Friday, May 10राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

पिता का श्राप

रमेशचंद्र शर्मा
इंदौर (मध्य प्रदेश)
********************

मालगुजारी का समय। पटवारी रामशंकर। खानदानी पटवारी। पुरानी मैट्रिक पास। ७० बीघा के काश्तकार। गीता पाठी, शास्त्रों के जानकार। इकलौती संतान होने से नौकरी नहीं की। पिता के स्वर्गवासी हो जाने पर पटवारी बन गए। पूरा गांव उन्हें पटवारी जी कह कर बुलाता। बड़ी मान मन्नत के बाद लड़का हुआ। पूरे गांव में मिठाइयां बांटी। समय गुजरने लगा। पटवारी जी के पिता शांत हो गए। कुछ समय बाद पटवारी जी की पत्नी भी शांत हो गई। बेटा सुरेश २० वर्ष का हो गया था। पटवारी जी ने पास के ही गांव के प्रतिष्ठित परिवार में सुरेश की शादी कर दी।
सुरेश की पत्नी उषा स्वभाव से तेज थी। समय के साथ साथ पटवार जी थक गए। पटवारी जी को आंखों से कम दिखाई देने लगा। पटवारी जी मीठा खाने के शौकीन थे। उनकी माली हालत भी ठीक थी। सुरेश स्वाभाव से चिड़चिड़ा था। खेती-बाड़ी का सारा कारोबार सुरेश के हाथ में था। सुरेश के यहां भी शादी के १० साल बाद बेटा हुआ। सुरेश की शह पाकर उषा भी पटवारी जी की उपेक्षा करने लगी। वह आए दिन पटवारी जी से विवाद कर बैठती। सुरेश यदि समझाता तो वह मायके जाने या कुछ खा लेने की धमकी दे देती। एक दिन सुबह-सुबह हुआ पटवारी जी पर बरस पड़ी “कान खोल कर सुन लो ससुर जी, सुबह जल्दी उठना मेरे बस की बात नहीं। मेरे मायके में तो सब काम नौकर चाकर करते थे। मैं भी मायके में इकलौती बेटी हूँ। पिताजी भी नहीं है, मुझे ही सब संभालना है”।
पास खड़ा सुरेश सुन रहा था। पटवारी जी धीरे से बोले “भगवान की दया से यहां भी कोई कमी नहीं है। खेती-बाड़ी सब सुरेश संभाल रहा है। अमावस पूनम मीठा बनाने की इस घर में परंपरा रही है। मुझे भी मीठा बहुत पसंद है। अब मेरी उम्र भी अधिक हो गई है। दांत नहीं हैं। गाय भैंस सब घर में हैं। आज पूनम है, खीर बनाने में कितना समय लगेगा”? उषा अनसुना कर घर में चली गई। उसने खीर नहीं बनाई। सुरेश भी कुछ नहीं बोला। सुरेश खेती पर ध्यान नहीं देता। खेती किसानी बिगड़ने लगी। खेती में घाटा होने लगा। गाय, बैल, भैंस सब बिक गए। घर में आर्थिक तंगी रहने लगी। बीमार रहने से पटवारी जी ने पटवारा भी छोड़ दिया था।
सुरेश के बेटे की मान का मुहूर्त निकला। सारे रिश्तेदार बुलाए। उषा की मां भी आई। दिन भर पूजा-पाठ और रात में भजन कीर्तन हुए। घर मेहमानों से भरा था। सभी थक गए थे इसलिए सो गए। उषा की मां सुबह जल्दी उठ गई। सभी को सोता हुआ देखकर चिल्लाने लगी “क्या पटवारीजी, कितनी अव्यवस्था फैली हुई है। सुबह हो गया। नाश्ते पानी का कोई ठिकाना नहीं है। अरे जब आपसे इतने लोग की व्यवस्था नहीं हो रही थी तो आपने क्यों बुला लिया”? पूरे घर में सन्नाटा पसर गया। उषा बर्तन साफ करने की आड़ में जोर-जोर से पटकने लगी। उषा भी बड़बड़ा रही थी। पटवारी जी चुपचाप सब सुन रहे थे। जब उनकी सहनशीलता से बात बाहर हो गई तो वह चिल्ला उठे “क्या तुम लोगों ने घर में अशांति कर दी। सुबह उठकर जोर जोर से चिल्ला रहे हो। अरे सब काम हो जाएगा। अभी सब नौकर चाकर आने वाले होंगे। अच्छा लगता है, इतने मेहमानों के सामने चिल्ला-चोट कर रहे हो”?
इतना सुनकर उषा और उसकी मां जोर-जोर से दहाड़ मार कर रोने लगी। सुरेश से यह सहन नहीं हुआ। उसने पटवारी जी को हाथ पकड़ कर घर से बाहर करते हुए कहा “आपकी भी बुढ़ापे में अकल सठिया गई है। किसको क्या कहना इतनी भी तमीज नहीं। दोनों बेचारी कल से ही काम में जुटी हुई है। आपने सुबह-सुबह चिल्लाकर पूरे गांव को इकट्ठा कर लिया”?
