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सुधियों की कस्तूरी
कविता

सुधियों की कस्तूरी

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** पिय की सुधियों की कस्तूरी, महकाती मन का मधुवन। मन-मृग वन-वन विचरण करता, नित पाने को कस्तूरी। हाय सुहाती नहीं हमें अब, प्रियतम से किंचित दूरी।। ज्यों सागर से मिलने आतुर, सरिता की धड़कन-धड़कन। पिय की सुधियों की कस्तूरी, महकाती मन का मधुवन।। मृग-मरीचिका में हम उलझे, मिली ठोकरें हुए विकल। अंतर्मन में है कस्तूरी, फिर भी आडम्बर का छल।। समझ न पाये हाय मर्म हम, तोड़ गुत्थियों के बंधन।। पिय की सुधियों की कस्तूरी, महकाती मन का मधुवन।। मुश्किल है कस्तूरी मिलना, उसकी चाहत को पाना। इच्छाएँ जब रहीं अधूरी, तब महत्व हमने जाना।। साँसें बनकर दिल में धड़कें, जीना दूभर दुखी नयन। पिय की सुधियों की कस्तूरी, महकाती मन का मधुवन।। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पु...
सुबह उठते ही
कविता

सुबह उठते ही

दीप्ता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सुबह उठते ही चाय का छाया रहता खुमार है मौसम कोई भी हो चाय तो सदाबहार है सुबह उठते ही चाय की तलब होती है चाय के साथ ही नमस्कार अदब होती है सुबह उठते ही करते हम उसका दीदार है चाय पर तो शौक़ीनों का ही इकतरफा अधिकार है गजब का सुर्ख रंग और स्वाद लगता है हर एक चुस्की पर दिल को सुकून सा मिलता है सर्दियों में वह एक प्रेमिका सी लगती है हर बार उससे मिलने की तलब जाग उठती है उसकी छुअन से लबों पर एक सरसरी सी उठती है उफ्फ! इस चाय से तन मन में ताजगी भर उठती है। परिचय :- दीप्ता मनोज नीमा निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प...
कहानी में हक़ीकत तो रही
ग़ज़ल

कहानी में हक़ीकत तो रही

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** भले थोड़ी मुसीबत तो रही। कहानी में हक़ीकत तो रही। मिला उतना, लगाया जितना, चलो इतनी ग़नीमत तो रही। रहा कोई कहीं हो दूर पर, उसे हमसे अक़ीदत तो रही। बुलाये वो हमें या हम उसे, सफ़र में ये ज़रूरत तो रही । कभी मानी नहीं जिसकी कही, हमें उसकी नसीयत तो रही। बिताई जिंदगी हमनें जैसी, अभी तक वो तबी'अत तो रही। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक...
बुलाते भी हो…
कविता

बुलाते भी हो…

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** कसम देकर बुलाती हो फिर मिलने से कतराती हो। दिल की धड़कनों को तुम क्यों छुपा रही हो। और अपने मन की बात क्यों कह नहीं पा रही हो। पर मोहब्बत तुम दिल से और आँखों से निभा रही हो।। मोहब्बत दूर रहकर भी क्या निभाई जा सकती है। तमन्ना उनके दिल की दूर से सुन सकती हो। और उन्हें अपने नजदीक तुम बुला सकती हो। या बस देखकर ही तुम मोहब्बत निभाती हो।। मोहब्बत करने वाले कभी अंजाम से नहीं डरते। क्योंकि मोहब्बत में दर्द और भावनाओं का समावेश होता है। चोंट किसी को भी लगे पर दर्द दोनों को होता है। और मोहब्बत की परिभाषा इससे अच्छी हो नहीं सकती।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन ...
वैष्णवों का मनोरथ
भजन, स्तुति

