** बचकर रहना यार, जमाना जालिम है हो जाओ होशियार, जमाना जालिम है। अपनापन, भाईचारा खत्म हो चुका है है रिश्तों में व्यापार, जमाना जालिम है। दिन प्रति दिन देखो क्या खूब बढ़े हैं लुच्चे, टुच्चे, झपटमार, जमाना जालिम है। नारी सुरक्षा के दावे भी खोखले साबित होती तेजाबी बौछार, जमाना जालिम है। रपट लिखाने कभी जो जाओ थाने रिश्वत मांगे थानेदार, जमाना जालिम है। न्याय, सत्य, निष्ठा, ईमान हुआ है बौना भ्रष्टाचार ही शिष्टाचार, जमाना जालिम है। हो जरूरत यदि कभी धर्म रक्षा के लिए लो हाथ में तलवार, जमाना जालिम है।   परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में...
पंख बदलने से
कविता

पंख बदलने से

रामनारायण सोनी इंदौर म.प्र. ******************** पंख बदलने से आकाश नही बदलता सूरज भी तो वही है जहाज बदलने से सागर नहीं बदलता जल भी तो वही है सूरत बदलने से सीरत नही बदलती आदमी भी तो वही है शरीर बदलने से चोला बदलता है रूह तो वही है   परिचय :-  रामनारायण सोनी साहित्यिक उपनाम - सहज जन्मतिथि - ०८/११/१९४८ जन्म स्थान - ग्राम मकोड़ी, जिला शाजापुर (म•प्र•) भाषा ज्ञान - हिन्दी, अंग्रेज़ी, संस्कृत शिक्षा - बी. ई. इलेक्ट्रिकल कार्यक्षेत्र - सेवानिवृत यंत्री म.प्र.विद्युत मण्डल सामाजिक गतिविधि - समाजसेवा लेखन विधा - कविता, गीत, मुक्तक, आलेख आदि। प्रकाशन - दो गद्य और एक काव्य संग्रह तथा अब तक कई पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार - "तुलसी अलंकरण", "साहित्य मनीषि", "साहित्य साधना" व विभिन्न प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्थानों द्वारा कुछ सम्मान प्राप्त। विशेष उपलब्ध...
रिश्ते में बंधे
गीत

रिश्ते में बंधे

संजय जैन मुंबई ******************** तेरे आने का मुझको, बहुत इंतजार रहता है। तेरे जाने का मुझको, बहुत गम भी होता है। ये आना और जाना, बंद हो सकता है? अगर बंध जाये दोनों एक पवित्र रिश्ते में।। मोहब्बत करना और निभाना, बहुत बड़ी चुनौती है। जो हर किसी के बस की बात, नही होती है यारो। तभी बहुत सी मोहब्बतें, बीच में ही टूट जाती हैं। फिर वो दोनों प्रेमी जन, कही के भी नहीं रहते।। तमन्नाएं बहुत होती हैं, दो जबा दिलों में। मोहब्बत करने का ज़ुन्नुन, दिल दिमाग पर रहता हैं। मगर अंजाम का उन्हें, पता कुछ भी नहीं होता। की इस रास्ते पर कितने कांटे, अभी चुभना बाकी हैं।। . परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं ह...
पूरबा बयार से
कविता

पूरबा बयार से

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** ग्रामो मे मेरे पूरबा बयार से बसवारीयो की खूँटे टकराती है। चरमर-चरमर की आवाजे भैरवी की राग सुनाती है। कराहती है गरीबी बेदर्द बन झोपड़ियों में- जहां दिन में सूर्य की रोशनी रातें में चांदनी झांकती है जहां दीपक के नाम पर चंद देर तक का ही सही अचानक चांदनी टिमटिमाती है। अंधकार की नीरवता में पवित्र निश्चल हृदय पुचकारती है। पावस की फुहार, में जहां दूधिया चांदनी में मजबूरियों की हाहाकार में नई विवाहिता बालाए सिकुड़कर नहलाती है। गाती है उनकी माताए ग्रामीण वृद्धाए खुशी की गीत । घुंंघट के नीचे निःसंकोच शर्माती है। राजनीति से दूर, सुदूर पश्चिम मे पेड़ो की टहनियों पर बैठ कर चिड़िया चहकती है। महकती है बागे जब आम् मंजर खिलती है। गाँवो की पोखर मे कमल की फूल भ्रमर की गुनगुनाहट सुन अचानक सहम जाती है। . परिचय :-  ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय ...
विषमताओं की लकीरें
गीत

