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कविता

मैं जलती रही
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मैं जलती रही

डाँ. बबिता सिंह हाजीपुर वैशाली (बिहार) ******************** जग उठे कब ज्ञान इस संसार में प्रार्थना के पुण्य बल वरदान में साधना मेरी सफल हो जाएगी आस ले में रोशनी जलती रही। दूर हो तुम लौ दीया की मैं बनी धैर्य को बाँधे उम्र की डोर से संग मेरे कारवां चलता रहा आस ले मैं रोशनी जलती रही। कर निछावर अंतर तम से शब्द-शब्द चैन की आहुति दे कर ज्ञान यज्ञ हो के विह्वल मान को रच कर सदा आस ले मैं रोशनी जलती रही । मूल्य रस से पाल कर स्वाभिमान दे दीक्षा बस सम्मान का मुझको मिले जल उठो तुम ज्ञान के भंडार से आस ले मैं रोशनी जलती रही। नवकिरण बन जाओ तुम प्रभात की कुर्बान हो देश जग मान पर स्तंभ हो तुम भारत के आधार हो आस ले मैं रोशनी जलती रही। परिचय :- डाँ. बबिता सिंह निवासी : हाजीपुर वैशाली (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचन...
महान देश
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महान देश

डॉ. अर्जुन गुप्ता 'गुंजन' प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** हरी भरी वसुंधरा सदा हरा मचान है। सुनील आसमान है नया-नया वितान है॥ नगाधिराज है यहाँ बड़ा अभेद्य वेश में। पयोधि पांव धो रहा सदा महान देश में॥ पठार भूमि है कहीं कहीं कछार है धरा। उपत्यका यहाँ कहीं कहीं धरा हरा भरा॥ घने कहीं कहीं अगम्य वन्य हैं बड़े यहाँ। सदा हरा वितान और वन्य कंटिला जहाँ॥ विरान थार है यहाँ कहीं कहीं पहाड़ है। विभिन्न जीव हैं जहाँ कहीं कहीं दहाड़ है॥ कहीं सुरम्य घाटियाँ कहीं कहीं अगम्यता। यही महान देश है भरी सदा सुरम्यता॥ नयी बयार है अभी नयी नयी उमंग है। नवीनता लिये हुये अभी नयी तरंग है॥ नयी सवेर है उठो सदा बढे चलो अभी। नवीन पंथ पे सदा चलो बढो अभी सभी॥ स्वदेश के सिपाहियों अदम्य हो सदा सभी। प्रवीर शूर साहसी बढ़े चलो सभी अभी॥ महान देशभक्तिपूर्ण भावना सदा रहे। सदा स्वदेश के लिये ...
पावस के सवैया
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पावस के सवैया

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** मन को तन को, नव जीवन दे, बरसात बहार सुहावन है। जब नीर हमें सबको सुख दे, तब गीत जगे मनभावन है। बरसे बदरा हम भीग गए, पर नीर सदा अति पावन है। सुख की बगिया मन फूल खिलें, बरसे सँग नेह सुसावन है। मन भीग गया,तन भीग गया, अब गीत जगा,यशगान नया। बरसा बहकी,बरसा चहकी, हर एक कहे वरदान नया। बिजली चमकी, बिजली दमकी, बरसे अब तो अहसान नया। हमको तुमको, इनको उनको, भर देे, नव दे, अब प्रान नया। हम जीत गए, हम प्रीत भए, अब तो हर ओर लुभावन है। कितना सुखदा, हर ली विपदा, नव आस सजा यह सावन है। अब रात गई, वह बात गई, नव रीति यहां अब आवन है। बरसे बदरा, हर ओर बही, जल की रसधार सुहावन है । अब गीत लबों पर गूँज रहा, यह है महिमा अति मौसम की। परदेश गए बलमा जिनके, उनको अब आग पले ग़म की। नव माप लिए,नव ताप लिए, बदरा हर बात सदा ...
सारे धर्म नेक है
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सारे धर्म नेक है