वैष्णवों का मनोरथ

दीप्ता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** देखो! नववर्ष की आई है दिव्य बेला, गोकुल में सजेगा हम वैष्णवों का मेला, श्रीजी की प्यारी हमारी यमुना महारानी शांत, नीलमणि वर्ण हमारी प्यारी पटरानी, भजन कीर्तन से करें आपका गुणगान स्वीकार कर पूजा हमारी, राखो हमारो मान श्रीजी बाबा कृपा से रचा गोकुल में चुनरी मनोरथ काज यमुना महारानी पटरानीजी पूर्ण कीजो हमरी पावन आस।। सोलह सिंगार से हमें आपको है सजाना, सुंदर चुनर भी हमें आपको है ओढाना अपनी स्वीकृति दे महारानी आप हमारा कार्य सफल बनाना सौभाग्य रहे सदा साथ हमारे, ऐसा आशीष हमको है पाना।। छवि मनमोहक मधुर तान से सबका मन जो भरमाये अपनी सुध-बुध-भूल के गोपियां खिंची चली वो आयें चलो रे! श्री गिरिराजजी बाबा का दर्शन लाभ पाएं गोविंद कुंड में हम सभी सफल मनोरथ कराएं श्रीजी बाबा, महारानीजी पूर्ण कीजिए हमारा मनोरथ आस लग...
बेटियां
कविता

बेटियां

रामेश्वर पाल बड़वाह (मध्य प्रदेश) ******************** दोनों घरों की पहचान होती है बेटियां एक बहू दूसरे में मां की शान होती है बेटियां। बहू बेटियां ही चलाती हैं घर और सबको खिलाती है रोटियां पिता की खुशी और मां का अरमान होती है बेटिया। कितनी भी मुसीबत आए नहीं घबराती है बेटियां दर्द का एहसास और खुशियां की पहचान कराती है बेटियां। बहता है नीर आंखों से जब रोती है बेटियां कैसे चलता यह संसार जब ना होती बेटियां। बड़े-बड़े आंसू रुलाती है बेटियां विदा होकर जब घर से जाती है बेटियां। परिचय :-  रामेश्वर पाल निवासी : बड़वाह (मध्य प्रदेश) विधा : कविता हास्य श्रृंगार व्यंग आदि। प्रकाशित काव्य पुस्तक : पाल की चांदनी। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ल...
अब से पहले
कविता

अब से पहले

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** पहले भी रात होती थी ...चांद होता था। तारों के साथ -साथ आसमान होता था। उन तमाम रातों में, जो चटक जाते थे तारे, उन्हें देख कर ख्वाब बुना करता था। मैं जागता था ...अनगिनत सपने देखने के लिए। मैं तलाशता था उन राहों को जो है .......मेरे लिए। जिंदगी की राह में लेकिन..... सब बदल गया। रात तो वही है ....लेकिन आसमान बदल गया। क्या ......मैं सोचता था.. अब क्या मैं सपने बुनूं। यह कहाँ ठिठक गया .... किससे कहूँ। वो भरम कि मैं अकेला नहीं.... मेरी तन्हाई से वो भी पिघल गया। अब सोचता हूँ..... कहूँ भी तो क्या कहूँ। आज भी जाग रहा हूँ....... पहले की तरह। लेकिन ख्वाबों का सिलसिला लगता है कि थम-सा गया। जिंदगी जो मृगतृष्णा दिखा रही थी और ..... मैं तो प्यासा ही रह गया। टूटे हुए ख्वाबों के आईने में, फिर से अपन...
सातों जन्म मांगती तुझको हूं
कविता

सातों जन्म मांगती तुझको हूं

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** क्या हुआ मुझे दिया नहीं कभी लाखों का हार, पर जीवन के हर पल को माला में संजोया है। क्या हुआ मुझे कभी दिया नहीं कीमती उपहार पर अपने जीवन के कीमती पल मेरे नाम किए हैं। क्या हुआ कभी मुझे महंगी साड़ी गिफ्ट नहीं की पर हमारे रिश्तो को एक-एक धागे में पिरोए रखा है। क्या हुआ ऊंचे महलों में नहीं बिठाया कभी हमें पर छोटे से घर की एक-एक ईंट में प्यार भर दिया है। क्या हुआ कभी हम गए नहीं विदेश घूमने तो स्वदेश के हर सुनहरे संगीत से रूबरू करवाया है। कभी किया नहीं झूठा वादा कि ताज महल बनवा दूंगा पर घर के एक कोने में सुंदर सा कमरा हमारे नाम किया है। क्या हुआ कभी हम धन-दौलत से भरा नहीं हमारा घर प्यार भरपूर देकर हमें रहीस बना दिया है। दुनिया से अलग है मेरे हमसफर झूठे वादे करते नहीं मुझे हमेशा खुश रखते हैं हमारे लिए वही...
शिक्षा व्यवस्था
कविता

