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पद्य

जल ही जीवन है
कविता

जल ही जीवन है

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** जल है तो कल है, कल से ही सकल है। जल‌ है तो फल‌ है, फल से ही सफल है। जल है तो अधि है, अधि से ही जलधि है। जल‌ है तो वारि है, वारि बिना व्याधि है। जल ही तो अज है, जल से ही जलज है। जल है तो आज है, आज से ही समाज है। जल है तो वन है, वन से ही जीवन है। जल है तो घन है, घन से ही सघन है। जल है तो बल है, बल से ही सबल है। जल है तो हल है, ‌ हल से ही महल है। जल ही तो नीर है, नीर से ही समीर है। जल है तो खीर है, खीर से ही बखीर है। जल है तो तन है, तन से ही वतन है। जल है तो मन है, मन से ही मनन है। जल है तो वर्ण है, वर्ण से ही सवर्ण है। जल है तो वर्ग है, वर्ग से ही संवर्ग है। जल है तो धन‌ है, धन बिना निर्धन‌ है। जल है तो जन है, जन से ही सज्जन है। जल है तो जीव है, जीव से ही सजीव है...
एक प्रेम कहानी
कविता

एक प्रेम कहानी

रमाकान्त चौधरी लखीमपुर खीरी (उत्तर प्रदेश) ******************** एक प्रेम कहानी तुम्हें सुनाऊँ। सच्ची घटना तुम्हें बताऊँ।। जिससे मेरी आँख लड़ी। वो लड़की मुझसे खूब लड़ी।। बेमतलब बोला करती है वो। जहर उड़ेला करती है वो।। सुन सुन कर थक जाता हूँ मैं। हार के चुप हो जाता हूँ मैं।। चुप देख मुझे चुप हो जाती है। मेरी हार देख खुश हो जाती है।। वो नखरे खूब दिखाती है। मुझे देख के मुँह बिजकाती है।। उसे देख के गुस्सा आता है। फिर उससे मन चिढ़ जाता है।। वो मुझको खूब चिढ़ाती है। हँस के गैरों से बतियाती है।। जब थक जाती खूब चिढ़ाने से। तब बोले किसी बहाने से।। जब उसको लगता क्रोधित हूँ मैं। उसकी बातों से आहत हूँ मैं।। झट से वह रो देती है। गुस्से को मेरे धो देती है।। मैं माफ उसे कर देता हूँ। उसको बाहों में भर लेता हूँ।। सब कहते लड़की भोली है। बस कड़वी थोड़ी बोली है।।...
नव वर्ष हमारा
कविता

नव वर्ष हमारा

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** सबसे प्यारा नव वर्ष हमारा सारी दुनिया से न्यारा हर मजहब का करता स्वागत जिसको सब धर्मो ने स्वीकारा आशाएं फले फूले, घर-घर हो मंगलगान ये संकल्प हमारा उमंग और उत्साह ये दिलाता दिल से लगता कितना प्यारा अंगद, गौतम झूलेलाल आज के अवतरण, आँखों का तारा आर्यवृत भारत के हम वासी है न कर पाया हमे कोई न्यारा माँ शक्ति का महापर्व है आज मिले नोमी को राम अवतारा चारो पौरूषार्थ कामना का पर्व सुख समृध्दि का पर्व है सारा सृष्टि की रचना रच गए ब्रह्म देव ऐसा चैत्र प्रतिप्रदा २०८० हमारा मंगलमय हो मिले खुशियाँ अपार एक दूजे के हम बने मोहन सहारा परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी जन्म : २७ मई १९६५ निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान सम्प्रति : प्राध्यापक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित...
तुझे क्या लिखूँ
कविता

