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Tag: सरला मेहता

माँ भारती शर्मसार हो गई
कविता

माँ भारती शर्मसार हो गई

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** पाशविक दहलाती करतूतें हदों से ही गुज़र गई दरिंदों की दारुण बेहयाई अब सीमा पार हो गई नैतिक मूल्यों की वो बातें कहाँ बिखर बिसर गई अमानवि दुःशासिनी हरकतें अब तो कारगार हो गई देवियों से पूजित बेटियों की चुनरी क्यूँ तार तार हो गई ये मासूम अधखिली कलियाँ अब दर्द से बेज़ार हो गई नोची खसोटी गई कई गोरियाँ अनब्याही ही आज रह गई ख़्वाबों की सुरमई गलियों से बदनाम बस्तियाँ बन गई शिवानी एलीना आसिफ़ा सी निर्भया दामिनी चली गई हाथरस में मनीषा की हड्डियां हथौड़े से चूर चूर हो गई ना रहा भय महामारी का इन्हें दुर्दांत कहानी मशहूर हो गई रक्तरंजित गूंज रही कराहों से यम- ड्योढ़ी तरबतर हो गई लक्ष्मी दुर्गा पद्मिनी के देश में माँ भारती शर्मसार हो गई परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती ह...
हाथ तेरा थामकर
धनाक्षरी

हाथ तेरा थामकर

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** पूर्वाक्षरी अनुप्रास अलंकृत घनाक्षरी हाथ तेरा थामकर, नेह डोर बाँधकर, जुदा कभी ना हो हम, कसम ये खाई है। साथ रहें सातों जन्म, चाहे खुशी चाहे गम, हर दिन बसंत हो, रीत ये बनाई है। बात नहीं हो अधूरी, भले आँखों में हो पूरी, समझ ही लेंगे हम, प्रेम की सच्चाई है। रात-दिन संग रहें, संगम की वायु बहे, ये कहानी अमर हो, मन मेरे भाई है। परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानि...
अब आ जाओ गौरैया
कविता

अब आ जाओ गौरैया

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** बालपन की सखियाँ फुदकती आ जाती थी नन्हीं मुन्नी गौरैयाए कभी भी आँगन में बेझिझक बेधड़क अपना ही घर समझ बिन न्योते ही ची-ची करके दाने चुगती गुड़िया की कटोरी से दाल भात भी खा जाती धान चुनती दादी से मनुहार नहीं कराती नाच दिखाती थाली में ठंडे पानी में छपछपकर छककर प्यास बुझाती पेपर पढ़ते दादा की ऐनक धुंधली कर जाती कुछ दानें चोंच में भर फुर्र से उड़ जाती चूज़ों का ख़्याल रख जिम्मेदारी निभाती यूँ कई सीखें दे जाती जाने कहाँ कही गई तुम? क्या नीलकंठ बन गई ? दाना पानी भरे सकोरे तेरी राह हैं तकते डोरियाँ रेशम के झूले हवा में लहराते रँगरंगिले फूल पत्तियाँ तेरे दरस को तरसे अब बच्चों को नानी दादी बस सुनाती तेरी कहानी या बच्चों की चित्रकारी में दीवारों पर टँग गई परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्...
सूरज मुझे जगाता चाँद मुझे सुलाता
कविता

सूरज मुझे जगाता चाँद मुझे सुलाता

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** उषा की पहली किरणें पलकों को सहलाती मेरी अँगड़ाई लूँ, वक़्त नहीं उनींदी ही मैं उठ जाती मुन्नू को लिहाफ़ उड़ाके खिड़की पे पर्दा सरकाती ख़लल, पति को नापसंद धीरे से किवाड़ अटकाती मन में प्रभु को याद कर फ़िर चाय अपनी चढ़ाती यही पहर मेरा अपना है अख़बारों पे नज़र घुमाती कोई अनपढ़ ही ना कह दे ख़बरों की खबर मैं रखती हाथों की कसरत चालू है मटर मैथी की सफ़ाई में झटपट मैं नहाकर आती मुन्नू व पति की हाज़िरी में फ़टाफ़ट दो टिफ़िन लगा तौलिया हाथों में थमाती बरौनी व दूधवाले का भी मुहरत यही तो होता है ? पोछ पसीना दौड़ लगाती मुन्नू का तांगा आया है हाय बाय करूँ कब कैसे बिगड़े गए तेवर पति के डिनर,पसंद का बनाना है अस्त व्यस्त हुए घर को रोज रोज सजाना है ख़ुद को ना सँवारूँ तो बेढंगी कहलाती हूँ मैं समझ नहीं पाती हूँ मैं किसको कैसे स...
कितना कठिन होता है
कविता

