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कविता

वेद और विज्ञान
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वेद और विज्ञान

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** विज्ञान की जो खोज हमारे सामने आई है। वो पहले से ही हमारे वेदों में समाई है। ******* हम गलत पढ़ते हैं कि विमान राईट ब्रदर्स ने था बनाया । क्योंकि रामायण काल में हमने पुष्पक विमान को है पाया। ******** हमारे वेदों में सारा विज्ञान समाया है। वेदों का ही सारा ज्ञान विज्ञान में आया है। ******* अर्थवेद में चिकित्सा ज्ञान समाया है। सारे आयुर्वेद को हमने इसमें पाया है। ******** हमारे चारों वेदों में शिल्प, विज्ञान और इंजीनियरिंग समाई है यहां से जानकारी अन्य देशों ने चुराई है। ******** बीजगणित हो या अंकगणित वनस्पतिशस्त्र हो या जीवशास्त्र भौतिक या रसायन विज्ञान वेदों में समाया है सारा ज्ञान। ******** परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी घोषणा : मैं यह शपथ ...
शोर
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शोर

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** चिड़िया अपने घोसलों के लिए तिनके बीन कर लाई उसे फिक्र है अपने अंडों से निकले बच्चों के लिए सुरक्षित आवास देने की। उसने उड़ कर देख ली हैवानियत की दुनिया जहां मासूमियत को रौंदा जाता जिसकी रुदन की चीखों से चिड़िया के बच्चें डर गए पूछते माँ क्या इंसान इतना हैवान होगया। हमारे घोंसले में एक फाटक लगा देना हमसे मासूमियत की चीखें नहीं सुननी हैवानियत की गुहार कैसे करे जब हम उड़ने लगेंगे तब हम सब पक्षी शोर मचाएंगे जिससे लोगो का ध्यान हमारे शोर पर जाएगा लोगों को इस शोर से जागेंगे भले ही इंसान कानो में रुई ठोस के पड़े हो उसे जगना ही पड़ेगा क्योंकि हर घर मे चिड़िया सी बेटियां है। परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि : २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा : आय टी आय निवासी : मनावर, धार (मध...
बहुत खुश है हम
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बहुत खुश है हम

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** पास आकर बैठो तो बताएंगे अपना गम दूर से पूछोगे तो कहेंगे बहुत खुश है हम..!! चार पैसे कमाने गांव से शहर आ गए, अपने ही घर से मानो बेघर हो गए हम..!! घर की तलाश में घर छोड़ आए है हम, गांव गली घर से रिश्ता तोड़ आए हम..!! लोगों की नजरों में अब अनजान बन गए अपने ही घर में हम मेहमान बन गए..!! चार पैसे कमाने दर-दर भटकते रहे हम कभी ख़ुशी कभी गम का घूंट पीते रहे हम..!! शहरों तक नहीं आती  मिट्टी की खुशबू, गाँव की मिट्टी से बहुत दूर आ गए हम..!! न गाँव के रहे अब ना शहर के रहे हम अपने बिना शहरों में भटकते रह गए हम..!! होंठों पे मुस्कान पर अब आँखे है क्यों नम पास आकर बैठो तो बताएंगे अपना गम..!! परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे ...
धुआँ-धुआँ-सी नारी ज़िन्दगी
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धुआँ-धुआँ-सी नारी ज़िन्दगी

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** सिहर उठता हूं नारी-उत्पीड़न देखकर। दहल उठता हूं नारी प्रति शोषण देखकर।। कहीं दहेज है/कहीं घरेलू हिंसा है कहीं बलात्कार है, धुँआ-धुँआ-सी नारी ज़िन्दगी। कहीं जघन्यता के समाचार हैं कहीं छेड़खानी से भरे अख़बार हैं सिहर उठता हूं निर्भया के दर्द को लेखकर। सिहर उठता हूं नारी-दुर्दशा को देखकर।। कैसा आलम है, कैसा मौसम है चारों ओर है बस दरिंदगी। धुआँ-धुआँ-सी नारी ज़िन्दगी।। कोलकाता अस्पताल की भयावहता हृदयविदारक हालात चीखती-चिल्लाती एक नारी तंत्र के मुँह पर तमाचा व्यवस्था की हक़ीक़त का ख़ुलासा भारी शोरशराबा, आंदोलन हाथ की आई शून्य धुआँ धुआँ-सी नारी ज़िन्दगी। कहते हैं देवी, पर वह पीड़ित है। पूजते हैं हम, पर वह शोषित है।। उसकी काया बनी भोग का सामान है। गिरता जा रहा है, सम्मान है।। बढ़ती जा रही है देखो ज़...
हवाओं का हेंगा चला
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हवाओं का हेंगा चला