शिक्षा व्यवस्था

शशि चन्दन इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** शिक्षा जीवन का सार है, संस्कारों का मीठा संसार है, आत्मा का परमात्मा से मिलन का... एकमात्र यही सच्चा द्वार है।। दिनचर्या हो कैसी, व्यवहार हो कैसा, कोरे मन पे लिखो बस न ऐसा वैसा.. कलम ही सारथी बेड़ा लगाती पार, शिक्षा ना खरीदी जाती देकर पैसा।। भगवान राम कृष्ण भी पढ़े गुरुकुल में, सर्व शिरोमणी बने तब रघुकुल में..। जीवन ज्योति के आखर आखर जोड़, गीताधारी कहलाए जगतकुल में।। युग बीते परिवर्तन हुए बदली नियमावली, विद्या मंदिरों में लगने लगी हाट बाजारों की गली, विद्यार्थी जीवन सिमटने लगा किताबों में.. मां सरस्वती की वीणा रूदन कर विदा हो चली।। आधुनिक शिक्षा व्यवस्था चलती ठेकों पे, कलम से कलाम बनना हुआ दूर, परीक्षा उत्तीर्ण होती आज नेगों से....।। ज्ञान का प्रकाश नहीं.. लाचारी भरी शिक्षकों की जेबों में....।। देश के ...
ज़िन्दगी मुश्किल भरी बनाई हैं
कविता

ज़िन्दगी मुश्किल भरी बनाई हैं

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** बढ़ रही ब्याज दरें देश में अब हमारें हैं, महंगाई के रिकार्ड टूट रहे अब सारे हैं, दस लाख करोड़ से ज्यादा बट्टे खाते में डाले हैं, हजारों करोड़ों डकारने वालों के दिन खुशहाल कर डाले हैं, आम जनता को सिलेंडर,पेट्रोल खरीदने के पड़े हैं लाले हैं, महंगाई से जनता के निकले हैं पड़े दिवाले हैं, बरोजगारों की देश में फ़ौज बढ़ती है जा रही, धीरे धीरे बात अब जनता के समझ में है आ रही, मध्यम परिवार के लिए दिन आफ़त भरे आएं हैं, हर महीने बढ़ाकर ई एमआई जनता के दिल दुखाएं हैं, पढ़ाई हो रही दिनों-दिन महंगी अंकुश ना सरकार का, भुखमरी में करवा दिया विश्व पटल पर आंकड़ा सौ के पार का, पढ़ो-लिखों पकोड़े तलों की स्कीम सरकार ने चलाई है, अब तो पकोड़े तलनें वालों की बाढ़ देश में आई है, क्या टीवी की नफ़रत वाली डिबेटों से पेट भर जाए...
ऋण
कविता

ऋण

महेश बड़सरे राजपूत इंद्र इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** खड़ा हूं इस मातृभूमि पर ऋण जाने कितनों का सर है। आज बड़ा मैं अभिभूत हूं आशीष बड़ों का भर-भर है। माता-पिता-भाई-बहनों का, ऋषियों और गुरुजनों का, शेष बचे कितने प्रखर है? ऋण जाने कितनों का सर है। जात-समाज और पित्रों का, सहपाठी, बंधु-मित्रों का, जिनके कारण 'इंद्र' निडर है, ऋण जाने कितनों का सर है। जल-अग्नि-वायु-आकाश और भूमी का मुझमें वास, इनसे ही तो हम नश्वर है, ऋण जाने कितनों का सर है। आज जन्मदिन पर याद करूं, मन-बुद्धि-कर्म अर्पित करूं, ऋण जितनों का भी सर है, इस जनम चुकाने का अवसर है। इस जनम चुकाने का अवसर है। परिचय :- महेश बड़सरे राजपूत इंद्र आयु : ४१ बसंत निवासी :  इन्दौर (मध्य प्रदेश) विधा : वीररस, देशप्रेम, आध्यात्म, प्रेरक, २५ वर्षों से लेखन घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित ...
श्रमिक देव
कविता

