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भाई-बहन का स्नेह
कविता

भाई-बहन का स्नेह

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** आना मेरे घर में तुम भैया, आपको निमंत्रण देती हूँ। आकर प्रीति भोज खाना, पकवान बनाकर रखी हूँ।। जल्दी आना, देर मत करना, मैं राह तुम्हारे देखूँगी। मेरे भैया आ रहे हैं, अपनी सखी-सहेलियों से कहूँगी।। शुभ आसन पर बिठाकर, रोली से तिलक लगाऊँगी। बाँधकर हाथ में मौली, लंबी उम्र की कामना करूँगी।। मंगलमय होगा, सुख आएगा, सारी इच्छाएँ पूरी होगी। यमराज का भय नहीं रहेगा, जीवन में समृद्धि मिलेगी।। यह भाई-बहन का त्यौहार, स्नेह का बंधन है अटूट। आतिथ्य स्वीकार करो, भक्ति और आदर है अद्भुत।। उपवास रहूँगी सुबह से, तोडूँगी आप आओगे तभी। रक्षा करने दौड़े चले आना, दुःख में पुकारूँगी कभी।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) संप्राप्ति : शिक्षक एल. बी., जिलाध्यक्ष राष्ट्रीय कवि संगम इकाई। प्रकाशित पुस्तक : युगानुयुग स...
मैं जयपुर हूं
कविता

मैं जयपुर हूं

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** मैं गुलाबी नगरी जयपुर हूं। लो अपनी कथा सुनाता हूं। समय के स्वर्णिम पृष्ठों पर, इतिहास बनकर अंकित हूं। मैं सत्रह सौ सताइस में जन्मा, सवाई जयसिंह का चित्रित हूं। जयनगर से जयपुर बनकर, वैभवी चरित्र नगर गुलाबी हूं। अरावली की सुरम्य श्रृंखला, अचल शिखरों से संरक्षित हूं। जयगढ़ नाहरगढ़ जंतर-मंतर, आमेर हवा महल में विकसित हूं। सिटी पैलेस सरगासूली गलता, सात द्वार परकोटे में विस्तारित हूं। प्रकृति की गोद में प्रफुल्लित, मैं गालव ऋषि की तपोभूमि हूं। गढ़ गणेश मोतीडूंगरी विराजित, पावन मैं तीर्थों में छोटी काशी हूं। नगर नियोजित विश्व पटल पर, मोहक हरियाली से आच्छादित हूं। शील शिष्ट नैतिक मूल्यों से युक्त, कर्तव्य परायण गुणों से भरपूर हूं। वाशिंदे हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, मैं धर्मों में गंगा-...
हे मम आत्म सखि
कविता

हे मम आत्म सखि

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** संसार के किसी अन्य व्यक्ति से नहीं एक मात्र तुमसे आशा थी कि-हम-तुम... 'साथ बिताए न बिताए हर इक समय'- अन्तिम समय से पहले एक दूसरे के समक्ष- सत्य के साथ बिताएंगे! बहुत लम्बी जिन्दगी जी लिया हम दोनो ने पर जाने क्यों लगता है कि- 'मेरा सम्पूर्ण सत्य तुम्हारे थोड़े से असत्य से भी बहुत छोटा है!' जीवन के तमाम सम्मेलनों में एक मात्र तुमसे ही सारे असत्य कह लेने की छटपटाहट थी! एक मात्र तुम्हारे ही समक्ष अपने हर एक मौन पर बयान करने..रो-लेने... सान्त्वना पा-लेने... और हर एक गॉठ खोलकर शून्य के समान हल्का हो लेने का मन था बस थोड़ा सा ही तुमसे जानना था कि- 'क्या सोचती हो तुम फिर कभी हमारे साथ के बारे में!' यद्यपि हम दोनो के कर्म अलग-अलग हैं तो परिणाम भी अलग होंगे! पर क्या अपने सम्पूर्ण सत्य से मेरे स...
दिप से दिप जले
कविता