तुझे क्या लिखूँ

मधु टाक इंदौर मध्य प्रदेश ******************** कलम जब करिश्मा करती है और शब्द नृत्य करने लगते हैं तब कविता का सृजन होता है कविता अन्तर मन में की गई वो थपकी है जो रूह को सुकून देती है !!!! हूँ मैं कश्मकश में कविता तुझे किया लिखूँ समंदर में बहती हुई सरिता तुझे क्या लिखूँ गुलशन में आज़ाद पक्षियों की चहचहाहट लिखूँ पिंजरे में क़ैद इन परिन्दों की छटपटाहट लिखूँ शजर से झरते इन पत्तों का गरल वियोग लिखूँ नई कोंपलों के उदय का सुहाना सुयोग लिखूँ इठलाते समंदर के खारेपन का अभिशाप लिखूँ दरिया का सिन्धुराज से मिलने का मिलाप लिखूँ सूरज की तपिश से तपती धरती की व्यथा लिखूँ सावन से भीगी इस धरा की उन्मुक्त गाथा लिखूँ उसकी ख़ुशबू से महकता दिल का गुलशन लिखूँ उसके न होने से वीरान होता मन का उपवन लिखूँ डूबती हुई इस शाम का धुंधला सा प्रकाश लिखूँ उगते सूरज का *मधु* सिन्दूरी सा उल...
जब श्रृंगार सजाती कविता
कविता

जब श्रृंगार सजाती कविता

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** भाव हृदय का बाहर आकर, कविता बन जाता है। अगर भाव दिल को छू जाए, तब जन-जन गाता है। कविता क्या है,भाव हृदय का, प्रमुदित मन हो जाता भावविभोर खिला जीवन को, सुंदरवन हो जाता। उठा कलम कुछ भी लिख डाला, तब कविता रोती है। सार्थक लिखे कलम जिसकी भी, वही सीप मोती है। अरी कलम, लिख डाल भुखमरी, और गरीबी लिख दे। अत्याचार पाप तू लिख दे, मजबूरी भी लिख दे। रही लेखनी सदा समर में, कवियों का ही गहना। दिनकर सूर निराला जी की, कविता का क्या कहना। कभी तोड़ती पत्थर लिक्खा, मीरा का दुख दर्द लिखा। रसवंती हुंकार भी लिखी, कुरुक्षेत्र, प्रणभंग लिखा। मन की वीणा झंकृत होती, जिसको पढ़ लेने से। कैसे कोई कवि बन सकता, कुछ भी लिख लेने से। कविता भाती सारे जग को, है इतिहास पुराना। ओजपूर्ण कविता का जग में, सब ने लोहा मा...
अब आ जाओ गौरैया
कविता

अब आ जाओ गौरैया

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** बालपन की सखियाँ फुदकती आ जाती थी नन्हीं मुन्नी गौरैयाए कभी भी आँगन में बेझिझक बेधड़क अपना ही घर समझ बिन न्योते ही ची-ची करके दाने चुगती गुड़िया की कटोरी से दाल भात भी खा जाती धान चुनती दादी से मनुहार नहीं कराती नाच दिखाती थाली में ठंडे पानी में छपछपकर छककर प्यास बुझाती पेपर पढ़ते दादा की ऐनक धुंधली कर जाती कुछ दानें चोंच में भर फुर्र से उड़ जाती चूज़ों का ख़्याल रख जिम्मेदारी निभाती यूँ कई सीखें दे जाती जाने कहाँ कही गई तुम? क्या नीलकंठ बन गई ? दाना पानी भरे सकोरे तेरी राह हैं तकते डोरियाँ रेशम के झूले हवा में लहराते रँगरंगिले फूल पत्तियाँ तेरे दरस को तरसे अब बच्चों को नानी दादी बस सुनाती तेरी कहानी या बच्चों की चित्रकारी में दीवारों पर टँग गई परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्...
समय बहुत ही मूल्यवान है
मुक्तक