श्रमिक देव

दिनेश कुमार किनकर पांढुर्ना, छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) ******************** जिनके लघु स्वेद कणों से, मिट्टी भी सोना हो जाती है, जिनकी भुजाओं के बल से, नई ज्योत्सना खिल जाती है!... ऐसे श्रम वीरों ने सदा से, धरती का रूप सँवारा हैं, हल, हथौड़ा, हँसिया से, मोड़ी इतिहास की धारा हैं!... इन्होंने दुनिया को सदा दिया, वैभव ऐश्वर्य सुख सुविधाएं, और बदले में सदा पाया हैं, आंसू क्रंदन अभाव पीड़ाएँ!.... धनपतियो का सारा वैभव, इनके श्रम पर टिका हुआ है, धरा का सम्पूर्ण निर्माण भी, इनके ही हाथो तो हुआ है!... भौगोलिक सीमाओ से परे, ये अनवरत सृजन करते जाते हैं, परं देवतुल्य श्रमिक कहीं भी, इसका भोग नही कर पाते हैं!... परिचय -  दिनेश कुमार किनकर निवासी : पांढुर्ना, जिला-छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र :  मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौ...
मंजिल
कविता

मंजिल

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** रास्ता भूल गई या मंजिल ठहर गई मेरे लिए कोई आ गया सफर में या मैं ठहर गई मंजिल के लिए वाकया यार सच है कि सफर कटता नहीं बिना हमसफर के लगता है, कोई हमसफर मिल जाएगा अगले पड़ाव के लिए। सफर में गुफ्तगू का मजा कुछ और ही होता है पराया होते हुए भी हमसफर अपना सा लगता है जिन्हें हम अपना समझे हुए हैं वह दो कदम साथ चलते हैं। बदली जो राह उनकी तेवर भी बदले-बदले लगते हैं ए दिल संभल, गुमान न कर किसी अजनबी का ये वह राहगीर जो ठहरे पानी में चांद सितारे से लगते हैं। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासक...
शहरी/किसान
आंचलिक बोली

शहरी/किसान

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** (अवधि भाषा) भले तू बाट्या बड़ा महानु, बड़ा सा अहै तोहारु मकानु, अही हमु किञ्चौ ना हलकानु, हे बबुआ हमहूँ अही किसानु।। बड़ु सुंदरु रहनि-सहनि तुम्हरा हर मनईन ख़ातिर इकु कमरा बढ़िया तोहार है खानु-पानु मुला लागतु हौ जैसेन बिमरा नूनु-भातु चटनी-रोटी ई हमारु पूरिउ-पकवानु।। हे बबुआ ... तू ए सी मा बासि करौ ठंडाई पी-पी ऐश करौ हमतौ सेंवारी मा घूमी मुला ठंड़ी-ठंड़ी सांसु भरौं फ्रिज कै तू पानी पिअतु अहा हमरौ गगरी मा हउ भरानु।। हे बबुआ ... तू सूटेड-बूटेड बना रहा हरु चौराहे पै अड़ा रहा हमतौ बस खेती-बारी मा चंहटा-मांटी मा सना रहा रूपिया-पैइसा से लदा अहा हमतौ अही मटिया मा धसानु।। हे बबुआ ... तू कामु किहा रूपिया पाया मनमाना सबकछु भरि लाया हमतौ खेते म जरी-मरी तब्बौ हाथे न दिखी माया तू मालु-...
सदा विजय होती है उनकी
कविता

