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लोक देवता : टंट्या भील

धीरेन्द्र कुमार जोशी
कोदरिया, महू जिला इंदौर म.प्र.

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किसी दबे, कुचले, शोषित, वंचित समाज से जब कोई निहित स्वार्थ को त्याग सर्व हितों के लिए उठ खड़ा होता है तो वह जननायक और कभी-कभी लोक देवता का रूप ले लेता है। टंट्या भील भी मालवा निमाड़ के ऐसे ही नायक थे जो गरीबों के मसीहा बन कर आज भी लोक देवता बन पूजे जाते हैं।
टंट्या भील का जन्म सन १८४२ में खंडवा के आदिवासी अंचल में भाऊ सिंह भील के घर हुआ था बचपन से ही उनका शरीर दुबला पतला एवं कद लंबा होने से उन्हें टंट्या कहा जाने लगा।
टंट्या भील का बचपन बहुत ही संघर्षपूर्ण गुजरा। उनकी मां उनके बचपन में ही गुजर गई थी। उनके पिता ने शादी नहीं की। उन्हें शस्त्र कला में निपुण बनाया। वे लाठी गोफन और तीर कमान का संचालन कुशलता से करते थे। वे अपने क्षेत्र में सब के दुलारे एवं युवाओं के नायक बनकर उभरे। पिता की खेती संभाली चार साल तक सूखा पड़ने से लगान नहीं चुका पाए, नतीजतन जमीदार ने उनकी खेती कुर्क कर ली। पहाड़ी क्षेत्र में अपने पिता के मित्र शिवा पाटिल के साथ खरीदी गई खेती भी कपटी मित्र ने धोखे से अपने नाम कर ली। टंट्या मुकदमा भी हार गए। इसके बाद बदले की आग ने उन्हें विद्रोही बना दिया एवं वे दल बनाकर साहूकारों जमीदारों और अंग्रेजों के अन्याय के विरुद्ध उठ खड़े हुए। वह जो भी कुछ उनसे लूटते थे गरीबों में बांट देते थे गरीब कन्याओं की शादी करा देते थे। इसीलिएगरीब आदिवासी उन्हें टंट्या मामा शब्द से पुकारने लगे। अंग्रेजों ने उन्हें भारत का रॉबिनहुड कहा।
धीरे-धीरे वह नर्मदा घाटी से लेकर खानदेश तक गरीब आदिवासियों एवं किसानों की आवाज बन गए।
घबराए अंग्रेजों ने विशेष दल बनाकर उनकी धरपकड़ शुरू की हुए पकड़े भी गए, लेकिन जेल तोड़कर फरार हो गए। अंग्रेजों ने ११ नवम्बर १८८८ को उनके एक मित्र गणपत के माध्यम से उन्हें धोखे से उसकी पत्नी को राखी बनवाने के लिए आमंत्रित किया एवं घात लगाकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया। उन्हें इंदौर होते हुए जबलपुर ले जाया गया रास्ते में हजारों हजार लोगों ने उनकी की जय जय कार की। उन पर मुकदमा चलाया गया एवं १९ अक्टूबर १८८९ को जबलपुर जेल में उन्हें फांसी दे दी गई। कहीं उनकी समाधि ना बना दी जाए इस डर से उनके शव को संबंधियों को नहीं सौंपा गया।
वे अपने जीवन काल में ही एक किवदंती बन चुके थे। लोगों का विश्वास था कि वह एक साथ १७ सौ गांवों में सभा करते थे एवं लोगों की समस्याओं का हल करते थे। उन पर नाटक खेले जाने लगे, लोकगीत बनाए जाने लगे एवं उन्हें देवता की तरह पूजने लगे। १० नवंबर अट्ठारह सौ नब्बे को न्यूयॉर्क टाइम्स ने उन पर विशेष आलेख लिख। उनके जीवन पर एक पुस्तक भी लिखी गई है जो हमें अमेजॉन स्टोर पर उपलब्ध है। महू के पातालपानी रेलवे स्टेशन पर उनका एक मंदिर बना है जहां उनकी लकड़ी की मूर्तियां स्थापित है। उनके हजारों हजारों श्रद्धालु वहां आते हैं। उनकी पुण्यतिथि पर तीन दिवसीय कार्यक्रम भी आयोजित होता है। आदिवासी अस्मिता एवं शौर्य के प्रतीक टंट्या भील की स्मृति में मध्य प्रदेश शासन शिक्षा और खेल के क्षेत्र में उल्लेखनीय सेवाओं के लिए “जननायक राज्य स्तरीय सम्मान” देता है।
अंत में किसी द्वारा उनके लिए कही गई भीली बोली में दो पंक्तियां समर्पित:-

टंट्या वायो, टंट्या खड माटयो।
घाट्या खड़ धान,भूख्यो खड़ बाट्यो।

यानी- “टंट्या ने मिट्टी खोदकर धान की बुवाई की और खड़े धान को पीसकर भूखे लोगों में बांट दिया।” धन्य है से परमार्थी जो निजी स्वार्थ को त्याग कर दूसरों के हेतु अपना सर्वस्व निछावर कर देते हैं। टंट्या मामा को सादर नमन।

परिचय :- धीरेन्द्र कुमार जोशी
जन्मतिथि ~ १५/०७/१९६२
जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म.प्र.)
भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत
शिक्षा ~ एम. एससी.एम. एड.
कार्यक्षेत्र ~ व्याख्याता
सामाजिक गतिविधि ~ मार्गदर्शन और प्रेरणा, सामाजिक कुरीतियों और अंधविश्वास के प्रति जन जागरण। वैज्ञानिक चेतना बढ़ाना।
लेखन विधा ~ कविता, गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, दोहे तथा लघुकथा, कहानी, नाटक, आलेख आदि। छात्रों में सामान्य ज्ञान और पर्यावरण चेतना का प्रसार।
प्रकाशन ~ नईदुनिया, दैनिकभास्कर, पत्रिका और हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, आकाशवाणी, दूरदर्शन से प्रसारण।
प्राप्त सम्मान-पुरस्कार ~ हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) द्वारा हिंदी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान एवं विभिन्न प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्थानों द्वारा अनेकानेक सम्मान व अलंकरण प्राप्त हुए हैं।
विशेष उपलब्धि ~ शिक्षा के क्षेत्र में राज्यस्तरीय प्रशिक्षक।
लेखनी का उद्देश्य ~ राष्ट्रीय एकता, सामाजिक समरसता, पर्यावरण चेतना, नारी सम्मान जनजागरण ,व्यक्तिगत सर्वांगीण विकास।
पसंदीदा हिन्दी लेखक ~ गोपालदास नीरज, रामधारी सिंह दिनकर, प्रेमचंद, शिवमंगल सिंह सुमन, कुमार विश्वास।
विशेषज्ञता ~ मैं सदैव स्वयं को विद्यार्थी मानता आया हूँ।
देश के प्रति आपके विचार ~
जहाँ कंकर-कंकर शंकर,जहां है कणकण में भगवान।
स्वर्ग से भी ज्यादा सुंदर, हमारा प्यारा हिंदुस्तान।


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