समय बहुत ही मूल्यवान है

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** समय बहुत ही मूल्यवान है, इसे पकड़ प्रभु सुमिरन करले। "मानस" है जीवन का दर्शन, नित्य प्रातः कुछ इसको पढ़ले। समय बहुत ही........ राम चरित लिखने के मित ही, तुलसीदास का जन्म हुआ था। पर सुन्दर पत्नी पा करके, उन्हें कार्य ये भूल गया था। पर रत्ना ने याद दिलाया, प्रभु चरणों मे प्रीत बढ़ा ले। समय बहुत ही ......... कामुक मन को ठेस लगी तो, प्रभू कृपा से भक्त जग गया। नहीं पलट देखा रत्ना को, प्रभु चरणों की ओर बढ़ गया। हनुमत ने तब याद दिलाया, बाल्मीकि का वचन निभाले। समय बहुत ही ......... मुक्ति हेतु मनाव तन पाया, ये ईश्वर की करुण कृपा है। तरे अजामिल, गणिका से भी, जब उनने प्रभु नाम जपा है। जितनी साँसे शेष बची हैं, उनको प्रभु सुमिरन में लगाले। समय बहुत ही .......... परिचय :- प्रेम नारायण मेहरोत्रा निवास : जानक...
लिख दो कहानी
कविता

लिख दो कहानी

विवेक नीमा देवास (मध्य प्रदेश) ******************** समय की धारा में बह रहा है जीवन हर दिन है रंगीन और उन्मत है मन। पल पल बदलती सबकी जिंदगानी है कर्म है अमर और जीवन फानी है। कल,आज, कल में सब कुछ समाया है समेट लो खुशियाँ बाकी तो सब माया है जीवन के कागज पर लिख दो कहानी जियो हर पल ऐसे जैसे दो पल हो बाकी पा लो वो सब कुछ देखा हो जो ख्वाब कही उड़ न जाए तितली और खुली रह जाए किताब। परिचय : विवेक नीमा निवासी : देवास (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी कॉम, बी.ए, एम ए (जनसंचार), एम.ए. (हिंदी साहित्य), पी.जी.डी.एफ.एम घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक...
वो रुलाता रहा
कविता

वो रुलाता रहा

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** वो रुलाता रहा मैं हंसती रही हंसी के पीछे आंसू छुपाती रही उन्होंने समझा बेपरवाह हूं पर मैं घर -बच्चों को देखती रही सपने तो संजोए थे पर पहले जिम्मेदारियां निभा रही थी जीवन जो छुटा था पीछे बस उसे ही धक्का देने में लगी थी जब लगाया जोर पूरा रेस में शामिल मैं हो गई फिर जिंदगी के इम्तिहान में प्रथम भी आ गई अब ना कहना लापरवाह हूं परिचय :-  सीमा रंगा "इन्द्रा" निवासी :  जींद (हरियाणा) विशेष : लेखिका कवयित्री व समाजसेविका, कोरोना काल में कविताओं के माध्यम से लोगों टीकाकरण के लिए, बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ हेतु प्रचार, रक्तदान शिविर में भाग लिया। उपलब्धियां : गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड से प्रशंसा पत्र, दैनिक भास्कर से रक्तदान प्रशंसा पत्र, सावित्रीबाई फुले अवार्ड, द प्रेसिडेंट गोल्स चेजमेकर अवार्ड, देश की अलग-अलग स...
चाल यम भी चल गया है
गीत

चाल यम भी चल गया है

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** चाल यम भी चल गया है, वेदना की यह घड़ी, मोलतीं जो चूडियाँ हैं, आँसुओं की हैं झड़ी। प्रेम-पंछी उड़ गया है, रो रही है यामिनी, जाल मकड़ी ने बुना है, आह भरती मानिनी, नीम आहें भर रहा है, रो रहा बरगद छड़ा, ताल छाती पीटता है, हादसा है यह बड़ा, शब्द कुंठित हो गए हैं, लाश है घर पर पड़ी। चीखती हर साँस चिंतित, प्राण वह अनमोल था। माँग का सिंदूर चुप है, आस का भूगोल था।। चार कंधों का सहारा, और तन पर खोल था। मौत होनी है सचाई, जीवनी का मोल था।। क्यों गड़ी? कैसे गड़ी जो, कील आँखों में गड़ी। फिर विसर्जित पुष्प भी अब, देख गंगा धार में। बह गया है संग सब कुछ, हम खड़े मझधार में।। शेष कुछ यादें बचीं हैं, भीगते रूमाल में। चेतना सब खो गयी है, अंजुली के थाल में।। बोझ ये जीवन बना अब, है कठिन जुड़नी कड़ी। प...
हां मैं बुरी हूं
कविता

हां मैं बुरी हूं

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** मैं बिल्कुल नहीं जीना चाहती तुम्हारी बनाई हुई खोखली परंपराओं के साथ, इंसां तो मैं भी हूं पर तुम्हारे लिए हूं नारी जात, धर्म के नाम पर, समाज के नाम पर, घर की इज्जत के नाम पर, थोप रखे हो गुलामी की दीवार, गाहे बगाहे होती रहती हूं दो चार, हमें घूंघट को कहते हो, खुद स्वच्छंद रहते हो, बुरखा सिर्फ मैं ही क्यों लगाऊं, बंधन में बांध खुद को क्यों सताऊं, घर की इज्जत का ठेका सिर्फ मेरा नहीं है, क्या घर में किसी और का बसेरा नहीं है, आ जाते हो पल पल देने घर के इज्जत की दुहाई, तुम्हारे बेतुके नियम मैंने तो नहीं बनाई, हां मान लो मुझे मैं बुरी हूं पर अब खुद की बॉस हूं, तुम्हारे द्वारा खड़ी की गई है जो गुलामी की दीवार अब उससे आजाद हूं, लंपट मर्द हो मुझमें ही बेहयाई खोजोगे, जब भी सोचोगे मेरे विरोध में सोचोगे, ...
पुस्तकें सत्य की
दोहा

पुस्तकें सत्य की

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** सदा पुस्तकें सत्य की, होती हैं आधार। सदा पुस्तकों ने किया, परे सघन अँधियार।। देती पुस्तक चेतना, हम सबको प्रिय नित्य। पुस्तक लगती है हमें, जैसे हो आदित्य।। पुस्तक रचतीं वेग से, संस्कारों की धूप। पढ़ें पुस्तकें मन लगा, पाओ तेजस रूप।। पुुस्तक गढ़े चरित्र को, पुस्तक रचती धर्म। पुस्तक में जो दिव्यता, बनती करुणा-मर्म।। पुस्तक में इतिहास है, जो देता संदेश। पुस्तक से व्यक्तित्व नव, रच हरता हर क्लेश।। पुस्तक साथी श्रेष्ठतम, सदा निभाती साथ। पुस्तक को तुम थाम लो, सखा बढ़ाकर हाथ।। पुस्तक में दर्शन भरा, पुस्तक में विज्ञान। पुस्तक में नव चेतना, पुस्तक में उत्थान।। पुस्तक का वंदन करो, पुस्तक है अनमोल। पुस्तक विद्या को गढ़े, पुस्तक की जय बोल।। विद्यादेवी शारदा, पुस्तकधारी रूप। पुस्तक को सब पूजते, रंक र...
अपना देश है अपनी धरती
कविता

अपना देश है अपनी धरती

देवप्रसाद पात्रे मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** अपना देश है अपनी धरती। अपनी ही माटी में लुटती नारी।। अत्याचार अहिंसा का शिकार। अपने ही घर दम घुटती नारी।। इतिहास के पन्ने हैं बतलाते, सदियों से छली जाती रही है। त्याग समर्पण विश्वास के बदले अपनों से धोखा खाती रही है।। दुश्मनों पर जो पड़ती भारी। किन्तु कुचक्र से हारी है नारी।। इश्क़ - मोहब्बत के नाम पर। टुकड़ो में काटी जाती है नारी।। जाग गई तो जग का कल्याण। माता सावित्री बन प्रेरणा नारी।। बदले की चिंगारी भड़क उठी तो, वीरांगना फूलन बन इतिहास गढ़ती नारी।। परिचय :  देवप्रसाद पात्रे निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचि...
हिन्दी मेरी भाषा है
कविता