दिप से दिप जले

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आया हैं प्रकाश पर्व देहरी सजी, सजी है हर घर आंगन दीपों से जगमगाया है रंग तरंग से सजी रंगोली आंगन, आंगन इठलातीं। झिलमिल करतीं दिप बाती रंगोली से बतियातीं। बही बयार संग सुगथ मिठास की सबका मन ललचा रही नाच रही आंगन में बिटिया छुम छुम पायल बाज रही, उमंग, उत्साह का प्रकाश पर्व आया है चलो, बैठें सब हिलमिल कर यह सन्देश उज्जवल पव् लाया है सब हैं अपने, कोई न पराया एक दिप से, जले हजारों दिप हिन्दी रक्षक मंच ने सिखाया है ऐसे ही सतत प्रकाश दे मंच। झिलमिल प्रकाश पर्व पर मेरा सभी हिन्दी रक्षकों को अभिवादन, नमन परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप स...
रूप चौदस श्रृंगार
कविता

रूप चौदस श्रृंगार

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** मन सुन्दर सा हे बने, आत्मा का श्रृंगार, तन प्रभु की सेवा मै लगे, कंचन काया निखार। चित्त रहे निर्मल सदा, सोच रहे विशाल, विवेक बुद्धि ज्ञान धन, भरा रहे भण्डार। करे भलाई, दान, पुण्य, सेवा और सत्कार, दीनदुखियो की सेवा ही, काया का श्रृंगार। रूप चौदस, नरक चौदस, धन्वन्तरि दे आशीष, स्वस्थ रहे मानव सभी, सुर्य किरण से स्वस्थ। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन से सम्मानित ३. १५००+ कविताओं की रचना व भजनो की रचना रूचि : कविता लेखन, चित्रकला, पॉटरी, मंडला आर्ट एवं संगीत घोषणा पत्र : मैं य...
दीप
कविता

दीप

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** सुनो! दीपों का त्यौहार आ रहा है कुछ रोशनी अपने अंदर भी कर लेना। सुना है ! अंधकार बहुत है तुम्हारे अंदर भी तभी दिखता नहीं तुम्हें औरों का व्यक्तित्व। मगर दिख जाता है सत्य की रोशनी में औरों को तुम्हारा अहम। क्या मिट जाएगा? इस बार दीपों की रोशनी में तुम्हारा ज़िदी अहम। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं,...
दिवाली खुशियों वाली
कविता

दिवाली खुशियों वाली

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** सब घर-आंगन खुशहाल रहे। हर द्वार दीपक का उजास रहे। खुशियां लौट आए वनवास से, हृदय में श्रीराम का निवास रहे। पुनीत पावन दीपोत्सव संगम, पर्व खुशियों से प्रफुल्लित रहे। मिटे भेद-भाव गरीबी देश से, निजता में राष्ट्रहित सर्वोपरि रहे। मन से दूर विषय विकार हो, मनुज छवि सब पुरूषोत्तम रहे। शील शिष्ट नैतिक मूल्यों से युक्त, कर्तव्य परायण श्रीराम से रहे। दीन दुखियों के दर्द खिंचकर, आदर्श सर्व कल्याण कर्ता रहे। स्नेहिल भाव विकसित हृदय में, मानवीय गुणों से आल्हादित रहे। जगमग दीप जलें हर जीवन में, ऐसी खुशियों वाली दिवाली रहे। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, ...
हे राम, हे राम
भजन

हे राम, हे राम

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** हे राम, हे राम तुम्हें नमन है बारम्बार, बारंबार दाशरथि बन विष्णु आए, सकल लोक में मंगल छाए राम बिना नहि उद्धार, नहि उद्धार तुम्हें नमन है बारंबार, बारम्बार।। तुम्हें नमन है बारंबार, परम पिता परमेश्वर नाम जातुधान से मुक्त कराया, धरनी हित ´पुरुषोत्तम ´राम राम करेंगे बेड़ा पार, बेड़ा पार तुम्हें नमन है बारंबार, बारंबार।। राम न केवल तुम अवतार, तुम अवतार अवतरण तुम्हारा है ´दर्शन, हर पहलू का विश्लेषण तुम्हीं जगत के पालनहार, पालनहार तुम्हें नमन है बारंबार, तुम्हें नमन है बारंबार।। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी. भाषाविज्ञान सर्टिफ...
अवध में राम आए हैं
मुक्तक