विषमताओं की लकीरें

लज्जा राम राघव "तरुण" बल्लबगढ, फरीदाबाद ******************** विषमताओं की लकीरें, घेर मेरा मग खड़ी है। राह कैसे देख पाऊं, तिमिर की रेखा बड़ी है। वो समय बीता कभी का, छाँह तेरे नेह की थी।......! मेघ भी देता सुकूँ कब, गर्दिशों का रेत फैला। पाक जो दामन हमारा, वक्त कर पाया न मैला। लुभाती मुझ को रही, सुगंधि तेरी देह की थी......! वो समय बीता कभी का, छाँह तेरे नेह की थी।......! पेड़, जंगल सब कटे जो, साक्ष्य थे दीवानगी के। पशु, पक्षी, गिरि, गह्वर, आराध्य थे रवानगी के। मरू फैला दूर तक इक आस रिमझिम मेंह की थी।...! वो समय बीता कभी का, छाँह तेरे नेह की थी।...! काल का ये फेर सारा, काल की सारी खुदाई। मिलन होकर भी लिखी थी, भाग्य में उनसे जुदाई। लुटा कर सब कुछ बचा, ये फुहारें स्नेह की थी।.....! वो समय बीता कभी का, छाँह तेरे नेह की थी।.....! .   परिचय :-  लज्जा राम राघव "तरुण" जन्म:- २ मार्च १९५...
सच्चाई
कविता

सच्चाई

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** मीठे बोल राह भटकाएंगे, मान यही सच्चाई है। बुजुर्गों ने समझाया, बात कहा समझ आई है।। शब्दों में कठोरता, राह नेक उसने दिखाई है। संग सदा वह खड़ा रहा, जैसे तेरी परछाई है ।। सच्चाई जग में, सबने सदा ऐसे ही बिसराई है। अपनी गलती को मनु, तूने नित ही दोहराई है।। नापाक मंशा मुकम्मल, कभी नहीं हो पाई है। झूठी राह अपना, हकीकत जिसने बिसराई है।। झूठ फरेब नकाब लगा, हकीकत छुपाई है। प्रभु पारखी नजर से, नहीं बचा कोई भाई है।। कह रही वीणा, यह दुनिया बहुत तमाशाई है। झूठ दौड़ रहा, सच्चाई की नहीं सुनवाई है।। सच्चाई पर अड़े रहे, हंसकर जान गवाई है। मर कर अमरता, कुछ बिरलो ने ही पाई है।। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रूचि है। आप भी अपनी कविताएं, क...
साथी
गीत

साथी

संजय जैन मुंबई ******************** कटती नहीं उम्र अब तेरे बिना। मुझको किसी से मानो प्यार हो गया। जिंदगी की गाड़ी अकेले अब चलती नहीं। एक साथी मुझे अब जरूरत आ पड़ी।। मिलना मिलाना जिंदगी का दस्तूर है लोगो। खिल जाता है दिल जब कोई अपना मिलता है यहां। जिंदगी के इस सफर में मिलकर चलो सभी। यूँही जिंदगी हंसते हुए गुजर जायेगी।। मतलबी लोगो से थोड़ा बच के तुम चलो। कब धोका तुम्हें दे देंगे पता चलेगा भी नहीं। इसलिए अपनेपन की परिभाषा तुम सीखो। फिर उसके अनुसार ही अपनो को तुम चुनो।। जीवन तुम्हारा सही में संभाल जाएगा। हर मुश्किल की घड़ी में तुम्हें दिख जाएगा। कौन कौन तेरे साथ खड़े है मुश्किल की घड़ी में। सब कुछ तुझे समाने नजर आएगा।। अच्छे बुरे लोग सभी तुझे दिख जाएंगे। संसार का चक्र तुम्हें दिख जायेगा। जिंदगी को जीना कोई आसान काम नहीं। मिल जुलकर जीओगें तो जिंदगी में आनदं आएगा।। . परिचय :- बीना (मध्यप्र...
भ्रष्टाचारी नेता
कविता

भ्रष्टाचारी नेता

अमित राजपूत उत्तर प्रदेश ******************** ठूस-ठूस  कर खाते हैं जनता का पैसा भाषण देते हैं भरपूर! जो ना करें जनता की सेवा दिल से ऐसे नेता से रहना दूर! भ्रष्टाचारी नेता जीतने से पहले जनता के आगे सर झुकाते हैं! चुनाव जीतने के बाद यह नेता फोन तक भी नहीं उठाते हैं! नाली खरंजा विधवा पेंशन राशन कार्ड का कोटा खा जाते हैं! भ्रष्टाचार से पेट फूल गया है इनका अकड़ उल्टा दिखाते हैं! गलती हमारी ही थी क्योंकि हमने इन्हें वोट देकर जिताया है! नहीं करते काम जनता का बिना लिए दिए यह परिणाम आया है! जनता ने अब ठाना है भ्रष्टाचारी नेता को चुनाव नहीं जिताना है! नेता होना चाहिए ऐसा की जनता हित में अच्छा काम करें! भ्रष्टाचारी मुक्त हो दामन उसका देश में अच्छा नाम करें .....! . लेखक परिचय :- अमित राजपूत उत्तर प्रदेश गाजियाबाद आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हि...
अफवाएं
कविता

