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तू है जगत पिता

प्रेम नारायण मेहरोत्रा
जानकीपुरम (लखनऊ)
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तू है जगत पिता तो
मैं भी तेरा ही वंशज हूं।
तूने करुणा बरसाई तो
जीवों में अग्रज हूं।
तू है जगत पिता तो
मैं भी तेरा ही वंशज हूं।

मैं संसारी जग में
आया जगमाया में डूबा,
मैं मेरा में सीमित रहकर
जीवन से था ऊबा।
तेरी सेवा जब पाई थोड़ी
जीवन में रस आया,
सुमिरन का जब जाम पिया
तो जग का कुछ ना भाया।
तेरे सृजन के रस में
डूबा भंवरा हूं, पंकज हूं।
तू है जगत पिता तो
मैं भी तेरा ही वंशज हूं।

तेरी कथा सुनना-सुनवाना
ही अब मुझको भाता,
तेरा नाम जपता,
जपवाता इसमें ही दिन जाता।
जितनी सांसे हो खाते में
निज सेवा में रखना,
तेरे नाम से तृप्त आत्मा
अब जग का क्या चखना।
राह का एक कंकड़ था,
अब तेरे चरणों की रज हूं।
तू है जगत पिता तो
मैं भी तेरा ही वंशज हूं।

तेरे भक्त गाली भी दे
तो तेरा प्रसाद ही समझूं ,
मान और अपमान में सम रह,
अब जग में मैं विचरूँ
जब तक उचित समझना
मुझसे निज सेवा करवाना,
अंतिम सांस हो नश्वर तन की,
जिव्हा पर आ जाना।
तेरे चरण में रमे आत्मा
इसका अभिलाषी हूं ।
तू है जगत पिता तो
मैं भी तेरा ही वंशज हूं।

परिचय :- प्रेम नारायण मेहरोत्रा
निवास : जानकीपुरम (लखनऊ)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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