कितना कठिन होता है

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सच, कितना कठिन, दूभर होता है एक स्त्री के लिए ख़ुद को समझना उससे भी कठिन औरों को समझाना वह सोचती है सबके लिए दिल से ख़याल रखती सभी का हर तरह से फोड़ा जाता है बुराई का ठीकरा बस और बस उसी के सिर पर पेट भरती है बचा खुचा खाकर ही सबको खिलाकर गर्म घी वाले फुलके सुनना पड़ता है बीमार होने पर उसे क्यों नहीं करती समय पर भोजन राय ली जाती है उससे हर मुद्दे पर नहीं मिलता गर मनचाहा परिणाम कोसा जाता है उसे बेवकूफ़ कह कर पर सफ़लता का सेहरा खुद बाँध लेते बच्चे अच्छे निकले तो पति के होते रक्तसम्बन्ध की दुहाई देने लगते बिगड़ी औलाद के लिए माँ जिम्मेदार उसी के दूध को दाग लगाते हैं सब अपनी रुचियों को छुपा कर कबर्ड में घर की रंगीनियों को ताज़गी देने टूटी कूची, सूखे रंगों को धूप दिखाती भूलती आँगन में उतरे सूरज को परिचय : सरला मे...
रंगों की बहार आई
धनाक्षरी

रंगों की बहार आई

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मनहरण घनाक्षरी रंगों की बहार आई, खुशियाँ हज़ार लाई, तन मन भीग रहा, फाग सब गाइए। भूल कर द्वेष भाव, याद रखना सद्भाव, सब अच्छे सब अच्छा, शत्रुता बिसारिए। पर्यावरण प्रियता, प्रकृति संरक्षणता, सूखे सरस रंगों से, उत्सव मनाइए। राम की मर्यादा रहे, कर्मवीर सारे बने, प्रहलाद की रक्षा हो, होलिका जलाइए। परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके ह...
हे शिव परमेश्वर
भजन, स्तुति

हे शिव परमेश्वर

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मनहरण घनाक्षरी हे शिव परमेश्वर प्रभु अर्ध नारीश्वर अखिलेश्वर स्वयम्भू माँ काली समाई है धारे सर्प आभूषण अवतारे नीलकंठ विषपान करके ये संसार उद्धारे हैं भिक्षापात्र हाथ थामे अन्नपूर्णा माँ के द्वारे भक्तन कल्याण हेतु त्रयम्बक ठाड़े हैं त्रिलोकी त्रिनेत्री देवा स्वीकारते भोले सेवा हर हर महादेव रामजी पुकारे है परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी म...
ये मौसमी बहारें
कविता

ये मौसमी बहारें

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मौसम दे जाते संदेशें नसीहतें भी हैं दे जाते तालमेल रहे नियति से इसका सबको भान रहे बारी बारी से ये आते सारे नियम निभाते हैं आचरण से ही रहना है ये सबको सीख दे जाते गलतियाँ जो करोगे तुम भोगना तुमको ही होगा ये सारे बदलते मौसम प्रकृति के साथ चलते हैं झंझावात है आता तरु सब काँपने लगते हरित पल्लव सिहर जाते भय से रुग्ण हो जाते जो आया है उसे जाना झरकर उपदेश दे जाते ये सारे बदलते मौसम प्रकृति के साथ चलते हैं प्रस्फुटित नवकोपलें देखो स्वागत नवसृजन का है हलधर खेत में झूमे नदियाँ मल्हार हैं गाती सावनी बूंदे बरसकर के खुशियाँ धरा पर लाती ये सारे बदलते मौसम प्रकृति के साथ चलते हैं बसंत जब मुस्कुराता है सुहाने सफ़र सा अहसास माँ शारदे हो पुलकित वीणा तान झंकृत हो होता आल्हाद है चहुँ ओर नई उम्मीदें जगती है ये स...
मुझे याद आता
कविता