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** सभी धर्मो का करे सम्मान। भारतीय संविधान देता है यह पैगाम। हमारे देश की सबसे बड़ी विशेषता धर्म निरपेक्षता। एक देश-अनेक धर्म करते रहो अच्छे कर्म। मत पालो भ्रम अच्छे है सारे धर्म। धर्म निरपेक्षता का उदाहरण भारत में पाया जाता हैं। यहां हर मुस्लमान भी दीवाली मनाता है। पाले अपने धर्म को और करे दूसरो का सम्मान सब एक दूसरे मे मिलकर रहें हिंदू हो या मुसलमान। सारे धर्म अच्छे है सारे धर्म नेक है। एक है भारत देश पर यहां धर्म अनेक है। गुरुद्वारे के लंगर में सभी लोग जाते है। ईद की सेवईया हिंदू भाई भी खाते हैं। अपने धर्म को शिद्दत से निभाये। न करे ऐसे काम कि दूसरे को तकलीफ हो जाय। कहीं अली की जय है कहीं बजरंगबली की जय है। हमारे देश में तो सारे धर्मो की जय है। परिचय : डॉ. प्रताप...
अधूरी ख्वाहिशें
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अधूरी ख्वाहिशें

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** हर दिल में पलें ख्वाहिशें कई, कुछ कही, कुछ अनकही सी, कुछ उजागर, कुछ राज़ सी, कुछ पूरी, कुछ अधूरी सी। कुछ बन पाती है हकीकत, कुछ दबी रह जाती है मन में, कुछ को मिल पाती है मंजिल, कुछ भटक जाती है सफर में। अधूरी ख्वाहिशें तोड़ देती है, जीवन का रुख मोड़ देती है, शांत मन को झकझोर देती है, अनजानों से नाते जोड़ देती है। हर ख्वाहिश पूरी हो, जरुरी तो नहीं, तेरे रुक जाने से, थमती दुनिया नहीं, टूटे इक सपना गर, नया सपना बुन, इक रही अधूरी तो क्या, नई ख़्वाहिश चुन। पूरा करने ख़्वाहिश, जी जान लगा दे, कर प्रयास, पूरा ध्यान लगा दे, फिर भी रहे यदि, ख़्वाहिश अधूरी, समझ प्रयासों में रह गई कुछ कमी। परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्ष...
मैं हूँ ना
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मैं हूँ ना

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** आंधी और तूफ़ानों ने उजाड़ दिए हैं ज़न जीवन वृक्ष अटल एक डटा हुआ पत्ता एक ही बचा हुआ अकेला, कांपता, थरथराता ना उम्मीद हो चला है शनैः-शनैः हिलता कुछ अगल बगल ढूँढता गहन चिंतन में डूबा हुआ, ठौर ठिकाना गुनता हुआ निराश हो चला है, किस्मत से हारा हुआ सा है नई कोपलें तो आएँगी, पर उनके साथ बसेगा कौन अंतर्मन से भयभीत भी है, फिर भी उम्मीद की किरण लिए हुए उस इकलौते पक्षी को संपूर्ण आस से कहता है निडर बनो तुम डटे रहो, धीरज से धैर्य धरो वृक्ष डरता हुआ, संकुचित मन से विश्वास के दो बोल बोल ही जाता है "मैं हूँ ना" ... !! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र, पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार) निवासी :...
गर आप न होते
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गर आप न होते