अवध में राम आए हैं

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** अदभुत दिवाली रंग जो हम त्रेता युग पाए हैं। लाखों दीप ज्योति गगमग, अवध में राम आए हैं। ढोल नगाड़े नारों से, राम लोक शोभा जुलूस, सनातन संस्कृति साक्षी, जन मानस ही लाए हैं। पूज्य राम सबूत मांग, अनर्गल संवाद ढाया। तथ्य विहीन संवाद को, यथा समय जवाब लाया। ब्रम्हांड में बुराई का, परिणाम मिलता जरूर, सनातन को झूठ कहकर, पश्चाताप तक ना भाया। हिंदू तीज त्योहार जो, सदा फिजूल बताए हैं। सिद्ध हुआ वे रावण मन, कलयुग में भी छाए हैं। अदालत फैसले तक जो, पांच सदी भी गुजर गई, अतः सत्यापित खुद होता, तम को सदा हराए हैं। नकारने वाले कहते, राम पर हक सभी का है। प्रभु श्री राम दयालु भी, किस्सा मानस ग्रंथ का है। शरणागत पर करें कृपा, सीख यदि वांछित लेंगे, छल कपट विरोध में शक्ति, सत्ता रण प्रपंच का है। राम नाम की गूंज सुनी, दिव्य भव्य ...
उम्मीदों के दीपक जलाये
कविता

उम्मीदों के दीपक जलाये

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** मन के अंधियारे मे उम्मीदों के आश लगाये संवर जाये जीवन ऐसा कुछ हम कर जाये उम्मीदों के दीपक संग ही दीपावली मनाये आओ किसी के जीवन में खुशहाली लाये आपस के अब तो सारे राग द्वेष मिटा दें जन-जन मे नवीन अब अनुराग जगा दें दिल से दिल के अब तो सारे भेद मिटाये आओ किसी के जीवन मे खुशहाली लाये अपनों को अपनेपन का अब अहसास दें बदलती जीवन को अब नव-नव आश दें चलो सब खुशियों की फुलझड़ीयाँ जलाये आओ किसी के जीवन मे खुशहाली लाये समता, ममता व एकता के अब भाव जगे मानव हित में मानवता के नव अंकुर जगे मन से मानवता की ही अब ज्योति जलाये आओ किसी के जीवन मे खुशहाली लाये मृगतृष्णा में भटक रहें सब मानव अब तो रिश्तों का कंही कुछ लिहाज नहीं अब तो चलो रिश्तों में फिर से नई मिठास जगाये आओ किसी के जीवन मे खुशहाली लाये राग, द्वेष, मद...
फिर आई है हिचकी
कविता

फिर आई है हिचकी

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** स्त्री हिचकियाँ की सखी साथ फेरो का संकल्प दुख-सुख की साथी एकाकीपन खटकता परछाई नापता सूरज पहचान वाली आवाजों में खोजता मुझे दी जाने वाली तुम्हारी जानी पहचानी पुकार आँगन-मोहल्ले में सूना पन विलाप के स्वर तस्वीरों में कैद छवि सदा बहते आंसू तेज हो जाते तुम्हारी पुण्यतिथि पर। दरवाजा बंद करता खालीपन महसूस अकेलापन कचोटता मन बिन तुम्हारे हवा से उत्पन्न आहटे देती संदेशा मै हूँ ना मृत्यु नाप चुकी रास्ता अटल सत्य का किन्तु सात फेरों का संकल्प सात जन्मों का छोड़ साथ कर जाता मुझे अकेला फिर आई है हिचकी क्या तुम मुझे याद कर रही हो? परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन...
मुस्कानों का गीत
गीत

मुस्कानों का गीत

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** मुस्कानों को जब बाँटोगे, तब जीने का मान है। मानवता जीवन की शोभा, मिलता नित यशगान है।। दीन-दुखी के अश्रु पौंछकर, जो देता है सम्बल पेट है भूखा, तो दे रोटी, दे सर्दी में कम्बल अंतर्मन में है करुणा तो, मानव गुण की खान है। मानवता जीवन की शोभा, मिलता नित यशगान है।। धन-दौलत मत करो इकट्ठा, कुछ नहिं पाओगे जब आएगा तुम्हें बुलावा, तुम पछताओगे हमको निज कर्त्तव्य निभाकर, पा लेनी पहचान है। मानवता जीवन की शोभा, मिलता नित यशगान है।। शानोशौकत नहीं काम की, चमक-दमक में क्या रक्खा वहीं जानता सेवा का फल, जिसने है इसको चक्खा देव नहीं, मानव कहलाऊँ, यही आज अरमान है। मानवता जीवन की शोभा, मिलता नित यशगान है।। ख़ुद तक रहता है जो सीमित, वह बिरथा इंसान है अवसादों को अपनाता जो, वह पाता अवसान है अंतर्मन में नेह ...
दीपों का त्यौहार
कविता