मुझे याद आता

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वो बचपन की बातें हैं सपनों सी लगती नींदों में जैसे वो मुझको सुलाती वो रूहानी बचपन मुझे याद आता... वो माँ का आँचल और लोरी सुनाना बाबा के कांधों को अपना घोडा बनाना वो ममतालु बचपन मुझे याद आता... गुनगुनाता सावन वो बिलखती बिदाई वो राखी का उत्सव खिलखिलाती सखियाँ वो सुहाना बचपन मुझे याद आता... पचपन में दादी नानी बनना वो ही बातें व अठखेलियाँ नन्हे मुन्नों को गोदी खिलाना यादों का ऐसे लौट के आना इस बुढ़ापे में बचपन मुझे याद आता... परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते ह...
आव्वाहन… महान आत्माओं का
कविता

आव्वाहन… महान आत्माओं का

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हे विवेकानंद पुनः आकर जगाओ नौजवानों को लक्ष्य याद दिलाओ क्या वे भूल गए अपने जोशीले इरादों को हे भगत आज़ाद बिस्मिल कहाँ हो वंदे मातरम का नारा फिर से गुन्जाओं क्या भूल गए हैं फांसी के उन फंदों को हे लाल, पाल, बाल और एक बार दहाडो अन्याय सहना भी अन्याय है, याद दिलाओ जन्म सिद्ध जीने के अधिकारों को दुहराओ संसद अक्षरधाम २६/११ के हमलों को कभी उरी कभी पुलवामा-बरसते गोलों को हे नेताजी आकर ईंट का जवाब पत्थर से दो यह बसंत भूल याद करो वीरों के वसंत को आतंकियों के हर मनसूबे का अंत करो अभी नहीं कभी नहीं ईंट का जवाब पत्थर दो बलिदानी सैनिकों को यूँ श्रद्धांजलि दो परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
नेताजी
कविता

नेताजी

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जन्मदिन आज आपका नेता जी सुभाषचंद्र बोस पराक्रम की गाथाओ से दिवस पराक्रम कहलाया गरम दल के अग्रणी नेता ईंट से ग़र प्रहार करे कोई पत्थर से ज़वाब वे देते थे अपने मन के मालिक थे ख़ुद के दम पर लड़ते थे क्रांतिकारियों को मिलाके जर्मनी जाकर गुपचुप से रासबिहारी संग मिल के आज़ाद हिंद फ़ौज बनाई दुर्गा सी अनेक वीरांगनाएँ निकल पड़ी देशसेवा को जयहिंद नारा वो दोहराते आज़ादी के सब दीवाने तुम मुझे खून दो वे कहते आज़ादी का वचन थे देते दुर्घटना विमान में नेताजी देश के नाम शहीद हुए थे वीर सपूत भारतमाता के करते हम शत शत नमन जयहिंद जयहिंद जयहिंद परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ल...
माँ तेरी गोदी में सो जावाँ
कविता

माँ तेरी गोदी में सो जावाँ

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मेरी जननी जनमदाता जन्मभूमि दूजी माता माँ नदिया मेरी जलदाता ये स्वर्ग मुझे नहीं भाता तीनों माओं पे मैं सदके जावाँ तेरी ... गोदी में माँ ... माँ सिंधु हिन्द का नाम दिया गंगा यमुना संगम कहलाया नर्मदा की अपनी अलग माया नीर नदियों का मैं बन जावाँ नीली चूनर माँ की मैं लहरावाँ तेरी ... गोदी में माँ ... नदी किनारे जन्मी गाथाएं भारत की कई सभ्यताएं जन जन की कोटि भाषाएं वंदेमातरम हाँ मैं गुनगुनावाँ नारा जयहिंद का जग में फैलावाँ तेरी ... गोदी में माँ ... तेरे घाटों पे तीरथधाम उद्योगधन्धों के कई काम व्यापार का विश्व को दे पैगाम तेरे नाम जीवन मैं कर जावाँ परचम प्रगति का दुनिया में फ़हरावाँ तेरी ...गोदी में माँ ... इन नदियों ने मुझे नहलाया मेरे बचपन को बहलाया मेरे सपनों को सहलाया उम्मीदों को मेरी है महकाया माँ...
नायिका के मुख से… नये साल में
कविता