सदा विजय होती है उनकी

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** जिनमें भरा स्वाबलंबन है, वे मुहताज न होते। सदा राज करते दुनिया पर, कभी ताज ना खोते। जो सागर का ह्रदय चीरते, वे मोती पाते हैं। जो गहरे जाने से डरते, बैठे रह जाते हैं। जो फैलाते पंख हवा में, अंबर में उड़ जाते। जो संकल्प करें ध्रुव जैसा, ऊँचाई हैं पाते। कर प्रयास जो सागर को भी, गागर में भरते हैं। उनकी सदा विजय होती है, जो प्रयास करते हैं। रखें इरादे जो फौलादी, सदा सफलता पाते। तूफानों से जो डर जाते, वे पीछे रह जाते। परशुराम सा तेज धारकर, जो आगे बढ़ते हैं। प्रभु की कृपा प्राप्त कर पंगु, उच्च शिखर चढ़ते हैं। वादा करें स्वयं से पक्का, रक्खें अटल इरादा। सारे काम करें दृढ़ता से, मिले भाग्य से ज्यादा। जो अपना पुरुषार्थ जगाकर, पौरुष दिखलाते हैं। पथरीली राहों पर चलते, वही शिखर पाते हैं। ...
निजी बयान है
हास्य

निजी बयान है

किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया (महाराष्ट्र) ******************** पार्टी के पदाधिकारी को बयान देने बोलता हूं तीर निशाने पर लगे तो सही है बोलता हूं कोई विवाद हो जाए तो प्लान बदल देता हूं यह उसका निजी बयान है ऐसा बोल देता हूं शाब्दिक बाण हमेशा स्टॉक में रखता हूं नहले पर दहला मारने बोलता हूं बात बिगड़ गई तो यू-टर्न ले लेता हूं यह उसका निजी बयान है ऐसा बोल देता हूं अक्सर चुनाव के समय बयान तीर से छोड़ता हूं बयान देने वालों की चैनल बनाता हूं दांव उल्टा पड़ गया तो पलट जाता हूं यह उसका निजी बयान है ऐसा बोल देता हूं शाब्दिक दांव-पेचों का खेल खूब खेलता हूं मान-सम्मान गिराने के दांव-पेच खेलता हूं उल्टा चोर कोतवाल को डांटे टेढ़ा पड़ा तो यह उसका निजी बयान है ऐसा बोल देता हूं मेरे धुर विरोधी विचारधारा वाले भी खेलते हैं प्री प्लानिंग से उल्टा सीधा सब बोलते हैं फायदा हुआ त...
भ्रम टूट गया
कविता

भ्रम टूट गया

प्रतिभा दुबे ग्वालियर (मध्य प्रदेश) ******************** अच्छा हुआ दोस्त, जो भ्रम टूट गया साथ होने का तेरा वादा, जो अब छूट गया ।। तुझे बादशाही मुबारक तेरे शहर की, मुझे मेरे गांव का मुसाफिर ही रहने दे।। अच्छा हुआ चलन नहीं रहा अब किसी के विश्वास का खुद के खुदा को आखिर किसी की कोई तलाश कहा।। दोस्ती के लिए तेरा अक्सर, मेरे घर आना, जाना, हम प्याला वक्त के साथ-साथ अच्छा हुआ किताबी बातों की तरह छूट गया।। आज ठोकर खाई है तब जाकर कहीं आज मतलबी दुनिया की ये, दोस्ती समझ आई ।। हमने तो कोशिश की थी रंग जमाने की यारी में, तेरे विचारों की भी कहीं बहुत गहरी खाई थी शायद।। दोस्ती के लिए, कहां रहा गया वह दोस्ताना माहौल पहिले जैसा मैं तो मुसाफिर हूं मेरे गांव का ही, मैंने तेरे शहर आना अब छोड़ दिया।। परिचय :-  श्रीमती प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र ल...
मर रहीं हैं जिंदगी जीने के लिए
कविता

