मैं शिवा तुम्हारी
निरुपमा मेहरोत्रा
जानकीपुरम (लखनऊ)
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तुम हो शिव मैं शिवा तुम्हारी,
प्रेम संगिनी प्रेम रागिनी।
तुम हो शिव.....
जब तुम करते नृत्य मनोहर,
पग थिरके डमरू के स्वर पर,
भाव भंगिमा सुंदर चितवन,
करे प्रफुल्लित देवों का मन,
तब नर्तक नटराज की गौरी,
समा जाए मुद्रा में तेरी।
तुम हो शिव......
जब तुम करते जग का चिंतन,
कष्ट देख व्यथित होता मन,
जन कल्याण हेतु दुख भंजन,
तज कर सर्प चन्द्र का बंधन,
रत समाधि होते त्रिपुरारी,
तब मैं बनती साधना तुम्हारी।
तुम हो शिव........
जब होता सागर का मंथन,
विष को देख करे जग क्रंदन,
सब मिल करें प्रार्थना तुम्हारी,
सुन लो शिव वंदना हमारी,
नहीं रुके पल भर को शंकर,
विषपान करें अंजुल भर कर,
हुआ कंठ जब नील तुम्हारा,
कर रखकर कर विष रोका सारा,
तुम पीड़ा से मौन हो गए,
तब मैं बन गई वेदना तुम्हारी।
तुम हो शिव मैं शिवा तुम्हारी।...




















