हाँ ! मैं लड़की हूँ
शैलेश यादव "शैल"
प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)
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हाँ! मैं लड़की हूँ।
हमारे जन्म लेते ही,
घरवाले हो जाते हैं मायूस,
सोहर नहीं होता हमारे जन्म पर,
नहीं बाँटी जाती मिठाइयाँ,
कभी तो इस जहाँ में आने से पहले ही,
भेज दी जाती हूँ दूसरे जहाँ में,
हमें अपनो द्वारा ही बोझ समझा जाता है,
अपनों के द्वारा ही सुनती बहुत घुड़की हूँ,
छोटी हूँ, मझली हूँ या मैं बड़की हूँ,
हाँ ! मैं लड़की हूँ, हाँ! मैं लड़की हूँ।
संसार के श्वानों की आंखों में गड़ती हूँ,
दिन-रात गिद्धों से लड़ती झगड़ती हूँ,
सारा काम घर का मैं ही तो करती हूँ,
फिर भी दुनिया से मैं ही डरती हूँ,
जहाँ देखें वहीं, खाती मैं झिड़की हूँ
हाँ ! मैं लड़की हूँ, हाँ ! मैं लड़की हूँ।
मुझे पराया धन माना जाता है,
मुझे दान किया जाता है,
कभी सारी सभा के बीच में
अपमान किया जाता है,
कभी सौंदर्य का कभी पीड़ा का
गुणगान किया जात...





