दीपों का त्यौहार

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** दीपों का त्यौहार, जीवन का सिंगार, आयी दिवाली। गाँवों, नगरों के घरों में, चारों तरफ छाई है खुशहाली।। अत्याचारी रावण को मार कर, लौटे जब राजा राम। अयोध्या वासी प्रसन्न हुए, देख कर परम सुख धाम।। बुराई पर अच्छाई और अँधकार पर प्रकाश की जय। अज्ञान पर ज्ञान और निराशा पर आशा की विजय।। घी के दीपक जल उठे, बजने लगे ढोल और नगाड़े। गूँजे जय श्री राम के नारे, फूटने लगे धड़ाधड़ पटाखे।। आसमान में लहराने लगे, ज्ञान, सेवा का भगवा ध्वज। भरत दौड़ रहे थे खुले पाँव, राजीव से मिलने को उद्यत।। माताएँ आँचल फैला रही, सिर में छाया करने उत्सुक। प्रजा आँखों में खुशी आँसू, ईश्वर को देख हुए भावुक।। सजादो पूरे भारत को, दशरथनंदन रामराज ला रहे हैं। झूमो रे! नाचो रे! गाओ रे! मेरे प्रभु श्रीराम आ रहे हैं।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : म...
मताधिकार
कविता

मताधिकार

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** मतदान के लिए नहीं मताधिकार प्रयोग के लिए आगे आएं, सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य को सोच समझकर संपन्न कराएं, बाद के पांच साल तक रोने चिल्लाने की आवश्यकता न रहे, मैंने गलत व्यक्ति को वोट दे दिया कोई ये न कहे, धर्म,जाति,सम्प्रदाय के नाम अत्याचारी न रहे, हम जुल्म ही क्यों सहें, अभी लोटेंगे दर दर पैरों में, बाद प्यार लुटाएंगे गैरों में, पैर पकड़ने वाला कब गर्दन पकड़ ले, लोकतांत्रिक मूल्यों को अपने विचारों से कोई कब जकड़ ले, संविधान की रक्षा के लिए सब खुलकर आगे आएं, खुद जागें और लोगों को जगाएं, बढ़ चढ़ कर संवैधानिक दायित्व निभाएं, उचित व्यक्ति को प्रतिनिधित्व दिलाएं, आओ मताधिकार के कर्तव्य को निभाएं, अपनी आवाज को सदन तक ले जाएं। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र...
रोशनी का त्योंहार
कविता

रोशनी का त्योंहार

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** दीपावली है रोशनी का त्योहार इसे मनाये दिल के अंदर का अंधेरा हटाये। दियो से जगमग रोशनी आती है मन को प्रफुल्लित कर जाती है। किसी गरीब के घर को भी करें रोशन करने का प्रयास तभी सच्ची खुशी का होगा आपको आभास। अंधेरो को निगलती है रोशनी काश सबके दुखों को निगल जाय रोशनी। एक दीपक भी अंधेरे को खा जाता है। रोशनी देकर आपके जीवन में बहार लता है। इस दीपावली पर नफरतों के दिये जलाओ और। खुशियों का प्रकाश पाओ। परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करता हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं,...
जादू नगरी
बाल कहानियां