नायिका के मुख से… नये साल में

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** २१२ २१२ २१२ २१२ धुन... कर चले हम फ़िदा पान बीड़ा लगाया नये साल में होंठ पे भी रचाया नये साल में मतला चल दिए तुम कहाँ है मिलन की घड़ी लौट आना दुबारा नये साल में गिरह भूल शिकवे ज़लालत किया कुछ नया ज़िन्दगी को सँवारा नये साल में लाल चूड़ा सजे मेहँदी भी रची ब्याह में धूम बाजा नये साल में द्वार खोले सनम राह देखूँ तिरी फ़ोन भी है लगाया नये साल में चाँद को देख तू याद आया मुझे चाँदनी को बुलाया नये साल में देख तस्वीर तेरी हुई मैं फ़िदा मीत मुखड़ा दिखाना नये साल में थी घड़ी शायराना कि हम तुम मिले अब मुहब्बत जताना नये साल में चाहते हो अगर तो छुपाना नहीं हाथ हमसे मिलाना नये साल में परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित ...
आई शिशिर ऋतु
कविता

आई शिशिर ऋतु

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जब शरद ने ली विदाई मस्त शिशिर ऋतु आई पर्णो ने भी ली अंगड़ाई शाखाएँ देखो हैं इतराई ठिठुरन अंग अंग कँपाएँ ऊनी मफ़लर, शाल भाए गुनगुनी धूप में हैं सुस्ताए या रजाई में दुबक जाएँ दिन छोटे, लंबी होती रात ठंडी से कटकटाते हैं दाँत आ जाती है मकरसंक्रांत तिल गुड़ खाने की सौगात गरम चाय व गाजर हलवा केसर दूध, कॉफी व कहवा गोभी, मटर, टमाटर जलवा गुड़ की राब, पीता कलवा दो मासों की होती बहार शिशिर है जाने को तैयार बुलाती रंग बिरंगी फ़ुहार बसंत बहना! खुले हैं द्वार परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्...
सोचो कितना अच्छा होता
कविता

सोचो कितना अच्छा होता

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** बादल ने बूंदें बरसाता हो धरती अँगड़ाई ले देखकर शरमाकर ओढ़ ले झट से हरी चुनरिया फूलों वाली चहुँ ओर लहराए चूनर ये हर खेत तरु डाली डाली सोचो कितना अच्छा होता उखड़े कभी न साँसें धरा की प्राणवायु वायु से पूरित हो रक्षाकवच हरियाली का हो दरकती दरारें दूर हो सभी पौधारोपण चहुँ ओर हो जगतजननी खुशियाँ पाती सोचो कितना अच्छा होता देख हरे भरे वन जंगल रिमझिम बरखा आती हो धन धान्य फल फूलों से आँचल भू का भर देती हो जुही चमेली चम्पा नाचे मोर पपीहा कोयल गए सोचो कितना अच्छा होता एक ही छत बिन दीवारों के मात पिता व भाई बहन हो पड़ोसियों से गुफ़्तगू हो सब अच्छे सब अच्छा हो बैर ईर्ष्या स्वार्थ नहीं हो व्यसन की बात नहीं हो सोचो कितना अच्छा होता विश्वबन्धुता व भाईचारा वसुधैव कुटुम्बकम हो यूक्रेन रूस से झगड़े न हो हिरोशिमा नागास...
सितारे चमकते रहें
ग़ज़ल