मर रहीं हैं जिंदगी जीने के लिए

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** साथ रहकर कर कुछ महिने मेरे, अब छोड़ दिया है तूने हाल पर मेरे, तन्हाइयों को तूने मेरी ज्यादा किया, दूर जाकर इस दिल से मेरे, बड़ा अहम रोल रहा घर का तेरे, जिसने झूठा अहम भरा मन में तेरे, तूने भी कुछ नहीं सोचा खुद के बारे, अब कैसे आऊं मैं दर पर तेरे, लेकर आया था संदेशा घर पर, उस थाने का थानेदार मेरे, कुछ उल्टा सीधा लिखा था उसमें, जो शिकायत खिलाफ दी मेरी तूने, बात यहां तक भी रहती सुलझ जाती, अब बुलाने लगी है कोर्ट भी मुझे, तूने एक बार अपना घर नहीं समझा, मां बाप तेरे भी तों हैं जैसें हैं मेरे, इल्ज़ाम लगाएं है बेतुके तुने, किस किस का जवाब दूं तूझे किस लिए, मैंने लगा दिया है सब कुछ दांव पर, घर की इज्ज़त अब बचाने के लिए, तू जीत रही है हर बार मुझसे, मैं तुझ से हार रहा हूं अपने घर के लिए, सामान तो उठवा ल...
सुरक्षा के संग करो सफ़र
कविता

सुरक्षा के संग करो सफ़र

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** सुरक्षा के संग करो सफ़र, ये कर्तव्य सबका हो, सड़क सुरक्षा ही अपनी सुरक्षा का ध्येय सबका हो, छोटे- छोटे बच्चों को ना देना साधन अपने चलाने को, कुछ सब्र करो ए इन्सान, उम्र उसकी बढ़ जाने को, शराब पीकर ना कभी बाईक, कार, ट्रक चलाना तुम, हो जायेगी अनहोनी, उससे बचकर रहना तुम, अपनी सावधानी में ही अपना व दूसरों का बचाव है, नियम कायदों के साथ चलो, कहता ये संविधान है, बिन मौत ही मर जाते दुर्घटना में, हजारों-लाखों लोग यहां, सबक लेकर घर से निकलो, ए मेरे देश के लोग यहां, सिर पर हैल्मेट बाईक पर, सीट बैल्ट का गाड़ी में रखो ध्यान, मुसीबत पड़ने पर आएंगी, ये सब चीजें तेरे काम, रफ़्तार देख कर रखो, कुछ निकला नहीं जाता है, बेसब्री से जायेगी जान, हाथ फिर कुछ नहीं आता है, यदि रूकना रास्ते पर साईड में साधन लगाओ तुम, अपना ...
क्या हो गया ज़माने को
कविता

क्या हो गया ज़माने को

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** क्या हो गया है इस ज़माने को, होड़ लगी है ज़्यादा पाने को, क्या हो गया .... भूल गये हैं अपने पराये को यहाँ, ज़िद्द लगी है अब दूर जाने को, क्या हो गया .... खो गया है आदमी अपनी ही चाल में, समा कर खुद में, भूल गया है ज़माने को, क्या हो गया .... लालच में पड़कर, लालच की बात करता है यहांँ, अब भूल गया है आदमी साथ रहने के तरानों को, क्या हो गया .... धर्म के नाम पर बंटता ही जा रहा हैैं यहांँ, खून तो एक ही है, लगा दिया है पैमाने को, क्या हो गया .... परिचय :-  रामेश्वर दास भांन निवासी : करनाल (हरियाणा) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाच...
पहला कदम
कविता

पहला कदम

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** विजय के लिए लक्ष्य पर ध्यान हो, नित्य कर्म में हो लगन खा कसम। एक ठौर रख सोच और समझ कर, जीवन जंग जीत का पहला कदम।। सही दिशा में पतवार को घुमाते चल, नदी की धारा तीव्र हो रही है प्रवाहित। मत छोड़ पालों को हवाओं के भरोसे, नाव डूबाने बैठा जल भंवर सन्निहित।। पर्वत शिखर दुर्गम, अटल, विकराल, आगे बढ़ तू फहराने जीत का झण्डा। चढ़ेगा,गिरेगा कई-कई बार फिसलेगा, ध्येय पाने अपना अनेक हथकण्डा।। जीवन कुरुक्षेत्र युद्ध का खुला मैदान, चक्रव्यूह भेदने धनुर्धारी अर्जुन बन। रख पास सदा गीता ज्ञान दाता कृष्ण, फिर लगा दे अपने कर्म में तन-मन।। जंग लड़ने के लिए खुद को तैयार कर, ध्यान से लगा एक तीर से एक निशाना। दृढ़ संकल्पित हो वैमनस्य को कर ढेर, जयन में शामिल होगा सारा जमाना।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीसग...
बिटिया जब अपना मुकाम बनाओगी
कविता