जादू नगरी

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** दीवाली के लिए मम्मा ने गुजिया-लड्डू बनाकर ऊँची रेक पर रख दिए। नीनू बेचारी... गुड़िया बहियन की छोटी गुजिया केही विधि पाए ? उसके सारे प्रयास विफ़ल, रेक तक पहुँचने के। नीनू ललचाते हुए माँगती है, "बस एक गुजिया दो न मम्मा, सच्ची बस एक ही।" माँ ने फटकार लगाई, "बिल्कुल नहीं, भोग के बाद मिलेगा समझी।" नन्ही नीनू मिठाई का सोचते-सोचते निंदिया रानी की दुलारी हो गई। और सपने में जादूनगरी पहुँच गई। वहाँ का नज़ारा देखकर वह हैरान... एक अनूठे पार्क में नितांत अकेली चहलकदमी कर रही है। पेड़ो पर फलों के साथ मिठाइयाँ भी लटक रहीं हैं...रसगुल्ले, जलेबी, गुलाबजामुन वगैरह-वगैरह और... उसकी मनपसन्द रंगबिरंगी टॉफियाँ। नीनू की तो भई बल्ले-बल्ले हो गई। वह समझ नहीं पा रही कि क्या करें, "चलो पहले सब देख लूँ, फिर खाने का इंतज़ाम करती हूँ।" ज्यों ही उसने सामने द...
मानवता की अलख जगाते सुधाकंठ डॉ. भूपेन हजारिका
आलेख

मानवता की अलख जगाते सुधाकंठ डॉ. भूपेन हजारिका

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** मनुष्य का जीवन दुख विपदाओं, नाना समस्याओं का संगी है। गौर करें तो उलझनें सुलझाने में अक्सर जटिल रूप धारण करती है, यानि जीवन को अंतहीन समस्याओं से मुक्ति नहीं मिलती है। विवेकपूर्ण निर्णय से सरल जीवन जीने की कला में सुख की कलाएं प्रत्यक्ष होती है। बस आपाधापी जीवन संग्राम में लक्ष्य प्राप्ति हेतु लगन, इसमें बतौर संकल्प व एकाग्रता नितांत जरूरी है। मनुष्य जीवन कठिन सँघर्षरत तो है ही, सरलता, कुशलता से खुशहाली में ढालना एक विशेष कला है इसमें ढालकर व्यक्ति सुख की अनुभूति का अहसास करता है असम के सुविख्यात गायक, गीतकार, संगीतकार, कवि, साहित्यकार, सुधाकंठ डॉ भूपेन हजारिका में यह विशेषता अक्सर झलकती थी। कठिन डगर में बिन लड़खड़ाये खुशहाली से जीवन बिताये, अपने अंदर छुपी तमाम् कलाओं, प्रतिभाओं को जनमानस के बीच सरलता सादगी जीवन में पारदर्शी ...
गुंजलक
आलेख

गुंजलक

शांता पारेख इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** एक बिटिया को, उसकी भुआ ने बताया तू जब छोटी थी तुझे बाल्टी में बिठा के नहला देते, गर्मी की छुट्टियां होती तो, तुम बाहर निकलने को तैयार ही नही होती, एक बार बाहर निकालने को तेरे ऊपर पानी उछाला तो बहुत रोई बहुत रोई हम समझ नही सके तुझे क्या हो गया। वही लड़की बड़ी होकर पानी से बहुत डरती थी। कोई नदी तालाब झरना दिख जाता तो आंख बंद कर लेती। पिकनिक पे सब नहाते तब भी वह बाहर खड़ी रहती थी। बस बरसात से कोई परहेज न था। बाद में उसके सिवा सबने तैरना भी सीख लिया। विवाह के बाद हनीमून पे पहाड़ गई तो भी उसके पति आश्चर्य में थे कि झरना देख आंख बंद क्यों कर लेती हो, बोटिंग भी नही की, उनको बड़ा अजीब लगा क्यों कि ट्रिप में अधूरा पन जो था। दो तीन वर्ष बाद पीहर के विवाह समारोह में रात की महफ़िल में वही बाल्टी वाला किस्सा भुआजी ने सुनाया, पति को एकदम रहस्य पकड़ ...
लोकतंत्र का पर्व
लघुकथा

लोकतंत्र का पर्व

माधवी तारे लंदन ******************** “ये लोकतंत्र का पर्व है सामने काल खड़ा है तू वोट कर, तू वोट कर” आशुतोष राणा जी की प्रभावी वाणी में ये कविता सुनते-सुनते मुझे १९९८ में लोकसभा मतदान का दिन याद आ गया। सड़कों पर समूहों में चर्चा करते हुए लोग, बूथ पर जाकर मतदान कर रहे थे। तो कई लोग इसे छुट्टी का दिन समझ कर घूमने भी चले गए थे। सुहासिनी के घर के सभी लोग मतदान कर आए थे। उसके पति कैंसर जैसी बीमारी से जूझ रहे थे और कमजोरी और दर्द से कराहते हुए बिस्तर पर लेटे थे। वह उनके जागने से पहले ही मतदान कर आई थी। कुछ समय के बाद सुहासिनी ने उनकी आवाज सुनी – “अरे मेरा सफारी सूट तो लाओ जरा मैं मतदान के लिये जाने का सोच रहा हूं कहीं मेरे एक मत का अभाव पार्टी पर भारी न पड़ जाए।” उसने कहा – “आप कैसे जा सकते हैं, ज़रा खुद की स्थिति तो देखिये” पर आत्मविश्वास से वे बोले- “मेरी जाने की इच्छा है” “दो तीन म...
मर्यादा कहने-सुनने की (ताटंक)
कविता

मर्यादा कहने-सुनने की (ताटंक)

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** कहने सुनने वाली भाषा, शान मर्यादा रखती है। केवल कहने सुनने से जो, दुख भी आधा करती है। बातचीत ऐसा मसला जो, विकास कार्य को रचती। युद्ध क्रुद्ध दिशाहीन कभी, अनुचित चाल चल पड़ती। कहा सुनी से सीधा आशय, विध्वंस को इंगित करना। कानाफूसी अंदाज रोग, आधार अलग ही रहना। उसी मोड़ दोराहे जानो, विघटन कारण बन सकता। कहना सुनना पृथक रहकर, बातचीत धारण करता। स्वस्थ वार्तालाप बताता, सम्मान से दुनिया चलती। बातचीत ऐसा मसला जो, विकास कार्य को रचती। युद्ध क्रुद्ध दिशाहीन कभी, अनुचित चाल चल पड़ती। तंज प्रहार बातचीत में, सुबह-सुबह की राधे-राधे। जो वाचाल मौन हो जाए, टीस चुभन से आधे आधे। शुभ घड़ी में मूक परिभाषा, गलत समझना परंपरा। हारे स्वस्थ कुशाग्र मनुज, विचलित जो था हरा भरा। दो पाटन बिच साबुत कैसे, पिसने की चाकी चलती। ब...
ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी
आलेख

ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ********************  सभी को ज्ञात होगा कि रामचरितमानस गोस्वामी तुलसीदास जी ने अवधी भाषा में लिखी है। नारी अवधी भाषा का शब्द है जो नाली शब्द का अपभ्रंश है। नारा जिसे हिंदी में नाला कहते हैं, का अर्थ अवधी भाषा ‌मे है जलवाहक, जिसमें दोनों ओर बांध (ताड़ना का एक अर्थ बांधना भी है) होते हैं। बांध न हो तो जल प्लावन हो जाए। उसी का स्त्रीलिंग है नारी। समुद्र ने स्वयं अपने लिए नारा ‌शब्द का प्रयोग किया। काव्य में तुकबंदी के लिए तुलसीदास जी ने नारा का नारी लिखा। इतने, परमज्ञानी, स्वयं अपनी पत्नी का इतना सम्मान करने वाले, स्त्री जातिमात्र (शबरी को माता कहकर पुकारा है भगवान राम ने रामचरितमानस में) का आदर करने वाले भक्तज्ञानी गोस्वामी तुलसीदास जी यह नहीं जानते थे कि ५०० वर्ष बाद भारतीयों के अज्ञान की पराकाष्ठा होगी, व उनके नारी शब्द के अर्थ का इतना बड़ा...
आदमी
कविता

आदमी

कु. आरती सिरसाट बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) ******************** कभी मशहूर तो कभी बदनाम आदमी...! परेशानियों का बोझ लिए खड़ा आदमी...!! दिन के उजालों में अपने आंसू छिपाता आदमी...! रात के अंधकार में खुद को तम में भीगाता आदमी...!! मंजिल की चाह में जवानी को मरता आदमी...! सफर का आनंद लिए बिना जीता आदमी...!! कभी जागा तो कभी सोया आदमी...! खुद में ही खोया खोया आदमी... बेवफाई के बाज़ार में वफ़ा की गुहार लगता आदमी...! अपनी औकात से ज्यादा खुद को दिखाता आदमी...!! अपनी गलतियों पर पर्दा डालता आदमी...! ओरों की गलतियों को बेपर्दा करता आदमी...!! कभी मशहूर तो कभी बदनाम आदमी...! परेशानियों का बोझ लिए खड़ा आदमी...!! परिचय :- कु. आरती सुधाकर सिरसाट निवासी : ग्राम गुलई, बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना...
इसके जद में सब आयेंगे
गीत

