मित्र बनकर मित्र ही …
प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’
जौनपुर (उत्तर प्रदेश)
********************
मित्र बनकर मित्र को ही मित्र है छलने लगा
खास ही अब राह का रोड़ा यहाँ बनने लगा
पूर्ति पिपासा की ही अब आदमी का ध्येय है
आजकल अनुचित उचित का भेद ही मिटने लगा
बढ़ रहा है जाति मज़हब का बहुत उन्माद है
आदमी इस दृष्टि से हर व्याख्या करने लगा
सत्य औ आदर्श को लगने लगा है अब ग्रहण
द्वेष दोहन दम्भ हिंसा का चलन बढ़ने लगा
तौलते संबंध हैं भौतिक तुला से आजकल
निष्ठा होती स्वप्न पारा स्वार्थ का चढ़ने लगा
आदमियत और अब उपकार लगता व्यर्थ सा
झूठ की बुनियाद पर ही है महल तनने लगा
शांति औ सद्भावना का लोप होता जा रहा
पाशविकता बढ़ रही सौहार्द है घटने लगा
हर तरफ संशय का है सम्प्रति यहाँ वातावरण
आदमी खुलकरके बातें करने में डरने लगा
आस्तीनों में छिपे होते हैं विषधर हैसही
हम समझते थे जिसे साहिल वही डसने लगा
...






