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** आप न होते तो हम होते जरूर, मगर क्या कर पाते किसी भी बात पर गुरूर, जिंदा लाशों की ढेर में एक लाश हम भी होते, जिंदगी गुजर जाता अपने होने पर रोते-रोते, जीवित होने पर घुटन होता, खाने को सिर्फ जूठन होता, रूखे भोजन संग गाली भी खाता, शोषक को कहते भाग्य विधाता, सहना पड़ता दिन भर अपमान, नहीं मिल पाता कभी सम्मान, ना पढ़ पाते ना गढ़ पाते, अस्वच्छता संग ही सड़ जाते, बिना ठौर रह जाते रोते, गर आप न होते आप न होते, क्या पढ़ पाते क्या लिख पाते, चार अक्षर क्या हम सीख पाते, पाबंद होकर मनु विधान के सूट बूट में क्या दिख पाते, क्या होती तब अपनी इज्जत, सहते रहते कितने जिल्लत, नहीं कभी भी सर उठाते, उनसे कैसे हम नजर मिलाते, आप न होते गर मेरे मालिक संविधान हम कैसे पाते, समता और बंधुत्व नाम की माला हम कैसे पिरोते, ग...
किसे जगत से क्या मिलना है!
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किसे जगत से क्या मिलना है!

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** किसे जगत में क्या मिलना है; 'न निश्चित-समय, न दिन-रातें!!' प्रेम - प्यार बस कहने को है; 'कैसा-चॉद', चॉद की बातें !! बचपन से कितने मित्र मिले; सपनों के कितने चित्र खिले! भॉति-भॉति के मुख-दर्शन में; 'मन-लूटे-हुए-चरित्र' मिले! सबकी-सब बहुरंगी-माया; पर किससे कितना निभ पाया! जहॉ-जहॉ थी प्रेमिल बातें; वहॉ-वहॉ विरहा की छाया! तब वो लगता कितना सच था: रहे राग बस कल्पित गाते! 'प्रेम-प्यार' बस कहने को है; 'कैसा-चॉद', चॉद की बातें!! 'दीर्घ-नयन से दृष्टि व डोरे; काले - सर्पिल - केश - घनेरे! दमकति-दशन, कपोलन-गोरे; सुमुखि-सलोनी, रूपसि-भोरे!' उस अवसर सब रही कल्पना... प्रिय-दर्शन की विविध-अल्पना! सदा खोज वह उत्तम सुख की जिसमें मन की व्यर्थ जल्पना..! आज सोच में डूब-डूबकर ऑसू में कंकर ही लाते! 'प्रेम-प्यार' ब...
मेरी माँ
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मेरी माँ

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** हर पल जीना हर पल मरना, संघर्ष भरा जीवन है मां का, एक पल में खुशियां है उसके, एक पल गम भरा हे माँ, मन की बातें मन में रखती, चुप चुप कर कोने में रोती, एक आंख में खुशियां उसके, एक आंख में आंसू है मां, संघर्ष भरा जीवन है मां का, कहीं कुआं कही खाई है, फिर भी खुशियां है झोली में, प्यार भरा आंचल हे माँ, नहीं सिलवटे मस्तक पर उसके, आंखों में है नेह भरा, प्यार की प्रतिमा है मां मेरी, आंचल मे हे प्यार भरा, मेहनती विवेकी अदम्य हे साहस, निडर बहादुर सुंदर है मां, पढ़ी-लिखी अनपढ़ कैसी भी, मन को पढ़ लेती है मां, बच्चों का विश्वास मनोबल, मन की बातें समझती मां। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धिया...
दिल बिखर जाता है
कविता

दिल बिखर जाता है

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** गम कभी मेरे यहां तुम गर जरा पहचान लो। है मुझे तकलीफ अब कितनी कभी तुम जान लो।। दिल बिखर जाता है मेरा टूट कर जोड़ो इसे। पर कभी हारा नहीं यह देख इसका ज्ञान लो। आस छूटी है दिखा दे रोशनी की अब प्यार से। उलझनें ही है निशानी प्रेम की बस मान लो।। जिंदगी की कशमकश ने भी मुझे जकड़ा यहां। फिर रही मारी हुई सी अब जरा संज्ञान लो।। दर्द दिखता है सभी को तुम भला क्यों नासमझ हो। आज फिर से तुम यहां पर प्रेम का ही दान लो।। हो रही बेचैनियां है अब फिर मिला लो नैन तुम। अब कहो अपनी भलाई है इसी में ठान लो।। मान जाओ बात मेरी कह रही सीमा तुझे। हम बने हैं एक दूजे के लिए ही मान लो। परिचय :-  सीमा रंगा "इन्द्रा" निवासी :  जींद (हरियाणा) विशेष : लेखिका कवयित्री व समाजसेविका, कोरोना काल में कविताओं के माध्यम ...
सत्ता का ख्वाब
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सत्ता का ख्वाब

डॉ. कांता मीना जयपुर (राजस्थान) ******************** सत्ता में वापस से आने का ख्वाब, उस मगरूर नशे में चूर, राजा के सीने में कुछ इस तरह से पल रहा था वो सिंहासन बैठा हट्टाहास कर रहा था वो जल रहा था या जलवाया जा रहा था इधर उधर की बातों से भोली भाली जनता का मन बहलाया जा रहा था। मुफ्त वाली रेवड़ियों का थेला हर किसी के हाथों पकड़ाया जा रहा था। सत्ता के गलियारों में वापस आने की खातिर मसला कुछ इस तरह से सुलझाया जा रहा था। भाइयों को भाइयों से आपस में लड़वाया जा रहा था। मानवीयता भी अब यहां शर्मसार थी। यह उसकी जीत के बाद की सबसे बड़ी हार थी। अमृत काल में यह कैसी जहर भरी बौछार थी। बेआबरू हो चुके थे जो पहले ही, उनकी जुबान लाचार थी। इंसानियत भी अब यहां तार तार थी। मेरी कलम भी अब रो रही थी । शायद लोकतंत्र की ये सबसे बड़ी हार थी। मां भारती की आंखे भी जार जा...
संरक्षण
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संरक्षण

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** कभी कभी लगता है मन के भावों ने ठिकाना बदल दिया हो जैसे सभी शब्द भावनाओं के पिरोए जा चुके हैं सभी अश्रु धाराएं बह चुकी हो जैसे सामर्थ्य और ताकत आजमाए जा चुके हैं प्रेम और करुणा का रस सूख गया हो जैसे सभी विकल्प ढूंढे जा चुके हैं राहें भरमाई जा रही हो जैसे वक़्त का पहिया पूरा घूम चुका है समय अधिक शेष नहीं हो जैसे भाव शून्य, दिशा शूलय, ईच्छा शक्ति टूटती सी क्या अब पुकार सुनेगा कोई डर की, रूदन की, क्रंदन की, चीख और पीड़ा, आत्मबल झकझोर रहा, नए शब्द ढूंढे जाएंगे, हिम्मत नहीं हारेंगे नई ऊँचाइयों पर चढते जाएंगे, अश्रु नहीं आस्था के गीत गाएंगे हो भले बाधाएं अनगिनत, जीवों का जीवन सुगम बनाएंगे इतिहास बन जाएंगे करुणा और संरक्षण का इतिहास बनाएंगे!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्...
नयन
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नयन

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** नीर भरे नयन पलकों पर टिके रिश्तों का सच बिन बोले कहते यादों की बातें ठहर जाते है पग सुकून पाने को थके उम्र के पड़ाव निढाल हुए मन पूछ परख रास्ता भूलने अब लगी राहें इंतजार की रौशनी चकाचौंध धुंधलाए से नैन कहाँ खोजे आकृति जो हो गई अब दूरियों के बादलों में तारों के आँचल में निगाह से बहुत दूर जिसे लोग देखकर कहते वो रहा चाँद परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेखनीयता...
खुद से धोखा मत करना (ताटंक)
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खुद से धोखा मत करना (ताटंक)

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** लक्ष्य भेदना दुष्कर समझें, सब्र साधना ही धरना। लक्ष्यों के जानो रूप हजार, मनचाहा पहले रखना। पथ भ्रष्ट जन की अनदेखी, करके तुम आगे बढ़ना। जब राह चुनी अंतर्मन से, खुद से धोखा मत करना। सत्य राह में बाधा देने, समक्ष परोक्ष चले आते। वो कभी आपको भटकाते, सहज रूप में बहकाते। दिल दिमाग का गोबर होता, शंकाओं में घिर जाते। लक्ष्य दाल संग भात बैठे, मुसरचंद दूर फेंकना। पथ भ्रष्ट जन की अनदेखी, करके तुम आगे बढ़ना। जब राह चुनी अंतर्मन से, खुद से धोखा मत करना। लक्ष्य साधने की कला याद, छत पे थी घूमती मछली। नीचे बहते जल में मछली, बिंब आंख में हां कर ली। देश_देश के वीरों को सब, देख रहे आई मतली। साध्य साधन साधक कहते, सीख सदा अर्जुन रखना। पथ भ्रष्ट जन की अनदेखी, करके तुम आगे बढ़ना। जब राह चुनी अंतर्मन से, खुद से धोखा मत करना। द्वे...
बिखरे सपनें
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बिखरे सपनें

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** बिखरते आये हैं सपनें सदा से, दुश्मन मोहते आये हैं अपनी अलग अलग अदा से, एक बार फिर बिखर गया तो कोई बात नहीं, फिर से मिला सौगात नहीं, लेकिन हम आंसू बहाने वालों में से नहीं, हौसले की महल खड़ी करेंगे यहीं, संघर्ष करेंगे फिर से, हर बार उठेंगे गिर गिर के, शत्रु का काम ही है तोड़ना, अपनी सहूलियत अनुसार हमारी दिशाएं मोड़ना, मगर हमने कभी हार मानी न मानेंगे, लक्ष्य भेदने सारा संसार छानेंगे, तब होंगे हमारे पास अत्यधिक अनुभव, जो तय करेंगे दिशा और दशा करने को करलव, देखते आये हैं और देखते रहेंगे सपनें बार बार, कर कर खुद में सुधार, हम थे ही नहीं कभी तंगदिल, एक दिन मिल ही जायेगी मंजिल। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वा...
मोह माया
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मोह माया

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** अपना बनाते बनाते जीवन गुजर गया, कम और गम खाते खाते जीवन गुजर गया, मान और सम्मान के ख़ातिर, कितनी ठोकरे हे खाई, अपमान और तिरस्कार का घूँट पिते-पिते, क्या करे कमख्खत इन आदतो का, नही तो चेन नहीं आराम जीवन में, बस छूटता तो एक, बस प्रभु नाम जीवन मै, मिलता तो अपयश और अपमान है सहना, बस प्रभु अनुराग के कारण जीवन सार्थक हे तो करना। लगे रहे अच्छे कर्मो मे हम सदा, बस प्रभु ध्यान चरणो मे, नजर सदा उसकी रहे हम पर, यही आशीष हो उनका। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन से सम्मानित ३. १५००+ कव...
कुछ भी नही
कविता

कुछ भी नही

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** न कोई शिकवा न कोई शिकायत। न कोई दर्द न कोई हमदर्द। न कोई अपना न कोई पराया। न कोई सुख न कोई दुख। न कोई चोर न कोई शोर। न कोई राही न कोई हमराही। न कोई जीत न कोई हार। न कोई रक्षक न कोई भक्षक। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी...
अभी संघर्ष शुरू हुआ है
कविता

अभी संघर्ष शुरू हुआ है

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** अभी तो संघर्ष शुरू हुआ है पसीने बहाना बाकी है। कोशिश अभी शुरू हुआ है मंजिल पाना बाकी है।। मंजिल की राहें बड़ी कठिन है अभी तो सफर बाकी है। बाधाएँ तो बहुत बहुत आएँगी इम्तिहान अभी बाकी है।। कोई सहारा हमसफ़र नही है पर अभी हौसला बाक़ी है। हौसलों का साहस बुलंद कर तेरा विश्वास अभी बाकी है।। परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख,...
मेरी मां
कविता

मेरी मां

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** जन्मदाता है मां जिंदगी उसी से शुरू होती हैं। चाहे हमारे बच्चे हो जाय फिर भी मां की जरूरत होती हैं। एक छोटा अक्षर है मां जिसमे पूरी दुनिया समाई है। धरती पर मां भगवान के रूप में आयी हैं। मां ही प्रथम शिक्षक मां ही भगवान है। मां के बिना यह दुनियां वीरान है। चोट मुझे लगती है दर्द उनको होता है। अगर मैं बीमार हो जाऊं तो उनका जीना हराम हो जाता हैं। जब तक न पहुँचूँ घर बार-बार फोन लगती है। मुझे कुछ भी हो जाय, तो रोने लग जाती हैं। मां डांट भी प्यार से लगती है। मेरे उज्जवल भविष्य के लिये, अपना वर्तमान दाव पर लगती हैं। अब नहीं रही मां उनकी यादें ही शेष है। अब मां की स्मृतियां ही मेरे लिये विशेष है। परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी घोषणा : मैं ...
कितने रंग दिखाती है जिंदगी
कविता

कितने रंग दिखाती है जिंदगी

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** ना जाने कितने रंग दिखाती है जिंदगी कभी हंसाती कभी रुलाती है जिंदगी चरित्र के चादर मे रंग लगाती है जिंदगी ना जाने कितने रंग दिखाती है जिंदगी कभी तो अपनों का अपनेपन से ही कभी तो जीवन के झूठे सपनों से ही निज से साक्षात्कार कराती है जिंदगी ना जाने कितने रंग दिखाती है जिंदगी समय की पल-पल पड़ती मार से ही प्रवाहित नदी की अविरल धार से ही समयानुकूल जीना सिखाती है जिंदगी ना जाने कितने रंग दिखाती है जिंदगी समय-समय का अब क्या मोल होगा जीवन जाने कैसे अब अनमोल होगा हर समय की कीमत बताती है जिंदगी ना जाने कितने रंग दिखाती है जिंदगी जीवन के सुर, ताल, लय और छंद का प्रतिपल बदलती इसकी हर बंध का सरगम सा जीवन बतलाती है जिंदगी ना जाने कितने रंग दिखाती है जिंदगी परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुर...
संरक्षण
कविता

संरक्षण

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** कभी कभी लगता है मन के भावों ने ठिकाना बदल दिया हो जैसे सभी शब्द भावनाओं के पिरोए जा चुके हैं सभी अश्रु धाराएं बह चुकी हो जैसे सामर्थ्य और ताकत आजमाए जा चुके हैं प्रेम और करुणा का रस सूख गया हो जैसे सभी विकल्प ढूंढे जा चुके हैं राहें भरमाई जा रही हो जैसे वक़्त का पहिया पूरा घूम चुका है समय अधिक शेष नहीं हो जैसे भाव शून्य, दिशा शूलय, ईच्छा शक्ति टूटती सी क्या अब पुकार सुनेगा कोई डर की, रूदन की, क्रंदन की, चीख और पीड़ा, आत्मबल झकझोर रहा, नए शब्द ढूंढे जाएंगे, हिम्मत नहीं हारेंगे नई ऊँचाइयों पर चढते जाएंगे, अश्रु नहीं आस्था के गीत गाएंगे हो भले बाधाएं अनगिनत, जीवों का जीवन सुगम बनाएंगे इतिहास बन जाएंगे करुणा और संरक्षण का इतिहास बनाएंगे!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा...
मानवता जगाएं
कविता

मानवता जगाएं

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** आओ हम मानवता लाएं आगे स्वतः बढ़ आएँ मानवता आगे बढ़ाएं, द्वंद, घृणा, बैर, क्लेश, जड़ से हटाएं मिटाए स्नेह प्यार सौहार्द आपस में बढ़ाएं खुलेमन से सबको गले लगाएं बढ़ाएं जन जन से प्रेम प्रीति और व्यवहार सेवा, सहयोग, सहायता हम खूब आपस में बढ़ाए प्रेमरिश्तों को निभाये रचाये मधुरता का मानवता का यह संसार संबंध व्यवहार का नाजुक न कहीं पड़ जाए रचती बढ़ती रहे देशसमाज में मानवता जगे मानव के ह्रदय से मानवीयता की मधुर आवाज बढ़ता जाए आपस में सबजन का मेलमिलाप वृहत रचे और रचती रहे मानवता का मधुरतम बढ़े ह्रदय में भरें हरदम मन में उच्चतम विचार मानवता का रचता रहे मानव का मधुर सम्बन्ध मानव का मधुर व्यवहार परिचय :- ललित शर्मा निवासी : खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) संप्रति : वरिष्ठ पत्रकार व लेखक घोषणा पत्र ...
प्रेम की गांठ
कविता

प्रेम की गांठ

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** ठंडी हवा मचल कर न चल ठंड की आबो हवा कही चुरा न ले जिया बेचैन तकती निगाहे मौसम में देखती दरख्तों को सोचता मन कह उठता बहारे भी जवान होती। धड़कने बढ़ जाती प्रेमियों की जाने क्यों जब जब बहार आती-जाती बांधी थी कभी मनोकामना के लिए प्रेम की गांठे। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता भारत की और से सम्मान - २०१५, अनेक साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित सं...
श्रेय का खेल
कविता

श्रेय का खेल

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** श्रेय लेने देने का खेल जारी रहता है अनवरत, मरते को जीवन देता डॉक्टर तब चौक जाते हैं यकबयक, कि मरीज ठीक होकर धन्यवाद करता है उन मिथकीय पात्रों का जो किसी ने देखा नहीं, कण-कण में है कह तो देंगे पर किसी से कभी मिला नहीं, विज्ञान लगा है रात-दिन मनमाफिक जिंदगी जीने का मौका देने के लिए, पर एन वक्त आ जाता है जादू श्रेय लेने के लिए, ये तथाकथित कभी चुनावों में किसी को क्यों नहीं जिताते, प्रकट हो किसी को प्रतिनिधि क्यों नहीं बनाते, चुनने का अधिकार है सिर्फ और सिर्फ मतदाता को, चुनते नहीं देखा कभी खुदा या विधाता को, श्रेय का जो असली हक़दार है उन्हें दिया जाना चाहिए, क्योंकि वे सारी जिंदगी जूझते हैं लोगों को खुशनुमा जीवन देने के लिए, मगर उनके पास समय नहीं होता आगे आ श्रेय लेने के लिए। प...
मुट्ठी भर राख
कविता

मुट्ठी भर राख

डॉ. बीना सिंह "रागी" दुर्ग छत्तीसगढ़ ******************** नीले अंबर की लालिमा देखकर भाव से भाव का हम समर्पण करें सूरज उगते को सब ने नमन है किया डूबते को जी आओ नमन हम करें अभिलाषा उत्कंठा धन संपदा छल प्रपंच छद्म और उच्च शृंखलता अंतर्मन का ए मन मालिन सा हूआ शक्ति भक्ति प्रेम कर्महीन सा हुआ हर्षिता द्वार पे आ खटखटाती रही नवल रश्मियों का आओ आचमन हम करें नीले अंबर की वक्त अंजुरी से फिसलते गए हाथ में काल के हम सिमटते गये सत्यता सहजता दिव्यता छोड़कर चादर आडंबर का हम ओढ़े रहे कदम दर कदम राह झूठ की त्याग कर सत्य पथ का चलो अनुसरण हम करें नीले अंबर... बदचलन ख्वाहिशें उफान मारती रही सतरंगी लालसाएं तूफान लाती रही बेदर्द धड़कने इतराते रहे रूह निगोड़ी सांस संग मुस्कुराती रही मुट्ठी भर राख का सब खेल है जल अंजुरी में ले तर्पण हम करें नीले अंबर ... ...