इसके जद में सब आयेंगे

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** तूफ़ानों-सी बढ़ी रैलियाँ, समरसता का वंश मिटाने। इसके जद में सब आयेंगे।। सघन तिमिर है आम्र वृक्ष भी, लगे खड़ा हो प्रेत वहम का। संस्कारित कुछ शृंग-श्रेणियाँ, खोज रही अस्तित्व स्वयं का। अनुबंधों की धुँधली शर्तें, बनकर मौत खड़ी सिरहाने।। इसके जद में सब आयेंगे।। सावन के घन संभाषण से, कर देते हैं जादू-टोना। अलगावों के दावानल में, सुलग उठा है कोना-कोना।। विश्वासों की मीनारों में, दिखते हैं अब रोग पुराने।। इसके जद में सब आयेंगे।। अट्टहास मौसम का सुनकर, पंछी होने लगे प्रवासी। धुआँ-धुआँ है सभी दिशाएँ, आँखों में निस्सीम उदासी।। जिह्वा पर ताले के भूषण, आजादी पर मारे ताने।। इसके जद में सब आयेंगे।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना ...
प्रकाश का महापर्व
आलेख

प्रकाश का महापर्व

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** धन त्रयोदशी से पांच दिन दीपावली महापर्व आरम्भ होता है। इस पर्व का साल भर बेसब्री से इंतजार होता है। ये सनातन धर्म का महा उत्सव है। रूप चौदस, महालक्ष्मी पूजन, गोवर्धन पूजा से होते हुए पांचवें दिन भाई दूज पर पूरा होता है। लेकिन उसका आनन्द मन में तुलसी विवाह तक बना रहता है। भारतीय संस्कृति में इस त्यौहार की महत्ता बहुत अधिक है। यही जीवन का सर्वोच्च आनन्द बिंदु है। खुशी, विजय, उल्लास, सामाजिक जुड़ाव और उजास के इस पर्व में प्रेम, स्नेह से मिलन समारोह मनाये जाते हैं। अनेक वर्षों के मन मुटाव भी मीट जाते हैं। भाई-बहन का अटूट प्रेम का प्रतीक भाई दूज पर्व पांच दिन की खुशियां बटोरकर झोली में डाल देता है। बीते दो वर्षों में इस पर्व पर कोरोना रुपी दानव का साया छाया हुआ था। इस संक्रमण के रोग के कारण हम इस उजास के पर्व को उत्साह से नहीं मना पाये ...
अरे चाँद तू मत इतराना
कविता

अरे चाँद तू मत इतराना

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** ओ अंबर के चाँद सलोने, वसुधा पर आ जाओ। जो सुहागिनें बाट जोहतीं, उनको मत तरसाओ। पावन पर्व, चौथ करवा का, सब सुहागिनें करतीं। पार्वती-शिव पूजन करके, खुशियाँ दामन भरतीं। बड़ा भाग्यशाली है चंदा, गोरी तुझे निहारे, जल्दी से तू सम्मुख आजा, करना नहीं किनारे। तुझे देख कर सभी सुहागिन, मंद-मंद मुस्कातीं। छलनी में दीपक रोशन कर, तुझ पर वारी जातीं। अरे चाँद तू मत इतराना, उनको नहीं सताना। वरना तुझको पड़ जाएगा, बिना बजह पछताना। एक चाँद, पहले से उनके, घर में ही रहता है। तू केवल अंबर में रहता, वह दिल में रहता है। रात अमावस जब-जब आती, तू गायब हो जाता। इतराने के कारण ही तू, नभ में ही खो जाता। उनका चाँद साथ में रहता, कभी नहीं मुख मोड़े। चाहे जैसी दशा-दिशा हो, कभी साथ ना छोड़े। सभी सुहागन तुझे पूजती...