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असीम तुम्हारी कविता

प्रीति शर्मा “असीम”
सोलन हिमाचल प्रदेश
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आज तुम्हारी फाइलों को तुम्हारे जाने के बाद लोगों को वापस देने के लिए कुछ किताबों के पन्नों में से एक डायरी का पन्ना निकला। मेरे छोटे भाई अनुज ने वह पेज उठाया और कहा दीदी आप की कविता। मेरी कविता मुझे हैरानी हुई कि असीम की फाइलों में मेरी कविता। लेकिन जब मैंने देखा तो मैंने उसे लिखावट देख कर बताया कि यह मेरी नहीं उनकी (असीम) कविता है। शीर्षक लिखा था….दर्द

 

 

दिल में ऐसा …क्या होता है।
खून के आंसू क्यों रोता है।
निष्ठुरता की चादर ओढ़े,
पैर पसारे जग सोता है।

प्यार की भाषा कहां खो गई।
भावनाएं लाचार हो गई।
मतलब तक इंसान है सीमित।
हमदर्दी भी कहां सो गई।

नेक दिली थी …सीखी हमने।
सिर्फ आज तक “अपनों” से,
चोट लगी तो संभलें ऐसे।
जागे जैसे सपनों से।

चोट पे चोट लगी दिल पे।
पर रास्ता नहीं बदल पाया।
अपनों ने जो जख्म दिए।
उन जख्मों ने दिल बहलाया।

सृष्टि तेरी बुरी नहीं ..पर।
कैसी अद्भुत रचना है।
समझ सके इस “रचना को “…ये
बात किसी के बस ना है।

शून्य मात्र लगता है मुझको।
भीड़ भरे इस मेले में,
ठहर जाओ कुछ दिन की खातिर,
खो जाऊंगा रेले में।

शायद मैंने भी यह पहली बार पढ़ी है। पढ़ने के बाद तुम से जुड़ी कई यादें फिर से ….. तुम हमेशा दूसरों के लिए चिंतित रहते थे कभी अपनी चिंता नहीं करते थे। उस कविता के नीचे असीम ने वह कविता लिखने का कारण और दिन भी बताया था। तुमने लिखा हुआ था १९९२ में लिखी। उस समय शिमला में पढ़ रहे थे। कविता में बहुत सुंदर पंक्तियों से अपनी भावनाओं को उकेरा था। कविता पढ़कर मुझे भी अच्छी लगी। एक बार मन में आया…. मेरी कविताओं से ज्यादा अच्छी लिखी है।
पहले भी मैंने तुम्हारी कई कविताएं पढ़ी है और तुम अक्सर मेरे नाम से वह कविताएं छपवाया करते थे। असीम बहुत अच्छा लिखते थे लेकिन अपने नाम से कभी नहीं छपवाते। मैं कई बार कहती आप बहुत अच्छा लिखते हो लिखा करो लेकिन… फिर मजाक में कह देती। आप लिखों गे तो हमारी कविताएं तो पीछे ही रह जाएगी। कई बार निबंध के लिए मैं कह देती थी कि मेरे लिए लिख दो। शब्दों को बहुत सलीके से सजाने की तुममे अद्भुत कला थी लेकिन कभी भी अपने इस कलाकारी को बाहर नहीं निकाला मैंने कई बार कोशिश की लेकिन मुझे लगा कि मेरा प्रोत्साहन भी काम नहीं करता तब मैं कई बार कह देती ….यह जो चिराग तले अंधेरा है ना… तभी बना होगा यह मुहावरा। अजीब दिल पाया था और अजीब दर्द….. हमेशा दूसरों की चिंता और अपने बारे में कभी सोचा ही नहीं। अपने रिश्तेदारों सगे-संबंधियों लोगों की चिंता में इतना दुखी हो जाते थे। सारी दुनिया का दर्द अपने भीतर सहेजने कर सबके दर्द में शामिल होना। और जिस दिन अपने बारे में सोचना शुरू किया सोच…. ने जिंदगी खत्म कर दी…….।

परिचय :- प्रीति शर्मा “असीम”
निवासी – सोलन हिमाचल प्रदेश
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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