हिन्दी मेरी भाषा है

 जितेंद्र गौड़ राजगढ़, ब्यावरा (मध्य प्रदेश)  ******************** हिन्दी मेरी भाषा है, हिंदी मेरी आशा है। एकता की जान हिन्दी भारत की शान हिन्दी।। हमारा भारत हमारी हिन्दी, दुनिया में पहचान कराती हमारी हिन्दी। हमारा भारत हमारी हिन्दी दुनिया को आकर्षित करती हमारी हिन्दी। अपने वतन की सबसे प्यारी भाषा, हिन्दी जगत की सबसे न्यारी भाषा। हिन्दी सिर्फ एक भाषा नहीं, हिंदी से हिंदुस्तान है। अलग जगह दे जो हर दिल में, ऐसी हिन्दी भाषा की गुणात्मक पहचान है। हिंदी भाषा हमारी शान है, हम सब मिलकर दे इसको सम्मान है। हमारे राष्ट्र कवियों ने हिन्दी भाषा को दिया नया आयाम है यहां। ग्रंथ वेदों आदि का हिंदी भाषा में समझने का मिला ज्ञान हमें यहां। हिन्दी सूर कबीर है, हिंदी है रसखान, आओ सब मिलकर करें हिन्दी का उत्थान। हिंदुस्तान की गौरव गाथा है हिन्दी, एकता की अन...
कोई नहीं लिखता अब चिट्ठियां
कविता

कोई नहीं लिखता अब चिट्ठियां

रेणु अग्रवाल बरगढ़ (उड़ीसा) ******************** कोई नहीं लिखता अब किसी को चिट्ठियां अतीत का हिस्सा हुए खुतूत लाठी टेकती कॉपती बूढ़ी और जर्जर देह अब नहीं जाती डॉकखाने तक पोपले मुंह से पूछने- आया उसके बेटे का खत? अब नहीं लौटती उसकी टूटी और घिसा चुकी चप्पलें किसी खामोश निराशा की उबड़-खाबड़ पगडंडी से अब नहीं उलझता उसके लहंगे का कोई छोर किसी कांटेदार झाड़ी में नहीं टपकती उसकी आंखों से करूणा और ममत्व से लबरेज टप-टप आंसुओं की बूंदें गहरी निराशा में किसी बरगद किसी पीपल की धनेरी छॉह में बैठ ठंडी सांस भरते किसी को नहीं मिलती अब वे गुलाबी चिट्ठियां पाने के लिए जिन्हें अंगार-सी दहकती जमीन पर पांव नंगे दौड़-दौड़ जाते थे कि जिन्हें पढ़ने के लिए भी एकांत और चमेली का कोई झुरमुट जरूरी हुआ करता था जिनके पन्नें शिकवे-शिकायतों की दिलकश खुशबू से सराबोर होते जिन्हें रात को कंद...
कहीं हमारी कहीं तुम्हारी
ग़ज़ल

कहीं हमारी कहीं तुम्हारी

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** कहीं हमारी कहीं तुम्हारी, विरोधियों ने कमी बता दी। हक़ीक़तों का बयान आना, शुरू हुआ तो ज़ुबाँ दबा दी।। दलील देने लगा खलीफा, कि पंख तेरे नये नये हैं, भरी ज़रा सी उड़ान भर तो, ज़मीन पर ही हवा खिला दी।। भला बता दो किसे मिला है, सुकून दौरे जहाँ में आके, सदा सताता रहा जमाना, कभी घुटन तो कभी सजा दी।। हजार मुँह हैं हजार बातें, हजार दुखड़े खड़े दिखे हैं, जहाँ जहाँ भी गया वहाँ जो, मिला उसी ने कथा सुना दी।। कहा हटो सब खलास राशन, अमीर का तब गरूर टूटा, फक़ीर भूखा चला गया पर, सलामती की दिली दुआ दी।। न देह होगी न रूह होगी, न प्राण प्यारे कहीं मिलेंगे, कई पढ़ेंगे हमारी ग़ज़लें, मेरी गजल ही मुझे पढ़ा दी।। परिचय :- गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : ...
कैसा आया रे वसंत
कविता

कैसा आया रे वसंत

आशा जाकड़ इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सखि कैसा आया रे वसन्त जीवन का हो गया मानो अन्त ? पेड़-पौधे खामोश लग रहे निर्जीव मानो जैसे सो रहे पलाश तो ऐसे लग रहे मानो अंगारे से दहक रहे किस -किस का होवेगा अन्त ? सखि कैसा आया रे वसन्त ? युद्ध की चल रही आँधियाँ मौत की सुना रही कहानियाँ वीरों की बता रही जवानियाँ आन पर मर मिटी छत्राणियाँ गूँज बलिदान की दिक-दिगन्त सखि कैसा आया रे वसन्त ? वीरों ने पहना बसंती चोला सिर पर बांधा कफन का सेहरा तोड़ा गाँव-परिवार से नाता रणभूमि से बस उनका नाता सर्वत्र तूफानों का न कोई अंत सखि कैसा आया रे वसन्त ? रण में युद्ध-बाजे बज रहे , शस्त्र ले सैनिक आगे बढ़ रहे ऊपर बर्फीली आँधियाँ बहे सीने पर गोलियाँ सह रहे। कर रहे दुश्मन से भिड़ंत। सखि कैसा आया रे बसंत ? परिचय :- आशा जाकड़ (शिक्षिका, साहित्यकार एवं समाजसेविका) शिक्षा - एम.ए...
प्रकृति
कविता

प्रकृति

गायत्री ठाकुर "सक्षम" नरसिंहपुर, (मध्य प्रदेश) ******************** प्रकृति का रूप निराला, अनुपम सौंदर्य का प्याला। सर, सरिता, नद और सागर, निर्झर करते गान दे ताला। हरियाली लगती है सुखकर, पुष्प वाटिका दिखती सुंदर। विविध प्रकार के वृक्ष अनूठे, पत्र, प्रसून, फल समेटे अंदर। पर्वत और पठार विशाल, सजा रहे वसुधा का भाल। नील गगन की चादर फैली, सघन मेघ करते हैं निहाल। रंग बिरंगी तितलियां उड़तीं, भ्रमर करते वाटिका गुंजन। जुगनू जहां तहां से चमकते, सुरभित बहती 'सक्षम' पवन। परिचय :- गायत्री ठाकुर "सक्षम" निवासी : नरसिंहपुर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी...
जयति माँ शीतले
स्तुति

जयति माँ शीतले

अर्चना तिवारी "अभिलाषा" रामबाग, (कानपुर) ******************** आज शीतला अष्टमी, करो मातु का ध्यान । रोग अंग के दूर हों, महिमा बड़ी महान ।। सूप कलश झाड़ू लिए, और नीम के पात। गर्दभ पर बैठी हुईं, आई मेरी मात ।। दर्शन कर लो मातु का, चरण झुकाओ माथ । कृपा करेंगी शीतले, धरें शीश पर हाथ ।। सुख समृद्धि की कामना, विनती बारंबार । कलुष हृदय का माँ हरो, हर लो रोग विकार ।। सच्चे मन से मातु का, करता है जो ध्यान । नित्य कृपा माँ की मिले, होता है कल्यान ।। जयति-जयति माँ शीतले, करूँ तुम्हारा ध्यान । नित्य कृपा मिलती रहे, माँगू माँ वरदान ।। परिचय :-  अर्चना तिवारी "अभिलाषा" पिता : स्वर्गीय जगन्नाथ प्रसाद बाजपेई माता : श्रीमती रानी बाजपेयी पति : श्री धर्मेंद्र तिवारी जन्मतिथि : ४ जनवरी शिक्षा : एम ए (राजनीति शास्त्र) बी लिब- राजर्षि टंडन ओपेन यूनिवर्सिटी-प्रयागराज निवासी : रामब...
खुले आसमां में
कविता

खुले आसमां में

रामकेश यादव काजूपाड़ा, मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** खुले आसमां में उड़ाएँ पतंगें, सुख, समृद्धि, शान्ति की उड़ाएँ पतंगें। फसलें सजी हैं किसानों की देखो, चलो हवा से मिलके उड़ाएँ पतंगें। मकर संक्रांति का फिर आया उत्सव, असत्य पे सत्य की उड़ाएँ पतंगें। तस्वीर दिल की इंद्रधनुषी बनाएँ, अरमानों के नभ में उड़ाएँ पतंगें। दक्षिणायन से उत्तरायण हुआ सूरज, नीचे से ऊपर को उड़ाएँ पतंगें। तमोगुण से सतोगुण की ओर बढ़ें, करें दान पहले, तब उड़ाएँ पतंगें। बेखौफ होकर गगन को छू आएँ, उसके चौबारे में उड़ाएँ पतंगें। नहीं कुछ फर्क है जिन्दगी-पतंग में, उलझें न धागे वो उड़ाएँ पतंगें। बिछाई है जाल महंगाई नभ तक, हिरासें न घर में, उड़ाएँ पतंगें। कागज का टुकड़ा इसे न समझो, चलकर फलक तक उड़ाएँ पतंगें। दरीचे से बाहर निकलेगी वो भी, चलो आशिकी में उड़ाएँ पतंगें। फना होना तय है हमारी ये...
हिंदी जैसा शालीमार
कविता

हिंदी जैसा शालीमार

सीताराम पवार धवली, बड़वानी (मध्य प्रदेश) ******************** विश्वगुरु की ये भाषा हिंदी सारी भाषाओं की महारानी है। हिंदी को छोटा न बोल हिंदी ने हिंदुस्तान का नाम बढ़ाया है। हिंदी से संस्कृति जन्मी हिंदी ने संस्कारों का पाठ पढ़ाया है। हिंदी की इस दुर्दशा के असली जिम्मेदार हम ही तो हैं। हिंदी छोड़ हमने इन अंग्रेजों की अंग्रेजी को सिर पर चढ़ाया है। हिंदी अगर जहां में नहीं होती तो फिर ये हिंदुस्तान नहीं होता हिंदुस्तान में आकर विदेशियों ने हिंदी का मजाक उड़ाया है। आक्रांताओ ने हिंदी को अपमानित करने का काम किया फिरंगीयो ने आकर हिंदुस्तानी भाषाओं को आपस में लड़ाया है। हिंदी आन हिंदी शान हिंदी हिंदुस्तान के जीवन की शैली है हिंद देश के वासीयो ने मिलकर हिंदी को इनके चंगुल से छुड़ाया है। धरती पे अगर हिंदी नहीं होती तो दुनिया दिशाहीन हो जाती आतताईयों ने ये भो...
प्रथम पूज्य गणराज
कुण्डलियाँ, छंद

प्रथम पूज्य गणराज

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** कुण्डलियाॅं छंद गणपति बप्पा मोरया, प्रथम पूज्य गणराज। प्रथम नमन है आपको, पूरण करिए काज।। पूरण करिए काज, सभी सुख के तुम दाता। तुम हो कृपा निधान, जन्म-जन्मो से नाता।। कहे राम कवि राय, गणों के तुम हो अधिपति। हरिए सकल विकार, हमारे बप्पा गणपति।। वंदन गणपति का करें, और धरें उर ध्यान। इनके शुभ आशीष से, मिलता है सद्ज्ञान।। मिलता है सद्ज्ञान, देव हैं परम कृपाला। गज मस्तक हैं नाथ, धरे हैं देह विशाला।। कहे राम कवि राय, करें इनका अभिनंदन। गूॅंज रहा जयकार, जगत करता है वंदन।। परिचय :- रामसाय श्रीवास "राम" निवासी : किरारी बाराद्वार, त.- सक्ती, जिला- जांजगीर चाम्पा (छत्तीसगढ़) रूचि : गीत, कविता इत्यादि लेखन घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी...
ऐ वसन्त!
कविता

ऐ वसन्त!