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** हवाओं का हेंगा चला चैत के मौसम में! फसलों को नींद आई चैत के मौसम में!! कुम्हलाए हुए मन को अब कौन जगाए? सोती हुई फसलों को- कैसे कर उठाए! खेती के भाग सोए बासन्ती-समागम में!! चला गया वात-चक्र पवन अब भी शीतल है! रह-रहके प्रात:-रात गिरता किया नभ-जल है! सोने जैसे गेहूँ का - रूप सना पंकम में! नीले-नीले मौसम में पहाड़ों की याद आई दिन-भर घिरे बादल में शिलांग जैसी छवि छाई पर कृषकों के नींद उड़ी मैदानी मौसम में! कुमायूँ की सड़कों पे बुल्ले उछल रहें चट्टानों से तेज-धार झरने निकल रहें हरा-स्वप्न डूब गया नदियों के झमझम में! हवाओं का हेंगा चला चैत के मौसम में! फसलों को नींद आई चैत के मौसम में!! परिचय :-  बृजेश आनन्द राय निवासी : जौनपुर (उत्तर प्रदेश) सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंद...
नारिया
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नारिया

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सतयुग, द्वापर, त्रेता या कलियुग नारी सदैव डटी रही अपनै धैर्य पर अहिल्या, अनुसुइया, अरुन्धती ने अपने तप से इतिहास रचा कौशल्या, कुन्ती, सीता सह्कारिक पुत्र संग महाभारत, रामायण रचा। लक्ष्मी, पार्वती, सीता चन्डी बन रण मे उतरी मीरा, मुक्ता बनी भक्ति की पराकाष्ठा सन्त सखु, गौरा ने गाई जीवन की कटु सत्य गाथा। दुर्गा, झांसी की रानी की तलवारे कहती आज उनकी कहानी पद्मिनी का जौहर क्यो भूलें मां होकर भी कठोर बनी जीजाबाई, पन्ना धाई अहिल्याबाई। और आज की नारी भी कहती है मै अबला नही सबला हूँ उची उड़ान भर हिमालय, अन्तरिक्ष मे पंहुच गई पंहुच गई समर रण मे शान्ति दूत बनी देश, विदेशों में रहकर भारत का तिरंगा लहराती। मां सरस्वती का वरदान इनको चित्रांकन, लेखन पर लेखनी चलती। दया, दान, उदारता, समर्पण का संकल्प लेकर ...
एक वक्त के बाद
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एक वक्त के बाद

शशि चन्दन "निर्झर" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** किस्से-कहानी बदल जातें हैं एक वक्त के बाद। नन्हें-नन्हें पौधे वृक्ष हो जातें हैं एक वक्त के बाद। तमाम अरमान गुजरते तो हैं आंखों की गलियों से.. फिर मोती से कौरों पे ठहर जाते हैं, एक वक्त के बाद।। सुनो नया-नया सा एहसास पाकर, गैर भी क़रीब आ जाते, तासीर मुताबिक़ अपने पराए हो जाते हैं एक वक्त के बाद।। रहमत खुदा की, अमानत अपने वतन की सहेजे तो सही... पर जानें कैसे अहम के डंके बजने लगते, एक वक्त के बाद।। पंक में खिलते पंकजराज, रंग बिरंगे हाथों में जचती हिना लाल, कि राजा रंक फकीर सबकी, होती एक ही गति, एक वक्त बाद।। सुन "शशि" धरती अम्बर नाप ले जितना नाप सके, कि ये माटी की काया माटी हो जाती एक वक्त के बाद।। परिचय :- इंदौर (मध्य प्रदेश) की निवासी अपने शब्दों की निर्झर बरखा करने वाली शशि ...
मृत्यु शय्या
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मृत्यु शय्या

