प्रकृति की गोद
श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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फिर से उठ कर धारा को
हरियाली से सराबोर करते हैं,
आओ चलो प्रकृति की
गोद में लौट चलते हैं ।
इन्हीं से सीखा है
जीवन का सार मानव ने
पर्वत से ऊंचाई,
सागर से गहराई,
चांद से शीतलता,
सूरज से चमक
वायु है प्राण, अग्नि
तपाकर सोना बनाती है
अग्नि धारा, जल, वायु,
जीवन का रहस्य समझते हैं
पेड़ों पौधों में भरी हैं
खुशगवार जिंदगी
को हवा से मिलकर मधुर
संगीत सुनाती हैं
झरनों नदियों की
कल-कल से
सुहाने स्वर उभरते हैं,
आओ फिर से समंदर की
मस्ती भरी लहरों पर चलते हैं
बारिश की बूंदों से भी,
ऊंचे उठकर धारा पर वापस
आना भी सीखते हैं।
कैसे कैद कर सकता है कोई
प्रकृति की इन
मजबूत दीवारों को !!
हे मनुष्य मत करो
प्रकृति पर प्रहार,
मत ध्वस्त करो,
ये पर्वत, ये धारा,
ये जीव, इनका जीवन
मत क्रूर बनो इतना कि
हर जीवन सम...