सितारे चमकते रहें

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ये दिये यूँ सदा रोज़ जलते रहें सब घरों में सितारे चमकते रहें आज आया बड़ा दिन नजारे नए रोज सब चेहरे यूँ चहकते रहें सब घरों में रहें शांति सुख चैन हो रोज़ परिवार सारे विहसते रहें आज आया बड़ा दिन नजारे नए रोज सब चेहरे यूँ चहकते रहें सब घरों में रहें शांति सुख चैन हो रोज़ परिवार सारे विहसते रहें बेटियाँ और बेटे बराबर यहाँ वे सदा मुस्कुराते व हँसते रहें झूठ बोलो नहीं सत्य की जीत है सत्य को लोग तानें ही देते रहें परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक...
इस संक्रांति
लघुकथा

इस संक्रांति

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सात वर्ष गुज़र गए बेटे पलाश को लंदन गए। वहाँ ब्याह भी कर लिया। पार्थ व जुही भी आ गए। गनीमत की बीबी मायरा भारत से ही थी। शेखर आवाज़ लगाते हैं, "अरे शारदा ! कब तक तिल गुड़ के लड्डू बना-बना कर बेटे बहू को भेजती रहोगी। क्या पता वो लोग खाते भी हैं या नहीं?" शारदा सजल हो बुदबुदाती है, "क्या करूँ? मन मानता ही नहीं। लेकिन इस बार बच्चे कहेंगे तभी भेजूँगी।" उधर पार्थ व जुही बड़ी बेसब्री से दादी के तिल गुड़ के लड्डू का इंतजार करते हैं, "पापा ! दादी कहीं बीमार तो नहीं हो गई।" शेखर सोचने को मजबूर हो जाता है। ज़िन्दगी में आगे बढ़ने के लिए माँ पापा कितने पीछे छूट गए। वह ख़ुद अपने बच्चों के बगैर एक दिन भी नहीं रह सकता है। फ़िर बेचारे माँ पापा... कैसे रह रहे होंगे अकेले ? तभी पार्थ, दादी की चिट्ठी लाता है। पूरे पन्ने पर पड़े आँसुओं के दाग माँ का दर्द ब...
सायरा का दायरा
लघुकथा

सायरा का दायरा

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मैं मंगोड़ी की थाल लिए जीना चढ़ने ही वाली थी कि पीछे से सायरा बानो बोली, "लाओ आंटी मैं रख दूँगी धूप में, ऊपर ही जा रही हूँ।" यह उसका रोज का धंधा है। आते-जाते भाभी, दीदी, भैया सबके काम हँसते-हँसते निपटाना। सभी से आत्मीय सम्बंध बना लेना उसका स्वभाव ही है। मैं बालकनी में बैठी सोचने लगी कि वह सभी घरों का अटाला, कपड़े, पुरानी चीज़े आदि सहर्ष ले जाती है। जैसे ही वह ऊपरी मंजिल से उतरी मैं जिज्ञासावश पूछ बैठी, "सायरा ! मैं तुम्हें इतने सूट...।" वह बीच में ही बात काटते हुए बोली, "आंटी ! मैं तो बस कॉटन ही पहनती हूँ, आप रोज देखते ही हो। लेकिन मेरी सब सहेलियाँ रास्ता ही देखती है कि कब मैं पोटला लाऊँ? वे सब अपने हिसाब से छाँट बाँट लेती हैं।" "और दूसरा सब सामान....।" मैने टोका। बातूनी सायरा तपाक से बोली, "रब की दुआ से मेरे पास तो सब कुछ है। आप लो...
चाँदनी रात
कविता

चाँदनी रात

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** चाँदनी रात तो खिली होगी आपसे बात भी तभी होगी इक मुलाकात आज है तुमसे शर्म से फ़िर पलक झुकी होगी बन्द आँखें दिखा रही सपने धड़कनें आपने सुनी होगी भोर होते चली कहाँ तुम हो धूप तो आज गुनगुनी होगी ख़्वाब में खो गए भुला मुझको राज की बात तो सुनी होगी दरमियाँ दूरियाँ न हो साजन पास बैठो ज़रा खुशी होगी रूठना आपको नहीं भाता यार मुझमें कहीं कमी होगी बेटियाँ रोज क्यों छली जाती खोट नियमों में ही रही होगी परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अप...
पाँच घण्टे
लघुकथा

पाँच घण्टे

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** शिक्षक अभिभावक मीटिंग में प्राचार्या जी समझ नहीं पा रही क्या करे? अजीबोग़रीब प्रश्न पूछे जा रहे हैं, "बच्चे कहना नहीं मानते, ऊपर से झूठ बोलते हैं। दिनरात फ़ोन पर लगे रहते हैं। देर रात पार्टी करते हैं। फैशन के पीछे दीवाने हो रहे हैं। बात बात में झूठ बोलते हैं। आप स्कूल में यही शिक्षा देते हैं क्या ? प्राचार्या जी सादगीपूर्ण वर्दी में बैठे स्टॉफ की ओर इशारा करती हैं, "देखिए हमारे शिक्षक शिक्षिकाएं अनुशासन में रहते हैं। अपनी तरफ से बच्चों को व्यहारिक रूप से मूल्य सिखाते हैं। स्वयं रोल मॉडल बन समझाते हैं।" फ़िर मेडम अभिभावकों की ओर मुखातिब होती हैं, "मैं स्पष्ट देख पा रही हूँ कि लगता है आप किसी फैशन परेड में आए हो। बताइए मुझे, क्या बच्चों के दादा-दादी साथ रहते हैं? आप अपनी पार्टियों में व्यस्त रहते हो, देर रात आते हो। नानी-दादी का साथ च...
नीनू चली जादू नगरी
लघुकथा

नीनू चली जादू नगरी

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** दीवाली के लिए मम्मा ने गुजिया लड्डू बनाकर ऊँची रेक पर रख दिए। नीनू सोचने लगी मैं गुड़िया बहियन की छोटी गुजिया केही विधि पाऊँ? लेकिन उसके सारे प्रयास विफ़ल। नीनू ललचा कर माँगती है, "बस एक गुजिया दो ना मम्मा, सच्ची बस एक ही।" माँ फटकार लगा देती है, "बिलकुल नहीं, सब भोग के बाद।" नीनू मिठाई का सोचते-सोचते निंदिया रानी की दुलारी हो जाती है। वह जादू की नगरी में पहुंच जाती है। वहाँ देखती है...वह एक अनूठे पार्क में नितांत अकेली चहलकदमी कर रही है। पेड़ो पर फलों के साथ मिठाइयाँ भी लटक रही हैं। रसगुल्ले, जलेबी, गुलाबजामुन आदि-आदि और उसकी मनपसन्द रंगबिरंगी टॉफियाँ। नीनू की तो बल्ले-बल्ले हो जाती है। वह सोचती है, पहले सब देख लूँ, फिर खाने का इंतज़ाम करती हूँ। ज्यों ही वह सामने देखती है, "अहा ! शिकंजी के ताल में इमरती की नौका, मजा आ गया।" नीनू ...
मेरे दादा (पिताजी)
कविता

मेरे दादा (पिताजी)

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** दादा मेरे थे, मेरी जान से प्यारे, दुनिया से निराले, सपनों में कभी आते नहीं दूर एक गाँव में उनका निवास था खलिहान खेत रोज़ जाना उन्हें भाता मजदूरों से भी प्यार जताना उन्हें आता भूखा न किसी को कभी रखते मेरे दादा ऐसे थे मेरे दादा.... सपनों में सूरज से पहले उठना अच्छा उन्हें लगता रंभाती हुई गायों को दुहते थे सुबह शाम सहलाते हुए लाड़ जताते बहुत ही थे छोनों को खूब दूध पिलाते मेरे दादा ऐसे थे मेरे दादा.... सपनों में थाली में गरम दाल व ज्वार की रोटी हर चीज़ बड़े शौक से खाते सभी जगह ऊपर से उन्हें नमक नहीं चाहिए कभी नखरे नहीं खाने में दिखाते मेरे दादा ऐसे थे मेरे दादा.... सपनों में दुख दर्द दास्ताँ लिए सब लोग आते थे काँधे पे हाथ रखकर समझाते सभी को कचहरी भी रोज़ लगा करके बैठते कुछ चाय नाश्ता भी कराते मेरे दादा ऐसे थे मे...
सार्थक करें ये दीपावली
कविता