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** जन्म और मृत्यु शाश्वत सत्य है। नहीं कोई इसका विकल्प है। ******* एक दिन सभी को मृत्यु शय्या पर सोना है। चाहे आप हो या डॉक्टर सभी का यह हाल होना है। ******** जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु निशचित होगी। किसी की आज तो किसकी कल होगी। ******* मृत्यु से आज तक कोई जीत नहीं पाया है। जिसने भी लिया है जन्म अवश्य मृत्यु को पाया है। ******* मृत्यु शय्या पर पहुंचने से पहिले जिंदगी जीना सीख लीजिए। कुछ अच्छे कर्म करें कभी किसी को कष्ट न दीजिए। ****** जब आपने अच्छे कर्म किये होंगे तभी यह बात होवेगी। जन्म लेने पर आप रोये थे। मृत्यु होने पर दुनियां आपके लिये रोयेगी। ******* मृत्यु शय्या हमारी अंतिम शय्या है। जिस से हम उठ नहीं पाते है। मिट्टी से जन्म लिया है और मिट्टी में ही मिल जाते है।...
हो जाओ तैयार साथियों
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हो जाओ तैयार साथियों

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** हो जाओ तैयार साथियों अब परीक्षा की बारी है लक्ष्य भेद कर दिखलाओ कौन किस पर भारी है !! मुश्किलों से लड़कर तुम्हें लक्ष्य मार्ग पर बढ़ना है छोड़ आलस का दामन रगो में साहस भरना है !! कर्म से किस्मत लिखने की अब तुम्हारी बारी है हो जाओ तैयार साथियों अब परीक्षा की बारी है !! सफलता नहीं मिल जो किस्मत पर भरोसा करते है मंजिल उन्हें मिलती जो दिन-रात मेहनत करते है !! मेहनत करने वालों पर ही सफलता बलिहारी है हो जाओ तैयार साथियों अब परीक्षा की बारी है !! परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष...
मैं तुमसे प्यार करता हूँ
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मैं तुमसे प्यार करता हूँ

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** तुम्हारे दिल में रहता हूँ। जानेमन तुम पे मरता हूँ।। सनम तुम जान हो मेरी, मैं तुमसे प्यार करता हूँ।। तेरे बिन रह नहीं सकता। जुदाई सह नहीं सकता।। तुम हर पल साथ हो मेरे, मैं तुझे भूल नहीं सकता।। ये दुनिया मधुबन लगती है। जीवन आनंदमय लगता है।। तुम बहार हो बगिया की, चहुँओर मनभावन लगता है।। खुशी और प्रेरणा हो तुम। सुख और चेतना हो तुम।। मुझे सफलता दिलाती हो, मेरी जीवन संगिनी हो तुम।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) संप्राप्ति : शिक्षक एल. बी., जिलाध्यक्ष राष्ट्रीय कवि संगम इकाई। प्रकाशित पुस्तक : युगानुयुग सम्मान : मुख्यमंत्री शिक्षा गौरव अलंकरण 'शिक्षादूत' पुरस्कार से सम्मानित, उत्कृष्ट शिक्षक सम्मान, छत्तीसगढ़ हिन्दी रत्न सम्मान, अटल स्मृति सम्मान, बेस्ट टीचर अवॉर्ड। घोषणा पत्र : मैं यह प...
खुशबू बन बिखरना है
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खुशबू बन बिखरना है

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** मर जाने के डर से नहीं मरना चाहते हो, तो आज ही मर जाओ, बड़ी जिंदगी चाहते हो तो अभी सुधर जाओ, सुधर कर भी गर मुर्दे ही रह गए, बिना प्रतिरोध सैलाब के धारे में बह मर गए, तो बता जी रहे थे वो कौन सी जिंदगी थी, न प्रतिकार न प्रतिशोध बकवास जीवन अब तक क्यों और किसके लिए सह गए, खंजर को हमारी जरूरत कभी नहीं होती, अगर लगाव होता तो वार करता ही क्यों? हल्के वार से भी शरीर नहीं रह पाता ज्यों का त्यों, मैं सुधर चुका हूं, अपनी जागृति वाली खुशबू संग कोने कोने में बिखर चुका हूं, कभी न कभी लोग साथ आएंगे, महक खोजते खोजते जब अपना भूत खोजेंगे तो निश्चित ही खुद खुशबू बिखरायेंगे, जिन्हें औरों की ड्योढ़ी पर निश दिन नाक रगड़नी है रगड़े, ऐसों को छोड़ो उनके हाल पर हर हाल में आगे बढ़ना है उनका जाल काटते बिना क...
हम सभी हैं मौज़ में
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हम सभी हैं मौज़ में

डॉ. रमेशचंद्र मालवीय इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आज हम सभी हैं मौज़ में क्योंकर जाएं हम फ़ौज़ में। सबको अपने-अपने सुख की चाह है सबकी अपनी मंज़िल, अपनी राह है देश पर मर मिटने वाले तो कोई और थे आज किसको अपने देश की परवाह है इंसान स्वयं अपनी खोज़ में आज हम सभी हैं मौज़ में। इस समय जो उठ रही है दूर आंधी न किसी ने रोकने की है पाल बांधी सभी अपने आपको समझ बैठे खुद़ा अब न कोई आएगा फिर से वो गांधी मानवता रो रही है रोज में आज हम सभी हैं मौज़ में। किस-किस से मांगने जाएंगे न्याय छल, कपट, धोखा, फरेब़, अन्याय न सुनी जाती पुकार किसी की यहां है ग़रीब़ी, मुफ़लिसी न कोई उपाय ईमान जा गिरा है हौज़ में आज हम सभी हैं मौज़ में। परिचय :- डॉ. रमेशचंद्र मालवीय निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
द्रौपदी
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द्रौपदी

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** पांच पति की द्रौपदी, छली गई वह नार, पासे पर फेंकी गई वह अबला हर बार, क्या पासा क्या दावा है स्त्री? उसका कोई अस्तित्व नहीं, जिस और उसे हांके कोई, गाय भैंस वह ढोर नहीं। एक संबंध के कारण झुकती है, आज अबला नहीं सबला नारी, कभी मायके कभी ससुराल में देखो, पासा बन बैठी है नारी। अपना व्यक्तित्व अपना है अहम, छल-कपट के कारण छली नारी, मन ही मन में वह विचार करें, क्या मेरा अस्तित्व नहीं कोई? क्यों दाव पर उसे लगाते हो, क्यों पासा उसे बनाते हो, अपनी इज्जत आबरू के कारण, तुम दुखी उसे कर जाते हो। एक आंख में आंसू उसके, एक आंख है नम है रही, औरों की राजनीति के कारण, अपनी इज्जत दाँव पर की। तुम समझो उसकी भावना को, नहीं किसी के पक्ष में वो, सबका साथ सबका है प्यार, बस यही उसी की झोली में है। मान अपमान सब सहन करें...
जीवनद्वंद
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जीवनद्वंद

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जीवन पल... पल, जीवन...क्षण-क्षण जीवन मे जीवन की हलचल जब किलकारी गूजे आगन मे सुख पाया मा के आचल ने। काजल का टीका लगाकर मुस्कूराता जीवन पल भर मे बाबा को सम्मोहित करता पग मे पैंजनियां पहने ढगमग, डगमग चलता जीवन। तुतलाती भाषा मे बोले केवल समझे, जाने मा का जीवन सरस्वती के अंक मे बैठ संस्कार, संस्कृति का पाठ पढता जीवन। नई राह, नया उद्देश्य, दृढता जीवन की भरता उडान सोपानो पर जीवन की पग-पग सीढी पल-पल संधान यह कहानी जीवन की। उदेश्यो मे सफल हुआ जीवन सात बन्धनो मे बन्ध गया कर्तव्य मे ऐसा, जकडा जीवन उसे लगा सब कुछ आनन्द एक क्षण गौरय्या सा उडता जीवन। और फिर और सोपानों पर चढते-चढते निढाल हो गया जीवन कुछ अंतराल मे लाठी पर आया जीवन दृष्टि, गति, कर्ण साथ छोडते जीवन का और ... और एक दिन अन्तिम यात्र पर जीव...
हिंदी का गुणगान
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हिंदी का गुणगान

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** हिंदी का मैं गान करता हूँ हिंदी का मैं सम्मान करता हूँ। कभी मीरा को सुनता हूँ कभी कबीर को सुनाता हूँ। कभी जायसी के रहस्य में खो जाता हूँ कभी केशव के काव्य प्रेत से टकराता हूँ। कभी नानक की गुरुबानी बोलता हूँ कभी चंदबरदाई की वीरगाथा गाता हूँ। कभी तुलसीदास की तरह राम नाम का गुणगान करता हूँ। कभी सूरदास की तरह कृष्ण की हठकेलिया सुनाता हूँ। कवि हूँ हर हाव में, हर भाव में हिंदी का गुणगान करता हूँ। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख,...
मनाये रामनवमी
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मनाये रामनवमी

गगन खरे क्षितिज कोदरिया मंहू (मध्य प्रदेश) ******************** सनातन धर्म के लिए एक हो जाओ हिन्दू। जन मानस भारतीय संस्कृति सभ्यता लिए जागो। एकता में होता दम, जातिगत समीकरण को, समाप्त करें। भेद-भाव मिटाकर हिन्दू जनहितैषी सकारात्मक ऊर्जा लिए हुए। जन जागरण हो, तो नैतिक पतन न हो हमारा, राम की महीमा ईष्ट जो सभी के राम सनातन धर्म की रामनवमी आ रही है हमारी संस्कृति सभ्यता का प्रतीक रामनवमी आ रही हैं। भारत में हिन्दूत्व ही पहचान हमारी। हिन्दू विश्व में अपनों के लिए प्यार मोहब्बत के लिए जाना जाता हैं गगन हमारी अंखणता परमात्मा जो जन-जन के दिलों बसते श्रीराम जीन की आ रही हैं रामनवमी रामनवमी भारतीयता में बहती श्रीराम की रामनवमी। महापुरुष ने फरमाया, शिक्षा की रोशनी समाज को मिले, संविधान धर्म निरपेक्षता लिए। क्यों न जातिवाद को भूला कर भाईचारा बढाये। भारतीय...
जय शिवाजी
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जय शिवाजी

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** शाहजी भोंसले बाबा थे माँ थी महान जीजाबाई पुणे के शिवनेरी दुर्ग में अवतारे लाल शिवाजी थे माँ ने दी थी शिक्षा दीक्षा शस्त्र शास्त्र का ज्ञान मिला बुद्धिमानी निडरता पाई बहादुरी का थे दम भरते रामायण महाभारत पढ़ते सर्वधर्म समभाव वे रखते जातिभेद से नफ़रत करते सबको अपना ही समझते कद छोटा और छोटा घोड़ा पर भारत का नक्शा बदला छुरी कटार जैसे हथियार कपड़ो में छुपाकरके रखते गुफ़ा और कंदराओं से छापामारी खूब करते थे मुट्ठीभर सैनिक लिए वे पहाड़ी चूहों से दुबकते थे आदिल शाह ने चालाकी से शाह जी को किया नज़रबंद फ़िर भी आदिल तोड़ न पाया वीर शिवा का चक्रव्यूह बड़ी साहिबा बीजापुर ने अफ़ज़ल खान को भेजा था उसने जो गड्डा खोदा था वो ख़ुद ही जमीदोज हुआ शाइस्ता खान बराती बनकर औरंगजेब का संदेसा लाया तीन उंगलियाँ कटवा करके जान ब...
रणनीति
कविता

रणनीति

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** चुनाव में खड़े थे प्रत्याशी चार, जीतना है सबको नहीं चाहिए हार, चूंकि प्रतिद्वंद्वी थे तो मिलकर नहीं किये विचार, करना था एक दूजे पर प्रहार, पहले ने समर्थक वोटरों को गिना, कम पड़ रहे थे समर्थक तो कैसे जाएगा जीत छीना, योजना के तहत जाल बिछाया गया, फ्रेम में पांचवा प्रत्याशी लाया गया, जिसने द्वितीय उम्मीदवार के समर्थकों में अच्छा खासा पैसा बांट डाला, उनकी हिम्मत को काट डाला, दूसरे को पता नहीं कि रणनीति के तहत फोड़ा गया है बम, उसके सारे मतदाता खा पी नाच रहे झमाझम, पहले का अपना वोटर बच गया, दूसरे का वोटर पांचवे द्वारा कट गया, रणनीतियां ही करती है काम ईमानदार हो चाहे मूर्ख, हमेशा सफल रहते हैं चालबाज धूर्त। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा प...
होली
कविता

होली

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** संस्कृति की धरोहर है होली, संस्कारों की विरासत होली, प्रकृति का शृंगार है होली, जीवन का उपहार है होली, हम सबका गर्व है होली!! हर जीवन में रंग है भरती, चेहरों पर मुस्कान सजाती, स्नेह सौहार्द की धारा है होली रंगों की बौछार है होली !! शीत ऋतु की हो रही विदाई ग्रीष्म ऋतु की आहट आई, ज़न-जीवन मे उल्लास है भरती भूले बिसरों की याद है होली! प्रकृति की अनमोल धरोहर, हर रंग के जीव जानवर, इनपर भी हम प्यार लुटाए, प्रेम रंग से इन्हें सजाएं, मिलजुल कर त्यौहार मनाएं, आई होली आई होली!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र, पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार) निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश) सम्मान : राष्ट...
जिंदगी जीने की कला
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जिंदगी जीने की कला

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** ईश्वर से सबको जिंदगी मिली है। किसी को कम किसीको ज्यादा मिली है। ******** जिंदगी सबके पास है पर सबको जीना नहीं आता। हर व्यक्ति खोने और पाने की चिंता में है जिंदगी गुजरता । ******* कुछ लोग जिंदगी गुजारते है। कुछ लोग जिंदगी काटते हैं। ******* जिंदगी मिली है तो जिंदगी का मजा लीजिये। जिंदगी जीने की कला सीख लीजिए। ******* सुख और दुख तो जिंदगी का हिस्सा है। यह सभी की जिंदगी का किस्सा है। ******* खुद भी खुश रहें दूसरों की भी खुशी का रखें ध्यान। तभी आप बन पायेंगे सबसे अलग इंसान। ******* सभी से प्यार और मोहब्बत करें। अपनी जिंदगी को खुशियों से भरे। ******* जिसको आ गयी जिंदगी जीने की कला। वही कर सकता है स्वयं और दूसरों का भला। ******* परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : चिनार-२...
बेकार लड़का
कविता

बेकार लड़का

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* बेकार लड़का माँ से नहीं डरता पिता से नहीं डरता और न ही मौत से बेकारी के दिनों में उसका सारा डर मर गया। सिगरेट के दाम से लेकर दोस्तों के चेहरों तक बहुत कुछ बदल गया दीवार से उतरे हुए पुराने कैलण्डर की तारीखें चली गईं अखबार की रद्दी के साथ थूकने के अलावा क्या बचा है बेकार लड़के के पास जबकि दिन बहुत छोटे हो गए हैं और ठंडी हवा गालों में चुभती है। बाज़ार की चिल्ल-पों धूल भरी गलियों के सूनेपन और अपनी पीठ पर टिकी कस्बे की आँखों से बचता देर रात पहुंचता है वह घर नींद में बड़बड़ाते पिता न जाने कब सुन लेते हैं किवाड़ों पर दी गई थाप पिता की दिनचर्या में शामिल हो गई है दरवाजे की हलचल सिर झुकाकर उसका सामने से गुजर जाना कुछ शब्दों के हेरफेर से जमाने का बिगड़ना और अरे मेरे भगवान कह फिर सो जाना...
न जाओ… रुक जाओ…
कविता

न जाओ… रुक जाओ…

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** न जाओ, रुक जाओ...! तुम रुक गई तो 'जीवन' यूँ ही नहीं बीत पाएगा... बल्कि, ये अपना एक-एक पल आत्मा द्वारा मन व प्राणों संग अत्यंत सुकून से जी जाएगा ! प्रतिदिन सुबह होगी चाहे साँझ होगी, पर ये दुनिया न एक पल को भी बाँझ होगी! तुम्हारी आँखों से होकर हर बसन्त और सावन हरियाला हरसेंगे! तुम्हारे होठों पर से हो आने को कभी फाल्गुन तथा कभी चैता करषेंगे! तुम्हारे माथे से छिरकेगी जेठ-अषाढ़ी- नमकीनी- बारिश... तुम्हारे केशो में कभी हेमन्त तथा शिशिर के तुहिन-पाँव वर्तुल होंगे! और चेहरे से फिसलेगी फिर-फिर शारद- कार्तिकी पूनो यात्रा। परिचय :-  बृजेश आनन्द राय निवासी : जौनपुर (उत्तर प्रदेश) सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर म.प्र.द्वारा शिक्षा शिरोमणि सम्मान २०२३ से सम्मानित घोषणा पत्र : मैं यह प्र...
मेरा बचपन
कविता

मेरा बचपन

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** भुला बिसरा बचपन याद आता है अबोहर की गलियों में खेला हुआ बचपन याद आता है। नई आबादी का दुर्गा मां का सुंदर मंदिर याद आता है। गंगानगर रोड का पर माँ काली का अद्भुत दरबार याद आता है। कॉलेज रोड पर खिलखिलाता यौवन याद आता है। लगड़ी की टिक्की का खटा मीठा स्वाद याद आता है। शहर की गलियों में साथ घूमता वफादार दोस्त याद आता है। मुझे मेरा बचपन ही नहीं मेरा शहर अबोहर याद आता है। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्...
वे पुरानी औरतें
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वे पुरानी औरतें

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* जाने कहाँ मर-खप गई वे पुरानी औरतें जो छुपाए रखती थी नवजात को सवा महीने तक घर की चार दीवारी में। नहीं पड़ने देती थी परछाई किसी की रखती थी नून राई बांध कर जच्चा के सिरहाने बेल से बींधती थी चारपाई रखती थी सिरहाने पानी का लोटा सेर अनाज दरवाजे पर सुलगाती थी हारी दिन-रात। कोई मिलने भी आता तो झड़वाती थी आग पर कपड़े और बैठाती थी थोड़ा दूर जच्चा-बच्चा से फूकती थी राई, आजवाइन, गुगल सांझ होते ही नहीं निकलती देती थी घर से गैर बखत किसी को। घिसती थी जायफल हरड़ बच्चे के पेट की तासीर माप कर पिलाती थी घुट्टी और जच्चा को देती थी घी आजवाइन में गूंथ कर रोटियाँ। छ दिन तक रखती थी दादा की धोती में लपेटकर बच्चे को फिर छठी मनाती थी बनाती थी काजल बांधती थी गले में राई लाल धागे से. पहना...
जीवन रुका नहीं करता
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जीवन रुका नहीं करता

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** जिंदगी का काफिला तो जारी रहेगा हम रहे ना रहे सिलसिला जारी रहेगा एक के न होने से कोई फर्क नहीं पड़ता एक के न होने से जीवन रुका नहीं करता जीवन तो बस चलती का ही नाम है यह शरीर तो हाड़ मांस का मकान है मकान ढहने से सृजन रुका नहीं करता एक के न होने से जीवन रुका नहीं करता नियति का फल सबको मिलता ही है आज नहीं तो निश्चित कल मिलता है नियति किसी पर भी अन्याय नहीं करता एक के न होने से जीवन रुका नहीं करता कब क्या होगा यह तो वक्त ही बताएगा जीवन न जाने क्या-क्या गुल खिलाएगा बिना संघर्ष जीवन भी निखार नहीं करता एक के न होने से जीवन रुका नहीं करता हम भ्रम पाल के बैठे हमसे जगत है मिथ्या भ्रम की हमसे ही सब कुछ है हमारे झूठे भ्रम से जगत चला नहीं करता एक के न होने से जीवन रुका नहीं करता कौन-कौन है अपना कौन है पराया ...