आज झंझावात
सुभाष बालकृष्ण सप्रे
भोपाल (मध्य प्रदेश)
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"ये कैसी चल पडी,
खबरों से, मन पर होता है, आघात,
बन्द, घरों में हो गये हैं, अब सारे लोग,
लगता जैसे महीनों से न हुई हो बात,
तडफ रही जिंदगी, प्राण वायू के लिये,
कैसे बचायें हम, अपनों के हृदयाघात,
किसने कहा कि ये अंधेरा छ्टेगा नहीं,
सुनहरी किरणो से होगा कल सुप्रभात,
मायूसी के बादल तो अब लगे हैं छटने,
नई कोपलों ने लाई, खुशियों की सौगात"
परिचय :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे
शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन
प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत॰ मुक्तक लोक व्दारा, प्रकाशित पुस्तक गीत सिंदुरी हुये (गीत सँकलन) मेँ प्रकाशित...