
प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला, (मध्य प्रदेश)
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रोदन करती आज दिशाएं,
मौसम पर पहरे हैं।
अपनों ने जो सौंपे हैं वो,
घाव बहुत गहरे हैं।।
बढ़ता जाता दर्द नित्य ही,
संतापों का मेला।
कहने को है भीड़,हक़ीक़त,
में हर एक अकेला।।
रौनक तो अब शेष रही ना,
बादल भी ठहरे हैं।
अपनों ने जो सौंपे वो,
घाव बहुत गहरे हैं।।
मायूसी है,बढ़ी हताशा,
शुष्क हुआ हर मुखड़ा।
जिसका भी खींचा नक़ाब,
वह क्रोधित होकर उखड़ा।।
ग़म,पीड़ा औ’ व्यथा-वेदना
के ध्वज नित फहरे हैं।
अपनों ने जो सौंपे हैं
वो घाव बहुत गहरे हैं।।
व्यवस्थाओं ने हमको लूटा,
कौन सुने फरियादें।
रोज़ाना हो रही खोखली,
ईमां की बुनियादें।।
कौन सुनेगा,किसे सुनाएं,
यहां सभी बहरे हैं।
अपनों ने जो सौंपे है
वो घाव बहुत गहरे हैं।।
बदल रहीं नित परिभाषाएँ,
सबका नव चिंतन है।
हर इक की है पृथक मान्यता,
पोषित हुआ पतन है।।
सूनापन है मातम दिखता,
उड़े-उड़े चेहरे हैं।
अपनों ने जो सौंपे हैं
वो घाव बहुत गहरे हैं।।
जन्म : २५-०९-१९६१
निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.ए (इतिहास) (मेरिट होल्डर), एल.एल.बी, पी-एच.डी. (इतिहास)
सम्प्रति : प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष इतिहास/प्रभारी प्राचार्य शासकीय जेएमसी महिला महाविद्यालय
प्रकाशित रचनाएं व गतिविधियां : पांच हज़ार से अधिक फुचकर रचनाएं प्रकाशित
प्रसारण : रेडियो, भोपाल दूरदर्शन, ज़ी-स्माइल, ज़ी टी.वी., स्टार टी.वी., ई.टी.वी., सब-टी.वी., साधना चैनल से प्रसारण।
संपादन : ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं/विशेषांकों का सम्पादन। एम.ए.इतिहास की पुस्तकों का लेखन
सम्मान/अलंकरण/ प्रशस्ति पत्र : देश के लगभग सभी राज्यों में ७०० से अधिक सारस्वत सम्मान/ अवार्ड/ अभिनंदन। म.प्र.साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी अवार्ड (५१०००/ रु.)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।






