अफवाएं

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** हर साल दिसम्बर माह में धरती के ख़त्म होने अफवाह दूसरे देशो से उड़ाई जाती है। दिसंबर २०१२ पर तो फिल्म भी बन चुकी है। क्षुद्र ग्रह, पृथ्वी से टकराने की बाते ज्यादा उड़ाई जाती रही। ग्रह पृथ्वी की कक्षा आते ही जल जाते है। खगोलीय घटनाओं को पकड़ने वैज्ञानिक पहले से सतर्कता बरतते है। कुछ लोगो का काम ही अफवाएं फैलाना है। अफवाओं पर ध्यान न दे कर खगोलीय विधा रूचि लेवे तो ये ज्ञान -विज्ञानं में वृद्धि में करेगा ...।   अफवाएं भी उडती/उड़ाई जाती है जैसे जुगनुओं ने मिलकर जंगल मे आग लगाई तो कोई उठे कोहरे को उठी आग का धुंआ बता रहा तरुणा लिए शाखों पर उग रहे आमों के बोरों के बीच छुप कर बेठी कोयल जैसे पुकार कर कह रही हो बुझालों उडती अफवाओं की आग मेरी मिठास सी कुहू-कुहू पर ना जाओं ध्यान दो उडती अफवाओं पर सच तो ये है की अफवाओं से उम्मीदों के दीये नहीं...
प्रकृति
कविता

प्रकृति

श्रीमती श्वेता कानूनगो, जोशी इंदौर मध्य प्रदेश ******************** जब चाँद रात में तारों कि बारात में, धीमी थी रोशनी आधी रात में देखकर तारों को छूने का मन करता, उस चमक को महसूस कर बहकने का दिल करता। सवेरा होने पर सूर्य कि अरूणिमा, धीमी-धीमी सी लालिमा मन को भानेलगती। सूरज की तेज रोशनी में आँखों पर, तेज धूप से एक चेहरा सा छा जाता। दिन होने पर गर्मी मे चिड़ियों और, कोयल की आवाज मन को तड़पाने लगती है। शाम आते ही प्यारी सी धीमी सी हवा में, सूर्य का अस्त होना आकाश को लाल करके धीमी सी रोशनी बना देता है। चाँद रात में तारों कि बारात में, धीमी थी रोशनी आधी रात में .... . परिचय :-  श्रीमती श्वेता कानूनगो, जोशी निवासी - इंदौर मध्य प्रदेश जन्मतिथि - २० सितंबर १९९४ शिक्षा - बीएससी (इलेक्ट्रॉनिक मीडिया), एमएससी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, विशेषज्ञता - टेलिविजन प्रोडक्शन कार्यक्षेत्र - वर्तमान मैं रेनेसा...
काँटों ने महक
ग़ज़ल

काँटों ने महक

प्रमोद त्यागी (शाफिर मुज़फ़्फ़री) (मुजफ्फरनगर) ******************** काँटों ने महक दर्द ने आराम दिया है बोसा जो उसनें आज खुलेआम दिया है आगोश में शर्मा के वो आयें हैं इस कदर जैसे की किसी फर्ज़ को अंजाम दिया है अहसान दर्द का है जो हासिल हूए हमें मर जाते ख़ुशी से इन्होंने थाम लिया है साजिश है कोई या मेरे अब दिन बदल गये दुश्मन ने आज भर के मुझे जाम दिया है पैमाना जो ख़ाली मेरे लब से लगा रहा दुनिया ने इसे मयकशी का नाम दिया है उसनें जो निभाई है मुहब्बत में तिजारत हमनें भी उसको दाम सुबह शाम दिया है तुफान बहुत तेज है "शाफिर" जरा संभल हल्दी सी इक आहट ने ये पैगाम दिया है . परिचय :- प्रमोद त्यागी (शाफिर मुज़फ़्फ़री) ग्राम- सौंहजनी तगान जिला- मुजफ्फरनगर प्रदेश- उत्तरप्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मं...