सार्थक करें ये दीपावली

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** घर की साफ़ सफाई संग करके दुर्गुणों की विदाई और मूल्यों के सतरंगों से जिंदगी की कर ले पुताई धनतेरस है धनधान्य भरे निज सेवकों का ध्यान रहे परम धरोहर सेहत अपनी इसकी कुंजी संभाल रखे रूपचतुर्दशी सँवारे जीवन नरकासुरों का संहार करें तन व मन दोनों हो सुंदर कुछ ऐसा ही प्रयास करें माटी के दीयों की जगमग अमावसी कालिमा को हरे खुशियों की फुलझड़ियाँ हो पर्यावरण का आव्हान करें गोवर्धन पूजा करते हैं हम पशुधन का परिपालन करें मीठा खाए व वैसा ही बोले बंधुता का अब श्रीगणेश करें भाईदूज पर तिलक लगे आत्मस्वरूप स्मरण करें महाभारती कलहों से परे रामायणी परंपरा शुरू करें दीप से दीप जलाएँ ऐसे मन का सब अंधकार हरे सब अच्छा, सब अच्छे हो आओ दिवाली सार्थक करें परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं...
यूँ ही मुझसे बात करती हो
ग़ज़ल

यूँ ही मुझसे बात करती हो

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** यूँ ही मुझसे बात करती हो भोर की रोशनी निराली है सुबह की ये हसीन लाली है जब गए छोड़कर अकेली तो ज़िन्दगी राम ने संभाली है साज सजने लगे जमी महफिल ये मेरा दिल तो आज खाली है सायबा आपने जुदा होकर क्यूँ बनाया मुझे रुदाली है घोर फांके पड़े गरीबों में ये महल में सजी दिवाली है कह न पाई तुझे कहानी मैं शर्म की आँख पे ये जाली है मान मुझको नहीं पराया सा देख दिल में जगह बना ली है भूलकर भी कभी नहीं आया याद कर मैं वही घरवाली है खाइए जी ज़रा नफ़ासत से रोटियाँ ये सभी रुमाली हैं कम न समझो हमें जगतवालों हम हैं दुर्गा हमीं तो काली हैं राजरानी लगूँ सभी को मैं लग रहा तू बड़ा मवाली है फूल कलियों सजा ये कुनबा है बाग का तो पिता ही माली है क्यूँ ये दुल्हे दिखा रहे नखरे दुलहिने तो देखी भाली है दाल बाटी व चूरमा ल...
श्राद्ध से श्रद्धा तक
आलेख

श्राद्ध से श्रद्धा तक

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जब तक जीवित हैं...हम प्रतिवर्ष अपना जन्मदिन मनाते हैं। हाँ, मनाने के तरीके भले प्रथक हो। किन्तु हम यह एहसास नहीं भूलते कि जीवन का एक वर्ष कम हो गया। यह हमारी भारतीय परंपरा है कि मृत्योपरांत भी हम अपने परिजनों को भुला नहीं पाते। उनकी स्मृति बनी रहे... इस हेतु श्राद्ध करते हैं। कहने को यह एक धार्मिक अनुष्ठान है किंतु इसके साथ भावनाएँ भी जुड़ी हैं। अनन्त चतुर्दशी पर गजानन की विदाई के पश्चात पूर्णिमा से श्राद्ध आरम्भ हो जाते हैं। इन्हें सौलह श्राद्ध भी कहते हैं। मृत्युतिथि अनुसार श्राद्ध करते हैं। स्वच्छता व विधिविधान से किसी ब्राह्मण को भोजन हेतु न्यौता जाता है। किंतु पण्डित लोगों को भी कुछ विशेष अवसरों पर ही पूछा जाता है। सही है कि दक्षिणा के लालच में कइयों का आग्रह मान लेते हैं। थोड़ा बहुत ग्रहण कर अगले यजमान के यहाँ पहुँच जाते हैं।...