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** ऐ वसन्त! तुम मत लाना पानी संग पत्थर; सरसो खड़ी है हमारे खेत में! कुछ दिन रुक जाना, फिर बरसाना; पर केवल रसधार! पकने वाली है अरहर की फलियॉ, लगने वाली है गेहूं में बाली; अपनी सखी हवा से कहना, 'धीरे बहने को' ; लोट न जाने देना अलसी को, जी भर कभी निहारना; नाचते चने के ऊपर- लहराते लतरी को! चूक न करना कोई ! बहते रहना, फागुन से चैती तक... निर्बाध ... अनिन्दित... रसमय होकर!! परिचय :-  बृजेश आनन्द राय निवासी : जौनपुर (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानि...
अभिश्राप नही वरदान
कविता

अभिश्राप नही वरदान

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** पतिव्रता नारी पर तुम कितना भी लाछन लगा लेना, कितनी भी परीक्षा ले जग उसकी, हर परीक्षा ? प्रतिष्ठा ही उसकी, मान और सम्मान वही। राम ने सीता को जाना पर जनता ने पहचाना क्या ? हर परीक्षा परिणाम के लिए नहीं होती, उत्तर दे समझाना क्या। राजा जनक प्रतिक्षा ही करते, प्रतीक्षा ही संतोष सही, प्रतीक्षा ही उत्तर है उनका (राम) प्रतिक्षा ही यहा प्रतिउत्तर हैं। हीरा तो जौहरी ही जाने, सबकी दृष्टि मै काँच वही, उसकी कीमत वो ही जाने जिसकी दृष्टि जौहरी सी है, एक पिता बेटी की कीमत, या फिर प्रियतम पहचाने, क्या मोल नारी का जग में , मार्गदर्शक वह बन जावे, सरस्वती दुर्गा हे यह बुद्धि ज्ञान की भंडार है, युद्ध कोशल मै हे वह लक्ष्मी तलवार खून की प्यासी है, प्रेम का पाठ सीखा सदा इसने, राधा मीरा सी भक्ति है राजनी...
द्रुतविलम्बित छंद-वर्णिक छंद
छंद

द्रुतविलम्बित छंद-वर्णिक छंद

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** द्रुतविलम्बित छंद-वर्णिक छंद समवृत्तिक (दो-दो चरण- समतुकान्त)- नगण+भगण-भगण+रगण- १२वर्ण पवन-पुत्र कपीश बलीस हैं । लखन प्राण निवारक अनीस हैं ।। हरन शोक सिया त अशोक हैं । तरन सिंधु विशाल विशोक हैं ।। कपिस केश सुबाहु बलिष्ठ हैं । कनक देह सुशोभित मिष्ठ हैं ।। अमित विक्रम अम्मर साहसी । जगत रक्षक साधक जापसी ।। सच कहा भल सज्जन वानरा । कर भला जब ही भल डाबरा ।। नित करो हनु का जप ध्यान से । मनन तर्पण-अर्पण मानसे ।। पनपती विष वल्लरि द्वार है । विपति-साँसति फैलति झार है ।। सुखद भाव भरे कर दो शुभा । पतित-पावन रूप चलो निभा ।। चहुँमुखी सुरसा मुँह खोलती । प्रगति पंथ खड़ी नित रोकती ।। कुशल, कौशल आकर मोइए । चहुँदिशा यश-वैभव जोइए ।। अनीस- सुप्रीम , मिष्ठ- पुण्यात्मा , डाबरा मीठे लड्डू परि...