निशब्द
शिवदत्त डोंगरे
पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश)
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कभी-कभी जीवन में
कुछ ऐसे पल हैं आते
जब समझा समझा कर
खुद का ही अन्तर्मन
कोई समझ ना पाता
और हम थक है जाते।
शब्दों के कोलाहल में
सब अर्थ अनर्थ हो जाते
मन की व्यथा समझाने के
सारे प्रयत्न व्यर्थ हो जाते
आपके हर तर्क के विरुद्ध
अनेक प्रत्यर्थ हैं टकराते।
तब
सिर्फ एक मौन का ही
सहारा समर्थ कर जाता है
बिन कुछ कहे ही वो तो
सारा भाव व्यक्त कर जाता है।
चीखता तो घमंड है
विनय तो बस मौन है
हठ में तो कर्कशता है
त्याग तो बस मौन है
झूठ के हैं लाखों तर्क
सत्य की भाषा तो मौन है।
मौन है दर्पण
मौन है तर्पण
मौन है अर्पण
मौन समर्पण
मौन प्यार है
मौन स्वीकार है
मौन तकरार है
मौन ही इकरार है।
हर वाद-विवाद
प्रतिवाद से मुक्त हो पाते हैं
जब आपके शब्द
निशब्द हो जाते हैं।
जब आपके शब्द
निशब्द हो जाते ...