करुणा
राजेन्द्र लाहिरी
पामगढ़ (छत्तीसगढ़)
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छल, कपट, दुष्काम,
लोभ,लालच के बीच
पंकज की भांति
खिलती है करुणा,
जो दैदीप्यमान रवि की
लाती अरुणा,
यह सम्पूर्ण व्यक्तित्व
का है सार,
नहीं कोई लालच,
नहीं कोई व्यापार,
जियो और जीने दो,
प्रत्येक को समता
का रस पीने दो,
आचार विचारों में
करुणा लाओ,
बुद्ध के और
करीब आओ,
अहम को घटाओ,
वहम को मिटाओ,
यह त्याग और
शील का साथी है,
मानवता का
प्रेमपूर्ण पाती है,
हर क्षण हर काल
में है प्रासंगिक,
हृदय में जगाती है
प्यार अत्यधिक,
बुद्ध, कबीर, रैदास,
बाबा साहेब
थे सब करुणा
के वाहक,
यूं ही नहीं इनका
नाम लिया जाता नाहक,
प्रकृति से,
स्वकृति से,
कर्म से मन से,
निःस्वार्थ स्वच्छ तन से,
प्रवाहित होती है करुणा,
बस खुद में है भाव
जगाने की जरूरत,
तब चहुँ ओर
नजर आएंगे
करुणा लिए
बुद्ध ही
बुद्ध की सूरत।
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