बिटिया जब अपना मुकाम बनाओगी

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** प्यारी-प्यारी बिटिया प्यारी, तुम हो जग में न्यारी-न्यारी, हंसती खेलती दुनिया तेरी, सबकी हो तुम दुलारी, मम्मी-मम्मी रखती हो तुम, पापा की हो सबसे प्यारी, तुम बिटिया मेरी आंखों की दुनिया हो, जग में मेरे लिए हो न्यारी-न्यारी, पढ़ना-लिखना जाकर स्कूल, बन कर रहना होशियार है तुम, एक दिन अफ़सर बन जाओगी, अपना नाम फिर कमाओगी, हमारा सीना चौड़ा होगा जायेगा, बिटिया जब अपना मुकाम बनाओगी, परिचय :-  रामेश्वर दास भांन निवासी : करनाल (हरियाणा) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविता...
बात नहीं बन रही
कविता

बात नहीं बन रही

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** देख लिया मेहनत करके, मैं अभी भी खड़ा हूं वहीं। अब क्या करूं तू ही बता? मेरी बात नहीं बन रही।। दावानल सदृश भ्रष्टाचार, निगल गया करके खाक। मृदु मांस के लोथे के लिए, चील, कौए रहे थे ताक।। बिखर गया चिता, भस्म धरा, आत्मा उड़ गयी नील गगन। चला गया एक प्रतिद्वंदी कह, भेड़िए नाच रहे थे हो मगन।। देख रहा था बनकर भूत-प्रेत, लेन-देन का था झोलम-झोल। नौकरी के नाम पर लुटाते जन, मची थी चहूं ओर हल्ला बोल।। यहां फले-फूले प्रभुत्व वनराज, निरीह प्राणी हो गए घर से बेघर। अंधी दौड़ में भाग रहे हैं कर्मवीर, सब डर से कांप रहे हैं थर-थर।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) संप्राप्ति : सहायक शिक्षक सम्मान : मुख्यमंत्री शिक्षा गौरव अलंकरण 'शिक्षादूत' पुरस्कार से सम्मानित। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता ...
दिल से प्यार क्या करते
कविता

दिल से प्यार क्या करते

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** दिल भला बेकरार क्या करते, हम तेरा इंतजार क्या करते, तुम तो उड़नेे वाला परिंदा हो, हम भला तेरा ऐतबार क्या करते, यादों से परे हो गये जब तुम मेरी, हम फिर तेरा इज़हार क्या करते, हो बेवफा तुम ये मालूम था हमें, हम ये दिल तलबगार क्या करते, दुनियाँ की भीड़ में खो गये हो तुम, हम तुम्हें दिल से प्यार क्या करते, परिचय :-  रामेश्वर दास भांन निवासी : करनाल (हरियाणा) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, ल...
ए चांद! जरा जल्दी आना
कविता

ए चांद! जरा जल्दी आना

दीप्ता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ए चांद! जरा जल्दी आना साजन का दीदार जल्दी कराना हाथों में देख मेहंदी लगाई है तेरे नाम की मेहंदी रचाई है माथे पर बिंदिया लगाई है मैंने पूजा की थाल सजाई है ए चांद! जरा जल्दी आना साजन का दीदार जल्दी कराना हाथों में चूड़ी और कंगना है कानों में झुमका पहना है सजना ही मेरा गहना है सजना के लिए ही सजना है ए चांद! जरा जल्दी आना साजन का दीदार जल्दी कराना करवा चौथ में चांद का इंतजार रहता है चांद के साथ में सजना का दीदार होता है उसके हाथ से पानी पीकर व्रत मेरा टूटता है हमारा प्यारा रिश्ता और परवान चढ़ता है ए चांद! जरा जल्दी आना साजन का दीदार जल्दी कराना।। परिचय :- दीप्ता मनोज नीमा निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप...