मधुमास बसंत
डॉ. भगवान सहाय मीना
जयपुर, (राजस्थान)
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धरा मांग सिंदूर सजाकर,
झिलमिल करती आई भोर।
खग कलरव भ्रमर गुंजन,
चहुं दिस नाच रहे वन मोर।
सुगंध शीतल मन्द समीर,
बहती मलयाचल की ओर।
पहने प्रकृति पट पीत पराग,
पुष्पित पल्लवित मही छौर।
रवि आहट से छिपी यामिनी,
चारूं चंचल चंद्रिका घोर।
मुस्काती उषा गज गामिनी,
कंचन किरण केसर कुसुम पोर।
महकें मेघ मल्लिका रूपसी,
मकरंद रवि रश्मियां चहुंओर।
मदहोश मचलती मतवाली,
किरणें नभ भाल पर करती शोर।
सुरभित गुलशन बाग बगीचे,
कोयल कूके कुसुमाकर का जोर।
नवयौवना सरसों अलौकिक,
गैंहू बाली खड़ी विवाह मंडप पोर।
मनमोहित वासंतिक मधुमास,
नीलाभ मनभावन प्रकृति में शोर।
कृषकहिय प्रफुल्लित आनन्द मय,
अभिसारित तरु रसाल पर भौंर।
शुभ मधुमास बसंत की लावण्यता
नीलाभ अलौकिक प्रकृति में जोर।
वसुधाधर मुस्कान सजीली अरुण,
सुरभित दिग्दि...