पटवारी जी आग बबूला हो गए। काटो तो खून नहीं। उन्होंने सभी मेहमानों, गांव के जमीदार और पंचों को इकट्ठा कर लिया। उन्होंने सभी के सामने जोर से कहा “इस सुरेश और उषा दोनों को कहें कि अभी मेरा घर छोड़कर चले जाएं। यह दोनों मेरे साथ रहने का अधिकार खो चुके। आप सब रिश्तेदार और गांव के प्रतिष्ठित लोग गवाह हैं, यदि मैं मर भी जाऊं तो यह मेरा अंतिम संस्कार का अधिकारी नहीं रहेगा। नालायक सुरेश को मेरा मरा हुआ मुंह भी मत देखने देना”? बात बहुत बढ़ गई दिनभर विवाद होता रहा। पटवारी जी ने किसी की एक भी बात नहीं मानी। तब जमीदार, पंचों ने उषा और उसकी मां को कहा “अभी तुम लोग सुरेश को लेकर कुछ दिन अपने गांव चले जाओ। सुलह हो जाने पर वापस आ जाना”।
सुरेश पत्नी सहित ससुराल में जाकर रहने लगा। ससुराल में भी वह दिवाला निकालने लगा। इधर पटवारी जी ने अपनी पूरी जमीन मंदिर को दान कर दी। मरने के बाद मकान गौशाला के नाम लिख दिया। सुरेश की सासु भी कुछ दिनों बाद हार्ट अटैक से गुजर गई। सुरेश के बेटे की भी तबीयत खराब रहने लगी। उसका महीनों शहर के अस्पताल में इलाज चला। बहुत खर्चा हुआ ।सुरेश का बेटा भी चल बसा। पटवारी जी को खबर भेजी गई, कि आपका पोता शांत हो गया है, लेकिन पटवारी जी नहीं गए। धीरे-धीरे उषा भी बीमार रहने लगी। उसे टीबी हो गई। कुछ खेती-बाड़ी बेचकर सुरेश ने उसका भी बहुत इलाज करवाया। वह भी चल बसी। पटवारी जी नहीं गए। पटवारी जी अपने हाथ से खाना बनाते। दिनभर मंदिर में जाकर भजन करते। भगवत गीता का पाठ करते। शाम को गांव वालों से बातचीत करके अपना समय पास करते। उन्होंने पूरे गांव को कह रखा था, अब मेरा सुरेश से कोई संबंध नहीं।
अचानक सुरेश बीमार पड़ गया। उसने अपने पिता के पास आने की इच्छा व्यक्ति की। पटवारी जी ने स्पष्ट मना कर दिया। सुरेश ने पलंग पकड़ लिया। वह गंभीर बीमार हो गया। लोगों ने पटवारी जी के पास खबर भेजी की कम से कम एक बार बेटे का मुंह देख लेवे, लेकिन पटवारी जी नहीं गए। सुरेश चल बसा। सुरेश के ससुराल वालों ने उसका अंतिम संस्कार कर दिया।
आज सुरेश का दसवां था। गांव के जमीदार और पंचों ने आकर पटवारी जी से कहा “आज सुरेश का दर्शा कर्म है। उसकी आत्मा को शांति नहीं मिलेगी। वह प्रेतयोनि में भटकेगा। अपनी जिद छोड़ो और हमारे साथ दशाकर्म में चलो”! पटवारी जी बड़ी मुश्किल से जाने को तैयार हुए काफी थके हुए और कमजोर लग रहे थे। कुछ लोगों ने सहारा देकर बैलगाड़ी में बिठाया। दशाकर्म संपन्न हुआ। गांव की महिलाएं जोर-जोर से रोने लगी। सारे लोग बड़े दुखी थे। दशा की दाल बाटी सभी को परोसी गई। जबरजस्ती करके पटवारी जी को भी परोसा गया। पटवारी जी ने एक बाटी हाथ में लेकर रोते हुए कहा “बेटा सुरेश, मैं कहता था, घर में सुमति रखो। तुमने किसी ने भी मेरी बात नहीं सुनी। बुजुर्ग पिता के रहते बेटे का दशाकर्म आ गया। आखिर तू मेरा बेटा था। मैं तेरी दशा की बाटी कैसे खा सकता हूं”?
पटवारी जी ने बाटी नीचे रख दी और रोते हुए अपने गांव की ओर चल दिए।

परिचय : रमेशचंद्र शर्मा
निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा अवश्य कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय  हिन्दी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉 👉 hindi rakshak manch  👈… राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें…🙏🏻.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *