Thursday, December 4राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

पद्य

नियति नटी का खेल
कविता

नियति नटी का खेल

राधेश्याम गोयल "श्याम" कोदरिया महू (म.प्र.) ******************** सपने सभी बिखर गए, अनचाही चाह में, मित सब बिछड़ गए, अनजानी राह में। हम अकेले रह गए, ठगे-ठगे से हो गए, बंदगी से जिंदगी का मेल देखते रहे। नयन से नियति नटी का खेल देखते रहे। समझ सके न जब तलक जिंदगी की चाल को, लुट कर चले गए सब चोर अपने माल को। और हम पड़े पड़े, किससे और कैसे लड़े, कर्म फल का अपने हम हिसाब देखते रहे। नयन से नियति नटी का ख्वाब देखते रहे। ठंड से कंपते रहे, धूप से तपते रहे, बाढ़ में बहते रहे, सब यूंही सहते रहे। पर्यावरण को मारकर, जंगलों को काटकर, कंक्रीट के जाल का विकास देखते रहे। नयन से नियति नटी का विनाश देखते रहे। कौन कहां खो गया, किसको कौन भा गया, मौन था माली चमन से, कौन बुल बुल ले गया। और हम खड़े खड़े, बाग में जिद पर अड़े, बिखरे पड़े थे ओस कण रवि बटोरते रहे। नयन से नियति नटी का स्वांग...
किस-किस से नफरत करोगे …?
कविता

किस-किस से नफरत करोगे …?

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** दो चार महिलाओं ने उठा क्या लिया गलत कदम, पुरुषत्व सोच में रंगा क्यों निकल रहा तुम्हारा दम, स्त्रियों पर होते आए अत्याचार क्यों नहीं देख पाती तुम्हारी आंखें, अपने किये गये वीभत्स गुनाहों पर बताते क्यों नहीं दो चार बातें, नारी के प्रति तुम्हारी सोच आज हो चुका निम्न स्तर का, उसे सिर्फ सजावट क्यों समझ रहे हो बिस्तर का, बताओ अपनी मां, बहन, बेटी से आज तक कितनी नफरत की है, क्या किसी ने थोड़े से भावनात्मक लगाव नहीं दी है, तुम्हारे स्तरहीन सोच खुद ही बोल रहे हैं सोच सोच कर, कितने अबलाओं की अस्मत लूट चुके हो नोच-नोच कर, अपने इस गिरी हुई सोच से नहीं बन पाओगे विद्वान, मनीषी या योगी, तुम खुद ही खुद को साबित कर रहे हो भयंकर मानसिक रोगी। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्ती...
वीर सपूत
कविता

वीर सपूत

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** आजादी के वीरों सपूतों का, आओ यश गान करें! श्रद्धा, सुमन अर्पित कर, उनका हम सम्मान करें !! कतरा कतरा खून देकर, जो देश बचाया करते है..! ऐसे वीर सपूतों का, हम सब यश गाया करते है !! घर से दूर सरहद में रहकर, देश का गान करते है! सर्दी, गर्मी, बरसात सहकर, तिरंगे की मान रखते है !! दुश्मनों से लड़ते-लड़ते, जो वीर गति को पाते है! ऐसे वीर सपूत जग में, मरकर अमर हो जाते हैं..!! आओ मिलकर देशहित में, कुछ अच्छा काम करें! पेड़ लगाकर धरती में, वीरों के हम नाम करें..! राष्ट्रहित में मर मिटने को जीवन अर्पण करते है ! ऐसे वीर सपूतों का हम, शत-शत वंदन करते है..!! परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह र...
जीवों की आजादी
कविता

जीवों की आजादी

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** खुश हो लो फिर आज आजाद देश मे आजाद हो तुम, दर्द, भूख, गुलामी से अब भी तड़प रहे हैं हम!! तुम जैसे ही जीव हैं हम, तुम जैसा ही है जीवन, क्यूँ हमको नित आहत करते हो क्यूँ कैद में हमको रखते हों?? जिव्हा को क्षणिक स्वाद मिले हम सबका रक्त बहाते हो, कैसे मानव हो तुम, किस मानवता का धर्म निभाते हो???? शनि राहु केतु के डर से हमे पूजने आते हो कभी श्वान, काग, की रोटी, कभी गाय को ढूंढा करते हो! स्वार्थ सिद्ध के लिए ईश्वर को भी धोखा देते हो, मंदिर, पूजा- हवन के बाद हमारा भक्षण करते हो?? सर्कस और चिड़िया घरों जैसे कारावास में हमको रखते हों मन बहले तुम मानव का, कोड़े हम पर बरसाते हो, दर्द और पीड़ा से भरे हम, फिर भी हमको तुम हँसाते हो!! सदियाँ बीत रही पिंजरे में कब खुली हवा में उड़ पाएंगे, आज...
कृष्ण से गुहार
भजन

कृष्ण से गुहार

कमल किशोर नीमा उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** हे कृष्ण पुकारे जब-जब, देना हमें सहारा। हम है बालक तुम्हारे, तुम ही हो पालनहारा। हे कृष्ण पुकारे …. आया जो इस धरा पर, सब मे है अंश तुम्हारा। देखें जिधर भी हम, लगता है सब कुछ न्यारा। मन मोहक इस छबि मे, दिखता है रुप तुम्हारा। संरचना ये तुम्हारी, इस सृष्टि को नमन हमारा। हे कृष्ण पुकारे …. कर्म करें निष्काम भाव से, ये है कथन तुम्हारा। जैसे कर्म करेंगे, होगा वैसा भाग्य हमारा। देना इतनी शक्ति, गुनाहों से करें किनारा। जाये उधर ना हम कभी, जहां हो अहित हमारा। हे कृष्ण पुकारे …. जब जब सजल नयन से, भक्तों ने तुम्हें निहारा। लेकर शरण में अपनी, कष्टों से उसे उबारा। हाथों मे है तुम्हारे, ये जीवन का चक्र सारा। रखना सानिध्य मे अपनी, हो जब जब जनम दुबारा। हे कृष्ण पुकारे …. परिचय :- कमल किशोर नीमा पिता : मो...
सवारी महाकाल की
स्तुति

सवारी महाकाल की

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** चली सवारी ठाठ से, महाराजा महाकाल, २१ तोपों की देते सलामी पुलिस बैंड के साथ। कहार पालकी ले चले, देखो उनके भाग्य, शिव धाम के बने अधिकारी, बाबा जिनके साथ। भोले की भक्ति में, मस्त हुए सब संत, भूत पिशाच मस्त हुए, दानव दैत्य ले संग। राजा राजसी वेष में, ठाट बाट के साथ, अगवानी करते चले, भाला त्रिशूल ले हाथ। राम सीता है बने, देखो नर और नार, दशानन भारी है बना शंकर भक्त महान। भक्त चले हैं झूमते, नाचे गाये मस्त, भक्ति में देखो डूबे, झाझ करताल ले संग। द्वारकाधीश से है मिले महाकाल महाराज, पहने माला बिल पत्र, तुलसी दल महाराज। परिचय : किरण विजय पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय सा...
जब मैं अमीर बना
कविता

जब मैं अमीर बना

दीपक अनंत राव "अंशुमान" केरला ******************** संकरी मिट्टी की झोपडी में, जहाँ चारों तरफ़ की दीवारें हमेशा अपने पसीनों की ख़ुशबू बिखेरती थीं, वहाँ मैं एक इंसान-बसा था। सोने-से रंग में हम एक-दूसरे को चमकाते भी थे, और बालों में ग़रीबी की धूल भी बिखरती थी। कालिख जमी चिमनी के पास, नज़रें टिकाकर मैं कुछ सवालों के जवाब तलाशा करता था। बचपन की मासूमियत में, तब कुछ सवालों के जवाब मिल भी जाते थे कुछ को चुपचाप सह लिया जाता था, कुछ उत्तर तो तर्क से क़रीब भी नहीं होते थे। और कुछ तो ऐसे थे, जिनका जवाब ढूंढते-ढूंढते उम्र गुज़र जाती थी। फिर भी उस कालिख लगे मिट्टी के दीये में मैंने जीवन को जाना, चखा था। अनुभवों से फटी- पुरानी चादर जैसी हमारे सपनों पर माँ की साड़ी का आँचल बिछा रहता सिर्फ़ उम्मीदों पर टिके मिट्टी के घरों के ऊपर पिता सी उस सूरज की दे...
बहना चालीसा
चौपाई

बहना चालीसा

अभिषेक मिश्रा चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश) ******************** ॥दोहा॥ स्नेह-सुमन सरसाइ बहै, राखी रस की धार। मंगल मूर्ति बहन रूप, बंधे प्रेम उपहार॥ अभिषेक वंदन करे, बहना चरणों धार। तेरे पावन प्रेम से, जीवन हो उजियार॥ ॥चालीसा (चौपाई)॥ जय बहना स्नेह की रानी। ममता रूपी जीवन वाणी॥ तेरी महिमा कौन बखाने। हर रिश्ते में प्रेम जगावे॥ बाल्यकाल में साथ निभाया। हर मुस्कान में दुख छुपाया॥ बचपन की तू राजकुमारी। भाई की तू रही सहारी॥ राखी बाँधे रख भाव पवित्रा। मन में बसती शक्ति चित्रा॥ रूठे तो खुद पास बुलाए। माँ जैसी ममता बरसाए॥ तू लक्ष्मी बन घर में आए। भाई के हित द्वार सजाए॥ तेरी हँसी सुखद सुनाई। मन में शांति करे समाई॥ तेरी आँखें स्वप्न सँवारे। तेरे आँसू दुख सब मारे॥ तू ही शक्ति, तू ही पूजा। तू ही सेवा, तू ही दूजा॥ तेरे बिना घर सूना लागे। भाई का र...
भाई बहन के प्रेम को वंदन
कविता

भाई बहन के प्रेम को वंदन

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** वंदन ऐसे प्रेम को, जिस जैसा नहीं है दूजा। भाई बहन का प्रेम है ऐसा, जैसे हो कोई अजूबा। भाई बहन जो नोंक-झोंक, किया करते थे दिन रैन। एक दूजे से मिलने को, अब रहते हैं बेचैन। आये बहन पर आंच, भैया दुनिया से लड़ जाए। भाई पर जो आए खतरा, बहन चट्टान सी अड़ जाए। भाई दूज और रक्षाबंधन, दोनों पावन है त्यौहार। हर साल बढ़ता जाता, इससे भाई बहन का प्यार। दोनों का है प्रेम अनोखा, जिसका आदि न अंत। वंदन इनके प्रेम को, जो रहेगा अनादि अनंत। परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र क...
राखी तिहार
आंचलिक बोली

राखी तिहार

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** छत्तीसगढ़ी कविता भाई बहिनी के सुग्घर मया दुलार! आगे संगी राखी पुन्नी के तिहार!! भाई हर बहिनी के करत हे अगोरा! बहिनी हर राखी के करत हे जोरा !! भाई के मया बहिनी ला बलावत हे!! राखी बांधे के बहिनी सुध लमावत हे! लाल, हरियर, न पिऊरा राखी बिसावत हे! भाई-बहिनी के मया पलपलावत हे!! गुलाल, चंदन ले बहिनी थारी सजाइस! आरती उतार के चंदन चोवा लगाइस!! राखी पहिरा के मिठाई ल खवावत हे! बहिनी हर भाई ले आशीर्वाद पावत हे!! राखी तिहार ला जूरमिल मनावत हे! सुख दुख के गोठ ल गोठियावत हे!! बहिनी कहिस चल मोला घर जाना हे! अवइया बछर लहूट अउ आना हे…!! परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित ए...
भ्रम का दल-दल
कविता

भ्रम का दल-दल

छत्र छाजेड़ “फक्कड़” आनंद विहार (दिल्ली) ******************** भ्रम भ्रम तो भ्रम है मति भ्रम दृष्टि भ्रम दिशा भ्रम भांति भांति के भ्रम नित्य छलते हैं भ्रम कारण-अकारण भ्रमित करते हैं मानव मन..... मन चंचल है बदलती रहती है मन की दशायें कभी गम तो कभी खुशी कभी ईर्ष्या को कभी तुष्टि कभी प्रेम तो कभी नफरत कभी ग्लानि तो कभी लगाव कभी उद्वेग तो कभी उन्माद कभी क्रोधावेश तो कभी कामावेश नाना रकम के प्रपंच जीवन में भ्रमित करते हैं मानव मन...... मन सदा ही रहा है सुविधावादी जब संगम होता है स्वार्थ और सुविधा का मजबूर करता है मन को बदलने को सात्विक राहें और फिर मन चाहे-अनचाहै लगता है दौड़ने आपराधिक मार्ग पर दिग्भ्रमित मन करने लगता है अकरणीय शांत करने को अपने महत्वाकांक्षी अहम् को होने लगता भ्रमित फिर मानव मन..... शोणित प्रबल कंपन संवेदनह...
चन्द्रयान
कविता

चन्द्रयान

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** सीढ़ी पर चढ़कर ढूंढ़ता हूँ बादलों में छुपे चाँद को पकड़ना चाहता हूँ चंदा मामा को बचपन में दिलों दिमाग में समाया था। लोरियों, कहानियों में रचा बसा था माँ से पूछा की चंदा मामा अपने घर कब आएंगे ये तो बस तारों के संग ही रहते है ये स्कूल भी जाते या नहीं अमावस्या को इनके स्कूल की छुट्टी होती होगी। तभी तो ये दिखते नहीं माँ ने आज खीर बनाई इसलिए मामा को खीर खाने बुलाने के लिए सीढ़ियों पर चढ़ कर देखा मामा का घर तो बहुत दूर है। माँ सच कहती थी चंदा मामा दूर के पोहे पकाए ... मैं बड़ा हो के चन्द्रयान में जाऊंगा जैसे गए थे निल आर्मस्ट्रांग तब माँ के हाथों की बनी खीर का न्यौता अवश्य दूंगा। परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि : २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा : आय टी आय निवासी : मनावर, ...
बचपन की मस्ती
कविता

बचपन की मस्ती

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** माँ का आंचल पिता के कंधों का सफर कितना प्यारा था, किस्से कहानियां का दौर था, ऐसा अनमोल बचपन हमारा था! छोटी सी बात पर रूठना-चिल्लाना था, फिर कट्टी कर खुद ही मान जाना था! वो सुनहला सफर था बचपन सुहाना था! आंगन में नीले अम्बर तले नानी कहानियां सुनाती थी, भूत के झूठ-मूठ के किस्से से वो भी डर जाती थी ! छपाक-छपाक बारिश में कीचड़ उड़ाते मिट्टी और कीचड़ का उबटन लगाते ना माँ के डांट की चिंता ना पापा के गुस्से की फ़िकर थी, स्कूल की छुट्टी का उत्सव मनाते थे!! वो बचपन की मस्ती, मासूमियत की बस्ती थी, सराबोर बारिश में खुद को भिगोते मिट्टी से सने कपड़ों में थके माँ की गोद में ही सो जाते थे, अम्माँ की लोरी पापा भी गुनगुनाते थे! पेड़ों की डालों का झुला बनाते, गिल्ली-डंडे और ...
बाबा महाकाल
भजन

बाबा महाकाल

कमल किशोर नीमा उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** बम भोला बम भोला कालों के काल। डम् डम् डमरू वाले मृत्युंजय महाकाल। बम भोला… जटा में गंग धारा है शशि धरे है भाल। ग्रीवा में भुजंग संग रुद्राक्ष की माल। बम भोला… कंठ में हलाहल है त्रिलोचन में ज्वाल। भस्म रमैया भूतेश्वर के अंग वस्त्र है खाल। बम भोला… त्रिशूल अंकुश बाबा का तीन लोग की चाल। तीनों लोक अधीन है पृथ्वी, नभ, पाताल। बम भोला… स्वयं सिद्ध, स्वयंभू है सिद्धेश्वर महाकाल। समाधि में लीन रहते हैं बाबा सालो साल। बम भोला… साक्षात् शिव रुप है ज्योतिर्लिंग महाकाल। छबि अर्द्धनारीश्वर की लगे बेमिसाल। बम भोला… भोले शम्भु भोलेनाथ भोलेश्वर महाकाल। शरण में तेरी आए बाबा अब तू ही सम्भाल। बम भोला… परिचय :- कमल किशोर नीमा पिता : मोतीलाल जी नीमा जन्म दिनांक :१४ नवम्बर १९४६ शिक्षा : एम.कॉम, एल.एल...
जंगल राज
आंचलिक बोली, कविता

जंगल राज

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी बोली) शेर ह बनके महाराजा, जनता मन ल डहे ल धरलिस। तुमन ल जियन नइ देवंव, उबक के कहे ल धरलिस।। कोने भड़कावथे तोला, काखर बात-बिगित ल माने हस। जातरी आ गेहे तोर परबुधिया, बर्बाद करे बर ठाने हस।। बंद कर दिस स्कूल ल, कहिथे पढ़-लिख के का करहू। अदि शिक्षा पा जहु त, अपन अधिकार बर तुम लड़हू।। नौकरी नइ खोलत हे एकोकनिक, बेरोजगार हें परेशान। पढ़त-पढ़त कई साल बितगे, बुढ़वा होगें हें नवजवान।। जीवन भर सेवा देवइया मन ल, नइ मिलय जुन्ना पेंशन। सेवानिबृत्त होय म कुछु नइ मिलय, फेर बुता के हे टेंशन।। गरीब के घर बिजली नइ जलय, जलही कंडिल, चिमनी। छूट नइ मिलय बिजली बिल म, नगतहा पईसा ह बढ़ही।। खुलगे दारु भट्ठी संगवारी हो, पियव मन भर के सब दारु। समाज हो जय भले खोखला, नाचव अउ गावव समारु।। लुट मचे हे जंगल राज म, जनत...
नमामि शिवम्
कविता

नमामि शिवम्

सूर्यपाल नामदेव "चंचल" जयपुर (राजस्थान) ******************** नमामि सत्य सुंदरम, नमामि चन्द्रधारणाम। नमामि त्रिलोक त्रिलोचनम्, नमामि नमामि शिव शिवम्।। सत्य शिव सुंदरम, सत्य शिव सुंदरम।। समस्त् पाप खंडनं, समस्त् लोक पोषणं। सत्य ही शिवम् शिवम् , शिवकृपा जनम जनम।। सत्य शिव सुंदरम, सत्य शिव सुंदरम।। समस्त दोष शोषणं, युतं सुखैक दायकं। निकाम काम दायकम्, नमो नमो शिवो शिवम्।। सत्य शिव सुंदरम, सत्य शिव सुंदरम।। त्वमेव ही कृपाकरम, त्वमेव ही सुखाकरम। गरल कंठ सुशोभितम्, नमामि नमामि मस्तकम।। सत्य शिव सुंदरम, सत्य शिव सुंदरम।। परिचय :- सूर्यपाल नामदेव "चंचल" शिक्षा : एम ए अर्थशास्त्र , एम बी ए ( रिटेल मैनेजमेंट) व्यवसाय : उद्यमी, प्रबंधन सलाहकार, कवि, लेखक, वक्ता निवासी : जयपुर (राजस्थान) । घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरा यह रचना स्वरचित ...
अरे वो फुटबॉल
कविता

अरे वो फुटबॉल

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** कभी इस पैर से तो कभी उस पैर से ठोकर मारे जाते वो फुटबॉल, कभी आया है अपनी मान सम्मान का ख्याल, या फिर लुढ़कना ही रह गया है तुम्हारा काम, भूलकर अपने भविष्य का अंजाम, अपने लिये भीड़ तो लाते हो, पर अपने हृदय का दर्द क्यों नहीं दिखाते हो, दो टीमों के बीच पिस रहे हो, क्या लात पड़ने की खुशी का चंदन घिस रहे हो, तुमने कभी सोचा है कि तुम्हारे बिना इन खिलाड़ियों का हर मूवमेंट खेल अधूरा है, या फिर लतखोर बन लुढ़क रहे सिर्फ इसलिए कि चढ़ चुका मन मस्तिष्क पर किसी का धतूरा है, भूल रहे हो कि लात तुम खा रहे और इनाम कोई और पा रहा है, अपनी खेल कौशल की बात कर वो मदमस्त हो झूमा जा रहा है, तुम्हारे चुप रहने या खुश रहने से तुम्हारी बिरादरी के अन्य फुटबालों पर क्या बीत रही होगी क्या प्रभाव पड़ रहा होगा, कौन कहां मर ...
कल का पता नहीं
ग़ज़ल

कल का पता नहीं

निज़ाम फतेहपुरी मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** वज़्न- २२१ २१२१ १२२१ २१२ अरकान- माफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईल फ़ाइलुन जो आज तेरा सच वही कल का पता नहीं। देखा हो जिसने कल कोई ऐसा मिला नहीं।। जितना मिला बहुत है ज़ियादा करोगे क्या। कुछ ले के जाते क़ब्र में इंसाॅं दिखा नहीं।। कल पर न छोड़ कुछ भी जो करना है कर अभी। आ जाए कब बुलावा कोई जानता नहीं।। दौलत तेरी तेरी नहीं शोहरत नहीं तेरी। बस इक वहम था तेरा जो मर कर रहा नहीं।। साथी बहुत थे जीते जी तनहा है क़ब्र में। दो गज़ ज़मीं है गहरी कोई दूसरा नहीं।। आगे से पीछे आ गए कब पीछे चलते हम। आई है अक़्ल देर से जब कुछ बचा नहीं।। इक वक़्त था निज़ाम वो तेरा उरूज था। पीछे हो आज रहनुमा अपना चुना नहीं।। परिचय :- निज़ाम फतेहपुरी निवासी : मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) भारत शपथ : मेरी कविताएँ और...
जीत जाओगे एक दिन
कविता

जीत जाओगे एक दिन

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* अपनी मुश्किलों से जो लड़ रहे हो तो जीत जाओगे एक दिन! अगर तुम बारीकियों को पकड़ रहे हो तो सीख जाओगे एक दिन !! हौसले से मंजिल पर बढ़ रहे हो तो जीत जाओगे एक दिन !! समय की हवा उस रुख में बहने लगेगी जिस दिशा में तुम होगे ! खुशियों की परछाईयाँ पीछे चलने लगेगीं जिस जगह पे तुम होगे ! साफ नीयत से काम करोगे तो काम भी तुम पर मरेंगे !! अगर ज़मी-आसमां एक कर रहे हो तो जीत जाओगे एक दिन !! ख़ामोशी के संग भी तुम ख़ामोश मत रहना !! हुस्न के नशे में हर दम मदहोश मत रहना !! अपनों को गैर मत करना गैरों से बैर मत करना !!!! हुस्न इक निकासी है आत्मज्ञान सर्वव्यापी है ये बात जो समझ रहे हो तो जीत जाओगे एक दिन ! अपनी मुश्किलों से जो लड़ रहे हो तो जीत जाओगे एक दिन !! परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्...
जब नेह घुला हो बातों में
कविता

जब नेह घुला हो बातों में

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** इत्र नहीं मिलता जग में, दोस्ती को महकाने का। जब नेह घुला हो बातों में, व्यवहार महकने लगता है। हो प्रीत परस्पर रिश्तों में, घर द्वार महकने लगता है। जब मित्र परिवारों से जुड़े तो, किरदार महकने लगता है। मित्रता दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं स्वीकारें 🙏 परिचय :- संजय कुमार नेमा निवासी : भोपाल (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिय...
महादेवा
भजन

महादेवा

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** छत्तीसगढ़ी भाषा में भजन काल के महाकाल कहावय, शिव शंकर महादेवा भक्तनमन के भाग जागे जेन करे तोर सेवा। अंग म राख, भभूत चुपरे बईला म करें सवारी भूत, प्रेत अउ मरी मसान जम्मों तोर संगवारी।I दानी नइ हे तोर असन कस हे सम्भू त्रिपुरारी कतका तोर जस ल गावँव महिमा हे बड़भारी।I गंगा हर तोर जटा म साधे, कहाय तै जटाधारी बघुवा के तै खाल पहिरे जय हो डमरूधारी।I गणेश, कार्तिक तोर लाल कहावय पार्वती सुवारी तोर पउँरी म माथ नवावँय जम्मो नर, नारी।I असुर मन कतकोंन छलिस तोला सिधवा जान हलाहल के पान करइय्या नीलकंठ भगवान।I परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
न जाने कहाँ से कहाँ
कविता

न जाने कहाँ से कहाँ

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** उदधी का उच्च उफान कूल की सीमा लाये जन जीवन को भिगोता वढता है प्यासी धरा की ओर वायु वेग भी साथ देता उदधी को जल पावन करने धरा को मानो सन्देश देते हम आ रहे है साथ-साथ। यह शायद प्रकृति की कारीगरी या जन-जीवन से खिलवाड मानव मन समझ नही पाता कहीं गिरीव्हर का गिरना कहीं गगन से श्याम मेघो का झांकना। शायद कह रहे है हे मानव अब तो सर्तक हो सम्भल जा नही तो प्रकृति का ताण्डव देख कैसा होता है एक क्षण मे न जाने कहाँ से कहाँ होगे सब। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले...
सच के उजाले
कविता

सच के उजाले

मित्रा शर्मा महू, इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मुझे अब किसी की अनुमति लेना नहीं। मुझे अब किसी को साबित भी करना नहीं। मुझे दुनिया के लिए मुखौटे पहनने नहीं सच-सी ख़ूबसूरती और किसी चीज में नहीं। मेरे ज़िंदगी के अंधेरे सायों! मुझे डराओ नहीं ग़लतियों को अपनी बार -बार दोहराओ नहीं। मुझे अपने इस टूटे आईने को जोड़ना नहीं कुछ पाने के लिए, किसी को तोड़ना नहीं। मैं जैसी हूँ वैसी ठीक हूँ, ख़ुद को छुपाकर रखना नहीं दिखावे के ढकोसला में मुझे अब पड़ना नहीं। परिचय :- मित्रा शर्मा निवासी : महू (मूल निवासी नेपाल) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्...
रोटी की महिमा
कविता

रोटी की महिमा

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** भूख से बड़ी वेदना नहीं है यह तो समझो। मिल जाए रोटी यही कामना, यह तो समझो।। भूख तो मानव जीवन का ही है हिस्सा। पेट को भरने का ही तो है देखो सब किस्सा।। पेट भरा हो तो दुनिया लगती अति प्यारी है। भूख के आगे यह सारी दुनिया ही हारी है।। भूख ही तो दुनिया से देखो सारे पाप कराती है। भूख ही तो नित सारे यह संताप बढ़ाती है।। कहते हैं कि कभी भूखे भजन न होय गोपाला। सही बात है रोटी का ही तो सब गड़बड़झाला।। रोटी के आगे तो देखो सब कुछ ही बोना है। रोटी से ही उजला लगता घर का हर कोना है।। रोटी मिलना बहुत देखो भाई बड़ा वरदान है। मिलती रहे सबको रोटी यही आज अरमान है।। भूख से बड़ी वेदना नहीं है, यह तो समझो। रोटी देने से बड़ी संवेदना नहीं है, यह तो समझो।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी :...
सावन
दोहा

सावन

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** सावन उमड़ी बादली, बरस रही घनघोर। कोयल कजरी गा रही, नाच रहे वन मोर। रिमझिम पड़ी फुहार से, हुई सुनहरी भोर। खुशियों की बरसात में, हलधर करता शोर। तीज त्यौहार बादली, सावन की बरसात। मेघ चमकती बीजुरी, हरित अमावस रात। काली घटा गगन चढ़ी, गरज गरज कर घोर। सतरंगी सा लहरिया, इंद्र धनुष का छोर। मेघ मल्लिका रूपसी, सजती सौ सौ बार। हरी चुनरिया ओढ़कर, धरा करे श्रृंगार। चातक श्यामा झूलते, मदन तरु की शाख। मीठी टेर दादुर की, पपिया प्यारी वाख। मादक यौवन हरितिमा, निर्मल बहता नीर। हुआ सुगंधित मलयगिरि, शीतल मंद समीर। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...